Short Stories

लघुकथा- डेड (Short Story- Dead)

जब से बाबूजी यहां आए थे, तब से परिवार में असंतोष व्याप्त था, कभी उनकी डकार को लेकर, कभी उनकी पूजा-पाठ को लेकर, कभी जगह की कमी को लेकर. लोहा गर्म बहुत दिनों से था, बस आज आख़िरी वार हो गया था.

“हिम्मत रखो… एक ना एक दिन सबको जाना है, ऊपरवाले की मर्ज़ी के आगे क्या कर सकते हैं.” मेरे दोस्त रमेश के रिश्तेदार उसे सांत्वना दे रहे थे, और मुझे उसके पिताजी की निष्प्राण देह में अपने बाबूजी दिख रहे थे. ‘एक ना‌ एक दिन‌ सबको जाना है’… ऐसे ही बाबूजी भी तो कभी चले जाएंगे, मुझे छोड़कर और जीवनभर मैं अपने को धिक्कारता रहूंगा उस मनहूस दिन को याद करके…
“डैड! या तो मुझे हॉस्टल भेज दीजिए या दादाजी को वापस ताऊजी के यहां… मैं नहीं रह सकता हूं ऐसे!” उस दिन मेरे घर आते ही बेटा फट पड़ा था, उसके स्वर में मेरी पत्नी का मौन समर्थन भी था.
“धीरे बोलो, बाबूजी सुन लेंगे… हुआ क्या है?” आए दिन ये सब होता था, लेकिन इस बार कुछ ज़्यादा हुआ था शायद…

यह भी पढ़ें: क्या आपका बच्चा रिश्तेदारों से‌ दूर भागता है? (How To Deal With Children Who Ignore Their Relatives?)

“दादाजी मेरा फोन क्यों छूते हैं? मेरे दोस्त का फ़ोन आया था, पट् से उठा लिया और बोले कि वो तो लैट्रीन गया है… डिस्गस्टिंग!”
मुझे तो पहले समझ ही नहीं आया कि इसमें क्या‌ ग़लत है, लेकिन बहस जब उग्र रूप  में पहुंची, तब समझ में आया कि वॉशरूम कहना चाहिए था!
जब से बाबूजी यहां आए थे, तब से परिवार में असंतोष व्याप्त था, कभी उनकी डकार को लेकर, कभी उनकी पूजा-पाठ को लेकर, कभी जगह की कमी को लेकर. लोहा गर्म बहुत दिनों से था, बस आज आख़िरी वार हो गया था.
उनसे मैं क्या कहूं, मैं ही तो उन्हें बड़ी मुश्किल से मना कर लाया था.
“बाबूजी, इस शहर से उस शहर मेरा तबादला होता रहा, इसीलिए आप कभी मेरे साथ नहीं रहे. अब तो मुझे लखनऊ में ही रहना है, चलिए ना…”
अब उनसे जाने को कहूं?
खैर, ये नौबत आई ही नहीं, दो -तीन दिनों के अंदर ही बाबूजी किसी बहाने से कानपुर लौट गए थे, मुझे आत्म ग्लानि की आग में झुलसता छोड़कर… जो आज और प्रचंड हो चुकी थी.
घर पहुंचते ही मैंने सबको बुलाकर ऐलान किया, “मैं  कानपुर जा रहा हूं, बाबूजी को लेने… कमरा साफ़ कर दो, उनकी किताबें भी सजा दो.”


यह भी पढ़ें: 40 बातें जो हैप्पी-हेल्दी रिलेशनशिप के लिए ज़रूरी हैं (40 Tips for maintaining a happy and healthy relationship)

“लेकिन डैड! मेरे एग्ज़ाम्स हैं, अभी कोई मेहमान नहीं प्लीज़…” बेटा हड़बड़ा गया, उसकी मां भी अवाक थी.
“वो मेहमान हैं? ये उन्हीं का घर है.” मैं पहली बार बेटे पर चिल्लाया, “और डैड ना कहा करो, ‘डेड’ तो सबको होना है एक ना एक दिन… हो सके तो मुझे पिताजी या बाबूजी कहा करो…”

लकी राजीव

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

रणबीर कपूरच्या वाढदिवसानिमित्त आई नीतू कपूरने शेअर केली स्पेशल पोस्ट(Neetu Kapoor Writes Special Post On Ranbir Kapoor’s Birthday)

रणबीर कपूरसाठी आजचा दिवस खास आहे. आज म्हणजेच 28 सप्टेंबर रोजी तो त्याचा 42 वा…

September 28, 2024

भूताला मुक्ती, तर तरुणाला प्रेम मिळवण्यासाठीचा रंजक प्रवास, येतोय नवा मराठी सिनेमा( New Marathi Movie Ek Dav Bhutacha Release Soon)

स्मशानात जन्म झाल्यामुळे सतत भूत दिसणाऱ्या तरूण आणि मुक्ती मिळण्याच्या प्रतीक्षेत असलेलं भूत यांच्यातील धमाल…

September 28, 2024

लग्नाच्या ३ महिन्यांनी सोनाक्षीने केली नवऱ्याची पोलखोल, कोणती सवय आवडत नाही? (Sonakshi Sinha Exposed Zaheer Iqbal After Three Months Of Marriage, Reveals Which Habit of Her Husband Bothers Her)

बॉलिवूडची दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हाने धर्माची भिंत तोडून झहीर इक्बालसोबत लग्न केले. आंतरधर्मीय विवाह केल्यामुळे…

September 28, 2024

आराध्या नेहमीच सोबत का ? रिपोर्टरच्या प्रश्नाला ऐश्वर्याने दिले चोख उत्तर(Aaradhya is My Daughter… Reporter Asked Question to Aishwarya Rai About Her Daughter)

पती अभिषेक बच्चनसोबत घटस्फोटाच्या बातम्यांदरम्यान ऐश्वर्या राय बच्चन अनेकदा तिची मुलगी आराध्या बच्चनसोबत दिसते. पुन्हा…

September 28, 2024

कहानी- दूसरा जन्म (Short Story- Doosra Janam)

सौतेली मां का रिश्ता सदियों से बदनाम रहा है, मैं सोचती थी कि तुम पर…

September 28, 2024
© Merisaheli