क्या-क्यों, कैसे-कब, ऐसा मत करो, ये करो… कुछ ऐसे सवाल होते हैं, जो रिश्तेदार बच्चों से ख़ूब करते हैं. कई बार इन वजहों से भी बच्चे रिश्तेदारों से दूरी बना लेते हैं. इसके अलावा हम उन तमाम संभावनाओं को जानने की भी कोशिश करते हैं, जिससे बच्चे रिश्तेदारों से दूर भागते हैं.
एक समय था जब बच्चों में बड़ा उमंग-उत्साह रहता था रिश्तेदारों के घर जाने का. लेकिन वक़्त के साथ बहुत कुछ बदलता चला गया. अब चेहरों पर मुस्कान रहती है, पर दिल में उतनी ख़ुशी नहीं रहती. क्या बच्चों की सोच बदल गई है? क्या बच्चों को नाते-रिश्तेदार खटकने लगे हैं? या फिर उनका दायरा सीमित हो गया है? ऐसे तमाम सवालात हैं, जिनके जवाब खोजना निहायत ज़रूरी है.
बच्चों का मनोविज्ञान
सबसे पहले हमें बच्चों के मनोविज्ञान को समझना होगा. आख़िर बच्चा क्यों रिश्तेदारों को पसंद नहीं कर रहा? उनसे हिलमिल नहीं रहा.. बातचीत नहीं कर रहा.. उन्हें अनदेखा करता रहता है… मनोवैज्ञानिक रेखा गिरजा कुंदर के अनुसार, बच्चे मासूम होते हैं, लेकिन अतीत में उनके साथ कुछ ऐसा हुआ होता है, जिसका प्रभाव उनके व्यवहार पर पड़ता है. इसके अलावा हो सकता है बच्चे को कुछ रिश्तेदारों का स्वभाव नापसंद हो. उनका ज़रूरत से ज़्यादा सवाल करना, बच्चे के बारे में मीनमेख निकालना उसे नागवार गुज़रता हो. इस बात की भी संभावना है कि रिश्तेदार बच्चों की तुलना करते हो कि फलां रिश्तेदार का बेटा देखो पढ़ने में कितना होशियार है, फर्स्ट आता है… तुम्हारा तो पढ़ने पर ध्यान ही नहीं है… तुम्हारी यह आदत अच्छी नहीं है… हर वक़्त फोन पर रहते हो… इस तरह की बातें करनेवाले रिश्तेदारों से यक़ीनन बच्चे दूर भागते हैं, क्योंकि उनको देखते ही बच्चों का मन कह उठता है, लो आई मुसीबत… फिर वे किसी अप्रिय घटना के होने या अपना मूड ख़राब करने से बेहतर यही समझते हैं कि उनके सामने ही न जाएं.
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बच्चों का स्वभाव
- कुछ बच्चे शर्मीले व संकोची स्वभाव के होते हैं. वे बहुत कम ही किसी से मिल-जुल पाते हैं या खुल पाते हैं.
- इसके विपरीत मुंहफट व हाज़िरजवाब बच्चे भी होते हैं, जो अपनी दुनिया में मस्त रहना पसंद करते हैं. उन्हें अपने सिवा किसी से कोई लेना-देना नहीं रहता.
- गंभीर बच्चों का तो यह हाल है कि वे अपने पैरेंट्स से भी अधिक नहीं बोल पाते, तो भला रिश्तेदारों की क्या बिसात.
- पढ़ाकू स्वभाव के बच्चों को तो रिश्तेदार विलेन की तरह लगते हैं. वे परीक्षा हो या फिर अन्य ज़रूरी प्रोजेक्ट्स, कॉम्पटीशन आदि इन सब में इस कदर जुड़े रहते हैं कि उन्हें इसमें किसी की भी दख़लअंदाज़ी या फिर रुकावट पसंद नहीं आती और इसमें रिश्तेदार उनकी टॉप लिस्ट में होते हैं.
- ज़िद्दी स्वभाव के बच्चे भी रिश्तेदारों को बहुत कम ही अहमियत देते हैं. वे केवल अपनी ज़रूरत से मतलब रखते हैं.
गेम्स-मोबाइल का नशा
- दरअसल, उस समय वे अपने गेम में इस कदर गुम रहते हैं कि उसके आगे उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता.
- वे अधिकतर समय एक ही जगह पर बैठे रहकर बस इनमें मग्न रहते हैं. तब उन्हें किसी की भी दख़लअंदाज़ी पसंद नहीं आती, फिर चाहे वो रिश्तेदार ही क्यों न हों.
- वीडियो गेम्स व मोबाइल फोन की आदतों ने बच्चों को रिश्तों से दूर कर दिया है.
- कुछ बच्चे तो जैसे ही कोई मेहमान, रिश्तेदार आते हैं, तो अपना फोन लेकर दूसरे कमरे में चले जाते हैं या फिर घर से बाहर चले जाते हैं.
- उस पर स्मार्टफोन के एडिक्शन ने तो बच्चों को रिश्तेदार क्या, अपनों से भी दूर कर रखा है.
- वैसे सोशल मीडिया ने भी हम सभी की जीवनशैली में बहुत अधिक दख़लअंदाज़ी की है, ख़ासकर बच्चों के व्यवहार को अधिक प्रभावित किया है.
कई बार पैरेंट्स भी ज़िम्मेदार…
- अक्सर घर पर आए हुए कुछ रिश्तेदारों के जाने के बाद घरवाले उन्हें लेकर तरह-तरह की बातें करते हैं कि ये रिश्तेदार उन्हें पसंद नहीं. रिश्तेदारों को लेकर कई तरह की नकारात्मक बातें भी करते रहते हैं. उनकी इन सब बातों का बच्चे के दिलोदिमाग़ पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. फिर अनजाने में वो भी उन रिश्तेदारों को नापसंद करने लगता है.
- अक्सर अभिभावक अपने बच्चों की तुलना परिवार, रिश्तेदार के अन्य बच्चों से करते हैं. इससे भी बच्चे उन रिश्तेदारों या चचेरे, ममेरे भाई-बहनों को नापसंद करने लगते हैं.
- कई बार पैरेंट्स रिश्तेदारों के सामने अलग तरह का व्यवहार करते हैं, जिनमें बनावटीपन, औपचारिकता, नाटकीयता अधिक रहती है. इससे भी बच्चे असमंजस में पड़ जाते हैं. फिर उनका व्यवहार भी बदलता है.
- प्रायः अभिभावक परिवारिक रिश्तेदारों से यह झूठ बोलते रहते हैं कि वे बहुत व्यस्त थे, इस कारण मिल नहीं पाए, जबकि हक़ीक़त यह रहती है कि वे उनसे बातचीत ही नहीं करना चाहते, इसलिए व्यस्तता का बहाना बनाते रहते हैं. आगे चलकर बच्चे भी उनकी इस आदत को अपनाने लगते हैं और बड़े होने पर इसी तरह का व्यवहार करने लगते हैं.
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कुछ इस तरह करें कि बात बन जाए…
- बच्चों पर किसी तरह का दबाव न डालें. उन्हें प्यार से अपनेपन व रिश्ते की अहमियत समझाएं.
- जिस तरह वे अपने दोस्त को अपना सब कुछ मानते हैं, उसी तरह रिश्तेदार को भी अपने जीवन में जगह दें, इनके महत्व को बच्चों को बताएं.
- बच्चे को उदाहरण के तौर पर यह तर्क भी दिया जा सकता है कि जिस तरह वे रिश्तेदारों से नहीं मिलते, उसी तरह हम भी किसी के यहां जाते हैं, तो उन रिश्तेदारों के बच्चे भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं.
- बच्चे मासूम व संवेदनशील होते हैं, उन्हें प्यार से सभी पहलुओं पर गौर करते हुए समझाया जाए, तो वे वस्तुस्थिति को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं.
- समय-समय पर बच्चों को रिश्तेदारों के यहां ज़रूर ले जाया करें, जिससे उन्हें घुलने-मिलने में आसानी होगी.
- ऊषा गुप्ता
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