Short Stories

कहानी- गुलमोहर और बोगनवेलिया (Short Story- Gulmohar Aur Boganveliya)


वरुण अब कुछ नहीं कह पाया. मुस्कुराकर रह गया. वीथी की दृष्टि का अनुसरण करते हुए वह भी बोगनवेलिया की झड़ी को देखने लगा. ताज़े हरे पत्तों के बीच सुंदर गुलाबी फूल. वर्षभर हरी रहती है और वर्षभर अपने ही रंग में रंगी फूल बरसाती रहती है. सचमुच! बोगनवेलिया को किसी से कोई सरोकार नहीं होता. अपने में मग्न, अपने में मस्त. न संगी-साथी, न संतति. वरुण के दिल में एक अजीब-सा खालीपन भर आया. वीथी बोगनवेलिया की तरह अलमस्त रहकर बंधन से दूर होना चाहती है और एक वह है, जो वीथी को हमेशा के लिए एक प्यारे से सुरक्षित बंधन में बांधने को आतुर है.

 ‘’ये जो रिश्ते होते हैं न, बड़े डिमांडिंग होते हैं. सारी उम्र ख़र्च हो जाती है इनकी डिमांड पूरी करने में, इसलिए मुझे रिश्तों से बड़ा डर लगता है.” वीथी ने पार्क की हरी भरी घास से नज़र घुमाते हुए कोने में लगी बोगनवेलिया पर स्थिर कर दी.
“ऐसा नहीं है. रिश्ते हमें जीने की वजह भी देते हैं. अकेला आदमी परिवार नहीं बन सकता. रिश्ते हमें परिवार देते हैं. जीवन में स्थायित्व देते हैं. सुख-दुख बांटने को साथी देते हैं.” वरुण ने एक गहरी, मगर आत्मीय दृष्टि से वीथी को देखते हुए कहा, तो बोगनवेलिया पर टिकी वीथी की दृष्टि घास से होते हुए बेंच के नीचे की घास रहित मिट्टी पर चली आई.
“मैंने मां को अपनी पूरी उम्र पिताजी की डिमांड्स पूरा करने में ख़र्च करते देखा है. उम्रभर वो उनके इशारों पर नाचती रहीं. क्या मिला उन्हें? बंजर ही रह गईं. कभी हरी नहीं हो पाईं. उनकी इच्छाओं की कोई कोंपल उनकी ही ज़मीन पर कभी उग नहीं पाई, फल-फूल नहीं पाई.”
“तुम सिर्फ़ एक पक्ष देख रही हो…” वरुण ने कुछ कहना चाहा. “बस, नमक की तरह घुलकर अपना संपूर्ण अस्तित्व एक व्यक्ति के पीछे विलीन कर दो.” वीथी अपनी रौ में बोल गई.
“लेकिन वही नमक तो खाने में स्वाद देता है, ठीक वैसे ही रिश्ते जीवन को स्वादनुमा अर्थ देते हैं.” वरुण ने कहा.
“मैं तो उस बोगनवेलिया जैसी बनना चाहती हूं. पूर्णतः स्वावलंबी. न खाद-पानी की दरकार, न देखभाल की… अपने में मग्न, झूमती और फलती-फूलती रहती है.” वीथी ने बोगनवेलिया के ऊपर लहराते स्वच्छ नीले आसमान को देखते हुए कहा. वरुण अब कुछ नहीं कह पाया. मुस्कुराकर रह गया. वीथी की दृष्टि का अनुसरण करते हुए वह भी बोगनवेलिया की झड़ी को देखने लगा. ताज़े हरे पत्तों के बीच सुंदर गुलाबी फूल. वर्षभर हरी रहती है और वर्षभर अपने ही रंग में रंगी फूल बरसाती रहती है. सचमुच! बोगनवेलिया को किसी से कोई सरोकार नहीं होता. अपने में मग्न, अपने में मस्त. न संगी-साथी, न संतति. वरुण के दिल में एक अजीब-सा खालीपन भर आया. वीथी बोगनवेलिया की तरह अलमस्त रहकर बंधन से दूर होना चाहती है और एक वह है, जो वीथी को हमेशा के लिए एक प्यारे-से सुरक्षित बंधन में बांधने को आतुर है. चाहता है कि उसकी मुस्कुराहट की हरी-भरी डालियां उसके जीवन के आकाश में झूमती रहें. प्रेम की सुगंध मन मंदिर में महकती रहे. कितने सपने देख डाले थे उसने पिछले डेढ़ वर्षों में वीथी के साथ आनेवाले भविष्य के. तीन साल जूनियर थी वीथी उससे, पर वह उससे तब मिला, जब इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद नौकरी मिली थी. वह उसी कॉलेज में पढ़ाने लग गया. 

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कुशाग्र बुद्धि वीथी ने बहुत जल्दी ही वरुण का ध्यान आकर्षित कर लिया और उसकी स्थायी मुस्कुराहट ने उसे दीवाना कर दिया. सर और स्टूडेंट की औपचारिकता त्यागकर बहुत जल्दी ही दोनों इतने गहरे दोस्त बन गए मानो बचपन की दोस्ती हो. जब वीथी की पढ़ाई पूरी हुई, तो उसे भी वरुण की कंपनी में ही जॉब मिल गया. बस से साथ आना-जाना, साथ में लंच करना. दोनों ही एक-दूसरे के दिल में, जीवन में बहुत ख़ास जगह रखते थे. जब वीथी अपनी नौकरी में स्थिर हो गई और वरुण भी जीवन में सुदृढ़ आर्थिक स्थिति पर पहुंच गया, तब वरुण ने इस दोस्ती को रिश्ते में बांधने की इच्छा ज़ाहिर की.
“इतने अनमने क्यों हो गए? देखा, रिश्ते का नाम लिया और इतना तनाव घिर आया. बस, नाम लेने भर से ये हाल है, तो सोचो बाद में क्या होगा. तुम मुझसे वादा करो इस बेकार के रिश्ते के चक्कर में दोस्ती पर आंच नहीं आने दोगे. तुम्हारी दोस्ती बहुत क़ीमती है मेरे लिए.” वीथी ने उदास चेहरा बनाकर कहा.
“अरे, अनमना नहीं हूं मेरी मां. चिंता मत करो, हमारी दोस्ती सलामत रहेगी.” वरुण ने हंसकर कहा, लेकिन अंदर से उसका मन बहुत टूटा-सा प्रतीत हो रहा था. पार्क की हरियाली अब आंखों को ठंडक नहीं दे रही थी. हाथ में हाथ डाले घूमते जोड़े मन में एक ईर्ष्या, एक सूनापन उपजा रहे थे. उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वीथी शादी से मना कर देगी. वह तो मन में उसके साथ पक्का गठबंधन कर चुका था. बस, परिवारों की स्वीकृति की मुहर लगनी बाकी थी. वो तो उनकी तरफ़ से भी पूरी तरह निश्‍चिंत था. चार सालों का इतना गहरा आत्मीय मधुर साथ बिना पूर्णता तक पहुंचे ही बीच राह में छूट जाएगा. वीथी के बिना उसे जीवन की कल्पना भी व्यर्थ लगती थी. वह तो उसे अपने मन, जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बना बैठा था, पर इस एक पल ने अचानक ही हाथ रीते कर दिए. 
चमकते सूरज को मिटाकर जैसे किसी ने ज़िंदगी के कैनवास पर स्याह रंग पोत दिया हो और वही स्याही वरुण के चेहरे पर उतर आई थी. वीथी पहले की तरह ही खुले मन से बातें कर रही थी, किंतु वरुण का मन क्लांत हो गया था. आज तक जो अपना होकर इतना निकट था, आज इस पल अचानक ही पराया-सा होकर दूर छिटक गया था. अगले कई दिन वरुण अनमना ही रहा. ऊपर से सारे काम, सबसे मिलना-जुलना, ऑफिस सब कुछ पूर्ववत् सुचारु रूप से चलता रहा, लेकिन मन को भीतर से एक दर्द सालता रहता था. घरवाले निरंतर विवाह की बात कह रहे थे और वह उस तरफ़ से उदासीन हो चुका था. वीथी उसकी मनःस्थिति समझ रही थी, पर अपने जीवन के अनुभवों की वजह से इस बंधन में न बंधने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध थी. बहुत कच्ची उम्र में ही इस बंधन के प्रति उसके मन में एक उपेक्षा, अनचाहा-सा भाव घर कर चुका था, अपनी मां का जीवन देखकर. पिता का शासनात्मक रवैया देखकर समस्त पुरुषों की एक वैसी ही छवि उसके कोमल मन पर अंकित हो चुकी थी. पुरुष स़िर्फ शासन करना जानता है, साथ देना नहीं. और वह किसी के अधीन नहीं रह सकती. विरक्त थी इस ओर से और ख़ुद में ही मगन रहना चाहती थी. भरसक वह पुराने दिनों की तरह वरुण के साथ वही सरल-सहज दोस्ती निभा रही थी. कुछ दिन बीते कि एक सुबह मां का फोन आया, पिताजी की तबीयत ख़राब है, अस्पताल में एडमिट किया है. पिता के लिए उतना नहीं, लेकिन मां अकेली कैसे मैनेज करेगी सोचकर ही वीथी का दिल भर आया. और फिर सच यह भी था कि पिताजी मां के साथ चाहे जैसे भी रहे हों, लेकिन वीथी को तो भरपूर स्नेह-दुलार देकर सिर-माथे रखा है उन्होंने. उसकी हर इच्छा पूरी की है. वीथी चिंतित हो गई. वरुण ने फ़टाफ़ट फ्लाइट की टिकट बुक करवाकर उसे एयरपोर्ट पहुंचाया. रात के साढ़े नौ बजे वह अस्पताल में थी, मां के साथ. पिताजी आईसीयू में थे. हार्ट अटैक आया था, हालत नाज़ुक नहीं थी, लेकिन भविष्य में सावधानी रखना ज़रूरी था. 5-6 दिनों में ही पिताजी घर आ गए. उनकी देखभाल में ही दिन कट जाता. दस-बारह दिनों में उनकी हालत काफ़ी कुछ सुधर गई थी.

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एक दिन दोपहर में जब पिताजी सो रहे थे, तो मां-बेटी बाहर के बरामदे में फ़ुर्सत से बातें करने बैठीं. बड़ा खुला-खुला मौसम था. नीली आसमानी चादर पर कढ़े सफ़ेद रुई से बादल और हरी-भरी डालियों के बेल-बूटों के बीच में उड़ती रंग-बिरंगी तितलियां और मुस्कुराते फूल. आत्मीय बातचीत के बीच ही मां ने आत्मीय-सा विषय छेड़ दिया.
“बुआ ने अपने रिश्ते में एक बहुत अच्छा लड़का देखा है तेरे लिए, फ़िलहाल सिंगापुर में जॉब कर रहा है. फोटो भेजी है. तू भी देख लेना. पसंद हो, तो बुआ को ख़बर करूं आगे बात करने को. मुझे और तेरे पापा को तो अच्छा लगा है.” मां ने बताया. “कोई ज़रूरत नहीं है और वैसे भी मुझे नहीं करनी शादी. मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी.” वीथी ने ठुनकते हुए कहा.
“ऐसा कहने से तो काम नहीं चलेगा. अकेले तो जीवन काटा नहीं जा सकता. जब मैं नहीं रहूंगी, तब क्या करोगी. ये लड़का पसंद नहीं आया, तो दूसरा सही.” मां ने कहा.
“मुझे नहीं बंधना किसी बंधन में…”
“बंधन में नहीं बंधना मतलब? हे भगवान! कहीं तुम लिव इन… तो नहीं सोच रही.” मां की आंखें फैल गईं.
“अरे नहीं मां, आप भी क्या सोचने लगीं. इतने कच्चे नहीं हैं आपके दिए संस्कार कि आपकी बेटी लिव इन रिलेशन-विलेशन के चक्कर में पड़ जाए. मैं पुरुष के साथ किसी बंधन में ही नहीं बंधना चाहती.” वीथी ने बात स्पष्ट की.
“ऐसा क्यों? लेकिन ये फ़ैसला कैसे लिया तुमने अचानक?” मां आशंकित हो गईं, “कहीं किसी पुरुष ने…”
“अचानक नहीं मां बहुत बचपन से ही तय कर रखा है आपकी स्थिति देखकर.” वीथी झिझकते हुए बोली.
“मेरी स्थिति देखकर? मुझे ऐसा क्या दुख है?” मां बहुत बुरी तरह से चौंक गईं.
“दुख क्या? मैंने क्या देखा नहीं, पापा कितने डिमांडिंग रहे हैं शुरू से. आपकी तो पूरी उम्र उनके पीछे नाचते ही गुज़र गई.” वीथी ने अपने मन की सारी बातें आज खुलकर कह सुनाईं, जो वह बचपन से देखती आई थी. सुनकर पहले तो मां चकित हुईं, फिर देर तक हंसती रहीं.
 फिर कहने लगीं, “तुम अपने मन से ही रिश्ते का और पिताजी का बस एक ही रूप देखती रही. तुमने बस यही देखा कि पिताजी बहुत डिमांडिंग हैं. यह नहीं देख पाई कि वे उससे भी अधिक केयरिंग थे. बहुत छोटी थी तुम जब एक बार मैं गिर पड़ी थी. रीढ़ की हड्डी में चोट आने की वजह से डॉक्टर ने मुझे ज़रा भी हिलने-डुलने को मना किया था. तब पूरा एक महीना तुम्हारे पिताजी ने ऑफिस से छुट्टी ली और मेरी देखभाल की. मैं तो बाथरूम तक भी नहीं जा सकती थी. सोचो अगर तुम्हारे पिताजी नहीं होते, तो मेरा क्या होता?” वीथी आश्‍चर्य से सुन रही थी पुरुष के इस रूप के बारे में.
“दरअसल, सच तो यह है कि तुम्हारे पिताजी डिमांडिंग नहीं, बल्कि डिपेंडेंट हैं. बच्चे की तरह ही वो अपनी ज़रूरतों के लिए मुझ पर निर्भर हैं.” मां ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा.
“और यह मत भूलो कि सिर्फ़ उनकी वजह से ही मैं तुम्हारी जैसी प्यारी बेटी को पा सकी. वह पुरुष ही है, जो अपने प्रेम से स्त्री को मातृत्व का सुख देकर उसे पूर्णता प्रदान करता है. ”
“लेकिन उन्होंने आपको नौकरी कहां करने दी. घर बिठाकर आपके सारे सपने तो तोड़ दिए न. उच्च शिक्षित हैं आप. पता है मुझे कि आप अपने जीवन में करियर की कितनी ऊंचाई पर पहुंचना चाहती थीं.” वीथी ने अपनी आख़िरी शंका भी प्रकट कर ही डाली.
“हां, मैं एक सफल करियर बनाना चाहती थी, सच है. नौकरी भी करती थी, इसलिए शादी भी थोड़ी देर से ही की थी मैंने. शादी के बाद भी नौकरी कर ही रही थी, लेकिन जब तीन साल बाद तुम्हारा जन्म हुआ, तो मातृत्व का जो अवर्णनीय सुख मिला, उसके आगे करियर, सफलता जैसे शब्द बेमानी लगने लगे. तब मेरा ही फैसला था कि मैं जॉब नहीं करूंगी, क्योंकि मैं हर एक पल तुम्हें बढ़ते देखना, तुम्हारे साथ ही रहना चाहती थी. पिताजी ने तो बहुत चाहा था कि मैं बंधन में न रहकर अपने अस्तित्व का विकास करके सपने पूरे करूं, लेकिन मैं ही तुमसे कुछ घंटे भी अलग रहने का सोच नहीं पाई.” मां की आंखों में वीथी के लिए ढेर सारा प्यार और ममता छलक रही थी. वीथी पुरुष के इस नए स्नेही रूप का विश्‍लेषण करने लगी. मन की ग्रंथियां खुल रही थीं. पूर्वाग्रह और मन पर जमी ग़लत धारणाओं की काई धीरे-धीरे उतरने लगी थी. कारण क्या था मां का अपनी जॉब छोड़ने का और वह जीवनभर पिताजी को दोषी मानती रही.
“तो अब बुआ को फोन लगाऊं?” मां ने दस मिनट के मौन के बाद पूछा.
“बुआ को नहीं मां, कोई और है जो…” कहते हुए वीथी ने वरुण से हुई पूरी बात बता दी.
“यह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है. देखाभाला, सभ्य, सुसंस्कृत लड़का है. हमें स्वीकार है, लेकिन अब तुम यहां क्या बैठी हो, जाओ उसे फोन करके ख़ुशख़बरी सुनाओ कि तुम शादी के लिए राज़ी हो.” मां ने मुस्कुराते हुए कहा. 

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“फोन पर नहीं मां, मैं उससे मिलकर ही सुनाऊंगी. उस दिन ‘ना’ कहकर उसके चेहरे पर एक उदासी की स्याही फैला दी थी. अब ‘हां’ बोलकर उसके चेहरे पर छाई ख़ुशी की चमक भी देखना चाहती हूं.” वीथी ने कहा.
“ठीक है.” मां बोली. फिर संजीदा स्वर में बोली, “हां, थोड़े समझौते करने पड़ते हैं रिश्तों को निभाते हुए, लेकिन ये सिर्फ़ स्त्री को ही नहीं, पुरुष को भी करने पड़ते हैं. बस फ़र्क़ है, तो ये कि वो कभी जताते नहीं. परंतु बदले में जो प्यार, जो साथ, जो सुख मिलता है न, वो अनमोल होता है.” तभी अंदर से पिताजी ने मां को आवाज़ लगाई.
“जाइए, आपके डिपेंडेंट बुला रहे हैं.” वीथी ने हंसते हुए मां को छेड़ा.
“बदमाश कहीं की.” मां ने हंसते हुए उसके सिर पर एक चपत लगाई. और चार दिन बाद वीथी वरुण के साथ बैठी थी उसी पार्क में और उसकी हां सुनने के बाद वरुण उसे छेड़ रहा था, “लेकिन रिश्ते तो बड़े डिमांडिंग होते हैं न, सारी उम्र ख़र्च हो जाती है.” तिरछी नज़र से उसे देखते हुए वरुण बोला.
“रिश्ते डिमांडिंग तो होते हैं, लेकिन केयरिंग भी तो होते हैं. अब मैं समझ गई हूं.” वीथी ने उसका हाथ थामते हुए कहा. वरुण ने भी प्यार से उसका हाथ थपथपा दिया.
“चलो एक चीज़ दिखाता हूं.” कहकर वरुण उसे थोड़ी दूरी पर ले गया.
“वो देखो, गुलमोहर के पेड़ का सहारा लेकर तुम्हारी बोगनवेलिया कितनी ऊंचाई तक पहुंचकर खिल रही है. गुलमोहर से भी ऊंची. मैं वादा करता हूं तुम्हारे लिए हमेशा गुलमोहर का पेड़ बना रहूंगा. सहारा दूंगा, साथ दूंगा और तुम अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ ख़ूब फलना-फूलना.” वरुण ने उसके कंधे पर हाथ रखा, तो वीथी ने उसके कंधे पर सिर रख दिया. सामने हरे-भरे गुलमोहर से लिपटी, इठलाती बोगनवेलिया अपनी डालियां फैलाए.

विनीता राहुरीकर



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Usha Gupta

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