Short Stories

कहानी- जड़ें (Short Story- Jade)

“मैंने बंटी की ओर से आंखें बंद नहीं की हैं, सख़्ती और अनुशासन में ढील नहीं दी है…‌ उस पर उम्र का असर है बस. इस घर के दिए गए संस्कारों पर, जड़ों पर मुझे यक़ीन है… तुम भी रखो.”

इतने शोर-शराबे के बीच जया की बातें सुनना मुश्किल हो रहा था, लेकिन वो तो भरी बैठी थी, “देख रही हो दीदी! भइया-भाभी के सारे नियम हम दोनों के लिए ही थे! अपनी बिटिया की शादी है, तो डीजे लगवा लिया भाभी ने. आपकी शादी में कितना बवाल किया था सहेलियों के साथ नाचने पर… और पता है, कामवाली बता रही थी लव-मैरिज है शायद…” जया बिल्कुल मेरे कान में घुसकर फुसफुसाई.
“तुम्हे बड़ी ख़बर है!” मैंने जया को हैरत से देखा, “वैसे मुझे तो बंटी के भी रंग-ढंग पसंद नहीं आ रहे हैं. बुआजी तो कहता नहीं, ‘बुई’ जाने कौन-सा शब्द है? देखो, कैसे लफंगों की तरह नाच रहा है…”


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“बात तो सही है जया! हम लोगों पर ही सारी सख़्ती थी.” 
जया तो मेरी सहमति पाकर आंखें नचा-नचाकर फिर से निंदा रस में गोते लगाने लगी. लेकिन मेरा ध्यान बंटी पर ही जाकर टिक गया. कैसा हो गया है ये लड़का? बचपन में जब इसकी उम्र के बच्चे तितली पकड़ते थे, ये‌ दौड़कर उन्हें ‌उड़ा देता था… “बुआ, आज मैंने चार बटरफ्लाई बचाईं…” ऐसा भोला-भाला, मासूम बच्चा आज पाश्चात्य रंग में इस कदर रंगा हुआ?
बात-बात पर ‘चिल मारो‌ बुई’ और टोक दो‌ तो ‘कम-ऑन बुई’…
परसों आते ही भइया से बात शुरू की, तो उन्होंने घुमाकर बात ख़त्म कर दी, “मैंने बंटी की ओर से आंखें बंद नहीं की हैं, सख़्ती और अनुशासन में ढील नहीं दी है…‌ उस पर उम्र का असर है बस. इस घर के दिए गए संस्कारों पर, जड़ों पर मुझे यक़ीन है… तुम भी रखो.”
जया और मैं खाने की ओर बढ़ ही रहे थे कि पीछे वाले दरवाज़े पर कुछ देखकर ठिठक गए; बंटी एक लड़की को कंधे पर हाथ रखकर कहीं ले‌ जा रहा था. लड़की के पैर लड़खड़ा रहे थे, शायद कोल्ड ड्रिंक ‌में‌ कुछ मिलाकर पिला दिया हो!
छि: इतना गिर सकता है ये‌ लड़का. जया तो दाएं-बाएं हो गई, मैं तेजी से आगे बढ़ी, “बंटी, कौन है ये ‌लड़की? ये… ऐसे‌… कहां जा रहे हो तुम लोग..?”
“एक मिनट बुई,” लड़की को पास में रखी कुर्सी को बैठाकर मेरे पास आया, “ये दीदी के साथ ऑफिस में काम करती है. यहां तो‌ ड्रिंक्स हैं नहीं… पता नहीं कैसे धुत्त हो गई. इतने ‌लड़के हैं ‌यहां, ये होश में तो है ‌नहीं…  इसीलिए इसके घर फोन‌ कर दिया था. वो‌ देखिए, अंकल आ गए.” लड़की को उसके पिता के साथ भेजकर वो मेरे पास लौटा.

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मैं उसे एकटक देख रही थी, “क्या हुआ बुई. ऐसे क्यों देख रही हैैं?.. क्या हुआ? मुझे समझ में नहीं आ रहा है…” वो‌ हड़बड़ाकर मेरे पास बैठ गया.
“कुछ नहीं हुआ बेटा, मुझे लगा तू बड़ा हो गया है…” मैं उसके गाल थपथपाते हुए मुस्कराई, “तू तो अभी भी मेरा वही छोटा सा बंटी है; तितलियों को‌ बचाने वाला.”

लकी राजीव

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Photo Courtesy: Freepik


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Usha Gupta

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