मैं बालकनी में बैठा अख़बार पढ़ ही रहा था कि बारिश आ गई. हवा के झोंके के साथ कुछ बूंदें मेरे चेहरे पर पड़ीं, तो जीवन की कितनी ही बीती बारिशें ताज़ा हो गईं। मैं बैठा बारिश का लुत्फ़ ले ही रहा था कि पत्नी शीतल ने किचन से पूछा, ”पकौड़े बना दूं, खाओगे?”
”बना दो खा लूंगा.” यह कहता हुआ मैं कुछ सोचने लगा. शीतल हर मौसम में मेरा ख़्याल रखती है. मैंने कभी उसे बारिश की बूंदों को निहारते हुए निश्चिंतता से बैठे नहीं देखा.
रिटायरमेंट के बाद की यह मेरी पहली बारिश थी. नौकरी की व्यस्तता के बीच मैंने कभी यह सोचा ही नहीं कि शीतल घर पर कितना कुछ क़रती है. मौसम के हर बदलाव, तो उसके हाथों से बनी रसोई से ही होते. हर मौसम में वह सबका ख़्याल रखती थी. बारिश का आनंद लेता मैं सोच रहा था कि क्या यह बारिश सिर्फ़ मेरी है उसकी नहीं?
कुछ ही देर में मैं किचन में आकर बोला, ”सिर्फ़ पकौड़े… नहीं, आज तो पकौड़ों के साथ बढ़िया चाय भी बनेगीं, वो भी मेरे हाथों से.”
हैरानी भरी निगाहों से शीतल मेरी ओर देखते हुए बोली, ”तबियत तो ठीक हैं न आपकी शुक्लाजी! आप और चाय? आज तक पानी भी उबाला है आपने?”
”नहीं उबाला तो क्या.. जब जागो तभी सवेरा.”
”अच्छा यह बताओ कि बहत्तर साल के शुक्लाजी का यह सवेरा हुआ कैसे?” शीतल ने कड़ाही में तेल डालते हुए पूछा, तो मैं बिना कुछ बोले मुस्कुराता हुआ चाय के लिए दूध और पानी नापने लगा.
कुछ ही देर में अमेरिका से राहुल बेटे का फोन आया, तो शीतल बात क़रती हुई बाहर लिविंग रूम की ओर चल दी.
”राहुल, तेरे पापा को आज न जाने क्या हो गया है, किचन के कामों में मेरा हाथ बंटा रहे हैं.”
”क्या बात कर रही हो मां! पापा और किचन में?” शायद फोन के उस तरफ़ से राहुल ने कुछ ऐसा ही कहा.
तभी तो शीतल आगे बोली, ”आज बड़े बदले-बदले लग रहे हैं तेरे पापा. कह रहे हैं कि मौसम जब साल में इतने बार बदलता है, तो हम इंसानों को कम से कम एक बार तो ख़ुद को बदलाना ही चाहिए.”
शीतल अपने बेटे से बातें क़रती रही.
वहां उनकी बातें लंबी चलती रहीं और यहां मेरे हाथ तेज़ चलते रहे. जब तक शीतल किचन में वापस आई, तब तक मैंने पकौड़ों के लिए प्याज़, पालक, हरी मिर्च, हरा धनिया सब काट लिया था. चाय भी लगभग उबल ही चुकी थी.
शीतल ने बेसन घोलकर फ़टाफ़ट प्याज़ और पालक के पकौड़े तैयार कर लिए.
वह आज मेरा बदल हुआ रूप देखकर इतनी ख़ुश हुई कि उसने कई दिनों बाद अपना मनपसंद बारिश वाला गाना प्ले कर लिया, रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाए मन…
वह मेरे बदले हुए व्यवहार से बहुत ख़ुश और साथ ही अचंभित थी. शीतल समझ ही नहीं पा रही थी कि मेरे अंदर का यह बदलाव उसी कि ही तो देन था. दरअसल कल जब वह अपने बेटे को फोन पर समझा रही थी, ”देखो बेटा राहुल, किचन के काम अच्छे से सीख लो, कल को तुम्हारी शादी होगी तो मेरी बहू दिनभर किचन में ही थोड़ा रहेगी. एक अच्छा पति साबित होने के लिए तुझे भी उसके साथ घर के कामों में हाथ बंटाना होगा.”
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बस तब से मेरी आंखें खुल गईं. आख़िर मुझे भी तो शीतल के लिए अच्छा पति साबित होना चाहिए न! और संतानें भी वही करती हैं, जो उनके माता-पिता करते हैं. यही सोचता हुआ मैं यूट्यूब पर पनीर की सब्ज़ी की विधि देखने लगा. बाहर ख़ुशनुमा सी बारिश हो रही थी, पर शीतल के चेहरे का शीतलपन देखकर लग रहा था कि उसकी ख़ुशनुमा बारिश तो आज पहली बार हुई है.
Photo Courtesy: Freepik
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