कहानी- मौसी मां (Short Story- Mousi Maa)

“यदि आप लोगों की सहमति हो, तो सौम्या और राजेश का विवाह करवा दें? मनु को प्यार करनेवाली मां मिल जाएगी. आख़िर मौसी से ज़्यादा कौन मां जैसा प्यार देगी? अब आपने भी दोनों बच्चियों को कोख जायी मां से कम प्यार दिया है क्या? आपको देखकर कौन कह सकता है कि आप जन्म देनेवाली मां नहीं मौसी हैं. समधनजी मौसी तो मां जैसी ही होती है.”
आभा को अचानक लगा जैसे किसी ने 20-22 साल पीछे धक्का दे दिया हो. इतने वर्षों में वो तो भूल ही गई थी कि वो बच्चियों की मां नहीं मौसी हैं. ये तो आज समधन ने याद दिला दिया.

“हेलो.”
“हेलो समधनजी. कैसी हैं आप?”
“बस ठीक ही हूं. आप कहिए, आप कैसी हैं और बाकी सब घर में कैसे हैं?”
“अब क्या बताएं? जीवन है चलाना तो पड़ता ही है. मैं और राजेश के पापा तो राजेश और मनु (पोता) को देखकर दुखी रहते हैं कि कैसे कटेगी आगे की ज़िंदगी इन लोगों की.”
“मनु, रोता रहता है?”
“हां, अब चार साल का बच्चा मां के बिना… आप समझ सकती हैं. राजेश एकदम गुमसुम रहता है. छह महीने हो गए रुचि को गए, लेकिन अभी तक खुद को संभाल नहीं पाया है. मनु तो दादा-दादी से हंस-बोलकर, ख़ुश हो लेता है, पर राजेश…”
“हां, वो तो है ही. हम लोग भी कहां संभाल पाए हैं ख़ुद को अभी तक. रुचि के पापा तो गुमसुम रहते हैं और सौम्या तो कभी भी रोने लगती है. दोनों बहनों में लगाव ही इतना था. ठहरी मैं, तो मैं अपना दुख किसे बताऊं?..”
“ये बात तो सच है. मां के दर्द की बात की, तो बयां नहीं कर सकते. मैं सोच रही थी…” कह कर चुप हो गई समधन (रुचि की सास).
तो आभा (रुचि की मां) ने पूछा, “क्या हुआ समधन? आप कुछ कहते-कहते चुप हो गईं? क्या हुआ?”
“अब क्या बताऊं, मैं सोच रही थी राजेश की दूसरी शादी करवा दूं. मनु को मां मिल जाएगी और राजेश की ज़िंदगी में भी कुछ ख़ुशी आएगी. आख़िर हम लोग कब तक संभालेंगे?”
ये सुनकर कुछ बोल नहीं पाईं आभा, तो समधन ने ही कहा, “यदि आप लोगों की सहमति हो, तो सौम्या और राजेश का विवाह करवा दें? मनु को प्यार करनेवाली मां मिल जाएगी. आख़िर मौसी से ज़्यादा कौन मां जैसा प्यार देगी? अब आपने भी दोनों बच्चियों को कोख जायी मां से कम प्यार दिया है क्या? आपको देखकर कौन कह सकता है कि आप जन्म देनेवाली मां नहीं मौसी हैं. समधनजी मौसी तो मां जैसी ही होती है.”
आभा को अचानक लगा जैसे किसी ने 20-22 साल पीछे धक्का दे दिया हो. इतने वर्षों में वो तो भूल ही गई थी कि वो बच्चियों की मां नहीं मौसी हैं. ये तो आज समधन ने याद दिला दिया.
“ओह!” एक लंबी सांस ली आभा ने.
उधर से समधन शायद कुछ-कुछ कह रही थी, जो आभा के कानों के अंदर नहीं पहुंच पाई. पूरा शरीर जैसे शिथिल हो गया हो.
समधन ने कहा, “ठीक है समधनजी रखती हूं. आप आराम से विचार करके बताइएगा. नमस्कार.”
“जी, नमस्कार.” कहकर आभा ने फोन काट दिया और उसी शिथिलता से वहीं सोफा पर बैठ गई. आभा सोच रही थी.

यह भी पढ़ें: शरीर में स्लो पॉइजन का काम करते हैं ये फूड, भूलकर भी इन्हें डायट में शामिल न करें (Avoid These Food Items In Your Diet, As They Act As Slow Poison)


‘हां, सच में मैं बच्चियों की अपनी मां कहां हूं, मैं तो मौसी हूं. विभा दी की सौत.’
विभा दी आभा से पांच साल बड़ी थी. विभा की जब शादी हुई थी, तब आभा 18 साल की थी और जीजा (विनोद) विभा से पांच साल बड़े. विभा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई. आभा ने अपनी दीदी की शादी में ख़ूब मस्ती की थी, बस दीदी की विदाई में फूट-फूटकर रोई. आख़िर सबसे क़रीब वही तो थी आभा के, जिससे वो अपनी हर बात शेयर करती थी. विभा भी अपनी छोटी बहन आभा को दिलोजान से प्यार करती थी. समय बीतते गए. विभा को दो प्यारे-प्यारे बच्चे हुए. आभा को विभा के ससुराल कम ही जाने दिया जाता था, क्योंकि तीस-चालीस साल पहले कुंवारी जवान बेटियों को बहन के ससुराल या कहीं और कम ही जाने दिया जाता था. विभा के बच्चों से आभा को बहुत लगाव था. उसे देखने दो-चार बार ही जा पाई थी. विभा को ही मायका बुला लिया जाता था.
एक दिन दोपहर में फोन की घंटी घनघना उठी. तीस-चालीस साल पहले मोबाइल था नहीं. लैंड लाइन टेलीफोन ही होता था.
फोन अक्सर घर में वही उठाया करती थी. इसी फोन पर घंटों दीदी से बात भी करती थी. आज भी उसने दौड़कर फोन उठाया.
“हेलो.”
“हां, हेलो, समधीजी हैं क्या? बिलासपुर से राजेश का पिता बोल रहा हूं.” बहुत ही गंभीर आवाज़ थी.
“प्रणाम अंकलजी, बाबूजी अभी घर पर नहीं हैं. कोई बात हो, तो मुझे बताइए, मैं उन्हें बता दूंगी.”
“वो क्या है न…”
“जी अंकल…”
“वो… विभा बिटिया अब नहीं रही… गैस ब्रस्ट कर गया था, जिसमें बिटिया…” इतना कहते-कहते उनकी आवाज़ भर्रा गई.
“क्या?.. कब?..” आभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था.
“दोपहर का खाना बना रही थी कि… मैं अभी अस्पताल से बोल रहा हूं. बेटी, समधीजी के पहुंचते ही घर पर बात करवाना. हम लोग अब घर जा रहे हैं.” कहकर उन्होंने फोन रख दिया.
आभा के कान और दिमाग़ दोनों सुन्न पड़ गए थे. ना तो कहते कुछ बन रहा था और ना ही सुनते. कुछ देर तक यूं ही फोन को हाथ में पकड़े रही जैसे रखना भूल गई हो. आभा की मा, “आभा… आभा…” पुकारते हुए आईं.
आभा को फोन पकड़े बुत बने खड़े देखा, तो पूछती हैं, “अरे क्या हुआ? ऐसे क्यों खड़ी है? किसका फोन था?”
आभा ने कोई जवाब नहीं दिया. उसने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं.
मां ने फिर उसकी बांह पकड़कर हिलाते हुए पूछा, “बोल क्या हुआ?..”
आभा के हाथ से फोन का रिसीवर गिरकर झूलने लगा.
आभा अपनी मां से लिपटते हुए रोते-रोते बोली, “मां दीदी…”
“क्या हुआ दीदी को? हां क्या हुआ उसे?.. बोलो…”
“मां, दीदी के ससुरजी का फोन आया था अस्पताल से…”
“हां तो?..” मां ने कंपकंपाते हाथों से आभा को झकझोरते हुए पूछा. “बोलो क्या बोल रहे थे समधीजी ?..”
हिचकते-हिचकते वह, “मां दीदी अब नहीं…” इसके आगे नहीं बोल पाई वह.
तभी उसके बाबूजी भी बाहर से आ गए. दोनों को इस तरह देख आशंकित होकर पूछा, “क्या हुआ तुम दोनों इस तरह क्यों हो?”
मां घबराते हुए बोली, “सुनिएजी, जल्दी से समधीजी को फोन लगाइए.”
“क्यों? क्या बात है?”
“आप लगाइए तो सही.”
बाबूजी फोन लगाकर, “कोई नहीं उठा रहा है.”
“फिर से मिलाकर देखिए.”
बाबूजी पूछते हुए, “बताओगी भी कुछ…” और फिर फोन मिलाने लगे. उधर से आवाज़ आई, “समधी जी?”
“हां, हां, समधीजी नमस्कार.”
“समधीजी बहुत बुरी ख़बर है. विभा बेटी खाना बनाते समय गैस की आग में झुलस गई. हम उसे लेकर अस्पताल पहुंचे, तो डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.”
“क्या…”
“अभी वहीं से आ रहे हैं. आप लोग आ जाइए. अंतिम दर्शन कर लीजिए…”
बाबूजी तो वहीं थोड़ी देर बैठ गए और आंखों से आंसू बहने लगे. फिर कुछ देर बाद दीदी के ससुराल जाने के लिए निकल गए. इच्छा तो मेरी भी हो रही थी, किन्तु हमारे लिए बहुत पाबंदियां थीं, इसलिए नहीं जा पाई.
इधर मां के मुंह से एक ही बात बार-बार निकल रही थी कि बच्चे कैसे रहेंगे…
दस-पंद्रह दिन बीत गए. एक दिन विभा के ससुरजी का फोन आया, जिसे बाबूजी ने उठाया. अब फोन आभा नहीं उठाने जाती थी. उसे फोन की घंटी से डर लगने लगा था.
बाबूजी को दीदी के ससुर अपने बेटे यानी जीजाजी की शादी मुझसे करवाने को कह रहे थे. ये सुनकर तो दीदी के जाने के ग़म के साथ साथ आभा को डर लगने लगा.
जीजाजी के साथ शादी की बात सोचकर ही मन उदास रहने लगा. आभा सोचती कि उस व्यक्ति के साथ मैं कैसे शादी कर सकती हूं, जो दीदी के सर्वस्व थे.
जब से दीदी के ससुर ने बाबूजी से मेरी शादी की बात की, तब से मां बाबूजी को गंभीर मुद्रा में विचार-विमर्श करते देखती थी. कभी बाबूजी कहते, “दामादजी दस साल बड़े हैं हमारी आभा से. ये ठीक नहीं रहेगा…”
तो मां कह देती, “आप तो मुझसे बारह साल बड़े हैं.”

यह भी पढ़ें: पति-पत्नी के बीच उम्र का कितना अंतर है सही? जानें क्या कहती है रिसर्च? (What Is The Ideal Age Difference For A Successful Marriage, Know What Does Recent Study Indicate)

“अरे वो ज़माना कुछ और था. अब कुछ और है.” बाबूजी बीच में ही बात काटकर कहते.
पर मां को दीदी की दोनों बेटियों के प्रति ममता सताता और कहतीं, “अजी दामादजी की शादी तो कहीं न कहीं होगी ही. उस फूल-सी बच्चियों को सौतेली मां पता नहीं क्या करेगी. बेटे रहते तो फिर भी कोई और बात होती.”
दोनों ने सोच-विचार कर फ़ैसला किया कि आभा की शादी दामादजी से कर दी जाए. आभा से पूछने की ज़रूरत कहां थी. वैसे भी उस समय पूछा कहां जाता था, बस फ़ैसला सुनाया जाता था.
उसी तरह मां ने भी आभा को बताया कि तेरी शादी तेरे जीजा से कर रही हूं. उम्र में तुम से दस साल बड़े हैं, पर कोई बात नहीं, तेरे बाबूजी मुझसे बारह साल बड़े हैं. मर्दों का कामकाज, धन-संपत्ति देखी जाती है. उम्र इतना महत्व नहीं रखता. सबसे बड़ी बात उस बच्चियों को देखो, क्या करेगी बच्चियों के साथ, यदि कोई सौतेली मां आ जाएगी तो… मैं तो सोचकर ही डरती हूं. इतना ही नहीं दामादजी स्वभाव के भी तो बहुत अच्छे हैं. तेरी दीदी को हथेली पर रखते थे.”
आभा सोच रही थी कि वही तो बात है. दीदी की तरह मुझसे प्यार कर पाएंगे जीजाजी कभी या मैं उन्हें जीजा छोड़ पति की तरह कभी समझ पाऊंगी?’
आभा को मना करने की हिम्मत नहीं थी और ना ही स्वीकार कर पा रही थी. बस अकेले में रोती थी. रोते-रोते आंखें सूज गई थी. किसी से बात करने का भी मन नहीं करता था. आभा ने अपनी शादी को नियति मानकर स्वीकार कर लिया था.
जीजा से शादी हो गई और ससुराल भी आ गई. अब दीदी का ससुराल उसका ससुराल हो गया और जीजा उसका पति.
पति से प्यार का तो पता नहीं, लेकिन यंत्रवत फर्ज निभाती रही . दीदी की दोनों बेटियों से तो पहले भी प्यार था और अब भी बल्कि पहले मौसी थी, अब मां हो गई . दोनों बच्चियाँ माँ ( मौसी ) का हमेशा का साथ पाकर खुश रहने लगी . धीरे-धीरे एक साल बीत गया और आभा गर्भवती हो गई . लेकिन बच्चियों से प्रेम कम नहीं हुआ .
फिर घर में नन्हा मेहमान आ गया . दोनों बच्चियों को भाई और उस घर को चिराग मिल गया . आभा तीनों बच्चों को अपने कोखजायी की तरह ही पालती थी . पुत्र के पैदा होने के बाद पति ( जीजा ) का स्नेह भी बढ गया . लेकिन आभा को पति में जीजा नजर आना बंद नहीं हुआ . इसलिए अधिकतर औपचारिकता की बातें ही होती थी . प्रेम मोहब्बत की बातें तो जैसे उसके लिए काल्पनिक बातें थी .
उसका समय इन्हीं तीनों बच्चों के इर्द-गिर्द घूमता था . धीरे-धीरे वह भूल गई कि दोनों बच्चियों की वह मौसी से माँ बनी है .
समय पंख लगा कर उड़ रहे थे . बड़ी बेटी रुचि की पढाई खत्म होते ही शादी कर दी . जल्दी ही एक प्यारा सा नाती की नानी भी बन गई .
छोटी बेटी सौम्या मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी . अपने पैरों पर खड़े होने से पहले तो शादी की बात सुनना भी नहीं चाहती थी .
फिर अचानक रुचि की तबीयत क्या बिगड़ी जो ठीक ही नहीं हुई . बहुत इलाज करवाया पर होनी को कौन टाल सकता है . एक बार ये विचार आया कि ‘सच में मनु कैसे रहेगा माँ के बिना ?’ फिर दूसरे ही क्षण ‘पर इसलिए सौम्या के ऊपर इस जिम्मेदारी का बोझ जबरदस्ती डालना कहाँ का न्याय है ? नहीं उसे भी मौसी से माँ बनने के लिए मैं मजबूर नहीं करूंगी . पुनः इतिहास दोहराने नहीं दुंगी .’ एक लम्बी सांस लेकर दृढ़संकल्प के साथ समधन को फोन मिला दिया “हेलो ! समधन जी, बहुत सोच-विचार कर मैंने ये विचार किया है कि सौम्या पर जिम्मेदारी थोपना सही नहीं है . आखिर बेटियों को भी अपना जीवन साथी चुनने की आजादी होनी चाहिए . जहाँ तक मनु की बात है तो मैं और आप हैं न उसे संभालने के लिए .” एक सांस में कह गई आभा. उसे लगा जैसे सीने पर से बहुत बड़ा बोझ था जो हट गया हो.

पूनम झा

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

रंग माझा वेगळा : सव्वा लाख सुनांची सासू… कोण होत्या त्या? असं काय केलं त्यांनी? (Mother-In-Law Of 1.25 Lakh Daughter-In-Laws : Who Is She? What Did She Achieve?)

आज १६ सप्टेंबर. पाकशास्त्रात अद्वितीय कामगिरी केलेल्या एका जगावेगळ्या कर्तबगार महिलेचा जन्मदिन! त्या आहेत ‘रुचिरा’…

March 25, 2024

जलसामध्ये मोठ्या उत्साहात साजरी झाली बच्चन कुटुंबाची होळी, नव्याने शेअर केले खास फोटो ( Navya Naveli Nanda Share Inside Pics Of Bachchan Family Holi)

प्रत्येकजण होळीच्या रंगात आणि आनंदात मग्न असल्याचे पाहायला मिळत आहे. २४ मार्च रोजी होळी साजरी…

March 25, 2024
© Merisaheli