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लघुकथा- मुफ़्त का भोजन (Short Story- Muft Ka Bhojan)

अच्छा हो यदि हमारे नेता जनता में मुफ़्त बिजली, पानी, तरह-तरह की पेन्शन देने की बजाय उन्हें शिक्षित करें और ऐसे हुनर सिखाएं, जिससे वह अपने पैरों पर खड़े होकर अपना और अपने परिवार का जीवनयापन कर सकें और एक सम्मानित जीवन जी सकें.

एक प्रतियोगी परीक्षा का प्रश्न था, “जंगली सूअरों को पकड़ने का कोई सरल तरीक़ा क्या है?”
एक काबिल छात्र ने उत्तर में लिखा-
जंगली सूअर जो वास्तव में काफ़ी बलिष्ठ होते हैं, आम सुअरों से बड़े और खूंखार होते हैं. उन्हें पकड़ना सरल नहीं, पर एक युक्ति है और वह भी बड़ी सरल.
जंगल में एक बड़ी एवं खुली जगह तलाश कर उसकी एक तरफ़ बड़ी सी मज़बूत बाड़ (fencing) लगा लो एवं उसके आगे मक्के का बड़ा सा ढेर रख दो. जंगली सूअरों को मक्का बहुत पसन्द है. प्रारंभ में दो-चार सूअर आएंगे मक्का खाने, फिर धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती जाएगी. एक बार सहज उपलब्ध मक्के का ठिकाना पा लेने के बाद वह वहां खिंचे चले आएंगे.
सुअरों की संख्या के अनुपात में मक्का भी बढ़ाते रहो. इस तरह जब वह नियमित रूप से आने लगें, तो एक दिन चुपचाप पहली बाड़ से जोड़ते हुए दूसरी तरफ़ भी बाड़ लगा दो. संभव है एक-दो दिन बाड़ को देख कर कुछ कम सूअर आएं, पर उसे वहीं रोज़ देखकर उनका डर ख़त्म हो जाएगा और वह फिर से आने लगेंगे.
आख़िर उन्हें बिना मेहनत के भोजन जो मिल रहा था.
इसकी आदत पड़ जाने पर आप तीसरी तरफ़ भी एक बाड़ खड़ी कर दो. बाड़ का एक हिस्सा तो अभी भी पूरा खुला है, सूअर वहीं से आकर पेट भर खा लेंगे. अब तक दूर के सूअर भी मक्का खाने आने लगेंगे.

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अब आप चौथी तरफ़ भी एक बड़ा सा गेट छोड़कर मज़बूत वाली बाड़ लगा दो. हां, गेट को हरदम पूरा खुला छोड़कर रखो.
न मेहनत न भाग दौड़, उनकी मनपसंद मक्का पेट भर खाने को मिल रही थी और क्या चाहिए. अतः वह नियमित रूप से खुले गेट से भीतर आते रहेंगे.
और आनेवाले सूअरों की संख्या में वृद्धि होती रहेगी.
उन्हें बिना मेहनत के खाने की आदत पड़ चुकने पर एक दिन जब बड़ी संख्या में सूअर बाड़ के अंदर हों, तो जाकर चुपके से गेट को बंद कर दो.
संभव है कि थोड़ी देर सूअर इधर-उधर भागें, बाहर निकलने का रास्ता खोजें, पर चिन्ता मत करो, शीघ्र ही वह शांत हो जाएंगे.
भोजन का ढेर उनके सामने है. वह उसी मुफ़्त में मिले भोजन को खाने में तल्लीन रहेंगे. उन्हें बिना मेहनत भोजन पाने की ऐसी लत पड़ चुकी होगी कि उन्हें बाड़ के भीतर रहना भी बुरा न लगेगा।
इस तरह वह सब अब आपके क़ब्ज़े में हैं और आप उन्हें बारी-बारी पकड़ कर मार सकते हैं अथवा जो चाहें कर सकते है.

क्या हमारे देश में ऐसा नहीं हो रहा?
वोट पाने के लिए नेता आम जन को मुफ़्त के राशन, बिजली, पानी इत्यादि देकर पंगु बना देते है. वोट पाने के लिए ही यह सब कुछ होता है.
मैं अपने घर में काम वाली बाई को फ़ालतू बिजली बंद करने को कहूं, तो उत्तर में यह सुनना पड़ता है कि ‘क्या आप हर समय बिजली बंद करने को बोलती हो. हम तो अपने घर में रातभर बिजली जला कर ही सोते हैं.”

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अच्छा हो यदि हमारे नेता जनता में मुफ़्त बिजली, पानी, तरह-तरह की पेन्शन देने की बजाय उन्हें शिक्षित करें और ऐसे हुनर सिखाएं, जिससे वह अपने पैरों पर खड़े होकर अपना और अपने परिवार का जीवनयापन कर सकें और एक सम्मानित जीवन जी सकें.
शिक्षा को मुफ़्त देना सही है, परन्तु स्वतंत्रता के ७५ वर्ष बाद भी यदि ख़ैरात में आटा-दाल बांटने की ज़रूरत हमारी हार दर्शाती है.
और चुनाव के समय वोट ख़रीदना सरासर हमारे प्रजातंत्र की हार है.
उषा वधवा

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Usha Gupta

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