सुम्मी… बुलाते थे सब उसको प्यार से. सुषमा नाम तो सिर्फ़ स्कूल में ही सुनती थी वह.
अपने बहन-भाइयों में सबसे बड़ी होने की वजह से बचपन से ही ज़िम्मेदारी लेना उसके स्वभाव में ही आ गया था.
पिता के यहां छोटा ही परिवार था, लेकिन उसको पारिवारिक तालीम अच्छी तरह से मिली थी. जैसे ही सुम्मी बड़ी हुई सुम्मी के विवाह की चर्चा सब रिश्तेदारों के बीच होने लगी थी, तो सुम्मी भी अपने ख़्वाबों के राजकुमार को देखने लगी थी. पढ़ने में मेधावी सुम्मी भी कहीं न कहीं उच्चाधिकारी की ही चाहत रखती थी.
एक दिन सुम्मी के पिता को सुम्मी के लिए राजकुमार मिल ही गया.
व्यवसायी राजकुमार, जो बड़े परिवार का बेटा था. जहां सुम्मी छोटे परिवार की बड़ी बेटी थी, वहीं संजू (भावी पति) बड़े परिवार का छोटा बेटा था. सुम्मी और संजू, दोनों का विवाह तय हो गया.
संस्कारी सुम्मी ने नई दहलीज़ पर अनेक ख़्वाबों को संजोकर कदम रखा. कुछ ख़्वाब मुक़म्मल हुए, तो कुछ अधूरे ही रहे. सुम्मी को जहां छोटे परिवार के अनुसार थोड़ा सामान बनाने की आदत थी, वहीं सुम्मी के परिवार में ज़्यादा समान बनाने की सीख मिली.
नई बहू के आने से न केवल बच्चे ख़ुश थे, बल्कि उसके संस्कारों ने उसके बुज़ुर्ग सास-ससुर को भी गांव से शहर ही बुला लिया था.
शुरू में भीड़ महसूस करनेवाली सुम्मी बड़े परिवार में सामंजस्य बिठाने लग गई थी.
सबकी इच्छाओं को पूरी करते-करते नई बहू कब सबकी चहेती बन गई पता ही नहीं चला.
भरे-पूरे परिवार में बस एक ही कमी थी कि सुम्मी की बड़ी जेठानी को कोई बच्चा नहीं हुआ था.
मातृत्व सुख से वंचित सुम्मी की जेठानी मीना, अक्सर उदास हो जाया करती थी.
सुम्मी के दूरदर्शी आंखों ने मीना का दर्द समझ लिया और अपनी पहली ही संतान को जेठानी को देने की बात अपने पति संजू से कही.
संजू की स्वीकृति के बाद बात मीना तक पहुंची. मीना ने सुम्मी से कहा, “मुझे बेहद ख़ुशी है कि तुमने मेरी पीड़ा को समझा और इतना अच्छा हल बताया, लेकिन मेरी भी एक गुज़ारिश है कि मैं तुम्हारी पहली संतान गोद नहीं लूंगी तुम्हें मातृत्व सुख से तृप्त करके ही मैं मां बनूंगी.”
सुम्मी सबसे छोटी होने के कारण सुम्मी की सास उसे नई बहू ही पुकारती थीं.
नई बहू के सराहनीय फ़ैसले के साथ बड़ी बहू मीना के समझदारी भरे फ़ैसले पर सुम्मी की सास ने मुहर लगा दी.
कुछ समय पश्चात सुम्मी एक बेटे की मां बन गई.
बेटा बड़ा होने लगा. सुम्मी भी अपने वादे को पूरा करने की ओर अग्रसर होने लगी.
सुम्मी दोबारा मां बननेवाली थी. उसने जेठानी से निश्चय करवाया कि ये बच्चा आपका ही होगा. मीना जैसे सूखे दरख़्त को पानी मिल गया हो. उसने मूक सहमति दे दी.
संतति का देना और लेना दोनों ही स्त्री के स्त्रीत्व के बड़े बलिदान हैं. नौ महीने दोनों ही मांओं की कोख में पल रही संतान का एक दिन संसार में आगमन हो ही गया. बिटिया रानी का आगमन यूं तो परिवार के हर्ष को बढ़ा गया, लेकिन मीना के दिल में एक कसक पैदा कर गया.
उसने सुम्मी से कहा, “देखो सुम्मी, तुम्हारा परिवार पूरा हो गया है. मुझे लगता है गुड़िया को तुम्हें ही रखना चाहिए. बहन को भाई और भाई को बहन भी मिल जाएगी.”
सुम्मी ने भरी आंखों से कहा, “दीदी आपने कैसी बात कर दी? आपके पास जाने से क्या ये बहन-भाई नहीं रह पाएंगे? और रही बात मेरे परिवार पूरा होने की, वो तो आगे भी पूरा हो जाएगा. लेकिन नौ महीने आपकी ममता ने जो तपस्या की है, उसका मूल्य कौन चुकाएगा? आप ही गुड़िया की एकमात्र मां होगी.”
भावविभोर होकर मीना ने गुड़िया को सीने से लगा लिया. ममता से वर्षों से सूखे स्तनों में मानो दूध का अविरल प्रवाह बह गया हो. देवरानी-जेठानी गले लगकर प्रेम के अथाह सागर में डूबने लगीं.
सुम्मी की सास की अनुभवी आंखें दोनों बहुंओं का आपसी स्नेह और नई बहू की नई पहल पर बलिहारी जा रही थीं.
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