कहानी- क्वारंटीन में मेरे टेडी-मैगी (Short Story- Quartine Mein Mere Teddy-Maggi)

टेडी मूडी है. कई बार बहुत आवाज़ देने पर भी अपने जगह से नहीं उठता. मैगी सीधी है, देखते ही भागी आती है और वह सदा भूखी ही रहती है. देखने में मरियल है, पर सब कुछ शौक से खाती है. टेडी तो मुझे एक बिगड़ा बच्चा-सा लगता है, जो अपनी बात मनवाकर ही रहता है.

डिनर करते हुए मेरा अनमनापन अमित से छुप नहीं पाया. उन्हें लगा सेल्फ क्वारंटाइन से मैं ऊब रही हूं, क्योंकि काफ़ी दिनों से हम चारों पूर्णतः घर में बंद थे. दरअसल, विदेश में रह रहा हमारा बेटा कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण लास्ट फ्लाइट पकड़कर मुंबई घर आ गया था, तो हमारा परिवार सेल्फ क्वारंटाइन में था. सब काम हो रहे थे पर जीवन जैसे रुका-रुका-सा लग रहा था. मेड नहीं थी, सारा दिन काम में होश भी न आता, पर टेडी और मैगी का ध्यान लगातार आता रहता.
अमित ने फिर पूछा, “बोलो तो…” मैं न में सिर हिलाकर उठकर चुपचाप बर्तन धोने लगी. किचन की खिड़की से अचानक टेडी और मैगी दिख गए. अपने एरिया में हमेशा की तरह इधर से उधर घूम रहे थे. ओह, इन्हें भूख लग रही होगी. जब आजकल कोई घर से ज़्यादा निकल ही नहीं रहा है, तो पता नहीं इन्हें खाना मिल भी रहा होगा या नहीं! एक रोटी बची तो है, पर इन्हें दूं कैसे! मन हुआ, बिल्डिंग के वॉचमैन को बुलाकर दे दूं, पर किसी से भी कोई संपर्क नहीं रखना है. अभी तो हम जैसे एक क़ैद में हैं.
मैं घर के कुछ काम निपटाकर खिड़की से टेडी और मैगी को देखने लगी. अब नहीं दिखे दोनों. बेटा तो बिल्कुल अंदर अलग रूम में ही था. अमित और मिनी टीवी देखने लगे. मैं बालकनी में आकर थोड़ी देर के लिए कुर्सी पर बैठ गई.
मुझे टेडी और मैगी याद आने लगे. जब वे पैदा हुए थे, मैं रोज़ की तरह नीचे डिनर के बाद टहल रही थी. बिल्डिंग के एक अंधेरे कोने में मुझे कुछ कूं..कूं.. की आवाज़ आई. अंधेरे में जाकर ध्यान से देखा. अरे, किसी डॉगी के बच्चे हुए हैं. एक डॉगी मम्मी से कुछ पिल्ले चिपके हुए थे. थोड़ी देर में हम ऊपर आ गए. अगले दिन खाने में एक रोटी बच गई, तो टहलने जाते हुए मैंने यूं ही वह रोटी हाथ में ले ली. जिस जगह पिल्ले थे, वहां जाकर उस रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े करके डाल दिए.

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अगले दिन किसी काम से मुझे दिल्ली जाना था. कुछ दिन बाद जब लौटी, तो एक पिल्ला मुझे टहलते देखकर थोड़ा भौंका. मैंने ध्यान नहीं दिया ज़्यादा. फिर मेरे पास आकर साथ-साथ चलते हुए कुछ कूं.. कूं.. की आवाज़ निकाली.
मैंने कहा, ”अरे, भूख लगी है क्या?” वह पिल्ला फिर ख़ूब कूं.. कूं.. करने लगा. मैं अमित को नीचे छोड़ फौरन ऊपर आई. दो ब्रेड स्लाइस लेकर नीचे गई और उसे खिला दी. अब हर रोज़ यही होने लगा. एक नियम बन गया. वह मुझे देखकर इतना कूं.. कूं.. करता कि मुझे ऊपर आकर उसके लिए कुछ ले जाना पड़ता. यह सिलसिला चल निकला, तो अब मैं रोज़ उसके लिए रोटी बना ही लेती. धीरे-धीरे सब पिल्ले बड़े होकर इधर-उधर निकल गए. डॉगी मम्मी भी कम ही दिखती, पर यह जिसे मैंने टेडी नाम दे दिया था. यह उस एरिया से नहीं निकला. टेडी अब तीन साल से मुझे जानता है और मैं उसे.
अचानक एक दिन देखा टेडी को एक गर्लफ्रेंड भी मिल गई है. पतली-दुबली, सूखी-मरियल सी टेडी के आसपास ही दिखती. एक दिन मैगी नूडल्स बनाई थी, जो बच गई, तो मैं रात को टेडी के लिए ले गई. टेडी ने तो छुई भी नहीं, पर उसकी गर्लफ्रेंड ने ही मैगी खाई, तो मैंने उस दिन उसे मैगी नाम दे दिया.
इन दोनों स्ट्रीट डॉग्स से मुझे बहुत लगाव हो गया और उन्हें भी मुझसे. मुझे बहुत दूर से पहचान लेते हैं. इतने समझदार हैं मेरे टेडी-मैगी कि मैं सफ़ाई की दृष्टि से उन्हें कभी छूती नहीं हूं, तो वे भी शायद यह बात अच्छी तरह समझ गए हैं कि मैं उन्हें प्यार तो करती हूं, पर छूऊंगी नहीं. मुझे देखकर मेरे चारों तरफ़ मुंह उठाकर ख़ूब कूदते हैं. कभी-कभी ख़ुश होकर एक-दूसरे से ही खेलने लगते हैं कि हंसी आ जाती है. बाहर से आने पर जैसे ही हमारी कार बिल्डिंग के अंदर घुसती है, इतनी ज़ोर-ज़ोर से पूंछ हिलाते हैं.. कूदते हैं कि कार का दरवाज़ा खोलकर मेरा बाहर आना मुश्किल हो जाता है. कई बार तो मुझे लगता है कि वापस आने पर बच्चों से ज़्यादा हमें देखकर ये टेडी-मैगी ही ख़ुश होते हैं. अब तो मैं यह करने लगी हूं कि अगर बाहर मूवी और डिनर के लिए जा रही हूं, तो उनके लिए एक बैग में रोटी कार में ही रख लेती हूं, जिससे वे दोनों मुझे कार से उतरकर कुछ देर टहलने दें. नहीं तो मुझे उनके लिए जल्दी से भागकर कुछ लेने ऊपर आना पड़ता है. चारों तरफ़ ऐसे घूमते हैं कि एक कदम भी नहीं बढ़ा पाती. जैसे ही कहती हूं कि अच्छा रुको, अभी लेकर आती हूं, तो एकदम किनारे हो जाते हैं.

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टेडी मूडी है. कई बार बहुत आवाज़ देने पर भी अपने जगह से नहीं उठता. मैगी सीधी है, देखते ही भागी आती है और वह सदा भूखी ही रहती है. देखने में मरियल है, पर सब कुछ शौक से खाती है. टेडी तो मुझे एक बिगड़ा बच्चा-सा लगता है, जो अपनी बात मनवाकर ही रहता है.
पिछले हफ्ते की ही तो बात है. एक सुबह मैं अपने रूटीन के अनुसार सुबह साढ़े पांच बजे सैर के लिए गार्डन जा रही थी. टेडी कहीं से आ रहा था. मुझे देखकर उसने अपने मुंह से आवाज़ें निकालीं. मैं यूं ही उसे पुचकारती हुई आगे बढ़ी. कुछ कदम आगे बढ़ाकर फिर पीछे देखा, टेडी रोड पर रुककर मुझे देख रहा था. मैं रुकी, तो उसने मुझे देखकर कुछ बहुत ही अजीब-सी आवाज़ें निकालीं, अक्सर निकालता है वैसी नहीं थीं. जैसे कुछ ख़ास कहना चाह रहा हो. मैं वापस उसके पास आई.
मैंने कहा, “कुछ खाना है?” उसने फिर आवाज़ें निकाली. मैं वापस घर आई. मैंने कुछ ब्रेड स्लाइसेस उठाईं और वापस नीचे आई. उसी जगह जाकर जहां रोज़ उनका खाना रखती हूं. टेडी को बुलाने के लिए आवाज़ें दीं. झांककर देखा कि आया या नहीं, टेडी तो चौराहे पर आराम से बैठा था, उसी तरफ़ से मैगी दौड़ती हुई आई और सारी ब्रेड खा गई. मुझे एक झटका-सा लगा. मैं हैरान खड़ी रह गई. टेडी मैगी को खाना देने के लिए कह रहा था? ओह! जानवरों में एक-दूसरे के लिए इतना प्यार! इतनी चिंता!
टेडी मेरे बुलाने पर अपनी जगह से हिला भी नहीं था. वह भूखा नहीं था. भूखी तो मैगी थी! जो शायद इधर-उधर अपने लिए कुछ ढूंढ़ रही होगी. उसने मैगी के लिए मुझे जाने से रोक लिया था. मेरी आंखों में सुबह-सुबह ही कुछ नमी-सी आ गई. मेरा मन पिघल उठा.
आजकल जब भी दिख रहे हैं, ऐसा लगता है, भूखे तो नहीं! मुझे उनकी याद आती रहती है! ओह, टेडी-मैगी!

पूनम अहमद

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