कहानी- रिश्ते का वायरस (Short Story- Rishte Ka Virus)

“कैसी बातें करते हैं पापा… सुना न आपने, अब तो लाॅकडाउन बढ़ता ही जा रहा है. कल से आप दोनों बिल्कुल कहीं नहीं जाएंगे… मेरी भी तो छुट्टी हो गई है, ऑनलाइन थोड़ी देर का ही काम होता है मेरा. बस, मैंने बोल दिया कल से आप दोनों नहीं जाओगे.”…

अर्पिता परेशान थी, देवर तुहिन और हिमानी शादी के बाद से विदेश क्या चले गए सासू मां मधुरिमा और ससुर चेतन प्रकाश ने अपना घर किराए पर उठाकर यहीं डेरा जमा लिया.
ये बात और है कि वे उस किराए का दो तिहाई पैसा हमें ही दे देते हैं, पर घर के काम तो बढ़े ही न… घर में जगह भी घिर गई. एक कमरा कम हो गया… कोई प्राइवेसी भी नहीं रही. हर वक़्त हम निगाह में रहते हैं. एक डर सा बना रहता है वो अलग. क्या सही क्या ग़लत, हर बात पर लेक्चर सुनो… बच्चे भी हैं बस अब उन्हीं की सुनते हैं हमारी नहीं… पता नहीं चलता उन्हें कि वे वायरस जैसे हमारी ज़िन्दगी खाए जा रहे हैं…सच में वायरस ही हैं दोनों…’ अर्पिता बड़बड़ाये जा रही थी.
आठ वर्षीय बेटे अमन ने सुनकर हैरानी से पूछा था, “कौन? कहाँ है वायरस मम्मी? टीवी वाला वायरस करोना? आपने देखा? हमें भी दिखाओ न…”
“अरे अम्मू बेटेे, वायरस इन आंखों से थोड़ा ही दिखता है. बच्चों को यूं ग़लत न बतलाते हैं, न ही डराते हैं… लिस्ट का सारा सामान मिल गया.” कहते हुुए मधुरिमा, चेतन प्रकाश के साथ सामान टेबल पर रखकर वाॅशबेसिन में हाथ धोने लगी.
“जी मम्मीजी, कोरोना की ख़बरों ने मेरे दिमाग़ का दही कर दिया है उसके सिवा कुछ सूझ ही नहीं रहा. यूं ही मुंह से निकल जाता है. मैं चाय बना लाती हूं आप दोनों के लिए हम दोनों ने तो शाम की चाय अभी पी ली.”
“अच्छा… कहां है तुषार?… तोषीऽ… तबियत तो ठीक है न उसकी?” चेतन प्रकाश पुकारते हुए तुषार के रूम में चले आए.
“हां, थोड़ा सिरदर्द था पापा, तो अदरक-लौंगवाली चाय बनवा कर पी ली अभी… पर मैं सोता रह जाता हूं, तो आप लोग सामान लेने क्यों चले जाते हो रोज़-रोज़़. ये अच्छी बात नहीं. मानते क्यूं नहीं अर्पिता की बात. छह से नीचे और साठ से ऊपर के लोगों को ही अधिक ख़तरा है मालूम है न? फिर क्यों रिस्क लेते हैं कुछ हो जाएगा तो?”
मधुरिमा और चेतन प्रकाश ने एक-दूसरे को देखा था. अर्पिता ने कब मना किया, बल्कि कुछ दिनों से उसने खु़द अपना कहीं आना-जाना बंद कर दिया है और मास्क देकर उन्हें ही रोज़ लिस्ट थमा बाज़ार से सामान लाने को भेज देती है. तुषार के सामने अपने को अच्छा साबित करने के लिए कुछ कहा होगा उसे. दोनों समझ रहे थे, लेकिन बोले कुछ नहीं.
“अरे हमें कुछ नहीं होता, असली का खाया-पिया है हमने और हमें हो भी गया तो क्या? सब काम, ज़िम्मेदारियां हमने पूरी कर लीं हैं. अब तुम्हें करनी है.” वह कहते मुस्कुरा दिए.
“कैसी बातें करते हैं पापा… सुना न आपने अब तो लाॅकडाउन बढ़ता ही जा रहा है. कल से आप दोनों बिल्कुल कहीं नहीं जाएंगे… मेरी भी तो छुट्टी हो गई है, ऑनलाइन थोड़ी देर का ही काम होता है मेरा. बस…मैंने बोल दिया कल से आप दोनों नहीं जाओगे.”
“चाय बनाना अर्पिता एक कप और मेरे लिए भी, तब तक आप दोनों कपड़े बदलकर वाॅशिंग मशीन में डाल दीजिए, ख़ुद नहीं धोएंगे. मैं मशीन लगा लूंगा. आता हूं मैं…”
“मैं चाय लाती हूं सबके लिए…” अर्पिता उनसे आंखें चुराते हुए किचन की ओर चली गई थी.
दूसरे दिन तुषार को हल्के बुखार के साथ थोड़ी खांसी भी आने लगी थी. फैमिली डॉक्टर ने बताया, “कोरोना नहीं. फिर भी ख़्याल रखना पर घबराने की ज़रूरत नहीं.” उनकी सलाह से उसे दवाई दी जाने लगी. चेतन प्रकाश और मधुरिमा दोनों ही जाकर दवाइयां भी ले आते और ज़रूरी सामान भी.
“ये लो अम्मू-अन्नू तुम्हारी चाॅकलेट चिप्स.” उन्होंने रोज़ की तरह धोकर पोंछे पैकेट्स बच्चों को थमा दिए थे.
तुषार की न खांसी-छींकें कम हो रही थीं, न ही बुख़ार कम होने का नाम ले रहा था.
“थोड़ा सिर दबाना अर्पिता… बाम भी लगाना…”

“मैं बच्चों को खाना देने जा रही हूं. मम्मीजी को भेजती हूं.” कहते हुए जल्दी में चली गई.

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तुषार देख रहा था, महसूस करने लगा था कि अर्पिता कोई-न-कोई बहाना करके उससे दूर रहने की कोशिश कर रही है. बच्चों को भी उसके पास आने नहीं देती. मम्मी-पापा से ही उसके काम करवा देती. उसे खाना कभी मम्मी, कभी पापा ही देने आते, खिलाते. बच्चों को सुलाते-सुलाते उन्हीं के कमरे में सो जाती.
तोषी की कराह से उठी मधुरिमा आकर उसे पानी पिलाकर माथा सहलाती. फिर अर्पिता को भी चादर-कम्बल ओढ़ा जाती. तुषार पूछता भी, “आप क्यों मम्मी? अर्पिता फिर बच्चों को सुलाते-सुलाते वहीं सो गई?”
“काम ज़्यादा पड़ गया है थक जाती होगी बेचारी.”
“मैं ख़ूब समझने लगा हूं. घर में रहकर उसकी असलियत सामने आ रही है धीरे-धीरे… क्या सुलूक होता होगा आप लोगों के साथ जब मैं घर पर नहीं होता हूं… मेड को छुट्टी दिलवा दी, तो बर्तन-झाड़ू के काम आपको थमा दिए. मैने देख लिया कल…”
“उसने कुछ नहीं कहा हमें करने को, अरे हमने ख़ुद ही सोचा थोड़ी मदद हो जाएगी. इस करके हम खु़द ही… शरीर भी थोड़ा चलना चाहिए… ऐसा नहीं सोचते…”
“आप और कुछ भी करो बर्तन-झाड़ू, बाजार आप नहीं करोगे.”
अर्पिता ने मेड को चुपके से कॉल कर दिया था.
“मुझसे नहीं हो पायेगा तेरे बिना .देख नहा के आना मास्क मैं तुझे दे दूंँगी .पीछे के रास्ते से आना सुबह छै बजे…. तेरे को डबल पैसे दूँगी.यहांँ किसी को पता नहीं लगना चाहिए चुपचाप किचेन किचेन कर चले जाना.”
“ठीक है फिर आती हूँ.”
इधर तुषार ठीक हो चला था.आठ बजे उठा तो किचेन साफ़ सुथरा देखकर कर अर्पिता को मन ही मन सराहा ….वह सबके लिए चाय बना कर टीवी रूम में ले आई जहाँ तुषार न्यूज़ आॅन कर बैठ चुका था. मम्मी पापा भी फ़्रेश होकर वहीं आ आ गये थे.
“वाह आज तो अर्पिता तुमने सफ़ाई के सारे काम अकेले निपटा कर नहा धो लिया सुबह ही….”
“जी मम्मी जी बस नाश्ता बनाने जा रही हूंँ .देर से शुरू करती हूँ तो सारा दिन ही नाश्ते खाने और सफ़ाई में निकल जाता है ….इसलिए सोचा जल्दी उठ कर….”
“दुनियाभर में मरनेवालों का आंकड़ा तो बढ़ता ही जा रहा है.
” जाने क्या होगा…. “
“ये ग़रीब मजदूरों का बेचारे तो भूखे प्यासे पैदल ही अपने गाँवों के लिए निकल पड़े हैं….”
“मौसम भी साथ नहीं दे रहा…. बेमौसम की बारिश…. करोना संक्रमण के और चांसेज़ !
“चलो अर्पिता मैं भी तुम्हारी मदद करती हूँ.जल्दी काम निपटाते हैं.”मधुरिमा खाली कप उठा किचेन को जाने लगी थीं.तो अर्पिता भी बाकी कप्स लेकर उठ खड़ी हुईं
“अरे वाह तुमने तो बरतन भी सँवार कर रख लिए.”
“आप जाइये न मम्मी जी मैं कर लूंँगी….फटाफट.आप सब्जियां भले काट लीजिए आराम से डायनिंग टेबल पर मैं धोकर वहीं ले आती हूँ…”
‘किचन में रहेंगी तो कुछ न कुछ कमेन्ट अवश्य करती रहेंगी …. बोला था न अच्छे से भून लो आलू पहले फिर परांठे टेस्टी बनेगे.गैस खुली मत छोड़ो .चढ़ाने का बर्तन तो पहले ले आओ.’काम हो गया नल तो बंद कर देना था अर्पिता .वेस्ट करना सही नहीं….यूज़ करके सामान वापस रखती जाओ तो किचेन मेसी नहीं होता…..आदि आदि, जी जल उठता है मेरा घर मैं अपने तरीके से रह भी नहीं सकती .मेरे से धीरे धीरे काम होता ही नही ..पहले फटाफट कर तो लूँ फिर एक साथ सफ़ाई कर दूंगी पर कौन कहे….वायरस जैसे चिपक गए दोनों मेरी जिन्दगी में…’
जीरे मिर्ची का तड़का जल गया. वह उबले आलू छीलने और खिड़की से पड़ोसन राधा की लटकती लाल बार्डर की नीली सूखती साड़ी को देखने में मस्त थी हाय ऐसी मैं भी लेकर आऊँगी….’
छींकते खाँसते उसकी आंखों में आँसू आ गये..कुछ ऐसी झार पूरे घर में फैल गई कि घर भर छींकने खाँसने लगा.
“कहां थी अर्पिता?तुम्हारा ध्यान कहां था?” तुषार कोहनी मुँह पर रखे छींकता किचेन में झांक कर देख रहा था.अर्पिता ने गैस बंद कर दी थी. उसी की तरह छींकती खाँसती बाहर आ गई .खिड़की दरवाज़े खोलने अौर फ़ैन आॅन करने के बाद झार ख़त्म हुई तो सबने राहत की सांस ली .पर अर्पिता की खाँसी तो रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी.मधुरिमा ने उसे पानी देकर किचेन सम्भाल लिया.यही तो चाहती थी अर्पिता ,इसलिए लगे हाथ खांसी छींक का कुछ नाटक भी कर लिया था उसने.
“सबके साथ टेबल पर ही नाश्ता मिल गया था उसे भी….”
“दादी मम्मी ,कितना टेस्टी पराठा है एक और खांउँगा …”अम्मू बोला
“दादी मम्मी मैं भी मैं भी..”अन्नू ने भी उसका साथ दिया.सभी चाव से खा रहे थे अर्पिता को भी ताज़ी धनिया नींबू की चटनी के साथ गर्म नर्म परांठे बहुत भा रहे थे फिर भी उसका दिल कुढ़ रहा था.जु़बान से कुछ न निकला अपितु वह खांँसने का बहाना कर वहांँ से चली गई.
बहाना करते-करते एक दिन अर्पिता ने महसूस किया उसकी खाँसी सही में आने लगी है, रुकती है तो साँस लेने में दिक्कत सी होने लगती तो फिर खाँस उठती ….हल्का सिर दर्द और बदन में हरारत सी भी…कहीं…करोना …’सोचकर उसका दिल काँप उठा …..’सब्जीयां ही कल बाहर से लीं थीं पर अच्छी तरह गर्म पानी में नमक और विनेगर डालकर धोकर रखीं थी…पाउडर दूध, राशन सब घर पर है पहले ही मंगा लिया था वो मम्मी जी ने ख़ुद ही धो पोंछ कर रखा था….कहीं मेड….?…नहाकर तो आती है मास्क भी दे दिया था .उससे आते जाते हाथ सेनिटाइज़ करवाती हूँ….अभी तुषार को मेड का पता नहीं है वरना वो जान ही ले लेगा.पहले मेड को अब आने को मना कर दूं.फिर तुषार से डॉक्टर के लिए बोलूँगी,कल से बोल रहा है दिखा लो.’ उसने धीरे से मेड को फ़ोन से ही मना कर दिया.

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डाॅक्टर की सलाह पर उसे क्वारंटीन कर दिया गया. मधुरिमा और सचिन ने सारा घर सम्भाल लिया .तुषार सुरक्षित रहकर बाज़ार से सामान लाता ही था तो उसे धो पोंछ कर रखने का, ज़िम्मा भी उसने ले लिया.चेतन बच्चों के साथ डस्टिंग,लाउन्ड्री करते,नहाने के बाद बच्चों को तैयार होने में मदद करते,पढ़ाते, खेल खेलाते,स्टोरी सुनाते. तो तुषार किचेन में मम्मी की हेल्प करने पहुंच जाता. मधुरिमा बड़े प्यार से अर्पिता को रोज़ धुले कपड़े खाना पानी चाय समय समय पर पहुंचा जाती.’तू किसी बात की चिन्ता न कर हम सब मिल जुलकर तेरा घर सम्भाले हुये हैं …..
….तू जल्दी ही बिल्कुल अच्छी हो जायेगी डॉक्टर यही कह रहा है.”वह प्यार से उसका माथा सहलातीं.
“अब ठीक है ….बुखार कम हो गया है .” वह थर्मामीटर लगा कर देखती ख़ुश होकर आश्वस्थ होतीं.उनकी स्नेहपूरित निश्छल सेवा से अर्पिता की आँखें भरने लगीं. मैं तो तुषार के पास ही संक्रमण के भय से कतराने लगी थी पर मम्मी जी, तुषार, सबने तो मुझ पराई को भी अपनी ही जान समझा.’ उसने चरणों में गिरकर उन्हें हाथ जोड़े थे पश्चाताप से उसकी आँखें झरने लगीं थीं….
“मुझे क्षमा कर दीजिए मम्मी मैं आप दोनों को ही वायरस समझती थीअपनी ज़िन्दगी का. पर असल में मैं खु़द में ही वायरस रखे हुये थी.जिसे आपकी सेवा प्यार ने मार डाला.वह फूट फूट कर रो पड़ी थी.
अर्पिता की दवाई लेकर आया तुषार सब सुनते हुये दरवाजे पर ठिठका फिर मुस्करा कर अंदर हो लिया.

डॉ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

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