Short Stories

कहानी- रिश्तों की लड़ाई (Short Story- Rishton Ki Ladai)

“अगर मेरा ख़्याल न होता, तो वे मेरे पिता जैसे व्यक्ति के साथ एक दिन भी न निभातीं. सब छोड़-छाड़ कर कहीं चली जातीं या कुछ कर करा लेतीं.”
नमिता हंस दी, “मेरी मम्मी भी यही कहती हैं प्रकाश!” वह अपने माता-पिता के सामने मेरा नाम लेती थी, पर एकांत में मुझे ‘तुम’ ही कहती, “जब पापा से लड़ाई होती है, तो बिसूरती हुई मुझसे कहती हैं… मेरे कारण इस घर में रह रही हैं, वरना उस आदमी के साथ एक पल न रहें.”

स्त्री या लड़की सिर्फ़ शारीरिक ज़रूरत नहीं है, उसके प्रेम में पड़ना अभिशाप भी नहीं है. स्त्री या लड़की एक आत्मीय उपस्थिति है. एक ऐसी ज़रूरत है, जिससे व्यक्ति को मानसिक संबल मिलता है. हवा में खुशबू, स्पर्श में सनसनी, हंसी में झरने की खिलखिलाहट, बातों में गीतों सी सरगम… यह सब एक लड़की के कारण ही व्यक्ति को अनुभव होता है.
कितनी अजीब बात है कि फिर भी स्त्री-पुरुष के प्रेम में हज़ार तरह की बाधाएं हैं. प्रेम करना धरती पर सबसे कठिन काम है. प्रेम को छिपाए रखना उससे भी अधिक कठिन और जगजाहिर होने पर उसके नतीजों को भोगना…
जैसा हर किसी के साथ होता है, मेरे साथ भी हुआ. उस वक़्त सत्रह-अठारह साल का रहा होऊंगा मैं, जब वह लड़की मेरे दिल में समा गई थी. आख़िर क्या ख़ास बात थी उसमें, आज सोचता हूं, तो ख़ुद पर हंसी आती है. पर उस वक़्त मुझे उसका सब कुछ अच्छा दिखाई देता था… उसका रंग, उसका रूप, उसकी चाल, उसके बाल, उसकी हंसी, उसकी बातें, उसका सिर झटकना, उसके अधरों का कंपन, सब कुछ.
मैं इंटर में था उन दिनों और वह ग्यारहवीं में. उसके पिता का हमारे शहर में नया-नया तबादला हुआ था. वे लोग हमारे मकान में ऊपर वाले हिस्से में किराएदार बन कर आए थे. आते ही नमिता की मां ने कहा था, “लड़कियों के स्कूल में दाख़िला करवा दो नमिता का.”
मैंने कई दिन अपनी साइकिल पर भागदौड़ की, तब कहीं जाकर उसका दाख़िला हो पाया. नमिता के पिता नए शहर में आकर अपनी घर-गृहस्थी जमाने में जुटे हुए थे. उनका यह काम मैंने कर दिया, तो उन्होंने आभार सा माना. नमिता मेरे पास आने-जाने लगी और मैं उसके पास. हमारे विषय भी एक जैसे थे. नतीजतन पढ़ने-लिखने में भी हम सहयोगी बन गए.
इस मिलने-मिलाने के सिलसिले में कब नमिता मुझे अच्छी लगने लगी और कब नमिता के दिल में मैं उतर गया, कुछ पता ही नहीं चला.
एक दिन वह अपने हाथों से सब्ज़ी बना कर लाई, “खाओ.” उसने ज़िद की, तो मैंने पूछा, “क्यों लाई?”
वह बोली, “अपने हाथों से कुछ बनाकर खिलाने का बहुत दिनों से मन था. खाओगे तो मुझे अच्छा लगेगा.” उसकी आंखों में और ज़्यादा कशिश पैदा हो गई थी. उसकी आवाज़ में और ज़्यादा खनक आ गई थी. उसकी चितवन में कुछ ख़ास बदलाव दिखा, जिसे सिर्फ़ मैं अपने भीतर महसूस कर रहा और फिर न जाने कैसे उस दिन कह गया था, “क्या बीवी बनकर भी इतने ही प्यार से खिलाया करोगी..?” नमिता शर्म से एकदम लाल पड़ गई.

यह भी‌ देखें: रिश्तों को लज़ीज़ बनाने के लिए ट्राई करें ये ज़ायक़ेदार रिलेशनशिप रेसिपीज़… (Add Flavour To Your Marriage And Spice Up Your Relationship)

“छी! गंदी बात नहीं करते.”
“शादी करना गंदी बात है?” मैंने चिढ़ाते हुए कहा और उसकी लाई सब्ज़ी खाने के लिए अपने चौके से मां से दो रोटियां मांगकर एक प्लेट में ले आया. मां कहती ही रहीं कि सब्ज़ी तो ले जा, खाएगा किससे? पर खाना तो मुझे अपनी महबूबा की सब्ज़ी से था. उस पर अचरज यह कि पहला कौर मैंने अपने हाथों से नमिता के मुंह में रखा और उसने अपने हाथों मेरे मुंह में. पता नहीं सब्ज़ी में स्वाद था या नमिता की उंगलियों में या उस वातावरण में… उतनी स्वादिष्ट सब्ज़ी जीवन में फिर कभी मुझे खाने को नहीं मिली… वह स्वाद, वह छुअन और वह चितवन, जो उस सब्ज़ी में घुलमिल गई थी, शायद वह कहीं नहीं मिल सकती थी.
“मम्मी-पापा ने शादी की है और दोनों लड़ते रहते हैं.” नमिता ने कहा, “अगर गंदी बात न होती, तो वे लड़ते क्यों?”
“तुम शायद ठीक कहती हो. मेरे मम्मी-पापा भी अक्सर किसी-न-किसी बात पर उलझे ही रहते हैं और तो और, मां खाना तक नहीं बनाती. बस, मारे ग़ुस्से के मुंह ढंक कर बिस्तर पर पड़ जाती है और हम ठंडे पड़े चौके-चूल्हे को देखते रहते हैं. मैं भी अक्सर सोचता हूं कि आदमी-औरत जब एक-दूसरे के साथ निभा नहीं सकते, शांति से रह नहीं सकते, तो फिर शादी क्यों करते हैं..? औरत अलग रहे और आदमी अलग. दोनों कमाएं और दोनों अलग-अलग खाएं.”
“शायद दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत पड़ती है…” गालों पर गुलाल सा बिखर गया था नमिता के, नज़रें झुक गईं थीं. रोटी का कौर मेरे साथ चुभला ज़रूर रही थी, पर मेरी तरफ़ देख नहीं रही थी.
“कैसी ज़रूरत..?” मेरे सवाल में जो शैतानी छिपी थी, उसे वह समझ गई थी. आंखें नचा कर बोली, “एक्टिंग तो ऐसे करते हो, जैसे बिल्कुल अनाड़ी हो. कुछ जानते ही नहीं.” फिर एक दिन उसने कहा था, “मम्मी-पापा दिन में तो खूब लड़ते हैं, पर रात को पता नहीं उनकी नाराज़गी और लड़ाइयां कहां चली जाती हैं.”
“ऐसा तो मेरे मम्मी-पापा भी करते हैं. लड़कर बहुत दिनों तक अलग नहीं रहते. रात को दोनों में सुलह हो जाती है.” मैंने फिर थोड़े शरारती मूड में कहा, “शायद इसे ही तुम ज़रूरत कह रही हो…”
“मुझे ऐसी ज़रूरत नहीं पड़ेगी.”
“देखूंगा.”
एक दिन मैं बेहद उदास सा नमिता की मां के पास जा बैठा, नमिता मेरे लिए खाना परोस लाई, “आज तुम यहीं खा लो.” उनके स्वर में ममत्व और लाड़ था. नमिता अपना खाना ख़ुद परोस लाई, “आज तुम्हारे मम्मी-पापा में दिन में बहुत लड़ाई हुई.” मैं उसी तरह उदास बना रहा. कुछ बोला नहीं.
आंखों में आंसू लरजते रहे. नमिता की मां मेरे बालों में हाथ फिराती रही और बोली, “सब ठीक हो जाएगा, पिता कहीं चले गए हैं. तुम ज़रा मां का ख़्याल रखना.”
कंठ अवरुद्ध था, “अब तक उन्हीं के पास बैठा था… अकेले नहीं छोड़ा… डर लगा, कहीं कुछ कर-करा न लें.”
“औरत और धरती को बहुत कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है बेटे…” नमिता की मां बोली, “जब बर्दाश्त करने की क्षमता ख़त्म हो जाती है, तभी मरने का फ़ैसला करती है औरत, वरना उसे अपने बच्चों से मोह होता है और वह उनसे बंधी किसी तरह ज़िंदगी घसीटती रहती है…”
“मेरी मां भी यही कहती हैं.”
मैंने कहा, “अगर मेरा ख़्याल न होता, तो वे मेरे पिता जैसे व्यक्ति के साथ एक दिन भी न निभातीं. सब छोड़-छाड़ कर कहीं चली जातीं या कुछ कर करा लेतीं.”
नमिता हंस दी, “मेरी मम्मी भी यही कहती हैं प्रकाश!” वह अपने माता-पिता के सामने मेरा नाम लेती थी, पर एकांत में मुझे ‘तुम’ ही कहती, “जब पापा से लड़ाई होती है, तो बिसूरती हुई मुझसे कहती हैं… मेरे कारण इस घर में रह रही हैं, वरना उस आदमी के साथ एक पल न रहें.” नमिता की मां भी हंस दी और उन्होंने बेटी के सिर पर एक प्यार भरी चपत जड़ दी. “तो क्या झूठ बोलती हूं?”
“अच्छा मम्मी…” मैं नमिता की मां को मम्मी ही कहता, “आप लोगों के बीच लड़ाई होती क्यों है?”
“शायद आदमी-औरत एक साथ रह ही नहीं सकते.” नमिता की मम्मी ने कुछ सोच कर कहा.

यह भी‌ देखें: 10 झूठ जो पत्नियां अक्सर पति से बोलती हैं (10 Common lies that wives often tell their husbands)

“दोनों की प्रकृति एक-दूसरे के ख़िलाफ़ होती है… दोनों के स्वभाव, दोनों की ज़रूरतें एक-दूसरे से भिन्न… शायद इसीलिए किसी न किसी बहाने हम लड़ पड़ते हैं.”
“फिर लड़ाई ख़त्म भी हो जाती है…”
“तुम लोगों के कारण सुलह करनी पड़ती है…” नमिता की मां ने कहा.
“अगर हम लोग बीच में न हों तो..?” नमिता ने पूछा.
“हम कभी के एक-दूसरे से अलग हो जाते…” नमिता की मां ने कहा.
“मैं तुमसे अलग नहीं रह सकता नमिता…” मैंने एक दिन भावुकता में बहकर नमिता को बांहों में कस लिया. वह भी बांहों में सिमट गई और मेरे गले में बांहें डाले देर तक सटी खड़ी रही, “मैं भी…”
“तुम मुझे हर वक़्त याद आती हो…”
“तुम भी…” वह उसी तरह सटी रही.
“तुम मुझसे शादी के बाद अपनी मम्मी की तरह लड़ोगी तो नहीं…?”
“शायद हम कभी न लड़े…” उसने कहा.
“और अगर लड़े तो..?” मैंने शंका प्रकट की.
“लड़ाई क्यों होगी…?” उसने पूछा.
“हमारे मम्मी-पापा किस बात पर लड़ते हैं…?”
“किसी भी बात पर… कोई बात नहीं होती, फिर भी लड़ पड़ते हैं… उनकी बेवजह लड़ाई कभी समझ में नहीं आती…”
“कहीं हम लोग भी बेवजह ही एक-दूसरे से न लड़ने लगें…”
“नहीं, शायद हम न लड़ें… उसने अनिश्चितता से कहा.
“और अगर लड़े तो..?” मैंने पूछा.
“अगर लड़ाई की संभावना हो, तो हम शादी ही क्यों करें..? जीवनभर प्रेमी-प्रेमिका ही क्यों न रहें..?” उसने सुझाव दिया.
“प्रेमी-प्रेमिका कैसे रह सकते हैं? एक दिन तुम्हारी किसी और से शादी हो जाएगी और मेरी किसी और से… फिर…?”


यह भी‌ देखें: वक़्त के साथ रिश्ते कमज़ोर न पड़ें, इसलिए अपने रिश्तों को दें वक़्त… (Invest In Your Relationship: Spend Some Quality Time With Your Partner)

“हम फिर भी एक-दूसरे को प्रेम कर सकते हैं…” वह मुस्कुराई.
“तुम्हारा पति अपनी बीवी की बेवफ़ाई बर्दाश्त नहीं कर पाएगा और तुम्हें रुई की तरह धुन डालेगा…”.
“तुम्हारी बीवी भी पति की बेवफ़ाई बर्दाश्त नहीं कर पाएगी और तुम्हारा व अपना जीना हराम कर देगी…”
“हो सकता है, हम अपने पति या पत्नी से उसी तरह लड़ने लगें जैसे हमारे माता-पिता लड़ते हैं… और फिर हम भी अपने बच्चों के कारण एक-दूसरे को बर्दाश्त करें, झेलें और झेलते हुए जिएं.”
“तब जिंदगी कितनी बेस्वाद और कर्कश होगी… कितनी कलहपूर्ण!”
“कहीं हमारे माता-पिता की लड़ाई का भी यही कारण न हो?” मैंने शंका प्रकट की तो नमिता भी कुछ सोचने लगी.
“आज यह अचानक मेरे हाथ लग गई.” नमिता ने एक डायरी मेरे सामने रखी, “पापा की है. इन दो-चार पृष्ठों को पढ़ कर देखो… पापा अपनी उम्र में किसी लड़की को कितना चाहते थे!”
जिन पृष्ठों के कोने नमिता ने मोड़ रखे थे, उन्हें पढ़ा तो चकित रह गया. नमिता के पिता ऊपर से रूखे-सूखे दिखाई देनेवाले व्यक्ति, भीतर से कितने कोमल, कितने कल्पनाशील और कितने भावुक क़िस्म के जीव थे! पढ़कर आश्चर्य हुआ. कोई सरिता नामक लड़की उनकी ज़िंदगी में आई थी.
एक दिन मेरे हाथ मम्मी की लिखी एक कॉपी लग गई. नमिता को पढ़ने के लिए दी, तो नमिता मुस्कुराई, “तुम्हारी मम्मी के दिल में भी कभी कोई और रहता था… और वह भी उसकी दीवानी थीं.”
“पिताजी को यह कभी बर्दाश्त नहीं हुआ कि उनकी पत्नी किसी और को चाहे.” मैंने कहा.
“हमारे माता-पिता के बीच लड़ाई का मूल कारण यही है शायद… उन्हें एक-दूसरे पर विश्वास नहीं है. सामाजिक रूप से ज़रूर वे एक-दूसरे के साथ हैं, पर वास्तव में एक-दूसरे से अलग और दूर…”
“रिश्तों को निभाने के लिए ही शायद वे एक-दूसरे के साथ बेमन से रिश्तों को जी नहीं, ढो रहे हैं.” नमिता ने कहा.
“नहीं, तुम्हारी मम्मी ठीक कहती हैं. वे दोनों हम लोगों के कारण ही साथ हैं…”
फिर देर तक हम चुप बैठे रहे. न वह कुछ बोली, न मैं. और अचरज कि हम लगातार एक-दूसरे को महसूस करते रहे. न बोल कर भी जैसे सब कुछ बोलते-कहते रहे. कमरे की चुप्पी में हमारा प्रेम एकदम मुखर था. हम उद्दत प्रेमी-प्रेमिका थे और पति-पत्नी बनने के सपने देख रहे थे. और यह भी जानते थे कि जब हम माता-पिता बनेंगे, तो अपने माता-पिता की तरह ही लड़ेंगे… लड़ाई के कारण कुछ भी होंगे… या कोई भी कारण नहीं होगा… नमिता की मां कहती हैं कि आदमी-औरत प्रकृति में एक-दूसरे से भिन्न और परस्पर विरुद्ध हैं, इसलिए लड़ेंगे ही… तो फिर हम पति-पत्नी और मां-बाप क्यों बनें? जीवनभर प्रेमी-प्रेमिका ही क्यों न रहें…? एक-दूसरे के लिए तड़पते छटपटाते प्रेमी-प्रेमिका!

– दिनेश पालीवाल

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

महेश कोठारे यांनी केली ‘झपाटलेला ३’ची घोषणा (Director Mahesh Kothare Announces Zapatlela-3)

अभिनेते महेश कोठारे यांच्या संकल्पनेतून तयार झालेला 'झपाटलेला' हा चित्रपट तुफान हिट ठरला होता. आता…

April 11, 2024

बुरे दिन वापस दे दो…. किरण मानेंची पोस्ट चर्चेत ( Kiran Mane Share Post For Current Situation In Maharashtra)

कुठे कुठला उमेदवार हवा होता-नको होता, या वादात आपण सर्वसामान्य माणसांनी अडकायला नको. महाराष्ट्रात या…

April 11, 2024

संकर्षण सोबत लग्न करण्याची इच्छा पण आईने…. अभिनेत्याची चाहतीसाठी खास पोस्ट ( Sankarshan Karhade Share Post For His Fan, Who Wants To Marry Him)

अभिनेता संकर्षण कऱ्हाडे सोशल मीडियावर खूप सक्रिय असतो. नुकताच त्याने त्याला साताऱ्याला आलेला त्याच्या खास…

April 11, 2024
© Merisaheli