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कहानी- सैंटा होते हैं… (Short Story- Santa Hote Hain…)

सुबह-सुबह लगातार बज रही डोरबेल की आवाज़ से आंख खुली, तो दरवाज़ा खुलते ही समाने पापा थे. “पापा…” कहती हुई मैं रोती हुई उनके गले लग गई. पापा ने मुझे कुछ देर तक रोने दिया और फिर धीरे से मेरे कान में फुसफुसाए, “सैंटा तेरा गिफ्ट लाए हैं, देखना है, क्या गिफ्ट है?”

मेरा मोबाइल लगातर बजे जा रहा था. पापा की यह पांचवीं कॉल थी. मुझे पता था कि कॉल रिसीव न करके मैं उन्हें परेशान कर रही हूं, पर मैं क्या करती? मुझे उनके वो लेक्चर और उनके वो सांत्वना भरे ताने बिल्कुल भी नहीं सुनने थे.
“अन्विता! तुझसे कहा था न कि राहुल एक नंबर का धोखेबाज़ लड़का है, पर तू मेरी सुने तब न! तुझे तो इश्क़ का भूत सवार था.”
अगर मैं कॉल रिसीव करती, तो पापा शायद ऐसा ही कुछ कहते. इस समय मैं पापा क्या किसी से भी बात करना नहीं चाहती थी. बहुत बुरा जो हुआ था मेरे साथ. जिस राहुल पर मैं पिछले दो साल से दिल और जान लुटाकर प्यार कर रही थी, जिस पर मैं आंख मूंदकर भरोसा करने लगी थी, उस राहुल ने मुझे धोखा दिया था. उसका कई लड़कियों के साथ अफेयर है, लड़कियों के दिल के साथ खेलना उसकी आदत है. ये सब जानकर मैं ख़ुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रही थी.

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इस बात को महीना भर गुज़र चला था, पर पापा को कल ही यह बात मां के ज़रिए पता चली थी. मां से भी मैंने कई दिनों तक यह बात छिपाई, पर मां-बाप से सुख और दुख दोनों लंबे समय तक कहां छिपते हैं.
आजकल मेरा मन किसी भी चीज़ में नहीं लगता था. हफ़्ते के पांच दिन तो जैसे-तैसे ऑफिस में कट जाते, पर वीकेंड की सैटरडे-सन्डे वाली दो छुट्टी बहुत भारी लगती. मेरा गुड़गांव से अपने पैरेंट्स के पास उरई जाने का बहुत मन करता, पर न जाने क्यों मैं वहाँ जाने की हिम्मत ही न जुटा पाती.
अभी भी मोबाइल बजे जा रहा था. यह पापा की छठी कॉल थी. आज रविवार की रात थी. दो दिन की छुट्टी ही मुझसे नहीं झेली जाती थी ऊपर से कल क्रिसमस की अतिरिक्त छुट्टी और थी. गहरी उदासी के बीच पापा की फ़िक्र हुई, तो उन्हें मैसेज टाइप करके मैं लेट गई.
“पापा! मैं ठीक हूं, बस बात करने का मन नहीं है कल फोन करती हूं, गुड नाइट,पापा!”
बिस्तर पर लेटी तो बाहर आस-पास चल रही क्रिसमस की पार्टीज़ का आभास हुआ. अचानक से मेरे उदास मन में पुराने दिन खिल उठे. बचपन में मुझे सच्ची ऐसा ही लगता था कि सैंटा आते हैं और मनचाहे गिफ्ट भी देते हैं. पापा हमेशा दबे पांव आकर मेरे पास मेरी पसंद का गिफ्ट रख देते और मैं सुबह-सुबह उस गिफ्ट को देखकर ज़ोर से ख़ुश होकर चिल्लाती, “वाओ! सैंटा आए थे मेरा गिफ्ट देने.”
कल क्रिसमस है काश कि आज भी दिल बहलाने के लिए वो बचपनवाला झूठ क़ायम रहता कि सैंटा होते हैं और अपनी पोटली से मनपंसद गिफ्ट और ख़ुशियां देते हैं. बाहर बजते क्रिसमस के हल्के-हल्के गाने सुनते हुए मैं सो गई.


सुबह-सुबह लगातार बज रही डोरबेल की आवाज़ से आंख खुली, तो दरवाज़ा खुलते ही समाने पापा थे. “पापा…” कहती हुई मैं रोती हुई उनके गले लग गई. पापा ने मुझे कुछ देर तक रोने दिया और फिर धीरे से मेरे कान में फुसफुसाए, “सैंटा तेरा गिफ्ट लाए हैं, देखना है, क्या गिफ्ट है?”

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मैं आश्चर्य से उनकी ओर दिखती रही और उन्होंने कॉल करके किसी को घर बुला लिया. डोरबेल फिर बजी, तो दिखा कि मेरे घर के बाहर अनिरुद्ध था.
मैं उसे देखकर धीरे से बुदबुदाई, “अनिरुद्ध तुम!..”
पापा ने उसे अंदर बुलाते हुए कहा, “हां! अनिरुद्ध, बेटा! ये वही अनिरुद्ध है जिसने अपने स्कूल के दिनों में तुझे लव लेटर लिखा था. उस वक़्त इसका टीचर और तेरा पिता होने के नाते मैंने इसके गाल पर जब एक चपेत लगाई थी, तब ही इसने मुझसे कहा था, “सर! मैं अन्विता को बहुत चाहता हूं, और ताउम्र चाहता रहूंगा, इतना चाहूंगा कि आपका प्यार भी मेरे प्यार के समाने फीका पड़ जाएगा।’ उस वक़्त मुझे इसकी वो बातें बच्चकानी ज़रूर लगी थी, पर जब कुछ दिनों पहले मुझे पता चला कि अनिरुद्ध ने तेरी ख़ातिर जीवनभर शादी न करने की सोची है, क्योंकि वो तेरे सिवा किसी को चाह ही नहीं सकता. आज के ज़माने में ऐसा प्यार देखकर मेरा मन भर आया अन्विता!”


अब अनिरुद्ध एक फूलों का गुलदस्ता लिए यह कहता हुआ मेरे समाने था, “अन्विता! मुझे तुम्हारे पास्ट से कोई दिक़्क़त नहीं, पर क्या तुम्हें मेरे साथ अपना फ्यूचर स्वीकार है.” 

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मैं अवाक थी, ख़ुश थी कि आज फिर पापा ने सैंटा बनकर मुझे जीवन का नायाब गिफ्ट दिया था. आज मुझे सच में यक़ीन हो चला था कि ख़ुशियां बांटने वाले सैंटा होते हैं.

पूर्ति वैभव खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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Usha Gupta

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