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कहानी- उड़ान (Short Story- Udan)

संगीता माथुर

 

ऐसा नहीं है कि आज अचानक ही ने आपके प्यार को समझा है. प्यार की भाषा तो गर्भ में पल रहा बच्चा भी समझता है और मूक जानवर भी. लेकिन पता नहीं क्यूं आज मेरा दिल बहुत भावुक हो उठा है और चाह रहा है कि मैं इन भावनाओं को शब्द दूं. प्यार आंखों से भी व्यक्त किया जा सकता है. प्यार स्पर्श से भी व्यक्त किया जा सकता है. प्यार मनोभावों से भी व्यक्त किया जा सकता है. लेकिन कभी-कभी दिल इन सबसे ऊपर उठकर वाणी से मुखरित प्यार की अपेक्षा करता है. इस पत्र द्वारा शायद मैं आपकी यह अपेक्षा पूरी कर सकूं?

डियर दादा,

मेरा यह पत्र पाकर एकबारगी तो आप अवश्य ही चौंक गए होंगे. हमेशा टेलीफोन पर बात करनेवाला या ईमेल भेजनेवाला यह साइबर एज का पोता आज आपको पत्र कैसे लिख रहा है? अब क्या है दादा कि टेलीफोन, ईमेल आदि तो न्यूज़ बुलेटिन की तरह होते हैं. ‘आप कैसे हैं?’ ‘मैं ठीक हूं.’ ‘वहां कैसा मौसम है?’ ‘यहां तो ठंड बढ़ गई है.’ ‘मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है, आपका स्वास्थ्य कैसा है?’ वगैरह-वगैरह, लेकिन आज इस तरह का औपचारिक वार्तालाप करने को दिल नहीं कर रहा है. बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही है. बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं और इसके साथ ही मेरे मन में भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है और भावनाओं के संप्रेषण का पत्र से अधिक सशक्त माध्यम और क्या हो सकता है? दरअसल दादा, इसमें विचारों और भावनाओं का एकतरफ़ा संप्रेषण होता है. सामनेवाला आपको उसी वक़्त न तो जवाब दे सकता है और न टोक सकता है. इसलिए भावनाएं निर्बाध रूप से बहती ही चली जाती हैं.

कल पापा मुझे यहां हॉस्टल में छोड़ गए थे. कमरा हाथों हाथ ही जमा लिया था. महज़ कुछ पुस्तकें, कपड़े और एक बिस्तर ही तो है. आज कमरे और घर का फ़र्क़ समझ में आ रहा है. पापा, मम्मी और पलक से कई बार फोन पर बात कर चुका हूं. अब आपसे बात करने को दिल चाह रहा है. सच तो यह है दादा, आपके तन्हा जीवन के दर्द को मैं आज महसूस कर रहा हूं. आप शुरू से गांव में पले-बढ़े, वहीं घर, खेती सब कुछ है. हमारे आग्रह पर आप हमारे पास कभी-कभी रहने तो आ जाते हैं, लेकिन अपना दिल आप गांव में ही छोड़ आते हैं. मम्मी, पापा, मैं और पलक आपको अधिक समय भी तो नहीं दे पाते. हम चारों की ही एक बंधी-बंधाई दिनचर्या है और उसमें किसी भी तरह का खलल हम बर्दाश्त नहीं कर पाते. हम सभी के बीच रहते हुए भी आप स्वयं को कितना एकाकी महसूस करते होंगे, यह मैं आज समझ सकता हूं. यहां चारों ओर मेरे हमउम्र विद्यार्थी हैं. लेकिन मैं उन सभी के बीच स्वयं को नितान्त अजनबी और एकाकी महसूस कर रहा हूं. लग रहा है आप और मैं एक ही डाल के पंछी हैं.

आपके संग व्यतीत एक-एक मधुर पल मेरी आंखों के सम्मुख जीवन्त हो उठा है. किस तरह आप मेरे संग बच्चा बनकर खेल लेते थे! मेरी शरारतों और नादानियों को हंसकर झेल लेते थे! मेरे चेहरे पर स्मित हास्य की एक रेखा खींचने के लिए कितनी आसानी से आप बुद्धू बन जाते थे! और फिर गर्व से सबको बताते थे, “मेरा पोता कितना बुद्धिमान है!” पिछले माह तो मैंने आपको सचमुच ही बुद्धू बना दिया था. दूरदर्शन पर भारत-दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट मैच का सात मिनट देरी से प्रसारण हो रहा था. मैं बीच-बीच में डी.डी. न्यूज पर स्कोर देखकर आपको फ़ोन कर देता था. “दादा, सचिन अब लगातार तीन चौके मारेगा.” “दादा, गांगुली 68 रन पर आउट हो जाएगा.” आप हैरान-परेशान थे कि मेरे पोते ने यह कैसा ज्योतिष सीख लिया है? फिर मैंने ही रहस्य पर से परदा हटा दिया था और हमेशा की तरह आपने हंसते-हंसते यही कहा था, “मेरा पोता कितना बुद्धिमान है!”

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आप तो मुझे अब भी बच्चा ही समझते हैं. लेकिन मैं अब सोलहवें वर्ष में प्रवेश कर चुका हूं. किशोरावस्था को छोड़ नवयुवक बनने की ओर अग्रसर हूं. गत दो वर्षों से आपने मुझे देखा नहीं है. मेरी मसें भीगने लगी हैं, चेहरे पर हल्की दाढ़ी-मूंछ आने लगी है. मैं शक्ल से ही नहीं, अक्ल से भी परिपक्व हो चला हूं. आपकी मेरे लिए छुटपन में कही गई बातों का अर्थ भी मैं अब भली-भांति समझ सकता हूं. मुझे याद है बार-बार टोकने पर भी चश्मा न लगाने पर और हरी सब्ज़ियां न खाने पर मम्मी जब झुंझलाकर मुझ पर हाथ उठाने आती थीं, तो आप मुझे बचा लेते थे. फिर अकेले मे मुझे समझाते थे कि मम्मी मेरे भले के लिए ही कहती हैं और मुझे उनका कहना मानना चाहिए. मैं उलझन में पड़कर आपसे पूछता था कि ‘आप ऐसे क्यूं करते हैं?’

आप अचानक गंभीर हो जाते थे और कहते थे, “जब तू दादा बनेगा ना, तब समझेगा.” लेकिन दादा, आपके प्यार को समझने और देखने के लिए न तो मुझे चश्मा लगाने की ज़रूरत है और न ही दादा बनने की. मैं सब समझ चुका हूं.

ऐसा नहीं है कि आज अचानक ही ने आपके प्यार को समझा है. प्यार की भाषा तो गर्भ में पल रहा बच्चा भी समझता है और मूक जानवर भी. लेकिन पता नहीं क्यूं आज मेरा दिल बहुत भावुक हो उठा है और चाह रहा है कि मैं इन भावनाओं को शब्द दूं. प्यार आंखों से भी व्यक्त किया जा सकता है. प्यार स्पर्श से भी व्यक्त किया जा सकता है. प्यार मनोभावों से भी व्यक्त किया जा सकता है. लेकिन कभी-कभी दिल इन सबसे ऊपर उठकर वाणी से मुखरित प्यार की अपेक्षा करता है. इस पत्र द्वारा शायद मैं आपकी यह अपेक्षा पूरी कर सकूं?

उम्मीद करता हूं, मेरी किसी बात को अन्यथा न लेते हुए आपने मेरी भावनाओं को समझा होगा. भावनाओं के प्रेक्षण का मेरा यह प्रयास आपको कैसा लगा?

प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में.

आपका पोता,

पुलकित

राजगढ़

15 मार्च, 2007

प्यारे पुल्लू,

ढेरों आशीर्वाद और प्यार-दुलार. कल तुम्हारा पत्र मिला. तब से अभी तक मैं इसे बीसियों बार पढ़ चुका हूं और अभी भी यह मेरे सम्मुख खुला रखा है. जी कर रहा है, उड़कर तुम्हारे पास पहुंच जाऊं और बांहों में भरकर ख़ूब दुलारूं. तुमने एक कहावत सुनी होगी, मूल से ब्याज ़ज़्यादा प्यारा होता है. अब यह मत कहना कि तुम इसका मतलब भी समझते हो. मेरे बच्चे इसे समझने के लिए तुम्हें सचमुच दादा ही बनना होगा. तुम्हारे पत्र ने तो मेरे बरसों से प्यार के लिए तृषित हृदय को परितृप्त कर दिया है. मुझे बहुत ख़ुशी है कि मेरे ही ख़ून ने मेरी संवेदनाओं को इतनी गहराई से समझा. मुझे और भी ख़ुशी होगी यदि तुम परिस्थितियों को मेरे दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करो. दरअसल, मेरे पास ज़िंदगी जीने के दो विकल्प हैं. एक, मैं शहर में अपने बेटे के पास रहूं और दूसरा, गांव में अपने पुश्तैनी मकान में. मुझे किसी भी विकल्प में आपत्ति नहीं है. लेकिन जैसा कि तुमने अनुभव किया, शहर में मेरा अधिक दिनों तक मन नहीं लगता है. मैं किसी को दोष नहीं दे रहा. सबकी अपनी व्यस्त दिनचर्या, अपने संगी-साथी होना स्वाभाविक है. आख़िर यही तो ज़िंदगी है. मुझे अपनी पसंदीदा व्यस्त और मस्त ज़िंदगी यहां गांव में सहज उपलब्ध हो जाती है. और फिर इंसान अपनी जड़ों से ़ज़्यादा दूर नहीं रह सकता है. इसीलिए तुम लोगों का प्यार मुझे शहर खींच तो लाता है, लेकिन ़ज़्यादा समय तक बांध नहीं पाता. मेरी जड़ें मुझे अपनी ओर खींचने लगती हैं. मुझे उम्मीद है, मेरी इस कमज़ोरी का तुम लोग बुरा नहीं मानोगे.

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लेकिन पुल्लू बेटे, तुम और मैं एक डाल के पंछी कदापि नहीं हैं. तुम अपने नीड़ से अभी-अभी बाहर निकले नन्हे पंछी हो, जिसे असीमित गगन में उन्मुक्त उड़ान भरनी है. मैं तो वह विशाल वृक्ष हूं, जिसकी डालें अपनी बांहें फैलाए तुम जैसे अनगिनत पंछियों को शरण देने को व्याकुल हैं. यह वृक्ष फल देने में भले ही असमर्थ हो चुका है, लेकिन अपनी शीतल छां से, तुम्हारे श्रम से उत्पन्न स्वेद की एक-एक बूंद सोखने को तत्पर है. यह नहीं चाहता कि पंछी नीड़ में ़कैद होकर रह जाएं. इसलिए इसके आश्रय रूपी प्यार को सफलता की सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करो, ़कैद की सलाखें न बनाओ.

मेरे पास भले ही जीवन के दो विकल्प हैं. लेकिन मत भूलो कि तुम्हारे पास जीने का एक ही विकल्प है- पढ़ाई, पढ़ाई और स़िर्फ पढ़ाई. अपने सद्प्रयासों से तुम आज इस मुक़ाम तक पहुंचे हो. व्यावसायिक प्रबंधन के इतने बड़े कॉलेज में तुम्हें दाख़िला मिला है. मंज़िल अब अधिक दूर नहीं है.

जब मैं तुम बच्चों के संग अपना मन बहला सकता हूं, तो तुम अपने हमउम्र सहपाठियों के बीच एकाकी कैसे महसूस कर सकते हो? फिर एक विद्यार्थी के सबसे अच्छे मित्र तो उसकी पुस्तकें होती हैं. बस, डुबो दो अपने आपको उनके बीच. हां, यदि कभी अनवरत अध्ययन से मन उचट जाए तो बेशक मुझे ऐसे भावपूर्ण पत्र लिखना. प्यार के सागर में गोते लगाकर तुम्हारा क्लांत मन पुन: स्फूर्त हो जाएगा. अपने घरवालों के प्यार को अपना संबल बनाओ बेटे, पांव की बेड़ी नहीं.

हां, जब कभी अवकाश हो, बेहिचक गांव चले आना. तुम्हारे दादा बांहें फैलाए तुम्हारा इंतज़ार कर रहे होंगे. पापा-मम्मी और पलक को भी हम यहीं बुला लेंगे. प्रकृति की गोद में परिवार के संग व्यतीत हंसी-ख़ुशी के पल तुममें नई ऊर्जा भर देंगे.

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मैं तो अभी तक तुम्हें बुद्धिमान ही समझता था, लेकिन अब पता चला कि तुम भावुक भी हो. दिल और दिमाग़ का इससे बेहतर संयोजन और क्या हो सकता है? लेकिन मेरे बच्चे, दिल को कभी दिमाग़ पर हावी मत होने देना. यह समय तुम्हारे लिए अपने भविष्य निर्माण का है. तुम्हारा एक-एक पल क़ीमती है. उसका समुचित उपयोग कर तुम अपने लिए एक उत्तम भविष्य का निर्माण करो. यही हम सभी के प्यार का तुम्हारी ओर से प्रतिदान होगा.

तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ…

तुम्हारा दादा.

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