आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं. उन्हें कुछ सिखाने या बताने की ज़रूरत नहीं होती. उनकी यही स्मार्टनेस पैरेंट्स के लिए अनेक मुश्किलें खड़ी कर देती हैं, जिन्हें हैंडल करना उनके लिए आसान नहीं होता. ऐसी ही कुछ स्थितियों के बारे में विस्तार से बता रही हैं दिल्ली की चाइल्ड सायकोलॉजिस्ट रेनू गोयल.
स्थिति: जब बच्चे करें फ़िज़ूलख़र्च
आरंभ से ही स्कूल जानेवाले बच्चों को मनी मैनेजमेंट के बारे में ज़रूरी बातें बताना शुरू कर देना चाहिए, जिससे बचपन से ही उन्हें सेविंग और फ़िज़ूलख़र्ची का अंतर समझ में आ सके. इससे वे भविष्य में फ़िज़ूलख़र्च करने से बचेंगे.
पैरेंटिंग ट्रिक्स: बचपन से बच्चे को सेविंग करने की आदत डालें, जैसे- पिग्गी बैंक.
– उन्हें समझाएं कि पिग्गी बैंक में जमाराशि से आप अपनी मनपसंद चीज़ें, जैसे- साइकिल, स्केट्स शू, क्रिकेट किट आदि सामान ख़रीद सकते हैं.
– बच्चों को बचपन से ही पैसों की अहमियत समझाएं.
– बच्चों की मांग को पूरा करने के लिए उनसे झूठ नहीं बोलें, न ही कोई बहाने बनाएं.
– बच्चों को पॉकेटमनी के तौर पर एक निर्धारित राशि दें और उन्हें उसकी वैल्यू समझाएं कि ज़रूरत पड़ने पर उसे ख़र्च करें.
– उन्हें अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों को पूरा करनेवाले ख़र्चों का बजट बनाने के लिए कहें.
स्थिति: जब बच्चे हों टेक्नोलॉजी के शिकार
टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव से बच्चे भी अछूते नहीं हैं. वे अपने पैरेंट्स को जैसा करते देखते हैं, वे भी वैसा ही करते हैं. यदि पैरेंट्स टेक्नो एडिक्ट होंगे, तो बच्चे भी टेक्नो एडिक्ट ही बनेंगे.
पैरेंटिंग ट्रिक्स: बच्चों को लैपटॉप, पीसी और स्मार्टफोन से दूर रखें.
– टीवी, लैपटॉप, स्मार्टफोन और टैबलेट का इस्तेमाल निर्धारित समय सीमा तक ही करने दें.
– स्मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप पर पासवर्ड डालकर रखें. थोड़े-थोड़े समय बाद पासवर्ड बदलते रहें.
– नया पासवर्ड बच्चों को न बताएं. आपकी अनुमति के बिना वे इन्हें नहीं खोल पाएंगे.
– डिनर, पूजा और फैमिली गैदरिंग के समय उन्हें टीवी, लैपटॉप, पीसी और मोबाइल से दूर रखें.
– बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं.
– आउटिंग के लिए उन्हें पिकनिक ले जाएं.
– फिज़िकल एक्टिविटी के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें.
स्थिति: जब बच्चे कहें हर बात के लिए ‘ना’
बच्चे का ‘ना’ कहना पैरेंटिंग के तरी़के पर निर्भर करता है यानी किस तरह से पैरेंट्स अपनी बात बच्चे से कहते हैं. हाल ही में हुए एक चाइल्ड डेवलपमेंट रिसर्च के अनुसार, ‘4-5 साल तक के बच्चे 1 दिन में बहस करते हुए 20-25 बार ना बोलते हैं. कई बार बच्चे थके होने के कारण भी ‘ना’ बोलते हैं. सामान्यत: रूड बिहेवियरवाले बच्चे हर बात के लिए ‘ना’ बोलते हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि जब बच्चा बचपन से ही ग़ुस्से में हर बात के लिए ना बोलने लगे, तो उसका ऐसा व्यवहार भविष्य में उसके विद्रोही होने का संकेत होता है.’
पैरेंटिंग ट्रिक्स: बच्चों के साथ हमेशा सकारात्मक तरी़के से बातचीत करें.
– उनके साथ बातचीत करते समय अपनी आवाज़ को सॉफ्ट रखें.
– सकारात्मक बातचीत के दौरान बच्चों को उनके सवालों के जबाव मिल जाएंगे और वे अनुशासन में भी रहेंगे.
– अवसर के अनुसार उन्हें विकल्प दें.
– फिर उन्हें विकल्प चुनने का अधिकार दें. इससे उनमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा.
– उद्दंड व्यवहार करनेवाले बच्चों को विकल्प का अवसर ज़रूर दें. इससे उनमें स्थितियों को नियंत्रित करने की क्षमता विकसित होगी.
स्थिति: जब बच्चे करें सेक्स संबंधी सवाल
आमतौर पर बच्चे सेक्स के बारे में अटपटे सवाल पूछते हैं और पैरेंट्स समझ नहीं पाते कि उनके सवालों के जवाब किस तरह से दें. अधिकतर पैरेंट्स उन्हें डांटकर चुप करा देते हैं या जवाब देने में आनाकानी करते हैं. सही जवाब न मिलने पर बच्चों की उलझन व जिज्ञासा और भी बढ़ जाती है.
पैरेंटिंग ट्रिक्स: 5 साल से बड़ी उम्र के बच्चों को बॉडी पार्ट्स के बारे में बताएं, साथ ही सेफ-अनसेफ टच के बारे में भी समझाएं.
– सेफ-अनसेफ टच के बारे में छोटे बच्चों को ज़्यादा समझ में नहीं आता, लेकिन यह पैरेंट्स के समझाने के ढंग पर निर्भर करता है. फिर भी बच्चों को अच्छे-बुरे टच के बारे में ज़रूर समझाएं.
– उनके सवालों के टेक्नीकल जवाब देने की बजाय सरल तरी़के से उन्हें समझाएं.
– बच्चों की उम्र को ध्यान में रखते हुए जवाब दें. जैसे 11-13 साल तक के बच्चों को बेसिक सेक्स एजुकेशन दें. 14 साल से अधिक उम्र के बच्चों को सेक्स के बारे में सही व पूरी जानकारी दें.
– बच्चों द्वारा सेक्स संबंधी सवाल पूछने पर पैरेंट्स चिढ़ने, डांटने और नाराज़ होने की बजाय प्यार से जवाब दें.
– पैरेंट्स उनके सवालों को नज़रअंदाज़ न करें और न ही उन्हें डांटकर चुप कराने की कोशिश करें.
– सेक्स संबंधी सवालों के जवाब देते समय दोस्ताना व्यवहार रखें, न कि निपटानेवाला काम करें.
स्थिति: जब बच्चों पर हो पीयर प्रेशर
एक्सपर्ट्स के अनुसार, ‘बचपन से ही बच्चों में पीयर प्रेशर का असर दिखना शुरू हो जाता है. आमतौर पर 11-15 साल तक के बच्चों पर दोस्तों का दबाव अधिक होता है, पर पैरेंट्स इस प्रेशर को समझ नहीं पाते. इसका सकारात्मक प्रभाव भी होता है, जिससे बच्चों में एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ का विकास होता है. लेकिन आज के बदलते माहौल में पीयर प्रेशर का बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव अधिक पड़ता है, जैसे- क्लास बंक करना, पैरेंट्स से झूठ बोलना, चोरी करना, स्मोकिंग करना आदि.
पैरेंटिंग ट्रिक्स: बच्चों का मार्गदर्शन करें. इससे उन्हें मानसिक रूप से सपोर्ट मिलेगा.
– उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखें, ताकि अपनी हर बात वे आपके साथ शेयर करें.
– बच्चों से कोई ग़लती होने पर सज़ा देने की बजाय उन्हें प्यार से समझाएं.
– बच्चों में सकारात्मक सोच विकसित करें.
– उनकी रचनात्मकता को बढ़ावा दें. रचनात्मक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए उन्हें प्रेरित करें.
– बच्चों द्वारा कोई प्रतियोगिता जीतने पर उनकी प्रशंसा करें, उन्हें इनाम देकर प्रोत्साहित करें.
– उनके दोस्तों के बारे में पूरी जानकारी रखें.
– बच्चों के व्यवहार में कोई बदलाव महसूस होने पर तुरंत उनके टीचर्स और दोस्तों से मिलें. इस बारे में उनसे विस्तारपूर्वक बातचीत करें.
– दोस्तों के दबाव में आने की बजाय उन्हें विनम्रतापूर्वक ‘ना’ कहना सिखाएं.
– सीनियर्स के पीयर प्रेशर से बचने के कुछ तरी़के बताएं.
स्थिति: जब बच्चे हों बुलिंग के शिकार
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, ‘3 में से 1 बच्चा बुलिंग से जुड़ा हुआ होता है, चाहे वह बुलिंग करनेवाला हो या बुलिंग सहनेवाला. यदि बच्चा पैरेंट्स से बातचीत करते हुए डरता, घबराता या कतराता है, तो इसका अर्थ है कि वह बुलिंग का शिकार हो रहा है और वह इस बात को पैरेंट्स से छिपा रहा है. अध्ययन से यह भी सिद्ध हुआ है कि 67% बुलिंग तब होती है, जब बच्चों के साथ पैरेंट्स नहीं होते.
पैरेंटिंग ट्रिक्स: बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हुए उनकी पूरी दिनचर्या, दोस्तों-अध्यापकों के बारे में पूछें.
– पैरेंट्स चाहें कितने भी व्यस्त क्यों न हों, उन्हें बच्चों की पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग ज़रूर अटेंड करनी चाहिए, जिसमें वे उनके टीचर्स और दोस्तों से मिल सकते हैं.
– पैरेंट्स बच्चों के रोल मॉडल होते हैं. इसलिए उनके सामने नेतृत्व, उदारता और मित्रतावाले उदाहरण पेश करें.
– यदि आपको अपने बच्चे के व्यवहार में कुछ बदलाव दिखाई दे, तो तुरंत टीचर से मिलें.
– 12-13 साल से बड़ी उम्र के बच्चों को सायबर बुलिंग के बारे में बताएं.
– यदि समस्या अधिक गंभीर हो, तो चाइल्ड सायकोलॉजिस्ट से सलाह लें.
– स्कूल के अलावा फैमिली गैदरिंग और लोकल कम्यूनिटी में बच्चों को अपने दोस्तों से मिलने का मौक़ा दें, इससे उनमें सुरक्षित वातावरण में सोशल होने की भावना पनपेगी.
– पूनम नागेंद्र शर्मा
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