लड़की के कुंआरेपन को वर्जिनिटी कहा जाता है यानी जिस लड़की ने पहले कभी सेक्स न किया हो, वो वर्जिन है. इसे जांचने-परखने के कई तरी़के भी हमारे समाज में इजाद किए गए हैं, जिनमें सबसे हास्यास्पद है- शादी की पहली रात को स़फेद चादर बिछाकर यह देखना कि सेक्स के बाद चादर पर ख़ून के धब्बे हैं या नहीं. दरअसल, वर्जिनिटी को लेकर इतनी ग़लतफ़हमियां हैं कि पढ़े-लिखे लोग भी इसे समझना नहीं चाहते.
हम 21वीं सदी में हैं और हम में से अधिकांश लोग यही सोचते होंगे कि इस ज़माने में वर्जिनिटी टेस्ट की बातें बेकार हैं. आजकल लोग सुलझे हुए हैं. लेकिन ऐसा है नहीं. मात्र चंद लोग ही हैं, जिनके लिए लड़कियों की वर्जिनिटी के कोई मायने नहीं.
महाराष्ट्र के पुणे के इलाके में ही कंजरभाट एक ऐसा समुदाय है, जहां पंचायत की देखरेख में शादी की पहली रात को वर्जिनिटी टेस्ट करवाया जाता है. स़फेद चादर बिछाकर यह देखा जाता है कि लड़की वर्जिन है या नहीं. शादी की रात दुल्हन के सारे गहने और चुभनेवाली तमाम चीज़ें निकलवा दी जाती हैं, ताकि उससे घायल होकर कहीं ख़ून के धब्बे न लग जाएं. इस टेस्ट में फेल होने पर दुल्हन को कई तरह की यातनाएं दी जाती हैं. पंचायत उसे सज़ा सुनाती है और यहां तक कि पहले इस तरह की घटनाएं भी हुई हैं, जहां शादी को रद्द तक कर दिया जाता था.
लेकिन अब इसी समुदाय के एक युवा विवेक तमाइचिकर ने आगे आकर इस कुप्रथा को रोकने के लिए मोर्चा खोल दिया है. स्टॉप द वी रिचुअल नाम से विवेक और उनकी कज़िन प्रियंका तमाइचिकर ने व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया है. उनकी ही तरह अन्य युवा भी इस ग्रुप का हिस्सा हैं. हालांकि इन युवाओं की राह इतनी आसान नहीं है, क्योंकि पंचायत का विरोध करने पर इन्हें मारा जाता है. ये पुलिस की मदद भी ले रहे हैं, लेकिन इस कुप्रथा को जड़ से मिटाना इतना आसान भी नहीं.
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जी हां, यह कहना है विवेक का, जिन्होंने स्टॉप द वी रिचुअल की शुरुआत की. इसी संदर्भ में हमने ख़ुद विवेक से ख़ास बातचीत की.
विवेक तमाइचिकर पत्नी ऐश्वर्या के साथ
मैं 5वीं क्लास में था, जब मैंने घर पर एक तरह से हिंसा देखी. मैं अपनी कज़िन की शादी में गया था, अगले दिन उसी के साथ मारपीट हो रही थी. मेरे लिए असमंजस की स्थिति थी, क्योंकि उस उम्र में यह सब समझना बेहद मुश्किल था. मैं टयूशन गया, तो टीचर ने भी पूछा कैसी रही शादी? मैंने कह दिया कि लड़की ख़राब निकली… तो यह होता है, जब आप उसी चीज़ को देखकर पले-बढ़े होते हों. फिर टीनएज आते-आते मुझे समझ में आने लगा कि नहीं, कुछ तो ग़लत है. और उम्र बढ़ी, कॉलेज गया, तो और बातें समझ में आने लगीं और महसूस हुआ कि यह इंसानियत के ख़िलाफ़ है.
फिर मेरी सगाई ऐश्वर्या से हुई, तो उसके सामने मैंने अपने विचार रखे और मैंने उससे पूछा, तो उसने भी मेरा साथ देना ठीक समझा. हालांकि हमें एक बेहद कंज़र्वेटिव कम्यूनिटी और समाज से लोहा लेना था, लेकिन यह ज़रूरी था, क्योंकि मेरे लिए वर्जिनिटी एक अंधविश्वास है.
मेरी कज़िन प्रियंका भी बहुत ही डेडिकेटेड थी इस कैंपेन को लेकर. हमने व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया, युवा हमारे साथ जुड़ने लगे. फेसबुक पर लिखना शुरू किया, तो और असर हुआ. कई लोगों का साथ मिला. अगस्त में राइट टु प्राइवेसी एक्ट और ट्रिपल तलाक़ नियमों के बाद मैंने फेसबुक पर अपने कैंपेन को थोड़ा एग्रेसिवली आगे बढ़ाया, जिससे बहुत-से युवाओं का मुझे अच्छा रेस्पॉन्स मिला. यह देखकर अच्छा लगा कि लोगों का माइंडसेट बदल रहा है.
प्रियंका तमाइचिकर
परिवारवाले चूंकि उसी कंज़र्वेटिव समाज का हिस्सा थे, तो उनके मन में डर भी था और कंफ्यूज़न भी. उन्होंने विरोध ही किया मेरा. उनके मन में पंचायत का डर था. समाज से निकाले जाने का डर था, तो यह उनका माइंडसेट था, पर मुझे जो करना था, वो करना ही था.
मैं ख़ासतौर से अपनी पत्नी ऐश्वर्या भट्ट और बहन प्रियंका को सैल्यूट करना चाहूंगा कि दोनों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. दोनों लड़कियां हैं और उनसे बेहतर इस विषय की संवेदनशीलता को कौन समझ सकता है भला. उनका डेडिकेशन काबिले तारीफ़ है. इस कैंपेन में प्रियंका ने भी बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और मेरा साथ दिया.
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नहीं, कभी भी नहीं, क्योंकि मेरे लिए कोई दूसरा रास्ता था ही नहीं. मुझे इसी रास्ते पर चलना था. यह अमानवीय कृत्य मेरी बर्दाश्त के बाहर था. कंजरभाट समाज में मेरा कोई स्थान नहीं है, लेकिन मेरी जीत इसी में है कि मुझे फोन पर कहा जाता है कि समाज के लोग ग़ुस्सा हैं, ये सब बंद क्यों नहीं कर देते, तो मैं यही कहता हूं कि समाज के लोग बदल क्यों नहीं जाते? मेरे कैंपेन का असर हो रहा है, इसीलिए तो मुझसे आप बात कर रहे हो? उन्हें लगता है कि मैंने वर्जिनिटी जैसे टैबू टॉपिक को खुलेआम चर्चा का विषय बना दिया. सोशल मीडिया व मीडिया में भी इस पर हम बात करते हैं, तो ज़ाहिर है लोगों का माइंडसेट ज़रूर बदलेगा. यहां तक कि समाज के भी कुछ लोग यह जानते और मानते हैं कि मैं सही हूं, पर उनमें समाज के विरुद्ध खड़े होने की हिम्मत नहीं. मुझमें है, मैं करूंगा.
जी हां, सीधेतौर पर तो नहीं, पर परोक्ष रूप से कभी व्हाट्सऐप के ग्रुप बनाकर, तो कभी गुंडों से पिटवाकर हमें धमकाया जाता है. सामाजिक रूप से बहिष्कार करके भी हमारे जज़्बे को तोड़ने की कोशिशें होती हैं, लेकिन इससे हमारे हौसले कम नहीं होनेवाले.
जी हां, मैं आपको कुछ रोज़ पहले की ही घटना बताता हूं. हमें एक शादी में बुलाया गया. वो परिवार काफ़ी रसूख़दार था. उस शादी में पंचायत को वो अधिकार नहीं दिए गए, जो पारंपरिक रूप से दिए जाते रहे हैं अब तक. इसके अलावा हमें वहां ख़ासतौर से बुलाया गया, सम्मान दिया गया. जो शगुन की बातें होती हैं, जिनसे लिंग भेद न हो व समाज को नुक़सान न हो, उसका हमने भी विरोध नहीं किया, लेकिन वहां उस परंपरा को पूरी तरह से तोड़ दिया गया, जिसके लिए कंजरभाट समाज जाना जाता है. हमें बेहद ख़ुशी हुई. हालांकि जब हम बाहर आए, तो हमारी गाड़ी का कांच टूटा हुआ था, जो पंचायत के लोगों ने ही ग़ुस्से में किया था. पर यही तो हमारी जीत थी.
यह इतना अमानवीय है कि आपको यक़ीन नहीं होगा कि इस युग में भी ये सब होता है. शादी के व़क्त पूरी पंचायत मौजूद रहती है. उनका सत्कार-सम्मान होता है. शादी के बाद दूल्हा-दुल्हन को बोला जाता है कि अब आपको वर्जिनिटी टेस्ट के लिए भेजा जा रहा है. परिवार के साथ मैरिड कपल को लॉज में भेजा जाता है. वहां दुल्हन को महिला सदस्य पूरी तरह नग्न करती है, ताकि शरीर पर ऐसा कुछ भी न रहे, जिससे चोट वगैरह लगकर ख़ून निकले. स़फेद चादर बिछाई जाती है और आधे घंटे का समय कपल को दिया जाता है परफॉर्म करके रिज़ल्ट देने का. यदि दूल्हा परफॉर्म नहीं कर पा रहा हो, तो कपल को ब्लू फिल्म दिखाई जाती है या दूल्हे को शराब की आदत हो, तो शराब पिलाई जाती है या उन्हें कोई और परफॉर्म करके दिखाता है. उसके बाद वो स़फेद चादर लड़केवाले अपने कब्ज़े में ले लेते हैं.
अगले दिन सुबह पंचायत फाइनल सर्टिफिकेट देने के लिए बैठती है. कुल 100-200 लोग होते हैं. दूल्हे से पूछा जाता है- ‘तेरा माल कैसा था?’ दूल्हे को तीन बार बोलना पड़ता है- ‘मेरा माल अच्छा था या मेरा माल ख़राब था.’ तो आप सोचिए ये लिंग भेद का सबसे ख़तरनाक रूप कितना अमानवीय है. यदि लड़की इस टेस्ट में फेल हो जाती है, तो उस मारा-पीटा जाता है, कहा जाता है कि किस-किस के साथ तू क्या-क्या करके आई है… वगैरह.
मेरे ही गु्रप के एक लड़के ने एक शादी का वीडियो शूट करके पुलिस में कंप्लेन की थी. उस शादी में पंचायत बैठी थी और वहां पैसों का काफ़ी लेन-देन व कई ऐसी चीज़ें हो रही थीं, जो क़ानून के भी ख़िलाफ़ थीं. पर पुलिस ने एफआईआर तक नहीं लिखी. हमारे ही गु्रप की एक लड़की को भी समाज ने बायकॉट किया, हम पर भी अटैक्स होते हैं, पर समाज का दबाव इतना ज़्यादा है कि सीधेतौर पर कोई कार्रवाई इतनी जल्दी नहीं होती.
यही तो चैलेंज है. दरअसल, हम जिस माहौल, समाज व परिवार में पलते-बढ़ते हैं, वो ही हमारी सोच को गढ़ती है. पारंपरिक तौर पर हम उसी का हिस्सा बन जाते हैं, तो ये एक माइंडसेट है, जिसे बदलना अपने आपमें चुनौती तो है, लेकिन हमें इस चुनौती को स्वीकारना होगा और जीत भी हासिल करनी होगी.
लड़के कितनी ही मॉडर्न सोच रखने का दावा क्यों न करते हों, पर उनका ध्यान भी लड़की की वर्जिनिटी पर ही रहता है. यही वजह है कि आजकल लड़कियां हाइमन रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी करवाने में ही अपनी भलाई समझने लगी हैं. इसे हाइमनोप्लास्टी, हाइमन रिपेयर या
री-वर्जिनेशन कहा जाता है. यह सर्जरी महंगी होती है, लेकिन आजकल सरकारी अस्पतालों में भी यह होने लगी है. यह कॉस्मेटिक सर्जरी होती है और सरकारी अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि
दिन-ब-दिन इसमें बढ़ोत्तरी हो रही है. हर महीने कम से कम दो-तीन केसेस हाइमन रिपेयर के होते ही हैं. इन लड़कियों पर सामाजिक और पारिवारिक दबाव होता है. साथ ही यह डर भी कि कहीं उनका पार्टनर उन्हें छोड़ न दे. यहां तक कि कुछ मामलों में तो पैरेंट्स ही यह सर्जरी करवाने की सलाह देते हैं, जहां लड़कियों की दोबारा शादी करानी हो या इसी तरह के मामले हों, तो परिवार के दबाव में लड़की सर्जरी करवाती है.
भारत में भी सेक्सुअल एक्टिवनेस बढ़ गई है, लेकिन इसके बावजूद अधिकांश सर्वे इस बात को पुख़्ता करते हैं कि लड़के आज भी शादी के लिए वर्जिन लड़की ही ढूंढ़ते हैं.
– गीता शर्मा
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