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कहानी- बॉयफ्रेंड (Story- Boyfriend)

“आई फील सॉरी फॉर यू शिखा, पर तुझे बताना भी ज़रूरी था. मैं समझ सकती हूं अपने बॉयफ्रेंड को लेकर तू कितनी परेशान हो रही होगी. मैं कुछ मदद करूं?”

“अं… नहीं, मैं देख लूंगी. तुम जाओ.”
“बॉयफ्रेंड! उंह भाड़ में जाए बॉयफ्रेंड. मैं तो पापा की गर्लफ्रेंड को लेकर परेशान हूं.” शिखा बुदबुदाई.
‘अब तो पापा से बात करनी ही पड़ेगी. लेकिन अकेले में… बेचारी मम्मी को तो भनक भी लग गई, तो जीते जी मर जाएंगी.’

“हाय शिखा! माई स्वीट बेबी. तुम कुछ खा क्यों नहीं रही? बड़ी बुझी-बुझी-सी नज़र आ रही हो. जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तो जाने क्या-क्या खा जाता था और वह भी बिना रुके.”
“आप तो अब भी मेरी उम्र के ही लगते हैं. कोई अनजान आदमी तो आपको मेरा पापा मान ही नहीं सकता.”
“अब बस, बहुत हो गया बाप-बेटी का लाड़-दुलार. अब फटाफट नाश्ता ख़त्म करो. मुझे भी ऑफ़िस निकलना है. वैसे शिखा, तुम्हारा मूड क्यों उखड़ा-उखड़ा है?”
“ममा, अब जाने दो ना. ऐसे ही फ्रेंड्स कुछ भी कहती रहती हैं.”
“फिर भी, क्या कह रही थीं?”
“ऐसे ही हर व़क़्त मेरा मज़ाक उड़ाती रहती हैं. कहती हैं, तेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है. हम तो अपने बॉयफ्रेंड के संग यहां जाती हैं, वहां जाती हैं.”
“बस इतनी-सी बात. अरे मैं हूं ना तुम्हारा फ्रेंड… और पापा भी हूं. मैं तुम्हारा पापा बाद में दोस्त पहले हूं. तो बस, हो गया ना तुम्हारा बॉयफ्रेंड. और फिर अभी तो तुम कह रही थी कि मैं तुम्हारा हमउम्र ही लगता हूं. तो बस, प्रॉब्लम सॉल्व. नाऊ स्माइल.” पापा की बात से शिखा हंस पड़ी और माहौल ख़ुशनुमा हो गया. इसके तुरंत बाद तीनों अपने-अपने काम पर निकल गए. शिखा अपने कॉलेज और पापा-मम्मी अपने-अपने ऑफ़िस.
तीन सदस्यों का हंसता-खेलता छोटा-सा परिवार था रमा का. शिखा जैसी प्यारी और मासूम बेटी और विजय जैसा स्मार्ट और हंसमुख पति पाकर रमा स्वयं को दुनिया की सबसे भाग्यशाली स्त्री मानती थी. कामकाजी महिला होते हुए भी एक सुखी, समृद्ध गृहस्थी की मालकिन होना उसे एक अद्भुत उत्साह से भर देता था. विजय अपने हंसमुख और बातूनी स्वभाव के कारण हर व़क़्त घर में ख़ुशी की फुलझड़ियां बिखेरते रहते थे. आज भी उदास शिखा को उन्होंने चुटकियों में हंसा दिया था.
कॉलेज में शिखा भी यही सोच रही थी. कितने अच्छे मम्मी-पापा मिले हैं उसे. उसकी छोटी-सी परेशानी को भी कितनी जल्दी भांप जाते हैं. और फिर पलक झपकते ही उसका समाधान भी कर देते हैं. हर व़क़्त दोनों उसे ख़ुश रखने के प्रयास में लगे रहते हैं. और एक वह है, छोटी-छोटी बातों को लेकर मुंह लटका लेती है. उसने तय कर लिया कि अब वह कॉलेज की छोटी-छोटी बातों से न तो ख़ुद परेशान होगी और न मम्मी-पापा को परेशान करेगी.
अगले दिन ही पापा उसे शॉपिंग पर ले गए थे. रमा को ऑफ़िस में ज़रूरी काम था, इसलिए उसने साथ चलने से मना कर दिया था. बाप-बेटी ने पहले तो जमकर ख़रीदारी की, फिर एक रेस्तरां में अच्छा-सा डिनर लेकर घर लौटे. शिखा के लिए वह बहुत ख़ूबसूरत दिन रहा. पूरे दिन की मीठी बातों को मन ही मन दोहराती वह जल्दी ही नींद के आगोश में समा गई.
अगले दिन कॉलेज पहुंचते ही सहेलियों ने उसे घेर लिया. “यार, तू तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली. इतने हैंडसम बॉयफ्रेंड के संग हंस-हंसकर डिनर ले रही थी और हमें उल्लू बनाती है कि मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है. दोनों बातें तो ऐसे घुट-घुटकर कर रहे थे जैसे बरसों की पहचान है.”
“तुम किसकी बात कर रही हो?” शिखा ने हैरानी से पूछा.
“देखा, कितनी भोली बन रही है. ज़रा बताना तो कल मूनप्लाज़ा में किसके संग कैंडललाइट डिनर हो रहा था?”
“वो…वो तो…” बोलते-बोलते शिखा रुक गई. उसे पापा की बात ध्यान आगई, “मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड ही तो हूं.”
“क्यों न इन लड़कियों को ग़लतफ़हमी में ही रहने दिया जाए. कम से कम उसका मज़ाक उड़ाना तो बंद कर देंगी.”
“क्यों हो गई ना बोलती बंद? पकड़ लिया ना हमने रंगे हाथों. तो बता, कब मिलवा रही है हमें अपने बॉयफ्रेंड से?”
“मिलवा दूंगी, अभी क्लास का टाइम हो रहा है. चलो चलते हैं.” मन ही मन ख़ुश होती शिखा क्लास में चली गई. अब लड़कियों ने उसे छेड़ना और परेशान करना बंद कर दिया था. शिखा प्रसन्न थी कि अब वह अपनी पढ़ाई अच्छे से कर सकती है. पापा ने एक बार फिर उसकी परेशानी दूर कर दी है, चाहे अनजाने में ही सही. लेकिन चार दिन बाद ही लंच समय में तनु ने उसे घेरकर फिर परेशानी में डाल दिया.
“शिखा, मुझे तुझसे अकेले में कुछ ज़रूरी बात करनी है.” दोनों पुस्तकालय के एक कोने में जाकर बैठ गए.
“उस दिन पूजा और रूपा के साथ मूनप्लाजा में तेरे बॉयफ्रेंड को मैंने भी देखा था.”
“तो…” अपनी हंसी दबाते हुए शिखा ने पूछा.
“शिखा, तू दुखी मत होना प्लीज. मैंने तेरे बॉयफ्रेंड को कल किसी और लड़की के संग देखा.” तनु ने शिखा के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा.
“अच्छा, भला कहां?”
“वे सी-रॉक गार्डन से निकल रहे थे. दोनों ने हाथ में हाथ डाल रखा था.”
शिखा समझ गई, पापा मम्मी के साथ होंगे. अक्सर मम्मी के संग वे इसी अंदाज़ में चलते हैं.
“तू चिंता मत कर. मैं ख़ुद उससे बात करूंगी.” मन ही मन मुस्कुराती शिखा पुस्तकालय से बाहर आ गई.
“हूं, अब मैं पापा-मम्मी को यह बताकर चौंका दूंगी. उन्हें भी तो पता चले उनकी बेटी का संपर्क सूत्र कहां तक फैला है?”
लेकिन शाम को पापा घर पर नहीं मिले. पता चला वे ऑफ़िस के किसी ज़रूरी काम में फंस गए हैं, देरी से आएंगे. शिखा ने मम्मी से उनके सी-रॉक गार्डन में घूमने की बात कही, तो उन्होंने आश्‍चर्य जताया और बताया कि वे किसी गार्डन में नहीं गईं.
“तुझे किसने बताया कि मैं पापा के संग वहां गई थी.”
“नहीं ऐसे ही, उसे ग़लतफ़हमी हो गई होगी.” कहकर शिखा ने मामला रफा-दफा कर दिया. उसके ज़ेहन में एक हल्का-सा शक़ अवश्य उभरा. क्या वास्तव में गार्डन में पापा ही थे? यदि थे और उनके संग मम्मी नहीं थीं तो वह लड़की कौन थी? फिर इसे अपना बेकार का वहम मानकर उसने दिमाग़ को झटका और पढ़ने बैठ गई.
कुछ दिनों बाद ही उसकी सहेली पूजा उसे घसीटकर अकेले में ले गई और बताया कि उसने उसके बॉयफ्रेंड को किसी दूसरी लड़की के संग सिनेमा हॉल में देखा था.
“अच्छा, वह लड़की दिखने में कैसी थी?”
“बॉबकट बाल थे, जीन्स पहने थी. उम्र में तुझसे कुछ बड़ी थी.” सुनकर शिखा को झटका लगा. यह मम्मी तो नहीं है. फिर?
“आई फील सॉरी फॉर यू शिखा, पर तुझे बताना भी ज़रूरी था. मैं समझ सकती हूं अपने बॉयफ्रेंड को लेकर तू कितनी परेशान हो रही होगी. मैं कुछ मदद करूं?”
“अं… नहीं, मैं देख लूंगी. तुम जाओ.”
“बॉयफ्रेंड! उंह भाड़ में जाए बॉयफ्रेंड. मैं तो पापा की गर्लफ्रेंड को लेकर परेशान हूं.” शिखा बुदबुदाई.
‘अब तो पापा से बात करनी ही पड़ेगी. लेकिन अकेले में… बेचारी मम्मी को तो भनक भी लग गई, तो जीते जी मर जाएंगी.’
अगले दिन मम्मी को किचन में व्यस्त देख शिखा ने पापा को पकड़ ही लिया और सपाट लहजे में पूछ लिया कि उनके संग रेस्तरां और सिनेमा हॉल में घूमनेवाली लड़की कौन है?
प्रत्यक्ष आक्रमण से विजय एकदम सकपका गए. फिर एक ठहाका लगाया और बोले, “भई मान गए तुम्हारी जासूसी को. मैं तो एकदम डर ही गया था. अरे भई, बचाव का एक मौक़ा तो दिया होता. वह डोना है.”
“डोना, कौन डोना?”
“मेरे बॉस की बेटी. जर्मनी से आई है. उसे शहर घुमाना है. बॉस के पास तो व़क़्त है नहीं, इसलिए मुझे बोल दिया. मैं तो तुम्हें और मम्मी को भी साथ लेना चाहता था, लेकिन तुम दोनों मेरे बॉस से कम बिज़ी थोड़े ही हो. लिहाज़ा बंदे को अकेले ही झेलना पड़ रहा है.” कहकर विजय ने इतना बुरा-सा मुंह बनाया कि शिखा को न चाहते हुए भी हंसी आ गई और वह ख़ुशी से पापा से लिपट गई.
“अब तुम दोनों हंसते ही रहोगे या आकर खाना भी खाओगे?” रमा ने मुस्कुराते हुए आवाज़ दी तो विजय को मजबूरन उठकर शिखा के साथ टेबल पर आना पड़ा, अन्यथा वह शिखा से उस जासूस का नाम जानना चाहता था. मनपसंद हलवा और को़फ़्ते सामने पाकर दोनों खाने पर टूट पड़े. रमा उन्हें बेसब्री से खाते देख मुस्कुरा दी.
“अरे, तुम भी तो खाओ.” कहते हुए विजय ने एक कौर रमा के मुंह में भी ठूंस दिया. बदले में रमा भी विजय को खिलाने लगी. दोनों को प्यार से एक-दूसरे को खिलाते देख शिखा के मन से संशय के बादल छंट गए और वह भी आराम से खाने लगी.
कॉलेज से लौटने के बाद शिखा बहुत थक गई थी. ‘आज तो लंच बॉक्स भी टेबल पर ही छूट गया था. भूख के कारण पेट में चूहे कूद रहे हैं. पापा-मम्मी तो अभी तक ऑफ़िस से लौटे नहीं होंगे. क्यों न किसी रेस्तरां में ही थोड़ी-सी पेटपूजा करके फिर घर चला जाए.’ सोचकर शिखा एक रेस्तरां में घुस गई. ‘कहां बैठा जाए?’ सोचते हुए उसने चारों ओर नज़र घुमाई तो कोनेवाली टेबल पर पापा को किसी लड़की के संग बैठा देख ख़ुशी से चौंक पड़ी.
“हाय पापा!” कहती हुई वह पापा से लिपट गई. “ये डोना दीदी हैं ना? हैलो दीदी! कैसा लग रहा है आपको हमारा शहर?”
“अं….अच्छा है, मुझे कुछ ज़रूरी काम याद आ गया है. मैं चलती हूं.” कहकर वह अपना पर्स और मोबाइल उठाकर चल दी.
“यह क्या पापा? मेरे आते ही डोना दीदी एकदम उठकर चली क्यों गईं?” सामने की कुर्सी पर जमते हुए शिखा ने पूछा.
“उसने बताया तो था कि कोई ज़रूरी काम याद आ गया.”
“ऐसा भी क्या ज़रूरी काम था भला ?”
“अब यह तो अगली बार मिलने पर ही पता चलेगा. तुम बताओ, तुम यहां क्या कर रही हो?”
“बहुत भूख लग रही है पापा. लंच बॉक्स भी घर पर ही रह गया था. जल्दी से कुछ मंगवाइए.”
अगले ही पल सामने खाने की चीज़ों का ढेर लग गया. शिखा जल्दी-जल्दी खाने लगी.
“आप तो कुछ खा ही नहीं रहे पापा.”
“मुझे भूख नहीं है, तुम खाओ.” थके स्वर में विजय ने कहा.
“कमाल है, फिर मुझ अकेली के लिए आपने इतना सब क्यों मंगाया?”
“तुम्हारे यह बताते ही कि तुमने लंच नहीं लिया है मैंने बिना सोचे-समझे ढेर सारी चीज़ों का ऑर्डर दे दिया.”
“यू आर ग्रेट पापा. सचमुच, आप मुझे कितना प्यार करते हैं! और एक मैं हूं किसी के ज़रा-सा भड़काने पर आप पर शक़ करने लगी. आज मैं आपको पूरी बात बता ही देती हूं. बहुत मज़ेदार बात है. पूरी बात सुनकर आप फ्रेश हो जाएंगे. वैसे भी आप आज काफ़ी थके हुए लग रहे हैं. मेरी फ्रेंड्स ने आपको मेरा बॉयफ्रेंड समझ लिया था. खैर, यहां तक तो ठीक था. मैं भी मजे लेती रही. लेकिन असली मुसीबत तो तब शुरू हुई, जब उन्होंने डोना दीदी को मेरे बॉयफ्रेंड यानी आपकी गर्लफ्रेंड समझ लिया. एकबारगी मैं भी चक्कर खा बैठी थी और आपको ग़लत समझने लगी. मुझे दुख है कि मैंने अपने इतने प्यारे पापा पर अविश्‍वास किया. शुक्र है कि मैंने ये सब मम्मी को बताने की बेवकूफी नहीं की, वरना वे तो बेचारी जीते जी मर जातीं. अब मैं उन्हें सब बातें चटखारे ले-लेकर बताऊंगी. उन्हें भी बहुत मज़ा आएगा.”
“रहने दो ना शिखा. जो बीत चुका उसे भूल जाओ.”
“इसमें क्या हो गया पापा? डोना दीदी तो मेरी बहन और आपकी बेटी जैसी हैं.”
वाकई घर पहुंचते ही शिखा ने मजे ले-लेकर सारी बातें रमा को बता डालीं. विजय मन ही मन डर रहे थे कि पता नहीं रमा पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी. लेकिन रमा के प्रत्युत्तर ने उन्हें आश्‍चर्यचकित कर दिया, “आप उसे घर लेकर आइए ना. मैं व्यस्त अवश्य रहती हूं, लेकिन अपनी बेटी जैसी मेहमान को कुछ बनाकर खिलाने में मुझे बेहद प्रसन्नता होगी.”
गहन रात्रि में जब शिखा और रमा गहरी नींद के आगोश में थे, तब एक शख़्स बैचेनी से करवटें बदल रहा था. ‘कितना नीचे गिर गया हूं मैं! अपने क्षणिक मन बहलाव के लिए तीन-तीन ज़िंदगियों से खेल रहा हूं. इतना विश्‍वास और प्यार करनेवाली पत्नी, इतनी भोली और मासूम बच्ची से छल कर रहा हूं. यदि मेरी घिनौनी वास्तविकता इनके सम्मुख प्रकट हो जाए तो? रमा और शिखा दोनों मेरे मुंह पर थूकना भी पसंद नहीं करेंगी.’ कल्पना मात्र से ही विजय का सर्वांग कांप उठा. और अब तो मार्था भी मेरी असलियत जान गई है. कितनी घृणा थी उसकी नज़रों में मेरे प्रति! यदि शिखा देख लेती तो? दोनों मां-बेटी कितना विश्‍वास करती हैं मुझ पर. और मैं उनके विश्‍वास में सेंध लगाकर अपना मतलब साध रहा हूं. छी! थू है मुझ पर.
अगले दिन थके क़दमों से विजय ने ऑफ़िस में प्रवेश किया. उसे लगा चारों ओर कुछ खुसुर-फुसुर चल रही है. तभी उसका दोस्त मनीष उसके केबिन में आया, “तुमने सुना, हमारी सहकर्मी मार्था त्यागपत्र देकर यह शहर छोड़कर कहीं चली गई है.”
‘ओह मार्था! मुझे माफ़ कर देना. मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है. लेकिन तुम नहीं जानती, तुमने मुझे कितनी बड़ी जिल्लत से बचा लिया है. मैं तुम्हारा यह एहसान हमेशा याद रखूंगा.’ मन ही मन बुदबुदाते हुए विजय ने अपने माथे से पसीना पोंछा और निढाल होकर कुर्सी पर सिर टिका दिया.

     शैली माथुर
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