Others

कहानी- प्रशंसक (Story- Prashansak)

परची पढ़कर आज गौतमी सदमे में नहीं आई, बल्कि उसकी धड़कनें बढ़ गईं. कौन है यह प्रशंसक-आशिक़, जो संचार क्रांति के इस दौर में परची भेजने जैसा पुराना फॉर्मूला आज़मा रहा है? ऐसी परची तो तब न नसीब हुई, जब परची भेजने का बड़ा चलन था. परची मिलने जैसी घटना उसकी ज़िंदगी में पहली बार घट रही थी. उसके दिल में खलबली मच गई. न जाने कितनी साधें थीं, अरमान थे, भाव-अनुभाव थे. महाबली पिता के चलते जिन्हें कभी अभिव्यक्ति न मिली थी.

क़िस्सा गौतमी का है. गौतमी शर्मा, जो विवाह के पहले भी शर्मा थी और विवाह के बाद भी शर्मा है. जो कॉलेज के दौर में शर्मा के नाम से जानी जाती थी. हिंदी साहित्य के दुबे सर उसे शर्मा कहकर पुकारते थे और फिर वह पूरी क्लास के लिए शर्मा हो गई. दुबे सर क्लास में प्रश्‍न पूछते, तो पहला शिकार गौतमी होती, “शर्मा तुम बताओ…”
कोई चंचल छात्र तत्परता से कहता, “सर, शर्मा आज एबसेंट है.”
दुबे सर आंखें झपकाने लगते- प्रश्‍न पूछने से पहले जान तो लेते कि गौतमी आज आई है या नहीं, छात्राओं ने राय कायम की.
“शर्मा, दुबे सर तुम पर फिदा हैं.”
“सर को मेरे जेलर पिताजी से मिलवा दो, फिदा होने का अंजाम जान जायेंगे.” गौतमी कहती.
“शर्मा, तेरे पापा इतने स्ट्रिक्ट हैं कि मुझे नहीं लगता शादी के बाद तू अपने पति से इश्क़ करने पर विचार कर पायेगी. वह भी तुझे अनैतिक लगेगा.”
“धत्.”
गौतमी के जेलर पिता कैदियों की ही तरह अपनी तीनों बेटियों को भी हड़का कर रखते थे. लड़कियों को उन्होंने एक माह में स़िर्फ एक फ़िल्म देखने की छूट दे रखी थी. फ़िल्म भी वह, जिसमें वयस्क दृश्य न हों. उन दिनों फ़िल्मों में दो फूलों के मिलन से सुहागरात सम्पन्न हो जाती थी, तब भी जेलर साहब डरे रहते थे. फ़िल्म में कुछ ऐसा-वैसा देख लड़कियां बहक गईं, तो उनकी अड़ियल छवि ध्वस्त हो जायेगी. पिता की कठोरता का फल यह कि गौतमी व उसकी बहनों को इश्क़ जैसा सुंदर शब्द ग़ैरक़ानूनी लगने लगा और उनके जीवन में उस उम्र में भी बसंत न आया, जब आमतौर पर आता है. पर लड़के तो लड़के होते हैं.
गौतमी चूंकि क्लास की सबसे सुंदर छात्रा थी तो लड़के अपनी बसंत भावना उस तक पहुंचाना ज़रूरी समझते थे. आशिक मिज़ाज़ लड़के साइकिल पर सवार हो गौतमी की साइकिल के पीछे लग जाते थे. किंतु जब गौतमी अपनी साइकिल समेत जेलर आवास में दाखिल हो जाती, तब लड़कों के हौसले मंद पड़ जाते. उस दौर में आज़माया फार्मूला यह था कि लड़की नखरे दिखाये तो किसी दिन कट मार कर उसे साइकिल से गिरा दो या दुपट्टा छीन लो. लड़की की बदनामी हो जायेगी और मां-बाप पढ़ाई छुड़ाकर उसे घर बैठा देंगे. पर गौतमी के केस में इस फार्मूले का परिणाम घातक हो सकता था, क्योंकि वह खूंखार जेलर की कन्या थी.
तो गौतमी पूरी सावधानी बरत रही थी कि इश्क़ जैसे तत्व को दिल में जगह न दे और लड़के ऐसे खौफज़दा कि छात्र संघ के चुनाव में सी. आर. (क्लास रिप्रेज़ेन्टेटिव) पद के लिये गौतमी के घर वोट मांगने आये ज़रूर, पर परिसर में दाख़िल होने का साहस न कर सके. लड़कों का सामूहिक स्वर सुन गौतमी के पड़ोस में रहनेवाला चेतन अपने घर से बाहर आया और लड़कों को उपकृत करता हुआ बोला, “वोट मांगने आये हो? लौट जाओ. जेलर अंकल बहुत स्ट्रिक्ट हैं. मैं गौतमी से तुम्हारी सिफ़ारिश कर दूंगा.”
लौटते हुए लड़कों ने चेतन को बहुत कोसा, “गौतमी का पी.ए. बनता है. क्या पता उससे इश्क़ करने का दावा भी करता हो, पड़ोसी जो ठहरा…”
जेलर साहब की सनक यह कि वे लड़कियों को रेडियो पर फ़िल्मी गाने भी नहीं सुनने देते थे. बिनाका गीतमाला भी नहीं. उनकी मान्यता में शरीफ़ घरों की लड़कियां फ़िल्मी गाने नहीं सुनतीं, पर प्राकृतिक गुण कब छिपते हैं? गौतमी का स्वर मधुर था और वह फ़िल्मी गाने बड़ी रुचि से गाती थी. वह बहुत अच्छा गाती है, यह ख़बर तब प्रकाश में आई, जब एक सहेली की बर्थडे पार्टी में मौसमी ने भेद खोल दिया. ज़बर्दस्त दबाव बना. गौतमी हड़बड़ा गई और हड़बड़ी में गा दिया- बेचारा दिल क्या करे, सावन जले भादो जले… लड़कियां आनंद रस में डूब गईं. शर्मा का बेचारा दिल तो क्या-क्या करना चाहता है, पर जेलर साहब हुकूम नहीं देते.
विडम्बना यह रही कि विवाह के बाद जब गौतमी पति के सुपुर्द हुई, बसंत की सम्भावना तब भी न बनी. पिता जेलर थे, तो पुस्तक विक्रेता पति निश्छल शर्मा दरोगा साबित हो रहे थे. आज के दौर में दूल्हा-दुल्हन वाया डेटिंग, चैटिंग, मैसेजिंग एक-दूसरे की पर्याप्त जानकारी पा लेते हैं, पर तब ऐसा कोई साधन नहीं था, जिसके माध्यम से गौतमी पति के स्वभाव का सूत्र प्राप्त कर पाती. होता भी तो जेलर पिता की कस्टडी में रह रही गौतमी को कोई लाभ न मिल पाता.
कुल मिलाकर एक बात अच्छी हुई. इस शहर की एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था प्रतिवर्ष भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम का आयोजन करती है. अब यह आयोजन इतनी प्रतिष्ठा पा चुका है कि प्रतिष्ठित घरानों की स्त्रियां आयोजन में सहभागिता करने को उपलब्धि की तरह देखती हैं. गौतमी के लिये यह अच्छा अवसर था अपनी प्रतिभा को साबित करने का. निश्छल ने अनिच्छा से ही सही, अनुमति दे दी और गौतमी ने शील्ड जीतकर ख़ुद को साबित किया. आयोजन की तिथि निकट आते ही वह अपने घर के खाली पड़े ऊपरी हिस्से में चली जाती और एकांत में अभ्यास करती.
अब ऊपरी हिस्से में इंजीनियरिंग के तीन छात्र किराए पर रहने लगे हैं. अत: वह वहां अभ्यास नहीं कर पाती है, पर विलक्षण बात यह हुई कि इन लड़कों के आगमन के साथ ही गौतमी के जीवन में बसंत का आगमन होता दिखाई दिया. जबकि यह उम्र जब उसकी बेटी गोपा इंटर कर रही थी, बसंत के लिए कतई उपयुक्त न थी. किंतु सब विधि का विधान.
तीन लड़कों में जो लम्बा व सांवला था, उसका नाम असीम चौहान था. उसे लड़के ए.सी. कहते थे. जो लड़का औसत क़द-काठी पर सुंदर चेहरेवाला था, का नाम दामोदर था. जो लड़का कुछ मोटा व चश्मा लगाता था, का नाम महान था. ए.सी. ने परिचय कराया था, “यह महान है.” गौतमी हंसी थी, “किस कारण महान है?”
“इसका नाम महान है.”
तीनों लड़के चूंकि सीधे दिखते थे, इसलिए गौतमी नहीं सोच पाई थी कि छिपकर उसका गायन सुनते हैं. वह कई चादरें व खोलियां धोकर लॉन की घास पर सुखा रही थी. तभी लड़के कॉलेज जाने के लिए निकले. वे आपस में अपनी धुन में बोल रहे थे- “किसी की इतनी मीठी आवाज़ हो सकती है, विश्‍वास नहीं होता.”
“मैं तो क़िताब बंद कर सांस रोककर सुनने लगता हूं.”
“प्यार किया तो डरना क्या… सिक्कों जैसी खनकती आवाज़…” और लड़कों की नज़र चादरें सुखाती गौतमी पर जा पड़ीं. वे झिझक गए, “नमस्ते मैम…” कॉलेज के शिक्षकों को सर व मैम कहने की लड़कों को आदत थी, अत: वे गौतमी को मैम व निश्छल को सर कहते थे.
गौतमी का चेहरा सुनहरा हो गया. घर में मेरे इस गुण की कद्र न हुई, पर चलो लड़कों ने तो माना कि मुझे वही कमाल हासिल है, जो लता मंगेशकर को है. जी चाहा निश्छल से कहे, “तुम्हें मेरी प्रतिभा दिखाई नहीं देती. अब देखो मेरे तीन फैन ऊपर रहते हैं.”
सुनते ही बोफोर्स के गोले बरस जायेंगे, “फूली न समाओ. लड़के लगता है एप्रोच बनाना चाहते हैं. मैंने पहले ही कहा था लड़कों को न रखो. घर में एक जवान लड़की है.”
तब क्या गोपा से कहे? पर गोपा भी तो अपने नाना व बाप का स्वभाव पा गई है. तुरंत कहेगी, “मां सावधान, तुम्हारी गायिकी के बहाने ये बदमाश लड़के मु़फ़्त में चाय-नाश्ता हड़पने की योजना बना रहे हैं. तुम्हारी यह ख़राब आदत है, कोई तुम्हारे गाने की सराहना कर दे, तो तुम उस पर उपकार करने पर उतारू हो जाती हो.” तो यह ऐसा उत्सव था, जिसे गौतमी को अकेले ही मनाना था.
लड़कों की सराहना ने उसे ऊजस्वित कर दिया. उसने बड़ी तन्मयता से गाया- ये ज़िंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया… कल्पना करती रही कि लड़के दम साधकर गीत सुन रहे होंगे. थोड़ी देर बाद उसे बेसुर की तान सुनाई दी- ये ज़िंदगी उसी की है…
तो लड़के सचमुच सुन रहे थे? तीनों में सबसे बड़ा प्रशंसक कौन है? क्या तीनों हैं?
फिर उसे जल्दी ही संज्ञान मिल गया, मामला प्रशंसा का नहीं दिल का है. निश्छल बुक सेन्टर चले गए थे, गोपा स्कूल. इसी बीच प्रवेशद्वार से परची सरकाई गई. गौतमी की जब नज़र पड़ी, तो डस्टबिन में डाल देने के लिए उसने परची को उठा लिया- ‘आपके गीतों ने नींद उड़ा दी है.’ गौतमी इस तरह सदमे में आ गई, मानो परची उठाते हुए सरेआम पकड़ी गई है. क्या हो रहा है? लड़के क्या संदेश देना चाहते हैं? गायन की सराहना करना है, तो परची भेजकर क्यों? सामने आकर शुद्ध मन से कहो. लड़कों को समझाना होगा- तुम लोग पढ़ाई में ध्यान दो और मुझे अपना काम करने दो.
यदि लड़कों ने कह दिया- मैम हम पर शक करने से पहले अपनी उम्र का ख़याल कीजिए, तब… कितनी शर्मवाली बात होगी. आख़िर परची में कुछ आपत्तिजनक तो लिखा नहीं है.
न जाने क्यों, पर गौतमी ने फिर दिनभर लड़कों के लौटने की प्रतीक्षा की. वे लौटे, तब वह खिड़की के पास खड़ी थी. लड़कों को ध्यान से देखने लगी कि उसे देखकर किसके चेहरे की चमक बढ़ती है. कुछ अनुमान न हुआ. तीनों ने सामूहिक स्वर में कहा, “नमस्ते मैम.”
“नमस्ते. कैसे हो तुम लोग?”
“फाइन.” यह ए.सी. ने कहा और तीनों तेज़ गति से आगे बढ़ गए. कमरे में पहुंचकर तीनों ने दम साधा. महान बोला, “मैं तो दिनभर डरा रहा, स्लिप को लेकर कोर्ट मार्शल की तैयारी न हो, पर शांति है.”
“तब तो उधर से पॉज़ीटिव रिस्पॉन्स आ रहा है, गुरू आगे बढ़ो.” दामोदर ने महान की पीठ ठोंकी.
ए.सी. ने दिल पर हाथ रखा, “मैंने ट्राई क्यों नहीं किया? पूरा परिवार ऐसा जालिम दिखाई देता है जैसे ख़ुश रहना गुनाह है. बस, मैं धोखा खा गया, वरना बाजी आज मेरे हाथ लगती.” दामोदर ने आपत्ति की, “ए.सी., बाजी महान के हाथ लगी है. तुम अपनी नीयत ख़राब न करो. महान, तू तो अब हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाता चल. मैं तेरे साथ हूं.”
सुनकर महान के हौसले बुलंद हो गए. आख़िर यह उसका पहला प्यार था.
इधर आंगन में खड़े होकर गौतमी ने ऊपर की फिज़ां को महसूस करने की कोशिश की, पर कुछ स्पष्ट न हुआ. तब वह रसोई में जाकर चाय बनाते हुए अपनी धुन में गाने लगी, “न बोले तुम न मैंने कुछ कहा, मगर न जाने ऐसा क्यों लगा…” उसकी इच्छा हुई लड़कों को चाय पीने के लिए बुला ले और अपने गायन पर चर्चा करे, पर अब तक कभी चाय के लिए नहीं कहा था तो… उसे कुछ असंगत लगा.
परची फिर भेजी गई- न बोले तुम न मैंने कुछ कहा. अंदाज़े-बयां अच्छा है. उम्मीद है, रिस्पॉन्स मिलेगा.
परची पढ़कर आज गौतमी सदमे में नहीं आई, बल्कि उसकी धड़कनें बढ़ गईं. कौन है यह प्रशंसक-आशिक़, जो संचार क्रांति के इस दौर में परची भेजने जैसा पुराना फॉर्मूला आज़मा रहा है? ऐसी परची तो तब न नसीब हुई, जब परची भेजने का बड़ा चलन था. परची मिलने जैसी घटना उसकी ज़िंदगी में पहली बार घट रही थी. उसके दिल में खलबली मच गई. न जाने कितनी साधें थीं, अरमान थे, भाव-अनुभाव थे. महाबली पिता के चलते जिन्हें कभी अभिव्यक्ति न मिली थी.
विवाह के बाद भी कुछ भाव प्रतीति न बनी. विवाह किया है, तो निभाना पड़ेगा की तर्ज़ पर निश्छल खानापूर्ति किए जा रहे थे… अब ये परची बोध करा रही थी कि कुछ रेशमी और गुनगुना भीतर कहीं अब भी बचा रह गया है. बसंत दस्तक दे रहा है. खुद को नए सिरे से डिफाइन करने के लिए गौतमी आईने के सामने जा खड़ी हुई- आज भी मेरा चेहरा नूरानी और रंग सुनहरा है. मुझमें बहुत कुछ है, जबकि ख़ुद को कितना कम समझा मैंने. उसे लगा उसके जीवन का स्वर्ण काल अब शुरू हुआ है. यह उसकी ज़िंदगी का ज़बर्दस्त बदलाव था. निश्छल की जड़ता उदास न करती, गोपा का क़िताबों में डूबे रहना त्रस्त न करता. घर में उसके गायन को मान्यता, प्रशंसा, स्वीकृति नहीं मिली, पर कोई है जो उसकी आवाज़ पर न्योछावर हो रहा है.
गौतमी ने चौकसी बढ़ा दी. लड़कों की गतिविधियों पर नज़र रखने लगी. कभी आते-जाते हाल-समाचार पूछ लेती. मूंगौड़ी बनाई, तो उन्हें देने गई, “लो गरमा-गरम मूंगौड़ियां खाओ.”
“मैम आपने तकलीफ़…” महान की बात उसने काट दी.
“तकलीफ़ होती तो न देती.”
मूंगौड़ी ने लड़कों को उत्प्रेरणा दी.
अगले सप्ताह फ़ोन पर हड़बड़ाई हुई आवाज़ सुनाई दी, “कल शाम आप ख़ूब जंच रही थीं… बात करना चाहता हूं. कुछ जतन कीजिये न…” गौतमी “हैलो हैलो” करती रही, पर लाइन कट गई.
गौतमी दीवान पर ढह गई- मैं कल शाम को कब जंच रही थी? अच्छा, गोपा के साथ बाज़ार से वापस आ रही थी, तब इन लोगों ने देखा होगा. तो अब ये लोग गायन से ख़ूबसूरती पर आ गए? लड़के चाहते क्या हैं? किसी को पता चले तो क्या होगा? मीडिया इतना सक्रिय हो गया है कि कोई अपुष्ट सूत्र ही मिल जाए, तो कहानी बना दी जाती है. तो किसी दिन स्थानीय अख़बार के बॉक्स कॉलम में पढ़ने को मिले- इंजीनियरिंग के छात्र को युवा बेटी की मां से हुआ इश्क़. इश्क़… पता नहीं क्या हुआ, गौतमी उस क्षण खुलकर हंसी. ऐसी हंसी बरसों बाद उसके भीतर से उपजी थी. वस्तुत: वह एक सकारात्मक भाव बोध था, जो उसे ऊर्जस्वित किए था. उसे लड़कों की उपस्थिति भली लग रही थी.
तभी भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम की तिथि घोषित हो गई. गौतमी ने बड़ी रुचि से गीत तैयार किया. गोपा से बोली, “ये तीन फ्री पास हैं, लड़को को दे आओ.”
गोपा ने मुंह बनाया, “मां, लड़के हंसने लगेंगे कि यह भूले-बिसरे गीत क्या बला है. पास क्यों बर्बाद करती हो?”
“दे आओ. न आयेंगे, न सही.”
“ये पास मां ने भेजे हैं. शाम को टाउन हॉल में भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम है…”
लड़के जब तक अपनी धजा दुरूस्त करते, कुछ जानकारी लेते, तब तक गोपा सरपट सीढ़ियां उतरकर चली गई. लड़के उत्साह में आ गए. महान बोला, “सुनो तुम दोनों, हम अच्छे कपड़े पहनकर जायेंगे. वन्स मोर का नारा लगाएंगे. व्यक्तिगत रूप से मिलकर बधाई देंगे. गुरू अब इंतज़ार नहीं होता. ऐसा न हो, मैं पढ़ाई पूरी कर चला जाऊं और तमन्ना दिल में रह जाए.”
ए.सी. ने ठहाका लगाया, “और फिर अपने घर की छत पर आकाश की ओर मुंह करके गाते पाए जाओ- एक हसीना थी एक दीवाना था…”
लड़कों ने समय से पहले पहुंचकर सबसे आगे जगह पा ली और जिसके लिए इतना सज-धज कर आए थे, उसने पांचवें नम्बर पर प्रस्तुति दी- हंसता हुआ नूरानी चेहरा, काली ज़ुल़्फें रंग सुनहरा…
गौतमी ने मुस्तैदी से बैठे अनुरागी लड़कों को देख लिया. तन्मयता प्रदर्शित करते प्रेरणास्रोत बने तीन लड़के. गौतमी ने मानो आत्म विस्मृति में गीत पूरा किया. मुद्रा कैसी रखना चाहती थी, कैसी हो रही थी कुछ मालूम न था. उधर लड़कों की दशा चिंतनीय थी. इतनी मधुर और कोमल आवाज़ गोपा जैसी नवयुवती की नहीं, गौतमी जैसी वयस्क महिला की होगी, ऐसी हिंसक कल्पना लड़कों ने नहीं की थी. अनुमान ही न था इस उम्र में कोई स्त्री फ़िल्मी गीतों में इतनी रुचि रखती होगी. ए.सी. ने महान को दया भाव से देखा, “यही है तेरी मुमताज महल?” कार्यक्रम छोड़कर बैठे हुए दिल लिए लड़के घर पहुंचे.
महान पीड़ित हुआ जाता था, “यह आवाज़ गोपा की नहीं थी. अविश्‍वसनीय है.”
दामोदर बोला, “महान, तू सत्यम शिवम सुंदरम का शशि कपूर बनना चाहता था न. न शकल देखी न उमर. आवाज़ पर लट्टू हो गया.”
महान ने खण्डन किया, “शकल और उमर ही देखी थी. सोचा था, आवाज़ के सहारे उसके दिल में उतर जाऊंगा, पर आवाज़ ही फर्जी निकली. सब गोबर हो गया.”
ए.सी. की चिंता भिन्न थी, “मेरे तो सोचकर प्राण सूख रहे हैं कि पर्चियां मैम ने उठाई होंगी. फ़ोन भी उन्होंने ही रिसीव किया था. महान तुम समझ गए थे. वे ‘हैलो हैलो’ करती रहीं और तुमने घबराहट में सेलफ़ोन ऑफ़ कर दिया था.
महान की निराशा बढ़ गई, “फ़ोन का तो ठीक है, पर पर्चियां मैम ने उठाईं, ए.सी. तुम कैसे कह सकते हो?”
“तभी न परची मिलने के बाद ख़ुशी से गा रही थीं, न बोले तुम न मैंने कुछ कहा…” और महान तुम्हारी बेवकूफ़ी यह कि इस गाने को तुमने अगली परची में कोट भी कर दिया.” ए.सी. को आनंद मिल रहा था.
महान को सहानुभूति की ज़रूरत थी, जो दामोदर ने दी, “क्या पता मैम ने संयोग से वह गीत गाया हो. परची मैम के हाथ लगती तो वे आ धमकतीं, तुम लोग पढ़ने आए हो या इश्क़ करने?”
ए.सी. शांत नहीं हुआ, “पर्ची जिसके भी हाथ लगी हो, पर महान मैंने तेरे जैसा इश्क़बाज़ नहीं देखा. मुझे डर है मैम या सर को कुछ भेद मिल जाए और वे कुछ वारदात करें तो तेरे साथ हम दोनों भी पिटेंगे, जबकि हमारी कोई खता नहीं है. हमें यहां से श़िफ़्ट करना होगा.”
महान का चेहरा सूख गया, “यहीं रहो न. गोपा को देखता रहूंगा.”
“महान, तुझे जो समझ में आए कर, पर मैं यहां नहीं रहूंगा.” ए.सी ने फैसला सुना दिया.
उधर गौतमी के लिए वह मधुर रात थी. शील्ड मिलने का रोमांच, ज़बर्दस्त प्रस्तुति के लिए मिली तालियां, मोदमग्न लड़कों की उपस्थिति. उसे रातभर नींद नहीं आई. कल लड़कों से पूछेगी, मेरा गाना कैसा रहा? जो सबसे अधिक जोश और उत्साह से प्रतिक्रिया देगा, वही होगा परची लिखनेवाला. पर बहुत भिन्न थी वह सुबह. गौतमी किचन में काम कर रही थी. निश्छल ने आकर सूचना दी, “गौतमी, लड़के घर छोड़ रहे हैं. अभी मुझसे कह कर गए.”
“क्यों? कैसे? क्यों?” गौतमी हड़बड़ा गई.
“उन्हें छात्रावास में जगह मिल गई है.”
गौतमी ने घर न छोड़ने के लिए लड़कों पर बहुत दबाव डाला, पर वे नहीं रुके. उन्होंने गौतमी की ओर दृष्टि तक न उठाई. साहस न हुआ. उसके चेहरे को देखते तो पाते वहां किसी उम्मीद के टूटने के चिह्न स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं.


  सुषमा मुनींद्र
अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES
Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

सलमान खान- घर में सभी को कहता था कि बड़ा होकर उनसे ही शादी करूंगा… (Salman Khan- Ghar mein sabhi ko kahta tha ki bada hokar unse hi shadi karunga…)

- ‘सिकंदर’ में मेरे साथ रश्मिका मंदाना हीरोइन है, तो हमारी उम्र के फासले को…

April 9, 2025

एकता कपूरच्या ‘क्योंकी सास भी कभी बहू थी’ मालिकेचा सीझन २ येणार (Ekta Kapoor Serial Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi 2 Coming Soon)

टेलिव्हिजनची लोकप्रिय मालिका क्योंकी सास भी कभी बहू थी आता पुन्हा एकदा प्रेक्षकांचे मनोरंजन करण्यासाठी…

April 9, 2025

घर के कामकाज, ज़िम्मेदारियों और एडजस्टमेंट से क्यों कतराती है युवा पीढ़ी? (Why does the younger generation shy away from household chores, responsibilities and adjustments?)

माना ज़माना तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है, लेकिन उससे भी कहीं ज़्यादा तेज़ी…

April 9, 2025

कंगना राहत नसलेल्या घराचे वीज बिल तब्बल १ लाख, अभिनेत्रीचा मनाली सरकारला टोला (९ Kangana Ranaut stunned by 1 lakh electricity bill for Manali home Where She Dosent Stay )

बॉलिवूड अभिनेत्री कंगना राणौतने नुकतीच हिमाचल प्रदेशातील मंडी येथे एका राजकीय कार्यक्रमात हजेरी लावली. जिथे…

April 9, 2025

अमृतफळ आंबा (Amritpal Mango)

आंबा हे फळ भारतातच नव्हे, तर जगभरातही इतर फळांपेक्षा आवडतं फळ आहे, असं म्हटल्यास वावगं…

April 9, 2025
© Merisaheli