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‘दीया और बाती हम’ सीरियल की एक्ट्रेस दीपिका सिंह ने कहा, मेरा बचपन फैक्ट्री में बीता है (Success Story Of ‘Diya Aur Baati Hum’ Actress Deepika Singh: Acting Career, Marriage, Husband, Motherhood And More)

‘दीया और बाती हम’ (Diya Aur Baati Hum) सीरियल की आईपीएस ऑफिसर संध्या यानी दीपिका सिंह (Deepika Singh) का क़ामयाबी का सफ़र बहुत आसान नहीं था. टीवी एक्ट्रेस दीपिका सिंह ने अपनी मेहनत के दम पर आज ये मुकाम हासिल किया है. दीपिका सिंह के पहले ही सीरियल ‘दीया और बाती हम’ में उनका आईपीएस ऑफिसर का किरदार दर्शकों को इतना पसंद आया कि बहुत जल्दी दीपिका दर्शकों की चहेती टीवी एक्ट्रेस बन गई. उसके बाद दीपिका को मुड़कर पीछे देखने की जरूरत नहीं पड़ी. दीपिका सिंह की क़ामयाबी की कहानी जानने के लिए हमने उनसे ख़ास बातचीत की. आइए, हम आपको दीपिका सिंह की क़ामयाबी की कहानी बताते हैं.

अपने बचपन के बारे में बताइए, कैसा था आपका बचपन?
बहुत छोटी उम्र से ही मैं ये महसूस करने लगी थी किसी भी इंसान के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत ज़रूरी है इसलिए बचपन से ही मैंने काम करना शुरू कर दिया था. मेरा स्कूल पापा की फैक्ट्री के पास ही था इसलिए स्कूल के बाद मैं फैक्ट्री पहुंच जाती थी और शाम को देर से घर लौटती थी. छठी-सातवीं क्लास तक तो मैं फैक्ट्री का सारा काम जैसे- सिलाई, कढ़ाई, डिज़ाइनिंग, पैकेजिंग वगैरह सबकुछ समझ गई थी. (हंसते हुए) आप कह सकते हैं कि मेरा बचपन फैक्ट्री में ही बीता है. फिर पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम इवेंट्स और एडवर्टाइज़िंग के लिए काम किया और आज यहां पहुंच गई हूं.

आज जब पलटकर अपने अतीत को देखती हैं तो कैसा लगता है?
मैं अपना अतीत नहीं भूली हूं, इसीलिए शायद मैं हमेशा डाउन टु अर्थ रहती हूं. मेरा बचपन पहाड़गंज में बीता है, जहां आज भी लोग पानी की किल्लत झेलते हैं. बचपन में जब मैं पहाड़गंज में रहती थी, तो हमारे यहां पानी के टैंकर आते थे. मेरी मां, मैं और मेरी बहनें तीसरी मंज़िल तक बाल्टी से पानी भरकर ले जाते थे. कई बार फिसल भी जाते थे. मैंने लाइट और पानी की बहुत दिक्कत देखी है इसलिए मैं इन्हें कभी वेस्ट नहीं करती. कई बार जब लाइट चली जाती थी, तो हम लैंप में पढ़ाई करते थे. मैं आज भी घर के किसी भी रूम की लाइट, पंखा या एसी कभी खुला नहीं छोड़ती. मैं अपना अतीत नहीं भूली हूं इसलिए आज भी मैं पानी ज़रा भी वेस्ट नहीं करती. मुझे ये लगता है कि मैं अपनी तरह से कोशिश करती रहूंगी. मुझे देखकर कुछ लोग भी बदल सकें, तो मेरे लिए ये बहुत बड़ी बात होगी.

कैसा लगता है जब फैन्स इतना प्यार करते हैं?
मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूं कि दर्शक मुझे इतना प्यार और अपनापन देते हैं. मैं सोशल मीडिया के माध्यम से अपने फैन्स से जुड़े रहने की पूरी कोशिश करती हूं और उनका धन्यवाद करना कभी नहीं भूलती.

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क्या शादी के बाद आपके करियर में कोई बदलाव आया?
नहीं, शादी के बाद भी मैं पहले की तरह ही काम कर रही थी. हां, प्रेग्नेंसी के समय और बेटे के जन्म के बाद मैंने कुछ समय का ब्रेक लिया था, लेकिन उसके बाद मैंने काम करना शुरू कर दिया था.

आपका मां बनने का अनुभव कैसा था?
सच कहूं तो ‘ दिया और बाती हम’ सीरियल से भी ज़्यादा मेहनत मां बनने में लगी. मां बनना औरत के लिए एक तरह से ट्रांसफॉर्मेशन का टाइम होता है. आज जब मैं ये सब सोचती हूं तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है. मैंने पहले से ही तय कर लिया था कि मेरी डिलीवरी नॉर्मल होगी, मैं बच्चे को अपना दूध ही पिलाऊंगी और उसे डायपर नहीं पहनाऊंगी. मैंने सोहम की देखभाल के लिए मेड नहीं रखी. मुझे डर लगता था कि वो हाइजीन का ख़्याल रखेगी या नहीं. पहले मैंने मेड रखने की कोशिश की थी, लेकिन मुझे उनका काम पसंद नहीं आया. एक बार तो सोहम को आंख में इंफेक्शन हो गया था. मेड्स बच्चे को डाइपर पहनाकर फ्री हो जाती हैं इसलिए मैं अपने बच्चे को उनके हवाले नहीं करना चाहती थी.

दीपिका, मां बनने के बाद आप फिर से पहले की तरह स्लिम-ट्रिम हो गई हैं. आपने इतनी जल्दी वज़न कैसे कम किया?
मैंने वज़न कैसे कम किया, इससे पहले मैं आपको ये बताना चाहती हूं कि मेरा वज़न इतना ज़्यादा कैसे बढ़ गया. मेरा वज़न बढ़ने के ऐसे कई कारण थे, जिन पर मेरा कोई कंट्रोल नहीं था, जैसे- प्रेग्नेंसी के दौरान मुझे थायरॉइड की प्रॉब्लम हो गई थी, जिसके कारण मेरा वज़न तेज़ी से बढ़ने लगा था. फिर डिलीवरी के बाद मेरे घरवालों ने मुझे ख़ूब खिलाया-पिलाया, ताकि मुझे कमज़ोरी न आ जाए और बच्चे को दूध की कमी न हो. हमारे यहां 40 दिन तक घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है, इसलिए बैठे-बैठे बज़न और बढ़ने लगा. मैंने अपने बच्चे के लिए डाइपर का इस्तेमाल कभी नहीं किया. मुझे लगता है कि पीरियड्स के दौरान जब पांच दिन पैड पहनने में मुझे इतनी परेशानी होती है, तो इतने छोटे बच्चे को डायपर क्यों पहनाया जाए. जन्म के कुछ समय तक वो बार-बार कपड़े गीले करता था इसलिए मेरी नींद पूरी नहीं हो पाती थी, नींद की कमी से भी मेरा वज़न बढ़ने लगा. उस पर सोहम प्री-मैच्योर था इसलिए मैं उसका कुछ ज़्यादा ही ध्यान रखती थी. इस तरह मेरा वज़न 54 किलो से लगभग 72 किलो पहुंच गया. बढ़े हुए वज़न के कारण मुझे कमर दर्द की शिकायत भी होने लगी थी.

कब लगा कि अब वज़न कम करना ज़रूरी हो गया है?
सोहम (बेटे) के जन्म के बाद मेरा वजन बहुत बढ़ गया था. मेरी बॉडी इतनी स्टिफ हो गई थी कि मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी. साथ ही मुझे कमर दर्द भी हो रहा था. सोहम के जन्म के ठीक 2 महीने बाद से मैंने जिम ज्वाइन कर लिया. हालांकि मैं जिम में बहुत कम टाइम नहीं बिता पाती थी, क्योंकि मुझे सोहम को दूध पिलाने के लिए जल्दी घर आना होता था. ब्रेस्ट फीडिंग की वजह से मैं वेट ट्रेनिंग तो कर नहीं सकती थी, इसलिए मैं जिम में ट्रेडमिल, क्रॉस ट्रेनर, कार्डियो वगैरह ही करती थी. कई बार मैं ब्रेस्ट पंप से उसके लिए दूध भी रखकर जाती थी. इसके अलावा ब्रेस्ट फीडिंग और डांस के कारण भी मेरा वज़न तेज़ी से कम हो रहा था.

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क्या आपने डांस की स्पेशल ट्रेनिंग ली है?
हां, मैंने ओड़ीसी डांस सीखा है. हफ्ते में तीन दिन मेरे गुरु सनातन चक्रवर्ती जी मुझे ओड़ीसी डांस सिखाते हैं. मुझे डांस करना बहुत पसंद है. डांस मेरे लिए पूजा की तरह है, इससे मुझे आध्यात्मिक शांति मिलती है. जब भी मैं डांस करती हूं, तो मैं ख़ुद को एक अलग ही दुनिया में पाती हूं. मेरे ख़्याल से डांस एक अच्छी एक्सरसाइज़ है और इससे बहुत ख़ुशी मिलती है. जिम, डांस, योगा, मेडिटेशन के साथ-साथ मैंने अपनी डायट पर भी ख़ास ध्यान देती हूं.

आपके पूरे दिन का डायट प्लान क्या होता है?
मैं सुबह छह बजे उठ जाती हूं. सुबह मैं एक बॉटल गर्म पानी में 1-2 टीस्पून दालचीनी पाउडर मिलाकर पीती हूं. ये शरीर के टॉक्सिन बाहर निकालकर शरीर की सफ़ाई का काम करता है. ये इतना अच्छा प्रयोग है कि इसे आप सफ़र के दौरान भी कर सकते हैं. मेरा पानी पीने का भी नियम है. मैं शाम चार बजे तक ख़ूब पानी पीती हूं, उसके बाद ज़रूरत के हिसाब से पीना पीती हूं. सुबह 8 बजे तक मैं नाश्ता कर लेती हूं. नाश्ते में पोहा या ओट्स में मूंगफली, फ्रूट्स वगैरह डालकर खाती हूं. इससे मैं फ्रूट्स भी उसी समय खा लेती हूं. हफ्ते में तीन दिन सुबह दस बजे मेरी डांस क्लास शुरू हो जाती है (हंसते हुए), वो भी सोहम के हिसाब से आगे-पीछे होती रहती है. बाकी के दिन मैं योगा कर लेती हूं. साढ़े ग्यारह बजे तक डांस या योगा करने के बाद मैं शिकंजी (नींबू पानी) या छाछ पीती हूं. मुझे लो बीपी की प्रॉब्लम है इसलिए मैं नमक-शक्कर वाला नींबू पानी पीती हूं. कुछ देर बाद मन हुआ तो सलाद ले लेती हूं, नहीं तो सीधे लंच करती हूं. एक-डेढ़ बजे तक मैं लंच कर लेती हूं. लंच में 2 रोटी, 2 सब्ज़ी (एक सूखी और एक रस वाली), दाल, दही, हरी मिर्च, प्याज़… बिल्कुल देसी स्टाइल में खाना खाती हूं मैं. शाम पांच बजे मैं चाय के साथ बिस्किट या खाखरा लेती हूं. कई बार चना या मूंगफली खा लेती हूं. घर में खाना चाहे कितने बजे भी बने मैं शाम सात बजे अपने लिए दो परांठे बनवा लेती हूं और उन्हें सब्ज़ी या दाल जो भी मिले उसके साथ खा जाती हूं. मैंने कभी क्रैश डायट नहीं की. हां, खाना पचाने के लिए मैं रेग्युलर एक्सरसाइज़ हमेशा करती हूं. फिट रहकर, सही डायट लेकर, रेग्युलर एक्सरसाइज़ करके हम बीमारियों से दूर रह सकते हैं, बढ़ती उम्र के संकेतों को कम कर सकते हैं और हमेशा कॉन्फिडेंट नज़र आ सकते हैं.

दीपिका, आपकी स्किन बहुत अच्छी है, इतने टाइट शेड्यूल में भी आप अपनी स्किन का ध्यान कैसे रखती हैं?
मैं अपने शरीर पर केमिकल का कम से कम इस्तेमाल करती हूं इसलिए मैं बालों में कलर करने से बचती हूं. मैं बालों के लिए हर्बल शैंपू इस्तेमाल करती हूं. शूटिंग के अलावा मैं मेकअप नहीं करती. स्किन केयर के लिए भी मैं देसी उबटन का ही इस्तेमाल करती हूं. मैं पल्सेस, चावल, कलौंजी और बादाम को पीसकर पाउडर बनाकर एयर टाइट कंटेनर में रख देती हूं. फिर बाथरूम में ये पाउटर एक बाउल में रखती हूं और इस उबटन को साबुन की तरह लगाकर नहाती हूं. नहाने में मुझे 15 मिनट लग जाते हैं, लेकिन ये संतुष्टि होती है कि मैंने अपने शरीर पर कोई केमिकल नहीं लगाया. बॉडी वॉश या साबुन लगाने के बाद कितना भी पानी डालो, वो बॉडी में रह ही जाता है. उबटन यदि शरीर पर रह भी जाए तो उसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता. इसके अलावा मैं हल्दी, केसर, दूध, पपीता आदि से लेप बनाकर चेहरे पर लगाती हूं. जब भी टाइम मिलता है, तो मैं आटे में सरसों का तेल मिलाकर बॉडी मसाज भी करती हूं, इससे त्वचा को ग्लो मिलता है.
– कमला बडोनी

Kamla Badoni

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