चांदनी… दूधिया सफ़ेद… न सिर्फ़ उसका रंग बल्कि उसके कपड़े भी… वो हमेशा सफ़ेद रंग ही पहनती है… उस पर खूब फबता भी है… एकदम पाक… मासूम रंग जैसे सुबह-सुबह की नर्म-नाज़ुक ओस… उसकी भोली मुस्कान उसके गुलाबी होंठों पर हमेशा बिखरी रहतीहै… अभी-अभी हमारे मोहल्ले में रहने आई है और रोज़ सुबह-शाम मेरी गली से गुजरती है, उसके साथ उस वक्त एक छोटी बच्ची भीरहती है, उसकी छोटी बहन होगी, उसी को स्कूल छोड़ने-ले जाने जाती है… जब भी वो मेरे घर के सामने से गुजरती है मैं ज़ोर से वो गाना मोबाइल पे लगा देता हूं… चांद मेरा दिल, चांदनी हो तुम… और वो एकनज़र मेरी खिड़की की तरफ़ डालकर निकल जाती है. यही सिलसिला चल रहा था कि एक रोज़ उसे बस स्टॉप पर देखा. मैंने बाइकरोकी और उसके पास जाकर बात करने की कोशिश की… “आपको रोज़ देखता हूं मैं, नई आई हैं आप इस मोहल्ले में?” “जी हां.” उसकी मीठी आवाज़ आज पहली बार सुनी. खुद को खुशक़िस्मत समझ रहा था मैं उसके इतना क़रीब जाकर. “कहीं जा रही हैं? आइए मैं छोड़ दूं…” मैंने उसकी मदद करने के इरादे से पूछा, तो उसने नो, थैंक यू कहकर टाल दिया… अब अक्सर उससे यूं ही मुलाक़ात होने लगी, कभी मार्केट में, तो कभी बस स्टॉप पर, क्योंकि मैंने बाइक छोड़ बस से जाना शुरू करदिया. “एक रोज़ हमें बस में साथ बैठने का मौक़ा मिला, तो उसने सवाल किया, “आप तो बाइक से जाते थे ना?” “जी, लेकिन सोचा बाइक से पेट्रोल बर्बाद करने से बेहतर है पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज़ करूं…” “वैसे आपका नाम जान सकता हूं…?” मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया. “मैं चांदनी हूं. वैसे आपका नाम क्या है?” “मैं वियान हूं…” फिर हम दोनों चुप रहे और इतने में ही मेरा स्टॉप आ गया… अरे, ये क्या चांदनी भी यहीं उतर रही है? मैं सोच में पड़ गया. वो आगे चलरही थी, मेरे ही बैंक के गेट की ओर वो जाने लगी. मैंने सोचा कोई काम होगा. मैं भी अंदर चला गया और काम में जुट गया. वैसे मेरीनज़रें चांदनी को ही ढूंढ़ रही थीं, पर वो कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी. इतने में ही डेस्क पर रखा फ़ोन बजा और हमको कॉन्फ़्रेन्स रूम मेंबुलाया गया. “हेलो एवरीवन, मैं चांदनी… आपकी नई ब्रांच मैनेजर…” उसको यूं देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए थे.जिसे मैं एक घरेलू लड़की समझ रहा था, उसका एक अलग ही रूप और अंदाज़ आज मेरेसामने था. ख़ैर, मीटिंग ख़त्म हुई और मैं अपने डेस्क पर लौट आया. “वियान सर, आपको मैम ने बुलाया है…” मुझे ऑफ़िस बॉय ने आकर कहा तो मैंने केबिन में जाकर कहा- “मैम आपने बुलाया?” “हां, मैंने सोचा बैंक के सभी सीनियर पोस्ट वालों से वन ऑन वन बात करके अपडेट ले लेती हूं ताकि हम मिलकर बतौर एक टीम कामकरें और अपने बैंक को फिर से नंबर वन बनाएं.”…
मैं अपनी चचेरी बहन के पास अस्पताल में बैठी थी. उसका छोटा-सा एक्सीडेंट हुआ था और पांव में फ़्रैक्चर हो जाने कीवजह से वह तीन-चार दिनों के लिए एडमिट थी. मैं उसके पास कुर्सी पर बैठी कोर्स की किताब पढ़ रही थी कि तभी उसकेस्कूल के दोस्त उससे मिलने आए. दो लड़कियां और तीन लड़के. कुछ ही देर में बाकी सब तो चले गए लेकिन रश्मि काएक दोस्त, जिसका नाम जतिन था रुक गया. हम तीनों बातें करने लगे. बातों के सिलसिले में पूरी दोपहर कब निकल गईपता ही नहीं चला. दूसरे दिन फिर आने का वादा करके वह घर चला गया. उसके जाने के बाद मैं यूं ही उसके बारे में सोचने लगी… बिखरे बालों वाला वह बहुत सीधा-सादा, भोला-सा लगा मुझे. रात में चाची रश्मि के पास रुकी और मैं घर चली गई. सुबह नहाकर जब वापस आई तो देखा जतिन महाराज पहले से ही वहां बैठे थे. चाची के चले जाने के बाद हम तीनों फिर गप्पे मारने लगे. एक आम और साधारण-सा चेहरा होने के बाद भीएक अजब-सी, प्यारी-सी रूमानियत थी जतिन के चेहरे पर और उसकी बातों में कि दिल और आंखें बरबस उसकी ओर खींची चली जाती थी. चार दोपहरें कब निकल गई पता नहीं चला. रश्मि को अभी डेढ़ महीना घर पर ही रहना था. इस बीच उसके बाकी दोस्तों के साथ ही जतिन भी घर आता रहा. वह स्कूल में होने वाली पढ़ाई की जानकारी रश्मि को देकर उसकी मदद करता और खाली समय में हम तीनों खूब बातें करते और मस्ती करते. अब तो जतिन से मेरी भी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी. जिस दिन वह नहीं आता वो दिन खाली-खाली-सा लगता और मैं बेसब्री से उसका इंतजार करती. रश्मि भी हंसी-हंसी में उसे ताना मारती, "तुम मुझसे मिलने थोड़े ही आते हो, तुम तो चेतना से मिलने आते हो…" तब जतिन एक शर्मीली-सी हंसी भरी नज़र मुझ पर डाल कर सिर झुका लेता. बारहवीं पास होते ही मैं डेंटल कॉलेज में पढ़ने दूसरे शहर चली गई और जतिन भी आगे की पढ़ाई करने दूसरे शहर चला गया, लेकिन फोन पर हम बराबर संपर्क में बने रहते. कभी-कभी रात की ट्रेन से सफर करके जतिन मुझसे मिलने आता. दिन भर हम साथ में घूमते, लंच करते और रात की ट्रेन से वह वापस चल आ जाता. पढ़ाई खत्म होने तक हम दोनों को ही इस बात का एहसास हो चुका था कि हम दोस्ती से आगे बढ़ चुके हैं. हम एक-दूसरे से प्यार करने लगे हैं और अब अलग नहीं रह सकते. हम दोनों ही अपनी एक अलग रूमानी दुनिया बसा चुके हैं, जहां से लौटना अब संभव नहीं था. कितनी खूबसूरत थी वह दुनिया, बिल्कुल जतिन की दिलकश मुस्कुराहट की तरह और उसकी आंखों में झलकते प्यार सेसराबोर जिसमें मैं पूरी तरह भीग चुकी थी. नौकरी मिलते ही जतिन ने अपने घर में इस बारे में बात की. उसके माता-पिता अपने इकलौते बेटे की खुशी के लिए सहर्षतैयार हो गए, लेकिन मेरे पिताजी ने दूसरी जाति में शादी से साफ इनकार कर दिया. यहां तक कि जतिन के घर आने पर अपनी बंदूक तान दी. महीनों घर में तनाव बना रहा, लेकिन मैं जतिन के अतिरिक्त किसी और से शादी करने के लिए किसी भी हालत में तैयार न थी. महीनों बाद सब के समझाने पर पिताजी थोड़े नरम हुए. उन्होंने पंडित जी से कुंडली मिलवाई तोपंडित जी ने मुझे मंगली बता कर कहा कि यदि यह शादी हुई, तो लड़की महीने भर में ही विधवा हो जाएगी. साथ ही लड़के की कुंडली में संतान योग भी नहीं है. घर में सब पर वज्रपात हो गया. अब तो शादी की बिल्कुल ही मनाही हो गई. चार-पांच पंडितों ने यही बात की. अलबत्ता जतिन के घर वाले अब भी अपने बेटे की खुशी की खातिर इस शादी के लिए तैयार थे. बहुत संघर्षों और विवादों के बाद…
कॉम्प्लिमेंटस किसे पसंद नहीं! हर कोई चाहता है कि उसके लुक्स, बिहेविअर, फैशन सेंस या फिर उनके एफ़र्ट्स के लिए…
ये भीगता मौसम, ये बरसती फ़िज़ा… मन के किसी कोने में तुम्हारी यादों की सोंधी महक को फिर हवा दे जाते हैं… जब-जब ये बारिश होती है, तन के साथ-साथ मन को भी भिगो देती है… कैसी अजीब सी कशिश थी तुम्हारी उस सादगी में भी, कैसी रूमानियत थी तुम्हारी आंखों की उस सच्चाई में भी… मेरा पहला जॉब वो भी इतने बड़े बैंक में. थोड़ा डर लग रहा थालेकिन तुमने मुझे काफ़ी कम्फ़र्टेबल फील कराया था. हर वक्त मेरी मदद की और न जाने कैसे धीरे-धीरे एक दिन अचानक मुझे ये एहसास हुआ कि कहीं मैं प्यार में तो नहीं? कुछ दिन अपने दिल को समझने और समझाने में ही बीत गए और उसके बाद मैंने निर्णय ले लिया कि तुमसे अपनीफ़ीलिंग्स का इज़हार कर दूंगी क्योंकि घर में भी मेरी शादी को लेकर बात चलने लगी थी. मैंने देर करना ठीक नहीं समझा और कहीं न कहीं मुझे भी ये लगने लगा था कि तुम्हारा भी खिंचाव और लगाव है मेरीतरफ़. मैंने लंच में तुमसे बिना झिझके साफ़-साफ़ अपने दिल की बात कह दी. तुमने भी बड़े सहज तरीक़े से मुझसे कहाकि तुम भी मुझसे प्यार करने लगे हो लेकिन एक सच है जो तुम मुझे बताना चाहते हो, लेकिन शाम को फ़ुर्सत में… ‘निशांत, कहो क्या कहना चाहते हो?’ ‘निधि मैंने तुमको अपने घर इसलिए बुलाया कि बात गंभीर है और मैं तुमको अंधेरे में नहीं रखना चाहता. निधि ये तस्वीर मेरी 3 साल की बेटी किट्टू की है.’ ‘तुम शादीशुदा हो? तो तुमने मुझे अपने घर क्यों बुलाया? तुम्हारी पत्नी और बेटी कहां हैं?’ ‘निधि, यही सब बताने के लिए तो बुलाया है तुम्हें! मेरी पत्नी और मैं अलग रहते हैं. हमने तलाक़ का फ़ैसला लिया है. किट्टू भी राधिका के साथ ही है. मेरी पत्नी राधिका को मेरी सादगी और सहजता पसंद नहीं थी. उसको शुरू से लगता था कि मैंऔरों की तरह स्मार्ट नहीं. उसकी ख्वाहिशें भी बहुत बड़ी थीं जो मैं पूरी न कर सका, इसलिए हमने अलग होने का फ़ैसला किया है.’ ‘निशांत मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं, मैं तुमसे बेहद प्यार करती हूं और तलाक़ तक तो क्या, ताउम्र तुम्हारा इंतज़ार कर सकती हूं!’ इसके बाद सब कुछ ठीक चल रहा था, मेरी शामों में रूमानियत घुलने लगी थी, दिन रंगीन हो ही रहे थे कि निशांत ने बताया उसकी बेटी किट्टू बहुत बीमार है और राधिका वापस घर लौट आई है क्योंकि किट्टू अपने मम्मी-पापा दोनों के साथ रहना चाहती थी. किट्टू की रिपोर्ट्स से पता चला कि उसको ब्रेन ट्यूमर है और सर्जरी करनी पड़ेगी, जो काफ़ी रिस्की है! मैंने निशांत को कहा कि फ़िलहाल वो किट्टू पर ध्यान दे. ‘क्या बात है निशांत, तुम इतने उलझे-उलझे क्यों रहते हैं इन दिनों? किट्टू ठीक हो जाएगी, ज़्यादा सोचो मत!’ ‘निधि किट्टू की फ़िक्र तो है ही लेकिन एक और बात है, राधिका काफ़ी बदल गई है. उसका कहना है कि किट्टू हम दोनों केसाथ रहना चाहती है और उसकी ख़ातिर वो खुद को बदलना चाहती है, लेकिन मैंने उसे अपने और तुम्हारे रिश्ते के बारे मेंबता दिया है, राधिका को कोई आपत्ति नहीं, पर किट्टू की ज़िद का क्या करूं. वो बस यही कहती है कि उसको मम्मी-पापा दोनों के साथ रहना है!…
कभी कभार गुस्सा आना नॉर्मल बात है, लेकिन अगर गुस्सा आपके पार्टनर का स्वभाव बन जाए तो इसका असर रिश्ते…