कंप्यूटर हमेशा से ही मेरे लिए जी का जंजाल रहा है. बात उन दिनों की है जब इंटरनेट नया-नया आया…
“तुम सूखे पत्तों की तरह हो शिल्पी और मैं एक बेजान ठूंठ की तरह! नहीं संभाल पाऊंगा मैं तुम्हें... शायद…
मैं तो सच में मदहोश हो गई. गाने के हर लफ़्ज़ के साथ जैसे एक डोर वास्तव में मन को…
विनीता राहुरीकर भावरी की आंखें ब्याह की बात पर चंचल हो उठीं. एक नमकीन शरारत उसके चेहरे पर नाच उठी…
शादी के हवन में तुम्हारी बेवफ़ाई को स्वाहा करके एक नए हमसफ़र के साथ नई दुनिया बसा ली. लेकिन उस…
पल्लवी पुंडीर “मैंने सुना है इन फूलों पर पवित्र आत्माएं रहती हैं.”“सुना तो यह भी है कि इस फूल को…
तुम मेरे जीवन में न होकर भी हमेशा मेरी स्मृतियों में रहे. मैं तुम्हें भूला नहीं पाई या ये कहूं…
डॉ. गौरव यादव “आपने मुझे मिस किया?” पूर्वी ने मेरी तरफ़ देखकर पूछा.“नहीं, ऑफिस से टाइम ही नहीं मिला. और…
स्कूल में जब तुम मुझे क्लास बंक करते देख मुझे हक़ से डांटते, तो मुझे तुम्हारी डांट बहुत अच्छी लगती.…
प्रेम सृष्टि की अनोखी अनुभूति है, जिसके एहसास धमनियों में प्रवाहित होते रहते हैं. कुछ एहसास तो इतने गहरे होते…
मैंने भीतर कमरे में झांका. प्रोफेसर अपने हाथों का सहारा देकर दादी को तकिए पर सुलाने का प्रयास कर रहे थे. कुछ पल वहीं रुक कर वह तेज़ी से बाहर निकले और द्वार पर मेरे पास से गुज़रे. उनकी छलकती आंखें बता रही थीं कि कहानी का अंत हो चुका है.क्या इसी को इच्छा मृत्यु कहते हैं? इस बारे में विचार फिर कभी. द्वार प्रोफ़ेसर नीलमणि ने ही खोला था. सीधा तना शरीर, गंभीर चेहरा और मेरी कल्पना के विपरीत एकदम भावशून्य. सोचा जाए तो एक अजनबी युवक को सामने देखकर किसी के चेहरे पर कोई भाव आ ही क्या सकता है? मैंने कहा, “क्या मैं प्रोफ़ेसर नीलमणि से मिल सकता हूं?”मेरा अंदाज़ा सही था. वे बोले, “मैं ही हूं नीलमणि.” मैंने फिर हिम्मत बटोर कर कहा, “क्या मैं भीतर आकर दो मिनट बात कर सकता हूं?” वह बिना कुछ बोले चुपचाप भीतर की ओर मुड़ गए. उनके ठीक पीछे चलता मैं उनके ड्रॉइंगरूम तक पहुंच गया. उन्होंने हाथों से ही मुझे बैठने का इशारा किया और स्वयंभी बैठ गए और प्रश्नवाचक मुद्रा में मेरी ओर देखा.मैं सोच में पड़ गया.इतने चुप्पे व्यक्ति के साथ कैसे बात हो सकती है और वह भी इतनी अंतरंग! पर कहना तो था ही मुझे. दो सौ किलोमीटर दूर मैं इसीलिए तो आया था.“मुझे दादी ने भेजा है..!" “दादी कौन?” उन्होंने मेरी बात पूरी होने से पहले ही पूछा. उनके चेहरे पर थोड़ी सी उत्सुकता जगी.“मेरी दादी यानी माधवी पाठक.” आप शायद उन्हें माधवी वर्मा के नाम से पहचानते हैं.” मैंने आज तक कोई चेहरा एक पल के भीतर इस कदर परिवर्तित होते नहीं देखा. दृढ़ कठोर चेहरे पर एकाएक कोमलता फैल गई थी. हल्की सी एक मुस्कान लहर की भांंति घूम गई उनके चेहरे पर. परन्तु उसके साथ कुछ और भी था.…
हल्की सी बूंदाबांदी शुरू हो गई. वह बूंदों की सरगम पर फिर गुनगुनाने लगी. उसका आसमानी दुपट्टा हवा से लहरा…