कमरे में केसरिया किरणों के शुभागमन से पता चला कि रात बीत चुकी है. रातभर की जगी सुर्ख लाल आंखों…
आनंद सिर्फ़ उसे नज़रअंदाज़ करता आया था, कभी तलाक़ की बात करता भी नहीं था. तो क्या उसे ज़िंदगीभर उस…
मैंने भीतर कमरे में झांका. प्रोफेसर अपने हाथों का सहारा देकर दादी को तकिए पर सुलाने का प्रयास कर रहे थे. कुछ पल वहीं रुक कर वह तेज़ी से बाहर निकले और द्वार पर मेरे पास से गुज़रे. उनकी छलकती आंखें बता रही थीं कि कहानी का अंत हो चुका है.क्या इसी को इच्छा मृत्यु कहते हैं? इस बारे में विचार फिर कभी. द्वार प्रोफ़ेसर नीलमणि ने ही खोला था. सीधा तना शरीर, गंभीर चेहरा और मेरी कल्पना के विपरीत एकदम भावशून्य. सोचा जाए तो एक अजनबी युवक को सामने देखकर किसी के चेहरे पर कोई भाव आ ही क्या सकता है? मैंने कहा, “क्या मैं प्रोफ़ेसर नीलमणि से मिल सकता हूं?”मेरा अंदाज़ा सही था. वे बोले, “मैं ही हूं नीलमणि.” मैंने फिर हिम्मत बटोर कर कहा, “क्या मैं भीतर आकर दो मिनट बात कर सकता हूं?” वह बिना कुछ बोले चुपचाप भीतर की ओर मुड़ गए. उनके ठीक पीछे चलता मैं उनके ड्रॉइंगरूम तक पहुंच गया. उन्होंने हाथों से ही मुझे बैठने का इशारा किया और स्वयंभी बैठ गए और प्रश्नवाचक मुद्रा में मेरी ओर देखा.मैं सोच में पड़ गया.इतने चुप्पे व्यक्ति के साथ कैसे बात हो सकती है और वह भी इतनी अंतरंग! पर कहना तो था ही मुझे. दो सौ किलोमीटर दूर मैं इसीलिए तो आया था.“मुझे दादी ने भेजा है..!" “दादी कौन?” उन्होंने मेरी बात पूरी होने से पहले ही पूछा. उनके चेहरे पर थोड़ी सी उत्सुकता जगी.“मेरी दादी यानी माधवी पाठक.” आप शायद उन्हें माधवी वर्मा के नाम से पहचानते हैं.” मैंने आज तक कोई चेहरा एक पल के भीतर इस कदर परिवर्तित होते नहीं देखा. दृढ़ कठोर चेहरे पर एकाएक कोमलता फैल गई थी. हल्की सी एक मुस्कान लहर की भांंति घूम गई उनके चेहरे पर. परन्तु उसके साथ कुछ और भी था.…
शाम को भी काफ़ी देर तक अभ्यास करती. टीवी, मोबाइल से उसने दूरी बना रखी थी. इनका प्रयोग वह कम…
"मैंने बंटी की ओर से आंखें बंद नहीं की हैं, सख़्ती और अनुशासन में ढील नहीं दी है… उस पर…
उन्हें यह एहसास हो गया था कि इंसान जीना चाहे, तो राहें हज़ार हैं. दूध उबलकर गिरने लगा, तब वे अपनी सोच…
इस अपमान पर प्रसून और रचना दोनों ही स्तब्ध रह गए. स्त्री-पुरुष में पवित्र और मर्यादित सखा भाव वाला शालीन…
"बाहर निकलो सब!" लोगों की भीड़ जुटने से मेरी हिम्मत बढ़ चुकी थी. डरी हुई लड़कियों के साथ तीन लड़के…
उस पेड़ पर कुछ पंछी उछल-कूद रहे थे. कभी वो इस डाली पर बैठते, तो कभी उस पर. उनकी हरक़तों…
सुषमा मुनीन्द्र लोग छोटे-छोटे लक्ष्य बनाते हैं, हासिल करते हैं. ख़ुश रहते हैं. जबकि वह बस यात्रा करने का मानस…
प्रीति सिन्हा “वे सही कह रहे हैं. तुम इतनी दुर्बल नहीं हो जितना तुम अपने आपको समझ रही हो. तुम…
पूनम ठिठक कर उसकी दंतुरित मुस्कान को देखती रही. कल बेवजह खिलौने ख़रीदने का मलाल मन से दूर हो गया.…