बेहतर रिश्ते हमारे जीवन को बेहतर और आसान बनाते हैं, जबकि रिश्ते अगर बेहतर ना हों तो वो परेशानी का सबब बनजाते हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि हम अपने रिश्तों को बेहतर बनाने और उन्हें ईमानदारी से निभाने की कोशिश करें. लेकिन रिश्तेबनाना और निभाना भी एक कला है, अगर आप इसमें माहिर नहीं तो आपको खुद को बेहतर बनाना होगा और रिश्ते बनानेव निभाने की कला को सीखना होगा.
क्या आप लोगों को बहुत ज़्यादा जज करते हैं?
अगर हां, तो जज करना थोड़ा कम कर दीजिए, क्योंकि जज करनेवालों के लोग कम ही क़रीब आते हैं. ना वो ज़्यादा शेयरकरते हैं और ना ही अपनी रियल पर्सनैलिटी दर्शाते हैं क्योंकि उन्हें डर रहता है कि हमें हर बात पे, हर व्यवहार पे जज कियाजाएगा, हमारे बारे में एक धारण बना ली जाएगी.
बेहतर होगा किसी के बारे में एक दो घटना या बातों से राय ना बना लें. लोगों को बेनीफिट ऑफ डाउट ज़रूर दें. इससेआपके रिश्ते बेहतर होंगे.
क्या आप सुनते कम और बोलते ज़्यादा है?
अधिकांश लोगों की आदत होती है कि वो अपनी ही बात रखते हैं और किसी की सुनते नहीं हैं. ऐसे लोगों से अपने भी कुछकहने से कतराने लगते हैं. रिश्तों को मज़बूत करने के लिए अच्छा श्रोता होना बेहद ज़रूरी है.
कहीं आप दूसरों में हमेशा ग़लतियां और कमियां तो नहीं निकालते?
कई लोगों की आदत होती है खुद को परफ़ेक्ट समझते हैं और समानेवाले को हमेशा सिखाते रहते हैं. ज़रा सी चूक होने परइतना सुनाते हैं कि जैसे उनसे तो कभी गलती हो ही नहीं सकती. …तुमसे एक काम ठीक से नहीं होता, तुमको तो यहज़िम्मेदारी देनी ही नहीं चाहिए थी… कब सीखोगे… इस तरह के वाक्यों के प्रयोगों से जो लोग बचे रहते हैं वो रिश्ते बनाएरखने की कला में माहिर होते हैं.
क्या अपनों के लिए कभी कुछ ख़ास करने की सोचते हैं आप?
सिर्फ़ रूटीन तरीक़े से रिश्ते में बने रहना आपके रिश्ते को बोरिंग बना देगा, रिश्तों को अगर निभाना है तो रूटीन से थोड़ाऊपर उठकर सोचना और करना होगा. कभी सरप्राइज़, कभी कुछ ख़ास प्लान करने में अगर आप माहिर हैं तो रिश्ते निभानेकी कला भी आप बेहतर जानते हैं.
क्या आप किसी के व्यक्तित्व को जैसा वो है वैसा ही अपनाने से कतराते तो नहीं?
हर इंसान अलग होता है. अगर हम ये सोचें कि सब हमारी ही तरह हों तो यह मुमकिन नहीं. किसी में कोई कमी, कमज़ोरीतो किसी में कुछ अलग गुण भी होंगे. अगर हम किसी को उनके व्यक्तित्व के साथ ही अपनाते हैं तो रिश्ते बनाने औरनिभाने की कला में माहिर माने जाएँगे.
दूसरों के बुरे वक़्त में आप साथ निभाते हैं या पीछा छुड़ा लेते हैं?
रिश्तों का मतलब ही होता है साथ निभाना, लेकिन अक्सर ज़्यादातर लोग बुरा दौर आने पर साथ छोड़ देते हैं या कोईबहाना बना देते हैं और जब हमें सबसे ज़्यादा अपनों की ज़रूरत होती तब वो होते ही नहीं. अगर आप भी इन्हीं लोगों में सेहो तो आपके रिश्ते ना तो टिक पाएँगे और ना ही निभ पाएँगे. यहां तक कि जब आप मुसीबत में होगे तो खुद को अकेला हीपाओगे.
बेहतर होगा कि जब अपनों को सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो तब हम उनके साथ खड़े रहें. यही रिश्तों की असली ख़ुशी है.
स्वार्थ या अपना काम निकलवाने के लिए तो रिश्ते नहीं बनाते?
कई लोग आजकल यारी दोस्ती ही नहीं, प्यार और शादी भी मतलब के लिए ही करते हैं. पैसों को देखकर या आगे चलकरमुनाफ़े को देखकर रिश्ते बनाते व तोड़ते हैं. अगर आपकी यही सोच है तो आप कभी भी असली सही रिश्ते नहीं बनापाओगे. मतलब के रिश्तों की उम्र अधिक नहीं होती और ऐसे लोग रिश्ते बनाने और निभाने की कला जानते ही नहीं.
रिश्तों में भावनाओं को महत्व ना देकर अन्य चीज़ों को ज़्यादा ज़रूरी मानते हैं?
पैसा, ज़िम्मेदारी, गुण-अवगुण इत्यादि चीज़ों को अगर आप भावनाओं से ऊपर रखेंगे तो मात खाएँगे. किसी भी रिश्ते मेंप्यार, केयर aur शेयर की भावना सबसे ज़रूरी होती है. अगर आप में इन भावनाओं के लिए सम्मान है तो आप रिश्ते बनानेऔर निभाने की कला जानते हैं.
रिश्तों में ओवर पज़ेसिव या शकी तो नहीं हो?
रिश्तों में बेहद ज़रूरी है कि आपके साथ बंधे लोगों को घुटन ना महसूस हो. अगर आप हर बात पर रोक-टोक करोगे, बहुतअधिक सवाल-जवाब करोगे और सामनेवाले को बांधकर रखने की कोशिश में ही रहोगे तो अच्छे रिश्तों को खो दोगे. शककरना या पज़ेसिव होना एक सीमा तक तो बर्दाश्त किया जा सकता है लेकिन बाद में यह रिश्तों को कमज़ोर बना देते हैं. इसलिए भरोसा करना सीखें.
क्या आप दूसरों का सम्मान नहीं करते?
हर बात पर खुद को बड़ा दिखाने के लिए अक्सर लोग अपनों का ही अपमान कब करने लगते हैं खुद उन्हें भी अंदाज़ा नहींहो पाता. अगर आप भी ऐसे ही लोगों में से हैं तो संभल जाइए. रिश्तों में छोटे से लेकर बड़ों तक का सम्मान बेहद ज़रूरी है, क्योंकि सम्मान देंगे तो सम्मान पाएँगे और उनका विश्वास भी जीत पाएँगे.
ज़िम्मेदारी से भागते तो नाहीं?
कई लोग अपने हक़ की बात तो बहुत करते हैं लेकिन ज़िम्मेदारी नहीं समझते. ज़िम्मेदारियों को बांटने की कला ही आपकोरिश्ते निभाने की कला में माहिर बनाएगी. सबको साथ लेकर चलना ज़रूरी है और उसके लिए ज़िम्मेदार बनना भी.
कैसे माहिर बनें रिश्ते बनाने और निभाने की कला में?
अगर आप इन तमाम छोटी छोटी बातों का ख़्याल रखेंगे तो रिश्ते बनाने और उन्हें निभाने की कला जान जाएँगे, क्योंकि येकोई मुश्किल काम नहीं बस थोड़ा सा अपनों के बारे में सोचने भर से रिश्ते ताउम्र के लिए बने रहते हैं.
– भोलू शर्मा
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