भले ही यह बात कभी झगड़े के दौरान या हंसी-ठट्ठे में मज़ाक के रूप में कही जाती हो कि औरतों और मर्दों का दिमाग़ अलग-अलग होता है या कई बार तंज कसने के तौर पर कह दिया जाता हो कि महिलाओं का दिमाग़ छोटा होता है, लेकिन वैज्ञानिक रूप से दोनों ही बातें सच हैं.
पुरुषों और महिलाओं की दिमाग़ी संरचना और आकार दोनों अलग-अलग होते हैं. मस्तिष्क में अंतर की वजह मनुष्य के युगों के क्रमिक विकास का एक हिस्सा है, जिसके तहत पुरुषों और महिलाओं के दिमाग़ ने उनकी ज़िम्मेदारियां और सामाजिक व पारिवारिक भूमिकाओं के हिसाब से ख़ुद को एडजस्ट कर लिया है. साथ ही स्त्री-पुरुष शरीर के हार्मोन्स भी उनकी दिमाग़ी संरचना और कार्यविधि में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह करते हैं.
पुरुष का दिमाग़ महिलाओं की तुलना में 10 फ़ीसदी बड़ा होता है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि पुरुष महिलाओं से अधिक चतुर या स्मार्ट होते हैं. आइए जानते हैं पुरुषों और महिलाओं के दिमाग़ में मूल रूप से कौन से अंतर होते हैं और उनके कारण दोनों के व्यवहार, कुशाग्रता औऱ सोचने के ढंग में क्या फ़र्क़ आ सकता है.
लैंग्वेज स्किल- महिलाएं आगेः पुरुषों में भाषा वाला हिस्सा प्रमुखता से दिमाग़ के बाएं हेमिस्फेयर में स्थित होता है, जबकि महिलाओं में दाएं और बाएं दोनों हिस्सों में भाषा को सीखने और इस्तेमाल करने वाली मशीनरी होती है. इस प्रकार लैंग्वेज के मामले में पुरुषों के दिमाग़ का सिर्फ़ एक हिस्सा सक्रिय रहता है, जबकि महिलाओं के दिमाग़ के दोनों हिस्से सक्रिय रहते हैं. साथ ही महिलाओं में लैंग्वेज एरिया पुरुषों की तुलना में बड़ा भी होता है. इतना ही नहीं लड़कों की तुलना में लड़कियों में ये हिस्से परिपक्वता के मामले में 6 साल आगे रहते हैं. इस संरचनात्मक अंतर के कारण महिलाओं में भाषा संबंधी कौशल अधिक होता है. मिसौरी विश्वविद्यालय में साइकोलॉजिकल साइंस के प्रोफेसर डेविड गियरी कहते हैं, महिलाएं प्रतियोगिताओं के दौरान ज़्यादा अच्छी भाषा का इस्तेमाल करती हैं. इसीलिए उनमें गॉसिप करने और सूचनाओं को अपने ढंग से प्रेषित करने की भी अद्भुत क्षमता होती है. महिलाएं संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में भी अच्छी भाषा का इस्तेमाल करती हैं. महिलाएं वाकचातुर्य होने के साथ-साथ वार्तालाप की सही शैली भी जानती हैं. बोलते- बोलते कब रुकना और कब दूसरों को बोलने का मौका देना है ये बातें उन्हें ज्यादा मालूम होती हैं.
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प्रो. डेविड के मुताबिक लर्निंग डिसएबिलिटी, डिसलेक्सिया औऱ अटेंशन डेफिसिट हायपर एक्टीविटी जैसी दिमाग़ी समस्याएं भी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज़्यादा देखी जाती हैं.
मैथमेटिकल क्षमता- पुरुषों का पलड़ा भारीः भाषा के मामले में भले ही महिलाएं पुरुषों को मात करती हों, लेकिन जब हिसाब-किताब औऱ जोड़-घटाव, गुणा-भाग का नम्बर आता है, तो यहां पुरुषों का पलड़ा भारी पड़ता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक गणित और ज्यामिती से जुड़े मस्तिष्क के हिस्से पुरुषों में स्त्रियों की तुलना में चार साल पहले परिपक्व हो जाते हैं. पुरुषों के मस्तिष्क में ब्रेन का यह हिस्सा महिलाओं की तुलना में काफ़ी बड़ा भी होता है. कुछ वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हैं कि महिलाओं औऱ पुरुषों की मैथमेटिकल एबिलिटी में कोई फ़र्क़ होता है. उनका मानना है कि अगर कोई अंतर है भी, तो वह दिमाग़ी संरचना की वजह से नहीं, बल्कि सामाजिक कारणों की वजह से है. जैसे लड़कियों की पढ़ने में कम दिलचस्पी, उन्हें सही कोचिंग या ट्रेनिंग न मिलना और उनमें मैथ्स एंग्जायटी होना है.
दर्द के प्रति नजरिया- महिलाएं अधिक संवेदनशीलः दर्द के प्रति भी पुरुष और महिलाओं की प्रतिक्रिया, नजरिया और सोच अलग-अलग होती है. दर्द के प्रति महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं, ज़्यादा चिंता व शिकायत करती हैं और उन्हें पेनकिलर्स की ज़्यादा खुराक़ की ज़रूरत पड़ती है. दर्द होने पर दिमाग़ का जो हिस्सा सक्रिय होता है, वह एमीग्डाला कहलाता है. महिलाओं में दर्द के दौरान बायां एमीग्डाला सक्रिय होता है, जबकि पुरुषों में दाहिना. बाएं एमीग्डाला में दर्द को मॉड्यूलेट करनेवाले दिमाग़ के दूसरे हिस्सों के साथ गहरा कनेक्शन होता है.
मेमोरी फंक्शन- फिफ्टी-फिफ्टीः महिलाएं इमोशनल या निगेटिव इमोशंस को ज़्यादा अच्छी तरह पहचानती हैं. उनकी शॉर्ट टर्म या वर्किंग मेमरी भी पुरुषों की तुलना में ज़्यादा अच्छी रहती है. इसके पीछे कुछ हद तक महिलाओं की मल्टीटास्किंग की आदत भी है. हां, कुछ मामलों में पुरुषों की शॉर्ट टर्म मेमरी ज़्यादा अच्छी होती है. विशेष रूप से दृश्य और स्थानों के मामले में. जैसे कोई दम्पति अगर किसी नई जगह से भटक जाए, तो पति रास्ता खोजकर सही जगह पर लौटने में ज़्यादा सक्षम होगा. लेकिन किसी विशेष घटना या तरीक़ों को याद रखने के मामले में महिलाएं ज़्यादा सक्षम होती हैं. इसीलिए पुरुष अक्सर किसी के जन्मदिन या विवाह की तारीख़ भूल जाते हैं, लेकिन महिलाएं याद रखती हैं. उम्र से जुड़े मेमरी लॉस के मामलों में पुरुष ज़्यादा कमज़ोर साबित होते हैं, लेकिन अल्ज़ाइमर्स डिसीज़ यानी याद्दाश्त लगभग पूरी तरह चले जाने के मामले में महिलाओं को अधिक परेशानी होती है.
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इमोशनल कोशेंट- महिलाएं आगेः महिलाएं आमतौर पर ज़्यादा भावुक होती हैं और अपनी भावनाओं की बेहतर तरीक़े से अभिव्यक्ति कर सकती हैं. इसकी वजह उनका बड़ा डीप लिम्बिक सिस्टम (दिमाग़ का ख़ास स्ट्रक्चर) होता है. महिलाएं बच्चों की अच्छी देखभाल करने और लोगों से जल्दी कनेक्ट होने के मामले में भी पुरुषों के मुक़ाबले आगे होती हैं. इस क्षमता का एक कमज़ोर पक्ष यह है कि महिलाएं आसानी से डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं. मुख्य रूप से उन्हें मासिक स्त्राव के दौरान, मेनोपॉज़ के पीरियड में और प्रसव के बाद हार्मोंस में तेज़ उतार-चढ़ाव की वजह से अधिक तनाव, एंग्जायटी औऱ अवसाद का सामना करना पड़ता है. हां, इस बात में दो राय नहीं कि महिलाएं सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर अपनी विभिन्न भूमिकाओं में ख़ुद को बेहद आसानी से ढाल लेती हैं.
– शिखर चंद जैन
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