कहने को तो आज भी कहा यही जाता है कि Marriage यानी शादी जन्म-जन्मांतर का साथ है, लेकिन सच्चाई यही है कि व़क्त के साथ इस सोच में बदलाव (Changing Meaning Of Marriage) ज़रूर आया है. अब जन्मों की बातें लोग नहीं सोचते, कोशिश यही होती है कि इस जन्म में सच्चे दोस्त व समझदार साथी के रूप में हंसी-ख़ुशी जीवन बीते. मॉडर्न होते समाज में अब विवाह व वैवाहिक जीवन के नियमों को भी काफ़ी हद तक बदल दिया है. कैसे? आइए जानें-
– पारंपरिक सोच यह होती थी कि लड़के की बजाय लड़के के घर व खानदान को देखा जाता था. लड़का अगर नौकरी नहीं भी कर रहा, तो उसके खानदान व घर को देखकर शादी तय कर दी जाती थी, लेकिन आज सबसे पहले लड़के का काबिलीयत देखी जाती है.
– लड़का अच्छी नौकरी पर है कि नहीं, पढ़ा-लिखा व समझदार है, तो भले ही घर से उतना संपन्न नहीं है, तब भी बेझिझक शादी तय हो जाती है.
– पैरेंट्स की बजाय लड़के-लड़कियों की मर्ज़ी व पसंद-नापसंद का ख़्याल अब रखा जाता है.
– लड़कियां भी अब खुलकर अपनी सोच व पसंद रखने लगी हैं.
– शादी के बाद अब ज़िम्मेदारियां व काम का बंटवारा समान रूप से किया जाता है.
– अगर कुछ ग़लत है, तो बहुएं अपने हक़ के लिए आवाज़ भी उठाती हैं और संघर्ष भी करती हैं.
– आज कपल्स विवाह को भावनात्मक पूर्ति का साधन अधिक मानते हैं, बजाय परंपरा या शारीरिक पूर्ति का ज़रिया समझने के.
– शादी में अब किसी एक पार्टनर का आधिपत्य नहीं रह गया है, दोनों समान रूप से अपनी अहमियत दर्शाते व समझते हैं.
– शादी में भी पर्सनल स्पेस को अब महत्व दिया जाता है. कपल्स भी समझते हैं कि दो जिस्म एक जान का कॉन्सेप्ट अब पुराना हो गया. दो जिस्म हैं, तो दो जानें और दो अलग-अलग सोच भी होगी. ऐसे में पर्सनल स्पेस दोनों ही के लिए कितना ज़रूरी है यह सभी जानते हैं और उसका सम्मान करते हैं.
– अगर दो अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े लोग एक साथ जीवन गुज़ारेंगे, तो ज़ाहिर है झगड़े व विवाद भी होंगे. इसे अब कपल्स समझदारी से लेते हैं. वे जानते हैं कि ये वैवाहिक जीवन का हिस्सा है.
– इन विवादों को निपटाने के लिए वो परिपक्व सोच रखते हैं.
– शोषण के ख़िलाफ़ ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ पॉलिसी अपनाते हैं, फिर चाहे वो शारीरिक शोषण हो, भावनात्मक हो, मानसिक हो या सेक्सुअल.
– सेक्सुअल इंटिमेसी को भी महत्व देते हैं. अपनी इच्छाओं को अब लड़कियां भी दबाती नहीं हैं. सेक्स पर खुलकर बात करती हैं. पार्टनर को बताती हैं कि वो क्या चाहती हैं. पुरुष भी इसे अब ग़लत नहीं मानते. वो भी पत्नी का पूरा सहयोग चाहते हैं.
– कम्यूनिकेशन को महत्व देते हैं. बात मन में दबाकर रखने की बजाय बोल देने को ज़्यादा ज़रूरी मानते हैं.
– अलग-अलग छुट्टियां मनाने को ग़लत नहीं मानते. अगर कपल्स हनीमून पर नहीं हैं, तो उन्हें कोई समस्या नहीं कि दोनों पार्टनर अपने दोस्तों या अन्य रिश्तेदारों के साथ अलग-अलग हॉलीडे, शॉपिंग, डिनर या मूवी प्लान करे.
– हाल ही में एक शोध से यह बात सामने आई है कि जॉइंट बैंक अकाउंट के बदले अब वर्किंग अलग-अलग अकाउंट्स रखना कपल्स अधिक पसंद करते हैं. ऐसा नहीं है कि उन्हें एक-दूसरे पर भरोसा नहीं, बल्कि आर्थिक मामलों में अब कपल्स स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं, उनके निर्णय भी स्वतंत्र होते हैं और बेवजह का हस्तक्षेप नहीं करते.
– अगर रिलेशनशिप में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा हो, तो प्रोफेशनल्स व एक्सपर्ट्स की मदद लेने से पीछे नहीं हटते.
– दोनों ही इस बात को जानते-समझते हैं कि डिवोर्स एक ज़ायज़ तरी़के ज़रूर है, लेकिन वो सबसे आख़िरी ऑप्शन होना चाहिए.
– विजयलक्ष्मी
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