हाल ही हुए एक अध्ययन में यह साबित हुआ है कि औसतन एक वयस्क 24 घंटे की अवधि में से 8 घंटे 21 मिनट की नींद लेने की तुलना में डिजिटल वर्ल्ड/सोशल मीडिया पर उतना ही व़क्त (यानी 8 घंटे 21 मिनट) व्यस्त रहता है. दूसरे शब्दों में कहें तो अगर हम 16-17 घंटे जागते हैं, तो उसका आधा व़क्त तो हम डिजिटल प्लेफार्म पर ही घूमते रहते हैं. ऐसा करके हम न केवल गैेजेट्स (Gadgets) तक सिमट कर रह गए हैं, बल्कि अनेक बीमारियों (Diseases) को न्योता दे रहे हैं. आइए जाने कैसे?
घंटों लैपटॉप/कंप्यूटर पर बैठकर काम करने से सिरदर्द, कमर-गर्दन-कंधों में दर्द होेने लगता है. इतना ही नहीं, यदि आपके बैठने का पोश्चर और डेस्क डिज़ाइनिंग भी सही नहीं है, तो भविष्य में जोड़ों व मांसपेशियों संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. इसके साथ ही लैपटॉप/कंप्यूटर से आंखों पर बुरा असर पड़ता है और कार्पल टर्नल सिंड्रोम का ख़तरा भी बढ़ जाता है, जिससे हाथों की संवेदनशीलता कम होती है और कलाइयों पर दर्द की शिकायत रहती है.
कैसे बचें?
– कंप्यूटर/लैपटॉप पर काम करते हुए हर एक-डेढ़ घंटे के बाद ब्रेक लें.
– हर 1 घंटे के बाद 2-3 मिनट के लिए आंखों को आराम दें.
– ऑफिस वर्क के लिए बड़ी स्क्रीनवाले लैपटॉप का इस्तेमाल करें. इससे पोश्चर पर अधिक दबाव नहीं पड़ता.
– लैपटॉप की स्क्रीन आंखों के लेवल पर होनी चाहिए, ताकि स्क्रीन को देखने के लिए गर्दन को घुमाना या मोड़ना न पड़े.
– कीबोर्ड को सही लेवल पर रखें, जिससे
कोहनी को आराम मिले.
– माउस यूज़ करते समय स़िर्फ कलाई का नहीं, पूरे हाथ का इस्तेमाल करें.
– स्पीड में टाइप करने की बजाय हल्के व धीरे से करें.
– डेस्क पर बैठे-बैठे स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ करें.
– कंप्युटर पर काम करते समय विशेष रूप से डिज़ाइन की गई कुर्सी का इस्तेमाल करें, जिससे बैठते व़क्त स्पाइन को स्पोर्ट मिले.
– काम के दौरान 10 मिनट का ब्रेक लेकर वॉक करें.
– घर पर लैपटॉप/कंप्यूटर पर काम करने का समय निर्धारित करें.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों द्वारा किए गए शोधों से अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि मोबाइल से निकलनेवाली रेडिशएन से किसी को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या (कैंसर आदि) हुई हो, लेकिन मोबाइल एडिक्ट होने के कारण नींद पूरी न होना, एकाग्रता में कमी, सिरदर्द, गर्दन व कंधों में दर्द, आंखों पर दबाव, धंधलापन, ड्राई आइज़, रेडनेस, इरिटेशन, ब्रेन एक्टिविटी में बाधाएं और सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि जैसी समस्याएं ज़रूर बढ़ गई है.
कैसे बचें?
– मोबाइल सिलेक्ट करते समय ऐसे मॉडल का चुनाव करें, जिसका स्पेसिफिक ऑबज़र्वेशन रेट (एसएआर) कम हो.
– बात करते समय मोबाइल को कान से
सटाकर रखने की बजाय थोड़ी दूरी पर रखें.
– लेटकर बात करते समय मोबाइल को छाती या पेट के ऊपर न रखें.
– मोबाइल पर बात करने के लिए हैंड्स-फ्री डिवाइस (ईयरफोन) का इस्तेमाल करें.
– जहां तक संभव हो मोबाइल की बजाय लैंडलाइन का प्रयोग करें.
– कोशिश करें कि मोबाइल पर 15 मिनट से ज़्यादा समय तक बात न करें.
– सेलफोन पर बहुत देर तक बात करने की बजाय टैक्स्ट मैसेज करें.
– 1 घंटे तक लगातार मैसेज/चैटिंग करने से भी उंगलियों के टिप पर दर्द होने लगता है. इसलिए बेवजह मैसेज/चैटिंग करने से बचें.
– छोटे बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल न दें.
– सड़क पर चलते समय और ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर बात न करें. यह छोटी-सी भूल आपके लिए जानलेवा साबित हो सकती है.
हाल ही में ‘हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ में किए गए शोध से यह साबित हुआ है कि बहुत अधिक टेलिविजन देखने से शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती है, जिससे अनहेल्दी फूड हैबिट, मोटापा, दिल से जुड़ी बीमारियां और टाइप2 डायबिटीज़ के होने का ख़तरा 20% तक बढ़ जाता है.
कैसे बचें?
– टीवी देखने की बजाय कोई हॉबी क्लास जाएं.
– वर्कआउट के लिए जिम, जॉगिंग, ऐरोबिक्स, स्विमिंग, टेनिन जाएं.
– टीवी देखते समय मंचिंग से बचें.
– डिनर टाइम को फैमिली टाइम बनाएं यानी डिनर के समय टीवी बंद रखें.
– यदि आपके पास पर्याप्त खाली समय है, तो कोई पार्ट-टाइम बिज़नेस या काम शुरू करें.
– बच्चों को टीवी की बजाय फिज़िकल एक्टिव़िटीज़ में हिस्सा लेने के प्रोत्साहित करें.
– टीवी देखने का समय निर्धारित करें, जिससे आपकी टीवी देखने की बुरी आदत धीरे-धीरे कम हो जाए.
– टीवी देखने की बजाय परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं, जैसे- कैरम बोर्ड, चैस आदि गेम खेलें.
– टीवी की बजाय अपना फेवरेट म्यूज़िक सुनें.
बहुत देर तक वीडियो गेम्स खेलने से मांसपेशियों में दर्द, मोटापा, विटामिन डी की कमी और नींद में बाधा उत्पन्न होती है. ‘द पीडियाट्रिक्स इंटरनेशनल जर्नल’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, घंटों तक वीडियो गेम्स खेलने से कंधों की मांसपेशियों में जकड़न बढ़ जाती है. इसके अलावा अनेक वीडियो गेम्स का प्रेजेटेंशन इतना आकर्षक होता है कि बच्चों में गेम जीतने का तनाव, उत्तेजना और मानसिक तनाव हावी होने लगता है.
कैसे बचें?
– वीडियो गेम्स खेलते समय बच्चों पर नज़र रखें कि वह किस तरह के गेम खेल रहे हैं.
– उम्र के अनुसार गेम का चुनाव करें.
– गेम खेलते समय जब वह तनाव या निराशा महसूस करें, तो गेम बंद कर दें.
– उन्हें उत्तेजित व आक्रामक गेम्स खेलने से रोकें.
– 1-2 घंटे तक गेम खेलने की बजाय उनका समय निर्धारित करें.
– उन्हें वीडियो गेम में व्यस्त रखने की बजाय फिजिकल एक्टिविटीज़ में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करें.
– सोने से पहले वीडियो गेम न खेलने दें. उन्हें समझाएं कि उत्तेजक व आक्रमक गेम खेलने से नींद में बाधा उत्पन्न होती है.
– बच्चों को वीडियो गेम खेलने दें, लेकिन इसकी लत न लगने दें. पैरेंट्स ख़ासतौर से इस बात का ध्यान दें.
– पूनम नागेंद्र शर्मा
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