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क्या कवर नहीं करती आपकी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी (What your health insurance policy will not cover?)

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीे (Health Insurance Policy) के दस्तावेज़ों को समझना आसान नहीं होता. पॉलिसी में इतनी गूढ़ व जटिल नियम व शर्तें होती हैं, जिन्हें पूरी तरह समझ पाना टेढ़ी खीर होता है. पॉलिसी में बहुत से क्लॉज़ेज़ होते हैं. ऐसे में हर क्लॉज को ध्यान से पढ़ना और उन्हें समझना आसान नहीं होता. हालांकि इस बारे में जागरूकता बढ़ी है. अब लोगों को इतना पता होता है कि पॉलिसी लेते समय अगर कोई बीमारी हो तो वो पॉलिसी में कवर नहीं होती. इसके अलावा सब लिमिट्स और दूसरी अनकवर्ड चीज़ों के बारे लोगों की जानकारी बढ़ी है, लेकिन इसके बावजूद अक्सर क्लेम रिजेक्ट हो जाते हैं और अगर क्लेम स्वीकार भी होता है तो पूरा पेमेंट नहीं मिलता. क्लेम में एकरूपता लाने के लिए इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलेपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (इरडा) नेे एक कमेटी बैठाकर पॉलिसी में न शामिल की जानेवाली चीज़ों को शामिल करने की लिस्ट जारी करने का विचार कर रही है. इस क्षेत्र में प्रयास जारी हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम आपको कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में बता रहे हैं जो हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसीज़ में शामिल नहीं हैं.

इलाज के नए तरी़के
चिकित्सा जगत के क्षेत्र में आए दिन नई तकनीक और ट्रीटमेंट प्लान का ईजाद होते रहता है. ऐसे में इश्योरेंस कंपनी को नए ट्रीटमेंट प्लान को अपने पॉलिसी में शामिल करने में व़क्त लगता है. अप्रचलित और एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट, जिनका सामान्यतौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाता, को ज़्यादातर बीमा कंपनियां कवर नहीं करती हैं. इस बारे में बात करते हुए सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस की कस्टमर ऑफिसर ज्योति पुंज कहती हैं, “हम बहुत तरह की सर्जरीज़ को कवर करते हैं, लेकिन अगर क्लाइंट रोबोटिक सर्जरी और साइबर नाइफ जैसी सर्जरीज़ कराते हैं तो क्लेम मिलना मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसी सर्जरीज़ पॉलिसी एग्रीमेंट में शामिल नहीं होतीं.” इंश्योरेंस ब्रोकिंग फर्म सेक्योर नाऊ के को-फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर कपिल मेहता कहते हैं,“कई इश्योरेंस कंपनियों को लगता है कि ऐसी सर्जरीज़ बहुत एक्सपेरिमेंटल होती हैं. हालांकि अगर डॉक्टर सलाह देते हैं तो मरीज़ इनका भी सहारा लेते हैं.” ऐसे में पॉलिसी लेते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपकी पॉलिसी में एडवांस ट्रीटमेंट प्लान्स शामिल हैं या नहीं.

रेसिडेंट डॉक्टर की फीस
अगर हॉस्पिटल बिल बनाते समय रूम का किराया और रेसिडेन्ट डॉक्टर की फीस को अलग-अलग दिखाता है तो हो सकता है कि इंश्योरेंस कंपनी रेसिडेंट डॉक्टर की फीस देने से इंकार कर दे. आमतौर पर रूम के किराए में रेसिडेंट डॉक्टर की फीस भी शामिल होती है. ऐसे में अगर हॉस्पिटल अलग से रेसिडेंट डॉक्टर की फीस चॉर्ज करता है तो इंश्योरेंस कंपनियां उसका भुगतान करने से इंकार कर देती हैं. आमतौर पर इंश्योरेंस कंपनी के नेटवर्क में शामिल हॉस्पिटल्स को इस बात का अंदाज़ा होता है कि किन खर्चों का भुगतान मिलेगा और किनका नहीं, इसलिए वे उसी हिसाब से बिल बनाती हैं. इसके अलावा अस्पताल में भर्ती होते समय रजिस्ट्रेशन फीस को भी पॉलिसी में कवर नहीं किया जाता. इतना ही नहीं, बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती कि शैम्पू, पाउडर जैसे नॉन मेडिकल आइटम्स का क्लेम
नहीं मिलता.

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स्पेशलिस्ट डॉक्टर का दिन में एक से ज़्यादा विजिट
अगर स्पेशलिस्ट डॉक्टर एक दिन में कई बार मरीज़ को देखने आता है तो उसकी फीस कई इंश्योरेंस कंपनियां अदा करने से मना कर देती हैं. पॉलिसी में एक डॉक्टर के एक विज़िट का चार्ज शामिल होता है. लेकिन यदि वही डॉक्टर दिन में एक बार से अधिक विज़िट देता है तो उसके चार्जेज़ शामिल नहीं होते.

भर्ती के दौरान कुछ विशेष प्रकार की दवाएं
कुछ कैंसर ड्रग्स को पॉलिसी में कवर नहीं किया गया है. उदाहरण के लिए बीमा कंपनियां कीमोथेरेपी के दौरान कुछ दवाओं
का क्लेम नहीं स्वीकार करती हैं.

नशीले पदार्थों के कारण बीमारी
अगर अत्यधिक शराब के सेवन या धूम्रपान के सेवन के कारण कोई जटिल समस्या आ जाए और उसके लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़े तो मुमक़िन है कि उसका ख़र्च आपको अपनी जेब से उठाना पड़े, क्योंकि बहुत सी कंपनियां इसका क्लेम देने से इंकार कर देती हैं.

घर पर इलाज
अगर बीमित व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता है तो कुछ बीमा कंपनियां ही घर पर उपचार को कवर करती हैं. इस तरह के मामलों में बीमित राशि के 10 फीसदी के बराबर भुगतान किया जाता है. प्रोबस इंश्योरेंस ब्रोकर्स के डायरेक्टर राकेश गोयल कहते हैं कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों के मामले में भुगतान नहीं किया जाता है. फिर भले ही मरीज़ घर पर उपचार कराने के मानदंडों को पूरा करता हो.

किन बातों पर बीमा नियामक (इरडा) को उठाने होंगे क़दम ?
1. उसे बीमा पॉलिसी में शामिल नहीं होने वाली बीमारियों को कम से कम करना होगा ताकि हेल्थ इंश्योरेंस का कवरेज बढ़ सके.
2. पॉलिसी में इस तरह की तकनीकों को बाहर रखने की सूची घटानी होगी जो नई हैं.
3. पॉलिसी की शब्दावली का मानकीकरण करना होगा. साथ ही इसे सरल बनाना होगा.
4. इस तरह के एक्सक्लूज़न की पहचान करनी होगी जिन्हें हटाया जाना चाहिए. आपको बता दें कि पॉलिसी में जिन चीज़ों को शामिल नहीं किया जाता है. उन्हें एक्सक्लूज़न कहते हैं.

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Shilpi Sharma

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