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क्यों अपनों से ही घर में असुरक्षित बच्चे?.. (When Home Becomes The Dangerous Place For The Child…)

इस तथ्य को सभी जानते हैं कि प्रत्येक समाज में बच्चों को दुर्व्यवहार, हिंसा, मानसिक और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ता है. घर में माता-पिता पिटाई करते हैं. कक्षा में शिक्षक भी या फिर जाति धर्म के आधार पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है. पुत्री की गर्भ में या जन्म के बाद हत्या कर दी जाती है. जन्म लेने के बाद भी उन्हें परिवार या समाज में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. बालिकाओं को बाल विवाह, बलात्कार या फिर तिरस्कार की मार झेलनी पड़ती है.
बच्चे कई तरह से प्रताड़ित होते हैं, जैसे- शारीरिक दंड, मानसिक शोषण, अपमानजनक व्यवहार, उपेक्षा, बालयौन उत्पीड़न आदि.
यह सब अगर सामाजिक रूप से या स्कूल आदि में हो तो माता-पिता बच्चे की सुरक्षा करते हैं. लेकिन अफ़सोस तब होता है, जब यही अत्याचार बच्चों के साथ स्वयं उनके अपने पैरेंट्स ही कर देते हैं और बच्चे अपने माता के ख़िलाफ कुछ कर ही नहीं पाते, सिवाय सहने के.

शारीरिक दंड…
बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए माता-पिता द्वारा उनकी पिटाई किया जाना बहुत ही सामान्य बात है. लेकिन कभी-कभी यह बहुत ही हिंसक हो जाता है. एक-दूसरे का ग़ुस्सा बच्चों पर उतार देना, पिता द्वारा नशे में पिटाई. अपनी असफलताओं से घिर कर बच्चे मानसिक तनाव उतारने का उनके लिए साॅफ्ट टारगेट बन जाते हैं. बच्चों ने ज़रा-सा उनके मन की नहीं की, तो बुरी तरह पिट जाते हैं. अत्यन्त क्रोधी माता या पिता भी छोटी-छोटी बात पर बच्चों की भयंकर पिटाई कर देते हैं. कभी-कभी तो बच्चों की इतनी पिटाई हो जाती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. डाॅक्टर तक के पास जाने की ज़रूरत पड़ जाती है.
इसके अलावा छोटे बच्चों को सज़ा देने के लिए बाथरूम में बंद कर देना, अंधेरे कमरे में अकेले बंद कर देना, भूखा रखना, कई घंटों के लिए कमरे के एक कोने में खड़ा कर देना आदि कई अन्य तरीक़े से भी पैरेंट्स बच्चों को शारीरिक दंड देते हैं. पिता द्वारा बच्चे को फंदे से लटकाकर पीटा गया, बच्चे को ज़मीन पर पटक कर पीटा गया आदि. पिता के हैवानियत की कई घटनाएं अख़बारों में छपकर चर्चा का विषय बन चुकी हैं. नन्हें बच्चे को हवा में उछालना भी एक तरह की शारीरिक पीड़ा ही है.
किसी भी रूप में दिया जानेवाला शारीरिक दंड बच्चे के विकास तथा उसकी पूर्ण क्षमता को प्रभावित करता है. यह बच्चे के अंदर क्रोध उत्पन्न करता है. जिसके फलस्वरूप बच्चे का व्यवहार उग्र व आक्रामक हो जाता है. उसका चरित्र विघ्वंसक प्रकृति का बन जाता है. ऐसे बच्चों में आत्मविश्‍वास व आत्मसम्मान की भावना में कमी आती है. चिंता बढ़ जाती है. निद्रा संबधी समस्या उत्पन्न होती है. यहां तक कि आत्महत्या की प्रवृत्ति जन्म लेने लगती है.


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मानसिक शोषण…
”तुम बहुत बेवकूफ़ हो, तुम किसी क़ाबिल नहीं हो, तुम ज़िंदगी में कुछ नहीं कर सकते आदि…” ऐसे कुछ वाक्य अमूमन माता-पिता बोल देते हैं. लेकिन इनका असर बहुत दूरगामी होता है और बच्चे का आत्मविश्‍वास भी कम होने लगता हैं.
कोई भी पैरेंट्स बच्चों के दुश्मन नहीं होते, पर अनजाने में ऐसी बहुत-सी बातें बच्चों को बोल व कर देते हैं, जो बच्चों का मानसिक रूप से शोषण करते हैं. बच्चे को बार बार सज़ा देना, ग़ुस्से में उन पर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना, डराना-धमकाना, गालियां देना, दूसरों के सामने मजा़क उड़ाना, बच्चे को नज़रअंदाज़ करना, उसकी ज़रूरतों पर ध्यान न देना, उसकी भावनाओं व मानसिकता को न समझना, दूसरे बच्चों व भाई-बहन से तुलना करना, दूसरों के सामने शर्मिंदा या अपमानित करना, बच्चे को चुंबन या आलिंगन न करना, जिससे बच्चा माता-पिता के प्यार को एहसास कर सके, क्योंकि स्पर्श का एहसास बच्चे में प्यार व सुरक्षा की भावना जगाता है. बच्चे से ग़लती हो जाने पर कई अभिभावक उसे बार-बार आरोपित करते रहते हैं.
ऐसा कोई भी व्यवहार, जो बच्चे के लिए मानसिक रूप से ठीक न हो या उसके विकास में बाधा डाले, मानसिक शोषण कहलाता है. यह बच्चों के लिए शारीरिक पीड़ा से कहीं ज़्यादा तकलीफ़देह होता है. क्योंकि शारीरिक ज़ख्म तो भर जाते हैं, पर ज़ुबान से निकले शब्द सीधे बच्चे के दिलोंदिमाग़ पर असर डालते हैं और इसका असर कभी ख़त्म न होनेवाला होता है.

अपमानजनक व्यवहार…
माता-पिता अनजाने में बच्चे का अपमान कई तरह से करते हैं. बच्चे से कोई ग़लती हो जाने पर उसे सबके सामने डांटना बच्चे को सबसे ज़्यादा अपमानित करता है. भाई-बहन या बहनों में या भाईयों में कोई ज़्यादा सुंदर, गोरा और योग्य है, तो उसे हमेशा प्राथमिकता देना, साथ में ले जाना, दूसरों के सामने सिर्फ़ उसी के गुणों की व सुंदरता का बखान करना, दूसरे बच्चे को हीनभावना से भरता है. बच्चे का भाई-बहन के साथ या उसके दोस्तों से तुलनात्मक विश्लेषण या उसकी ग़लतियों या कमियों को उसके दोस्तों के सामने कह देने से बच्चा अपने दोस्तों के बीच ख़ुद को बहुत कमतर पाकर मन-ही-मन हमेशा अपमानित महसूस करता रहता है. अक्सर उसके दोस्त इन बातों को दूसरों में भी फैला देते हैं. जिससे बच्चा इन बातों पर हर समय दुखी रहता है व घुटन महसूस करता है, जो उसके संपूर्ण विकास पर बहुत प्रभाव डालते हैं.
बच्चा ख़ुद को बहुत हीन समझने लगता है और दूसरों से मिलने-जुलने से कतराने लगता है. इससे उसका सामाजिक जीवन ख़त्म होता है, जो उसकी आदत में शामिल हो जाता है. ऐसा बच्चा बाद में जाकर अंर्तमुखी स्वभाव का बन जाता है.

उपेक्षा…
पैरेंट्स शायद ही कभी बच्चों की जान-बूझकर उपेक्षा करते हों. पर घर की परिस्थितियां, जैसे- वित्तीय कठिनाइयां, पति-पत्नी के बीच पारस्परिक कटु संबध, पति या पत्नी की मृत्यु या अन्य तरह की कठिनाइयां, जैसे अनेक कारण बच्चे की उपेक्षा का कारण बन जाते हैं. इसका बच्चे पर गंभीर नकारात्मक असर पड़ता है.
ऐसी उपेक्षित परवरिश बच्चे पर बुरा प्रभाव डालती है. बच्चे बचपन में जिस माहौल में रहते हैं, उसी माहौल से सामाजिक व्यवहार के बारे में सीखते हैं. अगर घर पर उनके साथ हमेशा उपेक्षित व्यवहार किया जाता है, तो दूसरों को अनदेखा करना बच्चे के लिए स्वीकार्य सामाजिक व्यवहार का हिस्सा बन जाता है. अध्ययनों से पता चलता है कि उचित सामाजिक अंतःक्रिया न होने से वे सामाजिक रूप से अलग-थलग हो सकते हैं. असामाजिक व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं और सामाजिक रूप से उत्कंठित हो सकते हैं.


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बाल यौन उत्पीड़न…
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन ‘चाइल्ड एब्यूज इन इंडिया के मुताबिक़ भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज़्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है. ऐसे में कौन कह सकता है कि मेरे घर में बच्चों का लैंगिक शोषण नहीं हुआ है.
भारत में मौजूदा क़ानूनी प्रावधान पाॅक्सो के अनुसार, ‘बच्चे को ग़लत तरीक़े से छूना, उसके सामने ग़लत हरकतें करना और उसे अश्लील चीज़ें दिखाना-सुनाना भी इसी दायरे में आता है. बच्चे के साथ ये कहीं भी हो सकता हैं. घर, स्कूल, पास-पड़ोस आदि. ऐसी घटनाओं को अंजाम देनेवाले हमेशा परिवार के क़रीबी होते हैं. जिनका आना-जाना घर में बना रहता है और घर के बड़े भी उन पर अंधविश्वास करते हैं. बच्चे भी उनके क़रीब हो जाते हैं. वे बच्चे के साथ इतने ख़ुश दिखाई देते हैं कि समझा नहीं जा सकता है कि उनके इरादे इतने घिनौने हैं. आज के समय में माता-पिता बच्चों को नौकरों के सहारे बहुत छोड़ने लगे हैं. कई तरह के क़िस्से नौकरों के ख़िलाफ ही सुनने को मिल जाते हैं.
सबसे पहला बिन्दु तो यह है कि जब परिजन, पिता, भाई, शिक्षक, रिश्तेदार ही शोषण कर रहे हैं. तब सवाल ये पैदा होता है कि आख़िर बच्चे कहां सुरक्षित हैं. भारत में बच्चों के संरक्षण और देखरेख के लिए ढेर सारे संस्थान, केन्द्र और गृह हैं, लेकिन उनमें ज़्यादातर पंजीकृत नहीं है. बच्चे इन सुरक्षा केन्द्रों में भी सुरक्षित नहीं है.
जो बच्चा किसी भी रूप में यौन उत्पीड़न का शिकार होता है. वह खुलकर इस विषय में किसी से बात भी नहीं कर पाता. इसलिए इस दिशा में बच्चे को शिक्षित करना आवश्यक है, जिससे बच्चा खुलकर अपने साथ हो रही घटना को दूसरों के सामने कह सके.
यौन शोषण ग्रसित बच्चे बहुत डरे हुए होते हैं या बहुत ज़्यादा ग़ुस्सैल और चिड़चिड़े हो जाते हैं. कुछ बच्चे बहुत शर्मीले हो जाते हैं. किसी से बात करने में ख़ुद को असहज महसूस करते हैं. कुछ बच्चे बहुत बदतमीज़ भी हो जाते हैं. कई बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं और मानसिक रोगी की तरह बर्ताव करने लगते हैं. ऐसे बच्चे आसानी से अपराधिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं.
वे सभी कारण जो एक बच्चे को दूसरे बच्चों से अलग दिखाए, उनके ऐसे बर्ताव के पीछे बाल शोषण, एक अपराध, शामिल हो सकता है. इसलिए सभी को गंभीरता से इस दिशा में कार्य करने की ज़रूरत है. ताकि रक्षक ही बच्चे के भक्षक न बन पाएं.
बच्चे देश का भविष्य हैं. उनके उचित व संतुलित विकास पर कल के पूरे समाज व देश के परिवेश की रूपरेखा तय होती है. इसलिए माता-पिता व परिजनों का ये सबसे पहला कर्तव्य बनता है कि बच्चों के पालन-पोषण व उनकी सुरक्षा को हल्के में न लिया जाए. बल्कि बच्चे का उचित व सुरक्षित परवरिश किसी भी पैरेंट्स का सबसे पहला कर्तव्य है और इसे उन्हें अपने निजि स्वार्थों से ऊपर उठकर करना चाहिए.

– सुधा जुगरान

Usha Gupta

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