युवाओं (Youths) के लिए अब उनका स्मार्ट फोन (Smart Phone) ज़िंदगी की सबसे ज़रूरी चीज़ बन गया है. आप उनसे चाहे जो चीज़ मांग लें, लेकिन उनसे उनका मोबाइल (Mobile) नहीं ले सकते. युवाओं में बढ़ता मोबाइल एडिक्शन उनके लिए कितना ख़तरनाक हो सकता है, इसका उन्हें अंदाज़ा भी नहीं. इससे पहले कि बहुत देर हो जाए युवाओं को मोबाइल के एडिक्शन से बचाने के लिए क्या करें? आइए, हम आपको बताते हैं.
असल ज़िंदगी से दूर हो रहे हैं युवा
रोहित बहुत शर्मीले स्वभाव का लड़का है. उसे लोगों से मिलने या नए दोस्त बनाने में बड़ी हिचक होती है, लेकिन जब वो सोशल नेटवर्किंग साइट पर होता है, तो उसका एक अलग ही रूप देखने को मिलता है. सोशल साइट्स पर रोहित के हज़ारों दोस्त और फॉलोवर्स हैं. हैरानी तो तब हुई, जब ये पता चला कि अपने
आस-पास की लड़कियों को आंख उठाकर भी न देखने वाले रोहित की सोशल साइट्स पर कई गर्लफेंड्स हैं, जिसने वो अश्लील और उत्तेजक चैट करता है. सोशल मीडिया का ये हीरो असल ज़िंदगी में बेहद अकेला है. अगर कुछ देर के लिए रोहित का मोबाइल खो जाए या
इंटरनेट ना चले, तो वह बेचैन हो जाता है. उसे सोशल मीडिया की दुनिया में खोए रहना ही लुभाता है. रोहित जैसे कई युवा हैं, जो अपना काम, पढ़ाई, रिश्ते-नातों को ताक पर रखकर सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में खोए रहना पसंद करते हैं. सोशल मीडिया पर अपनी फोटो पर मिलने वाले लाइक्स और कमेंट्स से ख़ुश होने वाले ये युवा असल ज़िंदगी की ख़ुशियों से दूर होते जा रहे हैं. उन्हें इस बात का अंदाज़ा भी नहीं होता कि जब उन्हें असल ज़िंदगी में किसी चीज़ की ज़रूरत होगी, तो इनमें से कोई भी उनके साथ नहीं होगा.
ऑनलाइन गेम की बढ़ती लत
चाहे बच्चे हों या बड़े, सब ऑनलाइम गेम के इस कदर दीवाने हो गए हैं कि इसके लिए वो अपनी पढ़ाई, काम, यहां तक कि नींद से भी समझौता कर लेते हैं. ऑनलाइन गेम के दीवाने युवा जब सोते समय गेम खेलते हैं, तो उन्हें समय का बिल्कुल भी होश नहीं रहता और देर रात सोने से उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती, जिससे अगले दिन उनकी पढ़ाई और काम प्रभावित होता है. ये सिलसिला जब लंबे समय तक चलता है, इसका असर उनकी पढ़ाई और काम पर साफ़ झलकने लगता है, जिसके कारण उनका आत्मविश्वास कम होने लगता है. ऑनलाइन गेम का ये बढ़ता क्रेज़ युवाओं का बहुत सारा समय नष्ट कर रहा है, जिसका उनके भविष्य पर ख़तरनाक असर पड़ सकता है.
मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
एक्सपर्ट्स के अनुसार, डिजिटल एडिक्शन एक ऐसी लत है, जो युवाओं की सोचने-समझने की क्षमता को कम कर रही है, जिससे उनका पढ़ाई में भी मन नहीं लगता. सोशल मीडिया की लत उन्हें उनके रिश्तों से दूर ले जा रही है. जिस तरह किसी शराबी या जुआरी को अपनी लत के आगे कुछ नज़र नहीं आता, उसी तरह डिजिटल एडिक्शन की लत के कारण युवाओं की पढ़ाई, करियर, फैमिली और सोशल लाइफ भी डिस्टर्ब हो रही है. युवाओं का डिजिटल एडिक्शन उन्हें इन सबसे दूर कर रहा है. डिजिटल एडिक्शन के शिकार कई युवाओं की ये लत जब नहीं छूटती, तो कई बच्चों के पैरेंट्स उन्हें इलाज के लिए डॉक्टर के पास भी ले जाते हैं. डिजिटल एडिक्शन के कारण युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है, जिसके कारण उनके सोचने-समझने की क्षमता कम होने लगी है. शुरू-शुरू में तो समझ में नहीं आता, लेकिन समस्या जब गंभीर हो जाती है, तो इसका इलाज कराने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होता.
क्या कहते हैं आंकड़े?
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