सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद से ही बॉलीवुड में नेपोटिज्म की चर्चा फिर शुरू हो गई है. कंगना रनौत का वीडियो, शेखर कपूर के ट्वीट और अभिनव भट्ट द्वारा किए गए सोशल मीडिया पोस्ट से लोगों के बीच बॉलीवुड में नेपोटिज्म वाले मुद्दे को फिर हवा दे दी है. बॉलीवुड में नेपोटिज्म एक्सिस्ट करता है, ये मानते तो सभी हैं. बस फर्क इतना है कोई इसे सही मानता है तो कई गलत. आइए देखते हैं नेपोटिज्म पर किस स्टार की क्या सोच है.
इमरान हाशमी
नेपोटिज्म ना होता तो मैं एक्टर बन ही नहीं पाता.
इमरान हाशमी कहते हैं कि वो नेपोटिज्म का ही नतीजा हैं. एक कम टैलेंटेड एक्टर को उनके अंकल महेश भट्ट ने 2003 में फुटपाथ जैसी फ़िल्म से लॉन्च कर दिया. ”यानी इंडस्ट्री में नेपोटिज्म न होता तो मैं एक्टर बन ही नहीं पाता, मुझे ब्रेक ही नहीं मिल पाता. अगर मेरे अंकल महेश भट्ट, जो कि प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैं, न होते तो मैं भी एक एक्टर के तौर पर इंडस्ट्री में न होता.”
आयुष्मान खुराना
अगर नेपोटिज्म न होता तो 22 साल की उम्र में ही डेब्यू कर लिया होता
आयुष्मान खुराना, जिन्हें बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने के लिए काफी स्ट्रगल करना पड़ा और टैलेंट होने के बावजूद जिन्हें खुद को साबित करने के लिए सालों लग गए, ने कहा कि अगर नेपोटिज्म न होता तो उन्होंने 22 साल की उम्र में ही डेब्यू कर लिया होता. ”मेरी डेब्यू फिल्म ‘विकी डोनर’ मुझे 27 साल की उम्र में मिली. अगर मैं स्टार किड होता, तो ये फ़िल्म मुझे 22 साल की उम्र में ही मिल जाती. हालांकि मेरे मामले में ये 5 साल की देरी से मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ा. उल्टे मुझे लगता है 27 साल की उम्र में मैं ज़्यादा मैच्योर एक्टर बन पाया.”
राजकुमार राव
नेपोटिज्म की वजह से मैं कई नॉन टैलेंटेड लोगों को फिल्मों में एक्टिंग करते देखता हूँ.
राजकुमार राव ने हालांकि अपनी एक्टिंग और जो किरदार उन्होंने निभाये, उससे बॉलीवुड में अपनी एक अलग जगह बना ली, लेकिन उन्होंने भी माना कि इंडस्ट्री में नेपोटिज्म एक्सिस्ट करता है और इस वजह से उन्हें भी स्ट्रगल करना पड़ा और इस वजह से जिनके पास कोई टैलेंट नहीं है, उन्हें भी बड़ी फिल्में मिल जाती हैं.
”फेवरिटीज़म सब जगह है, हर फील्ड में है और रहेगा. चलो कोई बात नहीं. पर मुझे तब बुरा लगता है जब फेवरिटीज़म की वजह से नॉन टैलेंटेड लोगों को बड़ी फिल्मों में देखता हूँ. मैं स्क्रीन पर टैलेंटेड लोगों को देखना चाहता हूँ. मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो किस फैमिली का हिस्सा हैं, बस उनमें टैलेंट हो. इंडस्ट्री में रणबीर कपूर और आलिया भट्ट जैसे स्टार किड काम कर रहे हैं, लेकिन वो सही मायने में टैलेंटेड हैं.”
कंगना रनौत
स्टार किड तो शुरुआत ही वहीं से करते हैं, जहां उनके लिए सब कुछ, स्टारडम तक रेडी रहता है.
नेपोटिज्म पर अक्सर बोलने वाली कंगना ने ही दरअसल इस विषय पर बोलने की शुरुआत की थी जब करण जौहर के शो पर उन्होंने करण के मुंह पर ही कह दिया था कि बॉलीवुड में नेपोटिज्म के लीडर करण ही हैं, तब से नेपोटिज्म पर विवाद थमा ही नहीं. नेपोटिज्म पर बोलते हुए एक इंटरव्यू में कंगना ने कहा था, ”क्या इन स्टार किड्स को पता भी है कि किसी भी एक्टर को ऑडियंस और क्रिटिक्स बनाने के लिए 10 साल से ज़्यादा लग जाते हैं. स्टार किड तो शुरुआत ही वहीं से करते हैं, जहां उनके लिए सब कुछ, स्टारडम तक रेडी रहता है. इसलिए वो कभी नहीं समझ पाएंगे कि आउटसाइडर को बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने के लिए कई बार पूरी ज़िंदगी लगा देनी पड़ती है.” सुशांत सिंह सुसाइड केस के बाद भी कंगना खुलकर नेपोटिज्म के खिलाफ बोल रही हैं.
करीना कपूर
अगर यहां रणबीर कपूर है तो यहां रणवीर सिंह भी है, जो किसी बॉलीवुड परिवार से वास्ता नहीं रखता.
नेपोटिज्म पर करीना कपूर का कहना है, ‘नेपोटिज्म कहाँ नहीं है? लेकिन कोई इसके बारे में बात नहीं करता. बिजनेस परिवारों में बेटे बिजनेस को आगे बढ़ाते हैं. राजनीतिक परिवारों में बेटे उनकी जगह लेते हैं. इस सब को नेपोटिज्म की श्रेणी में नहीं रखा जाता, बल्कि इसे अच्छा माना जाता है. बस बॉलीवुड को टारगेट किया जाता है. आप ये क्यों नहीं देखते कि कई स्टार किड्स भी उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाए, जहां उनके माता-पिता पहुंचे. दरअसल में इंडस्ट्री में सिर्फ टैलेंट ही काम आता है और यहां वही टिक पाते हैं जिनमें टैलेंट हो, वरना यहां कई स्टार किड्स नंबर 1 की पोजीशन पर होते.’ करीना ने कहा, ‘अगर यहां रणबीर कपूर है तो यहां रणवीर सिंह भी है, यहां आलिया भट्ट है तो यहां कंगना रनोट भी है, जो किसी बॉलीवुड परिवार से वास्ता नहीं रखता. इसलिए मुझे लगता है कि ‘नेपोटिज्म’ की बहस बेमानी है.’
शाहरुख खान
मेरे भी बच्चे जो बनना चाहते हैं, बनेंगे और जाहिर है कि फादर होने के नाते मैं उनके साथ रहूंगा.
शाहरुख कहते हैं कि नेपोटिज्म पर इतनी कॉन्ट्रोवर्सी क्यों की जा रही है, “मुझे यह कॉन्सेप्ट बिल्कुल समझ नहीं आता. मेरे भी बच्चे हैं, वे जो बनना चाहते हैं, बनेंगे और जाहिर है कि मैं इसमें उनके साथ हूं और रहूंगा. सच बताऊं.. मुझे नेपोटिज्म शब्द समझ नहीं आता और यह भी कि इस पर बेवजह का बवाल क्यों मचा है? मैं दिल्ली का लौंडा हूं. वहां से मुंबई गया, लोगों का प्यार मिला और कुछ बना. मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे भी खुद अपने बूते पर नाम कमाएं. उनका फादर होने के नाते मुझसे जो भी बन पड़ेगा मैं करूँगा और ये मेरी ज़िम्मेदारी भी है.”
सोनू सूद
जब आप बाहर से होते हैं, तो कोई भी आप से नहीं मिलना चाहता.
सोनू सूद भी मानते हैं कि अगर आप फिल्मी बैकग्राउंड से न हों, तो सब कुछ मुश्किल हो जाता है. ”जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में आया, तो निश्चित रूप से मुझे काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. जब आप बाहर से होते हैं, मतलब नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से तो कोई भी आप से नहीं मिलना चाहता, कोई भी आपकी बात नहीं सुनना चाहता और आपका काम नहीं देखना चाहता. मुझे लगता है कि इस मुश्किल हालात से हर नए स्टार को गुजरना पड़ता है.”
रणवीर शौरी
इंडस्ट्री का जो पावर है, वो चार छह लोगों के ही कंट्रोल में है.
मैं ये नहीं कहूंगा कि पूरी इंडस्ट्री पर नेपोटिज्म हावी है, क्योंकि इंडस्ट्री तो बहुत बड़ी है. यहां बहुत सारी छोटी फिल्में भी बनती हैं. हां ये ज़रूर कहूंगा कि इस इंडस्ट्री का जो पावर है, वो चार- छह लोगों के ही कंट्रोल में है. मेरी भी अनदेखी हुई है मेनस्ट्रीम के बड़े नामों से. साल दो साल मैं भी घर पर बिना काम के बैठा हूं. किसी तरह मैं इंडिपेंडेंट फिल्मों और सीरीज की तरह खुद को यहां बरकार रख पाया हूं. जिनके ड्रीम्स बड़े होंगे, उनको ये सब अनदेखी झेलने के लिए बहुत स्ट्रेंथ चाहिए. यही वजह है कि मैंने अपनी महत्वकांक्षाएं कम कर ली थीं. मैं समझ गया था कि मुझे कभी भी मेनस्ट्रीम फिल्मों में लीड भूमिकाएं नहीं मिलेंगी, चाहे मेरी एक्टिंग कितनी अच्छी क्यों न हो.शुरुआत में इस लालच में मेनस्ट्रीम में छोटे मोटे रोल कर लेता था कि शायद नोटिस होने से अच्छा काम मिलेगा. फिर समझ आया कि वो आपको नोटिस ही नहीं करना चाहते हैं. फिर दीवार पर सर मारने से क्या होगा.”
अनन्या पांडे
‘आप स्टार किड हों तो पहली फ़िल्म मिलना एकदम आसान होता है.’
स्टूडेंड ऑफ द ईयर 2 से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली अनन्या पांडे मानती हैं कि अगर आप स्टार किड हो तो आपको लॉन्चिंग फ़िल्म आसानी से मिल जाती है. ”मेरा मतलब है आपको पहली फ़िल्म आसानी से मिल जाती है, लेकिन फिर अपनी पहचान बनाना, खुद को एक एक्टर के तौर पर प्रूव करना आपकी ज़िम्मेदारी होती है…. फाइनली टैलेंट ही सक्सेस की gaurantee होता है.”
कृति सेनन
एक स्टार किड की वजह से मुझे फ़िल्म से आउट करके उसे लिया गया
जब आप स्टार किड होते हैं या फिल्मी फैमिली से होते हैं, तो आपकी पहली फ़िल्म की रिलीज से पहले ही आपको फिल्में मिल जाती हैं, लेकिन जब आप फिल्म फैमिली से ताल्लुक नहीं रखते तो आपको दूसरी फिल्म पहली फिल्म की रिलीज से पहले नहीं मिलती. उन्होंने बताया कि किस तरह एक स्टार किड की वजह से उन्हें फ़िल्म में रिप्लेस कर दिया गया, “मैं नहीं जानती कि उन्होंने उसे फोन किया था या नहीं? लेकिन कोई था, जो फिल्म फैमिली से था या उसकी चर्चा कुछ ज्यादा थी, उससे मुझे रिप्लेस कर दिया गया था. हां, मेरे साथ यह हुआ है, लेकिन मुझे इसका कारण पता नहीं. हो सकता है कि डायरेक्टर को वाकई उसकी जरूरत हो? ऐसा एक बार नहीं, कई बार हुआ है.”
तापसी पन्नू
तापसी को बिना कोई वजह बताए एक फ़िल्म से किक आउट कर दिया गया
तापसी पन्नू जो सिर्फ सेलेक्टिव रोल्स करने के लिए जानी जाती हैं, ने एक इंटरव्यू में बताया था कि किस तरह उन्हें बिना कोई वजह बताए सिर्फ इसलिए एक फ़िल्म से आउट कर दिया गया क्योंकि वो किसी फिल्मी फैमिली से नहीं हैं. ”और मुझे इस बात से कोई शॉक भी नहीं लगा कि मेरे हाथ से कोई फ़िल्म निकल गई. और मुझे फ़िल्म से आउट करने की वजह ये नहीं थी कि मैं वो रोल डिज़र्व नहीं करती थी, बल्कि वजह थी कि मैं किसी स्टार या प्रोड्यूसर-डायरेक्टर की बेटी या बहन नहीं हूँ या किसी स्टार को डेट नहीं कर रही हूँ. लेकिन मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. हां अगर कोई फ़िल्म मेरे हाथ से इसलिए चली जाती क्योंकि वो रोल करने का टैलेंट मुझमें नहीं होता, तो बेशक मुझे फर्क पड़ता.”
सिद्धांत चतुर्वेदी
स्टार किड के लिए सब कुछ आसान होता है और हम जैसे सेल्फ मेड एक्टर्स के लिए बहुत मुश्किल
फ़िल्म ‘गली बॉय’ में एमसी शेर का किरदार निभाकर पॉपुलर हुए सिद्धांत चतुर्वेदी कहते हैं, ”हम जैसे सेल्फ मेड लोगों के लिए इंडस्ट्री में खड़े रहना मुश्किल होता है, जबकि अगर आप किसी स्टार के बच्चे हो तो नाम शोहरत सब आसानी से मिल जाता है. जहां हमारे सपने पूरे होते हैं, वहां इनका स्ट्रगल शुरू होता है.”
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