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जानें कैसे पुरुषों पर भी असर डालता है तलाक़ (5 Reasons Why Divorce Is More Stressful On Men Than Women)

आमतौर पर लोगों की यही सोच होती है कि तलाक़ का सबसे ज़्यादा असर महिलाओं पर होता है और इसका पुरुषों पर कोई असर नहीं होता, लेकिन ये सच नहीं है. तलाक़ पुरुषों को भी प्रभावित करता है (Divorce Is More Stressful On Men Than Women). पार्टनर से अलगाव उन्हें भी अकेला करता है, उन्हें भी तकलीफ़ देता है. तलाक़ का पुरुषों पर और क्या असर होता है, आइए जानते हैं.

आमतौर पर तलाक़ के केस में सबकी सहानुभूति व तवज्जो पत्नी के साथ होती है. और माना जाता है कि किसी भी महिला के लिए तलाक़ की प्रक्रिया बेहद तकलीफ़देह होती है. लेकिन शायद ही किसी ने इस बात पर गौर किया हो कि तलाक़ पुरुषों के लिए भी उतना ही मुश्किलोंभरा व चुनौतीपूर्ण होता है. तलाक़ एक पुरुष को भी डिप्रेशन में डाल देता है. उसे अकेला बना देता है. साथ ही दोस्तों, परिवार, समाज की नज़रों में विलेन भी.
डॉ. प्रीति नंदा के अनुसार, यह एक मिथ है कि स़िर्फ महिलाएं ही अपने पति से बहुत प्यार करती हैं व उनसे दिल से जुड़ी रहती हैं. जबकि पुरुष भी अपनी पत्नी से भावनात्मक लगाव रखते हैं और डिवोर्स के बाद भी उस लगाव, संवेदनाओं व चाह को तोड़ नहीं पाते व बेचैन रहते हैं.
– तलाक़ पुरुषों को भावनात्मक रूप से अस्थिर कर देता है.
– कई बार मानसिक अवसाद इतना बढ़ जाता है कि उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति पनपनेे लगती है.
– मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, पुरुष एक स्त्री की तुलना में अपने दुख को 1% भी व्यक्त नहीं करते, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि उनका दुख-दर्द पत्नी की तुलना में कम है.
– तलाक़ के बाद पुरुष किस-किस तरह से प्रभावित होते हैं, आइए जानते हैं.

 

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मानसिक रूप से कमज़ोर होना

– पुरुष शारीरिक रूप से नारी की तुलना में भले ही बेहद ताक़तवर होते हैं, लेकिन मानसिक मज़बूती में वे स्त्री की तुलना में कहीं नहीं ठहरते.
– ये अलग बात है कि वे दुनिया के सामने कठोर बने रहते हैं.
– यहां तक कि तलाक़ जैसी त्रासदी को भी बिना शिकन के झेल लेते हैं, लेकिन यह महज़ दिखावा होता है.
– जीवनसाथी से अलगाव, आगे का जीवन तन्हा जीना, दोस्तों, रिश्तेदारों, महिला कलीग्स की चुभती निगाहें, ताने-उलाहने, तीखे कमेंट्स पुरुषों को अंदर से तोड़ देते हैं.
– उनका मन कमज़ोर और भावनाएं घायल होती जाती हैं.
– लेकिन हमेशा से जो सिखाया-बताया जाता है कि पुरुष बहादुर होता है, रोता नहीं है, उसे दर्द नहीं होता है… बस, यही बातें उन्हें कठोर बने रहने पर मजबूर कर देती हैं.

दर्द व्यक्त न कर पाना

– पुरुष अपने दुख-तकलीफ़ को उतनी सहजता से नहीं कह पाते, जितनी सरलता से महिलाएं कहती हैं. फिर चाहे बात छोटी-सी खरोंच लगने की हो या तलाक़ जैसी दुखद घटना.
– जहां स्त्री अपने-पराए हर किसी से अपने तलाक़ पर बात कर लेती है, पति के अत्याचार, व्यवहार के बारे में सब कुछ बता अपना मन हल्का कर लेती है, वहीं पुरुष ये सब नहीं कर पाते.
– पुरुष के लिए तो अपने बेस्ट फ्रेंड से भी अपनी पत्नी, तलाक़ और उससे जुड़े हालात, वजहों को डिसकस करना, अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करना टेढ़ी खीर साबित होता है.
– पुरुष अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण अपने ग़म को अपने अंदर ही पालता रहता है.
– तलाक़ से उपजा अवसाद, सदमा और पत्नी का रिजेक्शन पुरुष को लंबे समय तक तोड़कर रख देता है.
– पुरुष का यही अंतर्मुखी स्वभाव आगे चलकर कई गंभीर मानसिक व शारीरिक हेल्थ प्रॉब्लम्स को जन्म देता है.

प्रभावित होती प्रोफेशनल लाइफ

– भारतीय पुरुष शादी होते ही अपनी हर तरह की ज़रूरतों के लिए पत्नी पर कुछ इस कदर निर्भर हो जाते हैं कि उनका डेली रूटीन बिना पत्नी की मदद के पूरा नहीं होता.
– तलाक होने पर अचानक जब यह सपोर्ट सिस्टम फेल हो जाता है, तो उनकीज़िंदगी अव्यवस्थित हो जाती है. इन सबका असर उनकी नौकरी यानी प्रोफेशनल लाइफ पर पड़ने लगता है.
– वे काम में पहले जैसे स्मार्ट और परफेक्ट नहीं रह जाते.
– देर रात तक की मीटिंग अटेंड नहीं कर पाते.
– वे लॉन्ग टूर पर नहीं जा पाते हैं, क्योंकि अब उन्हें घर मैनेज करने के साथ-साथ बच्चों के स्कूल (यदि बच्चे हैं), उनकी सुरक्षा की भी चिंता लगी रहती है.
– पहले की तरह स़िर्फ अपने करियर पर फोकस नहीं रख पाते, जिससे वे प्रोफेशनल फ्रंट पर पिछड़ने लगते हैं.
– सायकोलॉजिस्ट के अनुसार, घर-बाहर की ज़िम्मेदारी के साथ समाज व रिश्तेदारों के व्यवहार में उनके प्रति आया परिवर्तन, ठंडापन उन्हें मानसिक रूप से अस्थिर करता है.
– जीवनसाथी की कमी उनके मन में खालीपन का एहसास पैदा करने लगती है.
– वे ग़ुस्सैल, चिड़चिड़े व आक्रामक होते जाते हैं.
– कभी-कभी अल्कोहल, ड्रग्स, जुए आदि की लत उनके पतन का कारण बन जाती है.

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फाइनेंशियल प्रेशर

– पुरुषों के लिए डिवोर्स फाइनेंशियली भी बहुत भारी पड़ता है.
-तलाक़ के बाद भारी एलीमनी देनी पड़ती है.
– जॉइंट एसेट्स का लिक्विडेशन करना होता है.
– घर, चल-अचल संपत्ति में भी पत्नी व बच्चोें की हिस्सेदारी देना ज़रूरी होता है.
– इन सब को पूरा करते-करते पुरुष की ज़िंदगीभर की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च हो जाता है.
– फाइनेंशियल प्रेशर का असर उनके परफॉर्मेंस पर पड़ने लगता है, जिससे उनका कॉन्फिडेंस लेवल भी कम होता जाता है.
– तलाक़ पुरुष को मानसिक रूप से तो तोड़ता ही है, साथ ही कमोबेश पैसों की तंगी होेना उनके लिए दोहरी मार साबित होता है, जिसे झेल पाना पुरुषों के लिए कतई आसान नहीं होता.

इमोशनल अत्याचार

– डिवोर्स होने पर छोटे बच्चों की कस्टडी अक्सर मां को मिलती है. पिता के हिस्से में आती हैं कोर्ट के आदेशानुसार नियत समय पर चंद मुलाक़ातें.
– पुरुष अपनी पत्नी से अलग रह सकते हैं, लेकिन अपने बच्चों का दूर जाना उन्हें मानसिक रूप से तोड़ देता है.
– बच्चे के जन्म से लेेकर परवरिश से जुड़ी छोटी-छोटी बातें, यादें उन्हें ग़मगीन करती चली जाती हैं, यह औैर बात है कि वे अपना यह दर्द किसी से साझा नहीं करते.
– तलाक़ के बाद अपने बच्चे से पिता को दूर कर दिया जाना उनके लिए किसी इमोशनल अत्याचार से कम नहीं है.
तलाक़ का पुरुषों के मान-सम्मान और इमेज पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. लेकिन अफ़सोस यह कि जहां पत्नी को हर तरफ़ से सहयोग मिलता है, वहीं पति के पास एक कंधा भी नहीं होता, जिस पर सिर रखकर, वह अपना मन हल्का कर सके. इसलिए यह कह देना कि तलाक़ का असर पुरुषों पर नहीं होता न्यायसंगत नहीं है.

– निधि निगम

 

Pratibha Tiwari

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