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राइट टु प्राइवेसी के बारे में कितना जानते हैं आप? (All You Need To Know About Right To Privacy In India)

ज़रा सोचें अगर कोई चौबीसों घंटे हम पर नज़र रखे, तो कैसा लगेगा? यक़ीनन किसी के लिए भी इस तरह जीना बहुत मुश्किल है, क्योंकि हर किसी को प्राइवेसी (Privacy) चाहिए. चाहे घर हो या ऑफिस, पब्लिक प्लेस हो या प्राइवेट, सोशल मीडिया हो या फिर इंटरनेट पोर्टल. सुकूनभरी ख़ुशहाल ज़िंदगी के लिए ज़रूरी है कि समाज का हर व्यक्ति एक-दूसरे की प्राइवेसी का सम्मान करे. क्या है प्राइवेसी और क्या है इसके मायने, आइए देखते हैं.

प्राइवेसी एक ऐसा विषय है, जिस पर बहुत कम लोग बात करते हैं. शायद एक तबका इस बारे में सोचता हो, पर मध्यम व निम्न वर्ग के लोगों को न ही इस बारे में अधिक जानकारी है और न ही वो इसे ज़्यादा तवज्जो देते हैं. लेकिन ज़रा सोचिए कल आपकी और आपके पार्टनर की प्राइवेट पार्टी की तस्वीर किसी वेब पोर्टल पर दिखे या फिर आपका सोशल मीडिया अकाउंट हैक हो जाए और उससे लोगों को अनाप-शनाप मैसेज सर्कुलेट हों, तो क्या तब भी आपको फ़र्क़ नहीं पड़ेगा? भले ही यह एक भूला हुआ विषय है, पर ऑनलाइन होती दुनिया में प्राइवेसी के बारे में सतर्क रहने की ज़रूरत तो हर किसी को है.

क़रीब 10 साल पहले पुणे का एक मामला काफ़ी चर्चित हुआ था, जहां 58 वर्षीय मकान मालिक को इसलिए सज़ा मिली थी, क्योंकि उन्होंने अपने यहां किराए पर रहनेवाली लड़कियों पर नज़र रखने के लिए अपने घर में स्पाई कैमरे लगवाए थे. इस तरह किसी के कमरे में कैमरे लगवाना क़ानूनन जुर्म है. इस घटना के बाद स्पाई कैमरों और छिपे हुए कैमरों को लेकर लोगों ने काफ़ी मुहिम भी चलाई थी, लेकिन प्राइवेसी पर छिड़ी यह जंग जल्द ही शांत पड़ गई थी.

हम कहां जाते हैं, क्या ख़रीदते हैं, क्या खाते हैं, कैसी सर्विसेज़ लेते हैं और अपने घर में कैसे रहते हैं, यह हमारा निजी मामला है. अपने घर की चारदीवारी में हम वो सब कर सकते हैं, जो एक सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए ज़रूरी है. कोई अचानक हमारे घर आकर बेवजह हमारी तलाशी नहीं ले सकता और न ही हम पर निगरानी रख सकता है.

क्या है राइट टु प्राइवेसी (निजता का अधिकार)?

हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वो एक सम्मानजनक जीवन बिताए और अगर कोई उसकी ज़िंदगी में बेवजह खलल डालने की कोशिश करे, तो उसे सज़ा दिलवाने का भी पूरा अधिकार रखता है. प्राइवेसी का अर्थ है निजता, गुप्तता या फिर एकांतता. अपने घर, परिवार, कामकाज आदि से जुड़ी ऐसी बहुत-सी बातें होती हैं, जो हम प्राइवेट रखना पसंद करते हैं. ये प्राइवेट बातें हमारी सेफ्टी के लिए बहुत अहम् हैं, इसलिए ज़रूरी है कि कोई इनसे छोड़छाड़ न करे.

समझें अपनी प्राइवेसी को

70 सालों से चली आ रही क़ानूनी लड़ाई के बाद आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने राइट टु प्राइवेसी को मूल अधिकारों में शामिल कर इसे संवैधानिक मान्यता दे दी है. इसके हमारे लिए क्या मायने हैं, आइए समझते हैं.

–     प्राइवेसी के अधिकार के कारण कोई भी आपकी मर्ज़ी के बिना आपकी तस्वीर न ही खींच सकता है और न ही कहीं प्रकाशित कर सकता है.

–     आपकी निजी ज़िंदगी में तांक-झांक करने का किसी को कोई अधिकार नहीं है. किसी पर नज़र रखने के लिए स्पाई कैमरा लगाना क़ानूनन अपराध है.

–     फोन पर बातचीत करते व़क्त कोई आपकी पर्सनल बातें सुनने के लिए किसी इलेक्ट्रॉनिक का इस्तेमाल करता है या फिर आपको बात करने के दौरान  जान-बूझकर रोक-टोक करता है, तो यह निजता का उल्लंघन माना जाएगा.

–     आपकी अनुमति के बिना आपकी गंभीर बीमारी से जुड़ी कोई भी बात डॉक्टर या अस्पताल प्रशासन सार्वजनिक नहीं कर सकता. हालांकि एड्स के मरीज़ों के नाम गुप्त रखने का प्रावधान पहले से ही हमारे देश में है.

–     कोई आपके या आपके परिवार से जुड़े राज़ को दुनिया के सामने नहीं रख सकता.

–     लड़कियों के कमरों या पब्लिक टॉयलेट में तांक-झांक करना क़ानूनन अपराध है.

–     किसी के फोटो या वीडियो को बिना अनुमति के कमर्शियली इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

कैसे रखें प्राइवेसी?

–     अपनी प्राइवेसी को लेकर आपको ख़ुद थोड़ा अलर्ट रहना होगा.

–     कहीं भी अपनी निजी जानकारी शेयर करने से पहले पता कर लें कि आपकी उस जानकारी को किस तरह इस्तेमाल किया जाएगा.

–     जब तक अनिवार्य न हो, अपनी जन्म तारीख़ और ईमेल आईडी किसी भी फॉर्म में न भरें.

–     होटल वगैरह में रूम बुक करने से पहले उसकी विश्‍वसनीयता के बारे में जानकारी इकट्ठा कर लें.

–     मॉल के चेंजिंग रूम में कपड़े बदलते समय या फिर पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करते समय देख लें कि वहां कोई छिपा हुआ

कैमरा तो नहीं है.

–   इस तरह के अपराधों के लिए आप सिविल कोर्ट या फिर लॉ ऑफ टॉर्ट के तहत अपराधी को सज़ा दिला सकते हैं. आप चाहें, तो मानहानि का मुक़दमा भी कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें: जब मेडिकल लापरवाही के हों शिकार, तो कहां करें शिकायत? (Medical Negligence: Consumer Rights And The Law)

प्राइवेसी और डाटा कंपनियां

क्या आपने कभी ग़ौर किया है कि इंटरनेट पर कुछ सर्च करते ही वो चीज़ आपको अपने हर वेबसाइट से लेकर सोशल मीडिया तक क्यों नज़र आती है? ऑर्गैनिक सामान ख़रीदो, तो उससे जुड़े मैसेजेस आपको आने लगते हैं, कंपनी को पता चल गया कि ग्राहक प्रेग्नेंट है, तो उसके लिए बेबी प्रोडक्ट्स के कूपन्स आने लगते हैं, किसी ने ऑनलाइन हेल्थ इंश्योरेंस के बारे में सर्च किया, तो मेडिकल पॉलिसी बेचनेवाली कंपनियों के फोन आने शुरू हो जाते हैं.

इससे पता चलता है कि ऑनलाइन से लेकर ऑफलाइन तक हम जो भी करते हैं, उस पर डाटा कंपनियों की नज़र रहती है. अब तक हमारे देश में प्राइवेसी के अधिकार को मूल अधिकार नहीं माना गया था, इसलिए ये कंपनियां हमारा पर्सनल डाटा बिज़नेस कंपनियों को बेचती आ रही थीं, पर अब ऐसा नहीं हो पाएगा. इंटरनेट प्रोवाइडर्स को भी सावधानियां बरतनी पड़ेंगी.

प्राइवेसी और आधार कार्ड 

–     जब से देश में आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई, तब से लोगों के फिंगर प्रिंट, आंखों के स्कैन और चेहरे के स्कैन को लेकर कुछ लोगों ने इसे प्राइवेसी के अधिकार का हनन बताया था.

–     आधार को पैन कार्ड और मोबाइल से लिंक होने के बाद भी प्राइवेसी का सवाल उठा था, क्योंकि इससे आपकी हर एक्टिविटी का रिकॉर्ड कंपनियों और सरकार के पास जमा हो जाता है.

–     लंबे समय से चल रही यह लड़ाई अभी भी जारी है, पर आधार कार्ड को प्राइवेसी का उल्लंघन माननेवालों को बता दें कि ऐसी कई सरकारी योजनाओं को ग़रीब लोगों तक पहुंचाने में आधार काफ़ी कारगर साबित हुआ है.

–     इससे न स़िर्फ सरकारी योजनाओं में हो रही धांधली रुकी है, बल्कि राशन वितरण में हो रही काला बाज़ारी पर भी लगाम लगी है.

ऑनलाइन प्राइवेसी

पिछले कुछ सालों में टेक्नोलॉजी बहुत एडवांस हो चुकी है. आजकल ई कॉमर्स वेबसाइट्स और सोशल मीडिया के कारण हमारी ऑनलाइन प्राइवेसी ख़तरे में रहती है. कभी हैकिंग का ख़तरा, तो कभी ऑनलाइन फाइनेंशियल फ्रॉड का डर बना ही रहता है, ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि आप अपना पर्सनल डाटा, पासवर्ड्स, ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स आदि सुरक्षित रखें.

प्राइवेसी प्रोटेक्शन टिप्स

–    सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी शेयर न करें. कुछ भी शेयर करने से पहले याद रखें कि ये आपके दोस्तों के अलावा बहुत से अजनबी भी देख रहे हैं, जिनका मक़सद लोगों को फंसाना होता है.

–     अपनी कोई भी प्राइवेट जानकारी पब्लिक स्टोरेज में न रखें, जैसे- अकाउंट पासवर्ड्स, ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स के स्कैन आदि गूगल डॉक्स या ड्रॉप बॉक्स में न रखें.

–     जब भी आप किसी वेबसाइट पर जाते हैं, तो आपका वेब ब्राउज़र उस वेबसाइट को आपसे संबंधित कुछ जानकारी भेजता है.

–     जहां ज़रूरी हो, वहीं अपनी ईमेल आईडी और फोन नंबर शेयर करें, वरना स्पैम ईमेल्स और प्रमोशनल फोन कॉल्स आपको परेशान कर देंगे.

–     अपने पासवर्ड्स स्ट्रॉन्ग और बड़े रखें, ताकि आसानी से कोई इन्हें हैक न कर सके. कोशिश करें 12 कैरेक्टर का पासवर्ड बनाएं, जिसमें नंबर्स और स्पेशल कैरेक्टर्स भी हों.

–     बहुत-से ऐप किसी भी तरह की फंक्शनिंग के लिए आपसे परमिशन मांगते हैं, जिससे वो आपकी लोकेशन, मीडिया, कैमरा आदि के बारे में जानकारी इकट्ठा कर सकें. सभी ऐप्स को परमिशन न दें, बेहद ज़रूरी ऐप्स को ही ये सहूलियत दें.

–     कई लोग स्क्रीन लॉक करने के लिए पासवर्ड्स रखते हैं, पर नोटिफिकेशन लॉक नहीं करते, जिससे कोई भी आते-जाते आपके नोटिफिकेशन्स देख सकता है. सेटिंग्स में जाकर इसे डिसेबल करें.

प्राइवेसी में दख़ल देने की सज़ा

पहले यह मूलभूत अधिकारों की लिस्ट में शामिल नहीं था, पर कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे मूलभूत अधिकारों की श्रेणी में जगह दी है. अभी तक इसके लिए अलग से कोई क़ानून नहीं बनाया गया है, हालांकि आईटी एक्ट में इसके लिए पहले ही सज़ा का प्रावधान था-

–    अगर कोई आपकी मर्ज़ी के बिना आपकी फोटो प्रकाशित करे या इलेक्ट्रॉनिक तरी़के से सर्कुलेट करे, तो आईटी एक्ट की धारा 66ई के तहत उसे तीन साल तक की जेल या फिर दो लाख से लेकर 10 लाख तक का जुर्माना या फिर दोनों ही हो सकते हैं.

– अनीता सिंह

यह भी पढ़ें: दहेज उत्पीड़न के ख़िलाफ़ कहीं भी केस दर्ज करा सकती हैं महिलाएं- सुप्रीम कोर्ट (Women Can File Dowry Harassment Cases From Anywhere- Supreme Court)

Aneeta Singh

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