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शकुंतला देवी से लेकर गुंजन सक्सेना, दंगल, संजू… बॉलीवुड बायोपिक फिल्में जिनमें नहीं दिखाया गया पूरा सच (Bollywood Biopics That Twisted Facts For Creative Liberty)

बायोपिक फिल्मों में दर्शकों की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए उसमें क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर कई बदलाव किए जाते हैं. ये बदलाव कई बार फिल्म के मुख्य किरदार की कई सच्चाइयां नहीं बता पाते. शकुंतला देवी से लेकर गुंजन सक्सेना, दंगल, संजू… बॉलीवुड की कई बायोपिक फिल्मों में पूरा सच नहीं दिखाया गया.

शकुंतला देवी
फिल्म शकुंतला देवी का निर्देशन अनु मेनन ने किया है, साथ ही इसका स्क्रीनप्ले उन्होंने नयनिका महतानी के साथ मिलकर लिखा है और फिल्म की डायलॉग राइटर इशिता मोइत्रा हैं यानी इस फिल्म में डायरेक्शन से लेकर राइटिंग और मेन लीड तक की कमान महिलाओं ने ही संभाली है. फिल्म की कहानी कुछ इस तरह है- बहुत छोटी उम्र से ही लोगों को शकुंतला के इस खास टैलेंट के बारे में पता लगना शुरू हो जाता है. पिता शकुंतला के इस टैलेंट को आय का माध्यम बनाना चाहते हैं. शकुंतला बचपन में जब पैसों और इलाज के अभाव में अपनी बड़ी बहन को दम तोड़ते देखती है, तो उसे अपने पिता से नफ़रत हो जाती है. धीरे-धीरे शकुंतला देवी बड़ी होती हैं और उनका नाम मशहूर होने लगता है. जवानी की दहलीज पर पहुंची शकुंतला देवी को प्यार हो जाता है, लेकिन उनका प्यार उन्हें धोखा दे देता है. इस घटना से शकुंतला देवी टूट जाती हैं. फिर शकुंतला देवी लंदन जाती हैं, जहां उनकी प्रतिभा को एक नई पहचान मिलती है. फिर उनकी जिंदगी में एंट्री होती है एक आईएएस ऑफिसर की. दोनों शादी करते हैं, उनकी एक प्यारी सी बेटी होती है, लेकिन फिर दोनों अलग हो जाते हैं और बेटी मां के साथ रहने लगती है. बाद में शकुंतला देवी की बेटी भी उनसे दूर हो जाती है. बायोपिक फिल्मों में दर्शकों की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए उसमें क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर कई बदलाव किए जाते हैं और ऐसा इस फिल्म के साथ भी किया गया है. ये फिल्म कई सवाल छोड़ जाती है, जैसे- क्या एक असाधारण औरत को असाधारण तरीके से जीने का हक नहीं होना चाहिए? यदि कोई महिला किसी क्षेत्र में बहुत आगे है, तो ये जरूरी है कि वो एक परफेक्ट बेटी, पत्नी और मां भी साबित हो? क्या इसके लिए हमारा सामाजिक ढांचा जिम्मेदार है?

गुंजन सक्सेना
भारतीय वायुसेना ऑफिसर गुंजन सक्सेना के जीवन पर बानी फिल्म ‘गुंजन सक्सेना’ रिलीज़ होते ही विवादों से घिरी रही. इस फिल्म की मेकिंग को लेकर कई सवाल उठाए गए. ऑफिसर गुंजन सक्सेना के कई बैचमेट्स ने बताया था कि फिल्म में जिस तरह से इंंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और लिंगभेद को लेकर पक्षपात दिखाया गया है, असल में ऐसा है नहीं. जो महिलाएं इन संस्थानों में पहले बैच में आई, उन्हें शुरू में तकलीफ हुई होगी, क्योंकि इससे पहले ये संस्थान पुरुषों के अनुसार बने थे, लेकिन फिल्म में कुछ ज्यादा ही दिखाया गया है. खबरों के अनुसार, इस फिल्म में भारतीय वायुसेना (IAF) और भारतीय थल सेना जैसे नामी और अनुशासित संस्थानों का गलत चित्रण किया है, जिसे लेकर दोनों संस्थानों ने फिल्म के निर्माताओं से सवाल किए थे.

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संजू
संजू फिल्म में दिखाया गया है कि संजय दत्त कैसे ड्रग्स के चक्कर में फंस गए. वो ड्रग्स छोड़ना चाहते थे, लेकिन उनके लिए क्यों उससे निकलना नामुकिन था. फिल्म में संजय दत्त के अनगिनत अफेयर्स को भी ऐसे बताया गया जैसे ये बहुत आम बात है. संजू फिल्म में संजय दत्त पर लगे आरोपों से ज्यादा बाप-बेटे की बॉन्डिंग को दिखाया गया. मुंबई अटैक में संजय दत्त ने घर में हथियार क्यों रखे, इस बात को भी उनके परिवार के लिए डर और उनकी मासूमियत का जामा पहना दिया गया. संजू फिल्म में संजय दत्त के ड्रग एडिक्शन, उनके अफेयर्स और मुंबई अटैक की घटनाओं को इतने दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किया गया है, ताकि फिल्म में अंत तक दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया जा सके. इस फिल्म में सिर्फ वही दिखाया गया, जो दर्शक पहले से जानते थे और जिससे संजय दत्त की इमेज को अच्छा बताया जा सके. फिल्म को देखकर ऐसा लगता है जैसे राजकुमार हिरानी ने संजय दत्त की छवि को सुधारने के लिए ये फिल्म बनाई है. फिल्म में बताया गया है कि मीडिया ने संजय दत्त की छवि को खराब किया है. राजकुमार हिरानी ये अच्छी तरह जानते हैं कि कैंसर से मां की मौत, बहनों को रेप की धमकी और बेटे के जेल में रहने पर तपती गर्मी में बाप का जमीन पर सोने जैसे दृश्य दिखाकर किस तरह दर्शकों की सहानुभूति बटोरी जा सकती है. कुल मिलाकर संजू फिल्म में सच्चाई पर भावनाओं का कवर लगाकर संजय दत्त की इमेज पॉलिशिंग का काम किया गया है.

दंगल
फिल्म ‘दंगल’ देश की बेटियों का हौसला बढ़ाने वाली एक बेहतरीन फिल्म है. फिल्म में गीता फोगाट के संघर्ष की कहानी को बहुत ही भावुकता से प्रस्तुत किया गया है. मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान ने फिल्म को वास्तविक रूप देने के लिए पहले अपना वजन बढ़ाया और फिर घटाया. इस फिल्म के लिए सबने बहुत मेहनत की है, लेकिन इस फिल्म में भी कई दृश्यों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है, खासकर फिल्म का आखिरी दृश्य, जब गीता फोगाट मैच जीत जाती है. फिल्म के विनिंग मैच में दिखाया गया था कि शुरुआत में गीता फोगाट 1-5 के स्कोर के साथ अपने प्रतिद्वंद्वी से चार अंक पीछे थी और बाद में 6-5 के स्कोर के साथ उन्होंने जीत हासिल की, लेकिन सच्चाई ये है कि फोगाट ने यह मैच 8-0 से जीता था. फिल्म को और ज्यादा रोचक बनाने के लिए फिल्म में कई बदलाव किए गए.

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अज़हर
फिल्म ‘अज़हर’ भारतीय क्रिकेटर अज़हर मोहम्मद के जीवन पर आधारित है. बता दें कि भारतीय क्रिकेटर अज़हर मोहम्मद पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगाया गया था, और बाद में उन्होंने सीबीआई के सामने यह बात स्वीकार भी की थी कि उन्होंने इसमें हिस्सा लिया था. फिल्म ‘अज़हर’ में सच नहीं दिखाया गया, बल्कि इतनी सारी गलतियां करने वाले इंसान को एक हीरो की तरह प्रस्तुत किया गया. फिल्म में बताया गया कि उन्होंने सिर्फ एक करोड़ रुपये लिए, ताकि टीम के बाकी खिलाड़ियों तक फिक्सर्स को पहुंचने से रोका जा सके.फिल्म में हीरो जिस काम के लिए पैसा लेता है, वह नहीं करता और जीत के बाद पैसे लौटा देता है. फिल्म में इतनी नाटकीयता से इमेज पॉलिशिंग का काम किया गया है कि इसे कम्प्लीट बायोपिक नहीं कहा जा सकता.

Kamla Badoni

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