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अपनी बेटी की प्यूबर्टी को हमने सेलिब्रेट किया… पैडमैन अक्षय कुमार (Celebrate The Arrival Of Puberty With Your Daughter- Akshay Kumar)

गम्भीर सामाजिक विषयों को फ़िल्मों के ज़रिए लोगों तक पहुँचाने का काम आसान नहीं होता, लेकिन लगता है अक्षय कुमार इसमें माहिर हो गए हैं… इसी कड़ी में उनकी चर्चित फ़िल्म पैडमैन पर सबकी नज़र है. क्या कहते हैं अक्षय इस बारे में, ख़ुद उनसे ही पूछ लेते हैं.

बात पैडमैन की करें, तो ये एक ऐसे विषय पर है जिसके बारे में समाज में और परिवार में बात तक नहीं की जाती तो आपका क्या अनुभव रहा है?
आप सही कह रहे हैं, क्यूंकि मेरा भी यही अनुभव रहा था जब तक कि मैं ख़ुद इस विषय को समझ नहीं पाया था. असली बात समझते-समझते तो ज़ाहिर है वक़्त लगा कि हमारे समाज में ८२% महिलायें भी इस विषय को ठीक से नहीं समझ पातीं. यही वजह है कि पीरियड्स के दौरान वे राख, पत्ते, मिट्टी जैसी चीज़ें इस्तेमाल करने को मजबूर हैं और ये बेहद शर्मनाक बात है. जब मुझे इन बातों का पता चला तो मैंने सोचा ये तथ्य ज़रूर सामने आने चाहिए. लोगों को पता होना चाहिए कि ये प्राकृतिक क्रिया है इसे शर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.
फिर मेरी मुलाक़ात हुई अरुणाचलम मुर्गनाथन से, उन्होंने अपनी पत्नी की कितनी केयर की ये पता चला, उनकी सोच बहुत बेहतरीन थी, इसलिए उन्होंने पैड्स की मशीन बनाई मात्र ६० हज़ार में, जिसे लोग करोड़ों रुपए में बनाते हैं.
मुझे उनकी कहानी ने बहुत प्रेरित किया और उनकी ये बात दिल को छू गई कि किसी भी देश को मज़बूत बनाना है तो उस मुल्क की महिलाओं को मज़बूत करना होगा.
मुझे लगा कितना सही कहा उन्होंने, हम क्यूं इतने हथियार ख़रीदते हैं, जबकि हमारे देश की महिलायें ही मज़बूत नहीं हैं.
मुझे ख़ुद को इतनी समझ और जानकारी मिली कि अपनी बेटी के साथ अब हम खुलकर इस विषय पर बात करते हैं. वो १३-१४ साल की है और अब ज़रूरी है कि वो समझे इन चीज़ों को. जबकि हमारे समाज में आज भी महिलाओं को इस दौरान भेदभाव का भी शिकार होना पड़ता है.
मेरी बेटी की प्यूबर्टी पर हमने सेलिब्रेट किया, ताली बजाई क्यूँकि बेटी सयानी हो गई है तो ये तो सेलिब्रेशन की बात है. जब आप सेलब्रेट करोगे तभी तो बेटी को भी एहसास होगा कि ये नॉर्मल है, इसमें शर्म की बात नहीं. वहीं अगर आप उसको ये सीख दोगे कि किसी को बताना नहीं, ये छिपाने की बात है तो वो भी इसको सहजता से नहीं ले पाएगी
फ़िल्म रिलीज़ कि बाद कैसा करेगी क्या करेगी मुझे नहीं पता लेकिन आज मैं सोशल मीडिया पर जब देखता हूं कि लड़के भी इस विषय पर खुलकर बात कर रहे हैं तो मेरी जीत वहीं है. मुझे ये फ़िल्म किसी भी हाल में करनी ही थी और मैंने अपने दिल की सुनी.

देश में आज भी अधिकतर लड़कियां सैनिटेरी नैप्किन अफ़ॉर्ड नहीं कर पातीं.
जी हां, मैं इसलिए कहता हूं कि सैनिटेरी नैप्किन फ़्री होने चाहिए. डिफ़ेन्स में पैसे थोड़े कम कर दो पर ये बेसिक नीड़ है जिसे सबको मिलना चाहिए. मैंने फ़िल्म कि ज़रिए संदेश दे दिया है अब ये समानेवाले को चाहिए इसे कैसे लेता है.

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कोई ख़ास वजह कि सामाजिक मुद्दों पर फ़िल्में करना पसंद करते हैं?
ख़याल और चाहत पहले से ही थी लेकिन तब पैसे नहीं थे अब हैं तो produce करता हूं. मेरा यही मानना है कि गम्भीर विषय को मनोरंजक तरीक़े से समझाओ तो बेहतर है बजाय भाषण देने के.

अपनी कामयाबी का श्रेय किसको देंगे? फ़िल्म के सब्जेक्ट्स या अपनी फ़िट्नेस?
फ़िल्मों के हिट होने का कोई फ़ॉर्म्युला नहीं होता.

चाहे टॉयलेट एक प्रेम कथा हो या पैडमैन तो महिलाओं से जुड़े और किन विषयों पर अब आगे फ़िल्म बनाना चाहते हैं?
मेरे दिमाग़ में नहीं था कोई विषय लेकिन एक लड़की ने मुझसे कहा कि सर आप डाउरी यानी दहेज पर फ़िल्म बनायें.

आपको क्या लगता है कि इस तरह की फ़िल्में सामाजिक स्तर पर बदलाव लाती हैं.
बदलाव लाती हैं लेकिन सरकार के समर्थन से बदलाव और प्रभाव जल्दी और ज़्यादा आता है. जैसे टॉयलेट में हुआ था क्यूंकि सरकार का बहुत समर्थन मिला था.

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क्या धर्म भी एक वजह है इस तरह कि विषयों पर खुलकर बात ना करने की?
धर्म भी है और हमारी सोच भी. लड़कों के लिए ये मज़ाक़ का विषय है इसलिए लड़कियां झिझकती हैं. मेरे एक दोस्त का क़िस्सा बताता हूं, देर रात उसकी नींद खुली और उसने देखा उसकी बेटी और पत्नी बात कर रहे हैं कि घर पे सैनिटेरी नैप्किन नहीं है और बेटी को उसकी पत्नी समझा रही है कि इतनी रात को क्या करें? तब वो अंदर गया और बेटी को बोला कि पीरियड्स हैं और पैड्स नहीं हैं? बेटी हैरान थी पर वो उसको गाड़ी में लेके गया, डे नाइट केमिस्ट से पैड्स लेके बेटी को दिया. उसके बाद उसने कहा कि उसकी बेटी उसको बेहद प्यार करने लगी, पहले से भी ज़्यादा! उसका रिलेशन पूरी तरह बदल गया. तो कहनी का मतलब है कि खुलकर बात करो, बच्ची को दोस्त बनाओ, उसकी समस्या को समझो और ख़ुद महिलाओं को भी यही करना चाहिए.
वो ख़ुद झिझकती हैं. मेरी फ़ैन ने मुझे कहा अक्षय मैंने ट्रेलर देखा बहुत अच्छा था, मैंने पूछा कौन सा ट्रेलर? तो वो बुदबुदाई यानी वो ख़ुद पैडमैन खुलकर नहीं बोल पा रही थी. तो ये चीज़ ख़त्म होनी चाहिए.

२०१७ आपका कैसा गुज़रा और नए साल में क्या कुछ नया करने का सोचा है आपने?
पिछला साल बहुत अच्छा गुज़रा. मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं है कि क्या resolution बनाऊं. सोचता हूं साल में चार की जगह तीन फ़िल्में करूं.

आप साल में चार फ़िल्में करते हैं जबकि ऐसे भी स्टार्स हैं जो एक ही फ़िल्म करते हैं तो इंडस्ट्री आप पर अच्छी फ़िल्मों के लिए काफ़ी निर्भर करती है, ऐसे में आप ख़ुद पर कीसी तरह का प्रेशर महसूस करते हैं?
प्रेशर क्यूं महसूस होगा… मैं तो ये पिछले २७ सालों से यह कर रहा हूं. एक मूवी ४०-५० दिनों में ख़त्म हो जाती है, तो इतना समय बचता है तो करूं क्या? इसलिए बीच बीच में ऐड कर लेता हूं.

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Geeta Sharma

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