जब भी हमारे घर में पूजा-पाठ, हवन, उत्सव या शादी-विवाह जैसे शुभ कार्य होते हैं, तो घर में शंख ज़रूर बजाया जाता है. क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों किया जाता है? धार्मिक कार्यों में शंख बजाने की परंपरा क्यों है और इसका वैज्ञानिक महत्व क्या है? चलिए, हम आपको बताते हैं.
धार्मिक मान्यता
सभी धर्मों में शंखनाद को पवित्र माना गया है इसीलिए पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, विवाह आदि शुभ कार्यों में शंख बजाना शुभ व अनिवार्य माना जाता है. मंदिरों में भी सुबह-शाम आरती के समय शंख बजाया जाता है.
वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिक मानते हैं कि शंख फूंकने से उसकी ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक के अनेक बीमारियों के कीटाणु ध्वनि-स्पंदन से मूर्छित हो जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं. यदि रोज़ शंख बजाया जाए, तो वातावरण कीटाणुओं से मुक्त हो सकता है. बर्लिन विश्वविद्यालय ने शंखध्वनि पर अनुसंधान कर यह पाया कि इसकी तरंगें बैक्टीरिया तथा अन्य रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए उत्तम व सस्ती औषधि हैं. इसके अलावा शंख बजाने से फेफड़े मज़बूत होते हैं, जिससे श्वास संबंधी रोगों से बचाव होता है.
शंख में जल भरकर पूजा स्थान में रखा जाता है और पूजा-पाठ, अनुष्ठान होने के बाद श्रद्धालुओं पर उस जल को छिड़का जाता है. इस जल को छिड़कने के पीछे मान्यता यह है कि इसमें कीटाणुनाशक शक्ति होती है, क्योंकि शंख में जो गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम की मात्रा होती है, उसके अंश भी जल में आ जाते हैं. इसलिए शंख के जल को छिड़कने और पीने से स्वास्थ्य सुधरता है. यही वजह है कि बंगाल में महिलाएं शंख की चूड़ियां पहनती हैं.
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