दिल की बात- क्या आपने कभी पेंटिंग की है? (Dil Ki Baat- Kya Aapne Kabhi Painting Ki Hai?)

तस्वीर तेरी दिल में, जिस दिन से उतरी है
फिरूं तुझे संग ले के नए-नए रंग ले के…
सपनों की महफ़िल में…
जरा इस शायर के पेंटर होने की कल्पना करिए, जो शब्दों से इतनी ख़ूबसूरत तस्वीर बना देता है. उसे कूची और रंग से अपनी बात कहनी हो, तो कैसे कहेगा.
एक शायर पेंटर नहीं होता, जबकि हर पेंटर एक शायर होता है इसमें कोई शक नहीं. बस वह अपनी शायरी किसी और भाषा में कह डालता है.

क्या है पेंटिंग? ख़्वाब, तमन्ना, हकीक़त, दर्द, प्रेम और भी न जाने क्या-क्या. जो कुछ भी दिल और दिमाग़ में है उसे कैनवाॅस पर उतार देने के हुनर का नाम है पेंटिंग.

इस दुनिया में कौन है, जो सुबह और शाम नहीं देखता. कौन ज़िंदगी में फूल और तितलियों को देखे बिना बड़ा हुआ है. किसे आसमां की लाली और शाम की गोधूलि ने चौंकाया नहीं है. कौन है, जो सितारों के रहस्य नहीं जान लेना चाहता.
चलिए आगे बढ़ते हैं. कब बनाई थी आपने आख़िरी पेंटिंग. अच्छा जाने दीजिए कब देखी आपने पिछली पेंटिंग अपनी ज़िंदगी में. बड़ा अजीब सवाल है, वाक़ई बात तो ठीक है आपकी कि क्या रखा है पेंटिंग में और फ़ुर्सत किसे है आज पेंटिंग देखने की, आर्ट गैलरी जाने की और फिर पेंटिंग बनाने की. वैसे भी ऊपरवाला सब को यह हुनर कहां देता है कि वह जो आड़ी-तिरछी रेखाएं कोरे काग़ज़ पर खींच दे, तो वो बोलने लगें. दिल के जज़्बात कह दें.
कभी सुना है आपने शौक और जुनून के बारे में, ज़रूर सुना होगा. सुना क्या गुज़रे भी होंगे शौक और जुनून से. यह जो शौक है जब इंसान को सोने नहीं देता, तो जुनून बन जाता है.
पहले बात पेंटिंग की फिर कुछ और. मुझे लगता है लास्ट पेंटिंग या तो हमने स्कूल के दिनों में बनाई होगी या फिर बच्चों के होमवर्क में. कौन-सी पेंटिंग देखी अभी अंतिम आपने और जब ध्यान करेंगे, तो याद नहीं आएगा. जबकि हर पल एक नई पेंटिंग से हम लोग रू-ब-रू हो रहे हैं. पेपर में, नेट पर, आसपास ढेर सारे कैनवास के रंग बिखरे पड़े हैं. कौन है जो आज इंटरनेट पर अपने पसंद की सामग्री नहीं देखता और जो कुछ हम देख रहे हैं वे सब कुछ बैकग्राउंड पेंटिंग से भरे पड़े हैं. बस हमारे भीतर देखने का एहसास खो गया है. हम ज़िंदगी के कैनवास में छुपी हुई ढेर सारी अनकही तस्वीरों को देखने से महरूम हो गए हैं, क्योंकि हमारे भीतर एहसास खो गया है.


क्या है पेंटिंग? पेंटिंग कोई निर्जीव वस्तु नहीं है. काग़ज़ पर उकेरी गई तस्वीरभर नहीं है. एक पेंटिंग ज़िंदगी के किसी लम्हे की तस्वीर है. हमारी भावना और उस वक़्त के मनःस्थिति को कहती कोई कहानी है. जब हम ख़ुद की कहानी ही कहना और समझना न चाहें, तो यह पेंटिंग क्या करेगी.
कभी छोटे बच्चे को कलर और पेपर देकर देखिए और फिर जब वह ख़ुद की उंगलियों और चेहरे को रंगते हुए आपके सामने छोटे से काग़ज़ पर कुछ बना कर ले आए, अपनी कल्पना को दिखाने के लिए कि फिर वो चांद-सूरज हों, पक्षी, पेड़-पौधे, नदी, घर-तालाब या कुछ भी… और आपकी आंखों में झांक कर कहे दादू , कैसी है यह तस्वीर या पूछे पापा कल स्कूल में इसे सबमिट करना है टीचर ने कहा था, तब पूछिए और देखिए उस पेंटिंग को. मेरे लिए पेंटिंग वह काग़ज़ नहीं है, जो आपके हाथ में बच्चे ने सौंपा है. मेरे लिए पेंटिंग वह लम्हा है, जब आप उस पेंटिंग को लेकर ख़ुशी से झूमे और सबको दिखाते फिरे कि मेरे पोते या बेटे ने बनाया है इसे कि किसी बर्थडे पर दिए हुए किसी के हाथ से बनाए कार्ड को आपने सहेजकर रख लिया उम्रभर के लिए, जिसमें किसी ने आड़ी-तिरछी लाइनों में लिख दिया था- हैप्पी बर्थडे पापा…
मेरे लिए पेंटिंग वह है, जब आपने अपनी आंखों से सूरज और चांद देख कर कल्पना में उसे अपने कैनवास पर उतारा और उसमें मनचाहे रंग भरे.

ज़िंदगी का एक भी लम्हा ऐसा नहीं है, जो आसपास गुज़र रहे वक़्त को दिल और दिमाग़ के कैनवास पर अपनी स्मृति के मानस पटल पर न उतार रहा हो, जाने-अनजाने ढेर सारे लम्हे आपके हृदय के कैनवास पर रंगे हुए हैं, जिन्हें आप गाहे-बगाहे देर तक ख़ुद के भीतर महसूस करते हैं उनके साथ खड़े होते हैं. समृतियों में उन्हें जीते हैं और अपनी पसंद के अनुसार, अपनी ज़िंदगी की तस्वीर चुन कर किसी को कम, तो किसी को पूरी ज़िंदगी दे देते हैं. हर पल ज़िंदगी का कैनवास बदलता जाता है और इसी तरह, हर लम्हे में ज़िंदगी की तस्वीर. कई बार तो हम ख़ुद या हमारी ज़िंदगी ख़ुद किसी तस्वीर की तरह होती है.
चलिए इस पेंटिंग की कुछ ख़ासियत पर बातें करें.
मुझे न तो पेंटिंग बनानी आती है और न इसकी समझ. बहुत कोशिश की. आर्ट गैलरी गया, लेकिन वह भाषा समझ न सका, जो एक चित्रकार कैनवास पर लिख देता है. मैं बस इतना सोचता हूं कि यह कितनी महान और हृदय के कोने से निकली, कैसी अद्भुत भाषा है कि जिसका एक अक्षर भी मैं नहीं समझ सकता. उस भाषा में कही गई बात करोड़ों में बिकती है. इसे कहने और समझनेवाले लोग कौन हैं. ऐसा क्या कहा, पढ़ा और सुना जाता है, इन रंगों और लकीरों में. जो ये इतनी क़ीमती हो उठती हैं और तब मुझे अपनी अज्ञानता का एहसास होता है.
काश ऊपर वाले ने मुझे रंगों से खेलने, तस्वीर बनाने और जज़्बात को पन्नों पर हूबहू उतार देने का हुनर दिया होता.
तस्वीर तेरी दिल में, जिस दिन से उतरी है
फिरूं तुझे संग ले के नए-नए रंग ले के…
सपनों की महफ़िल में…
जरा इस शायर के पेंटर होने की कल्पना करिए, जो शब्दों से इतनी ख़ूबसूरत तस्वीर बना देता है. उसे कूची और रंग से अपनी बात कहनी हो, तो कैसे कहेगा.
एक शायर पेंटर नहीं होता, जबकि हर पेंटर एक शायर होता है इसमें कोई शक नहीं. बस वह अपनी शायरी किसी और भाषा में कह डालता है.

एक बेहतरीन गाना है हुस्न वाले तेरा जवाब नही… किसी पेंटर को यह बात कहनी हो, तो वह बस एक ख़ूबसूरत तस्वीर उतार देगा काग़ज़ पर, बिना कुछ बोले चुपचाप.
मेरे कुछ दोस्त हैं, जो लाजवाब पेंटिंग करते हैं. पहले हैं पी.आर. बंदोपाध्याय आप एनटीपीसी में महाप्रबंधक हैं. हम लोग एक-दूसरे से कोई तीस साल से परिचत हैं. आपकी पेंटिंग वर्ल्ड क्लास पेंटिंग है, जिसे जब भी उनके घर गया, मैं बस देखता रह गया. एक मेरे साथी हैं, अरोराजी जो कभी-कभी अपनी कलाकृति ग्रुप में भेजते रहते हैं. हम लोगों का साथ तीस वर्षों से भी अधिक का है, लेकिन इन्होंने पेंटिंग कुछ वर्षों पहले ही ग्रुप में शेयर करनी शुरू की है. तीसरे दोस्त हैं, समीरण घोषाल, जो जीआईसी 81 के साथी हैं. आपकी पेंटिंग चमत्कृत करती है. आपकी एक पेंटिंग को मैंने बुक के कवर के रूप में प्रयोग किया है. और अभी मेरे मित्र मोहम्मद जुनैद ने दो दिन पहले यह पेंटिंग भेजी थी ग्रुप में, जिसने मुझे यह सब लिखने को इंस्पायर कर दिया.

बात पेंटिंग की नहीं थी. बात थी पचपन बरस की उम्र में भी कूची और रंग से कैनवास को रंग देने की. अपने शौक और जुनून में खो जाने की और तभी मैंने पूछा था कि आपने पेंटिंग की है क्या?
वह जो अपना शौक है, जो पैशन है, उसे कर गुज़रने का कोई वक़्त कोई उम्र नहीं है. लाॅकडाउन है, तो क्या कोरोना है तो क्या, ज़िंदगी दर्द से गुज़र रही है, तो क्या? ज़िंदगी के कैनवास पर अपनी तमन्ना के रंग भर दीजिए यह खुद-ब-खुद ख़ूबसूरत हो उठेगी.

मुरली मनोहर श्रीवास्तव


यह भी पढ़ें: प्रेरक प्रसंग- बात जो दिल को छू गई… (Inspirational Story- Baat Jo Dil Ko Chhoo Gayi…)

Usha Gupta

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