1
वसुदेव चले शिशु शीश धरे, तट तीर-लता हरषाय रहीं।
चम से चमके नभ दामिनियाँ, तम चीरत राह दिखाय रहीं।
तट तोड़ चलीं ‘सरिता’ लहरें, हरि पाद पखारन आय रहीं।
अवलोकत देव खड़े नभ में, कलियाँ बिहँसीं मुसकाय रहीं।
2
वृषभानु लली सखि संग चली, निज शीश धरे दधि की मटकी l
मग बीच मिले जसुदा ललना, झट से झटकी दधि की मटकी ll
सुन कान्हा हमे नहि भावत है, बरजोरि अरे झटको मटकी l
तुम कोप करो नहि आज सखी, नहि फोर दऊँ तुमरी मटकी ll
3
तकते-तकते थकतीं अँखियाँ, अबहूँ नहि आवत साँवरिया l
गगरी सरपे रख गोरि चली, अब लागत नाहि गुलेल पिया ll
नहि गूँजत है जमुना तट पे, प्रिय गोपिन की हँसि ओ छलिया l
अब तो विनती सुन लो रसिया, फिर आओ लिए कर बाँसुरिया ll
– अखिलेश तिवारी ‘डाली’
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