राह चलते भद्दे कमेंट्स, अश्लील गाने, ग़लत तरी़के से छूना, अश्लील इशारे… ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं, जिनका सामना छोटे-बड़े शहर की तक़रीबन हर महिला/लड़की को करना पड़ता है. मुमक़िन है आप भी इसकी शिकार हुई हों, लेकिन इस सामाजिक बुराई के प्रति न तो क़ानून और न ही लोग गंभीर नज़र आते हैं, जिसके चलते ये बुराई समाज में अपनी जड़ें गहराई तक जमाती जा रही है.
हाल ही में बैंगलुरू में नए साल के जश्न के मौ़के पर महिलाओं से छेड़छाड़ का मामला सामने आया है. मीडिया में मामला गर्माने के बाद इस सिलसिले में कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले में हैरानी की बात तो ये है कि एक ओर जहां कई बॉलीवुड सेलिब्रिटीज़ इस घटना पर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर चुके हैं, वहीं चंद राजनेता हमेशा की तरह इसे छोटी घटना ही बता रहे हैं, साथ ही इसके लिए महिलाओं को ही दोषी भी ठहरा रहे हैं. वैसे ये कोई पहली बार नहीं हुआ है, हमारे देश में महिलाओं से छेड़छाड़ रोज़मर्रा की घटना हो गई है. कई बार तो इसके परिणाम भी बहुत घातक होते हैं. कई ऐसे केसेस हुए जहां लड़की को ईव टीज़िंग (Eve Teasing) से बचाने की कोशिश करने में उसके दोस्त की जान चली गई, तो कभी उसे बुरी तरह पीटा गया. भले ही लोग इसे हल्के में लेते हैं, मगर महिलाओं से छेड़छाड़ को किसी भी गंभीर अपराध से कम नहीं माना जाना चाहिए, मगर अफसोस हमारे देश में महिलाओं इसे छिटफुट घटना से ज़्यादा कुछ नहीं माना जाता.
क्यों होती है छेड़छाड़?
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, अधिकतर मामलों में पुरुष मज़ा लेने या महिला का ध्यान आकर्षित करने के इरादे से उन पर फ़ब्तियां कसते हैं/इशारे करते हैं. साइकोलॉजिस्ट डॉ. हरीश शेट्टी भी इस बात से सहमत हैं. उनके मुताबिक, “अटेन्शन पाने के लिए ही पुरुष महिलाओं को छेड़ते हैं और वही पुरुष ऐसा करते हैं जिनमें स्वाभिमान/आत्मसम्मान की कमी होती है.” डॉ. शेट्टी छेड़खानी के बढ़ते मामलों के लिए हिंदी फ़िल्मों को भी ज़िम्मेदार मानते हैं, क्योंकि इनमें छेड़खानी को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है.
आख़िर क्यों सहती हैं महिलाएं?
छेड़छाड़ के अधिकतर मामले दर्ज क्यों नहीं होते? इस बारे में एडवोकेट अमोल सुपारे कहते हैं, “ज़्यादातर मामलों में महिलाएं ख़ुद ही इसे नज़रअंदाज़ कर देती हैं. उनका छोड़ ना यार, ये तो रोज़ ही होता है वाला रवैया उन्हें इसके ख़िलाफ़ क़दम उठाने से रोकता है. कोई महिला यदि पुलिस के पास शिकायत करने जाती भी है, तो शिकायत दर्ज करने के पहले पुलिस उससे बेकार के इतने सवाल करने लगती है कि वो दुबारा छेड़छाड़ तो सह लेती है, लेकिन पुलिस में रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती.” अमोल कहते हैं, “आज की मॉडर्न महिलाओं को लगता है कि छेड़छाड़ उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है. आज इसने छेड़खानी की है, तो कल कोई और करेगा. इसी सोच की वजह से वो इस गंभीर सामाजिक समस्या को हल्के में लेती हैं.”
ज़रूरी है जवाब देना
एडवोकेट अमोल बताते हैं, “मेेरे ऑफ़िस में काम करने वाली एक ट्रेनी वकील ने मुझे बताया कि वो जब भी ऑफ़िस से घर के लिए निकलती है, तो रास्ते में फूड कॉर्नर का एक वेटर डेली उसे एक्सक्यूज़ मी बोलता है. वो समझ नहीं पाती है कि वो ऐसा क्यों करता है? उसे इस पर कैसे रिएक्ट करना चाहिए? एक दिन उसने मुझसे इस बारे में पूछा, तो मैंने सलाह दी कि जब वो एक्सक्यूज़ मी बोले, तो तुम वहीं रुक जाओ और मैनेजर से उसकी शिकायत करो. लड़की ने ऐसा ही किया और उस दिन के बाद से वो वेटर दुबारा उसके सामने नहीं आया. महिलाएं यदि ख़ुद पहल करें, तो कुछ हद तक वे छेड़छाड़ से होने वाली मानसिक प्रताड़ना से बच सकती हैं.”
26 वर्षीया काजल अपना अनुभव बताते हुए कहती हैं, “एक बार रास्ते में एक आदमी मुझे धक्का मारकर ऐसे आगे बढ़ गया जैसे उसे कुछ पता ही नहीं चला, लेकिन जैसे ही वो आगे बढ़ा मैंने पलटकर उसकी गर्दन पर ज़ोर का थप्पड़ जड़ दिया.” कॉलेज स्टूडेंट सोनी ने भी कुछ ऐसा ही किया. सोनी ने हमें बताया, “कॉलेज जाते समय 2-3 दिन तक एक आदमी लगातार गेट तक मेरा पीछा करता था. अगले दिन जब वो मेरे पीछे आया तो मैंने उससे पूछा कि तुम रोज़ मेरे पीछे क्यों आते हो? मेरे सवाल करने पर वो हकलाने लगा और इधर-उधर की बेकार की बहस करने लगा. तब मैंने उसे एक थप्पड़ लगा दिया. उस दिन के बाद से वो शख़्स मुझे दुबारा नहीं दिखा.”
इन लड़कियों का ये कहना है कि अगर कोई आपके साथ बदतमीज़ी करता है, तो तुंरत उसका विरोध करें, वरना इस तरह के मामले बढ़ते ही रहेंगे.
सच तो ये है कि महिलाएं यदि ख़ुद पहल करें और छेड़खानी का विरोध करने लगें, तो निश्चय ही सड़कछाप मजनुओं की हिम्मत घटेगी. अगर वो बिना डर के अपने साथ बदतमीज़ी करने वालों को पलटकर जवाब देने लगें, जैसा कि इन लड़कियों ने किया, तो दुबारा कोई मनचला उन्हें छेड़ने से पहले सौ बार सोचेगा ज़रूर.
महिलाओं पर असर
जानकारों का मानना है कि छेड़छाड़ बहुत ही गंभीर मसला है. साइकोलॉजिस्ट डॉ. हरीश शेट्टी कहते हैं, “कई महिलाएं/लड़कियां छेड़छाड़ की घटना को सहन नहीं कर पातीं और डिप्रेशन में चली जाती हैं. कई बार पीड़ित महिलाएं अपने साथ हुए वाक़ये को भूल नहीं पातीं और बार-बार वही दृश्य उनकी आंखों के सामने आता रहता है, जिससे उनका डिप्रेशन बढ़ जाता है और कई बार ये आत्महत्या का कारण भी बन जाता है.” एक केस का ज़िक्र करते हुए डॉ. शेट्टी बताते हैं, “12वीं में पढ़ने वाली एक लड़की को रोज़ाना छात्रों का एक ग्रुप छेड़ता था. इसघटना से लड़की इतनी डर गई कि वो न स़िर्फ कॉलेज जाने से, बल्कि घर से बाहर निकलने से भी डरने लगी. उसे लगने लगा कि हर कोई उसे छेड़ता रहता है. उसके दिलो-दिमाग़ पर डर इस कदर हावी हो गया कि उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जहां दवाइयों के साथ ही उसकी काउंसलिंग भी की गई.” इस तरह के वाक़ये से छेड़छाड़ के मामलों की गंभीरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, लेकिन ये बहुत दुख की बात है कि हमारे देश में इसके लिए कोई मज़बूत क़ानून नहीं है और जो क़ानून है वो बेहद पुराना व लचर है, जिसमें संशोधन की ज़रूरत है.
आकड़ों के मुताबिक, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने वालों में 35% असामाजिक तत्व, 32% छात्र और 33% संख्या अधेड़ उम्र वालों की होती है यानी छेड़छाड़ करने वालों की कोई निश्चित उम्र नहीं होती.
नहीं जानते बात करने का तरीक़ा
साइकोलॉजिस्ट डॉ. हरीश शेट्टी कहते हैं, “पुरुषों को महिलाओं से बात करने का तरीक़ा नहीं पता होता, वे ख़ुद को महिलाओं से पावरफुल समझते हैं, इसलिए उन्हें नीचा दिखाने के लिए छेड़छाड़ करते हैं. जो पुरुष अपनी सेक्सुआलिटी (कामवासना) को एक्सप्रेस नहीं कर पाते, वही महिलाओं को ग़लत तरी़के से छूते व उन्हें छेड़ने के लिए अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.”
छेड़छाड़ से संबंधित क़ानून
क्या है स्टॉकिंग?
एडवोकेट अमोल कहते हैं, “छेड़छाड़ की तरह ही स्टॉकिंग (छुपकर नज़र रखना) भी एक गंभीर मसला है. स्टॉकिंग यानी किसी महिला को नुक़सान पहुंचाने के इरादे से चोरी-छिपे उसे फॉलो करना/उस पर नज़र रखना. ऐसे में महिलाओं को ये तो पता होता है कि कोई रोज़ उनका पीछा कर रहा है और उन पर नज़र रखे हुए है, लेकिन सामने वाला व्यक्ति न तो कुछ करता है और न ही कहता है. ऐसे में महिला उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं उठा सकती, क्योंकि हमारे क़ानून में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है. स्टॉकिंग भी महिलाओं की निजता को भंग करता है, इससे उनके मन में यह डर बैठ जाता है कि कल कुछ हो न जाए, ये डर उन्हें आज़ादी से जीने नहीं देता.”
– कंचन सिंह
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