Jeene ki kala (Motivational Stories)

क्या आप इमोशनली इंटेलिजेंट हैं? (How Emotionally Intelligent Are You?)

आपके साथ भी ऐसा कई बार हुआ होगा जब आपने जाने-अनजाने अपने पैरेंट्स, पार्टनर या क़रीबी दोस्तों का दिल दुखाया होगा. उस समय ग़ुस्से में आपने उन्हें भला-बुरा कह तो दिया होगा, लेकिन बाद में पछताए होंगे कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था. क्या आप अपने ऐसे व्यवहार या हरक़तों को बदल सकते हैं? बेशक, आप अपने दिमाग़ को अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सिखा सकते हैं, ताकि आगे से आपकी ज़ुबान से ऐसा कोई वाक्य न निकले, जिसके लिए आपको बाद में पछताना पड़े. हां, इसके लिए आपको थोड़ी प्रैक्टिस ज़रूर करनी पड़ेगी.

तलाशें नए रंग
रोज़ सुबह ये कल्पना करें कि आपका मन एक कोरी क़िताब है, जिस पर आपको स़िर्फ अच्छी बातें लिखनी हैं. अपनी कल्पनाओं के रंग भरने हैं. अब तक आपने या दूसरों ने जो भी बुरी बातें कहीं या सुनी, उन्हें आप अपने मन की क़िताब से मिटा देंगे और उनकी जगह ढेर सारी नई, अनोखी, दिलचस्प बातें लिखेंगे. यक़ीन मानिए, आपके ये पॉज़िटिव विचार आपके व्यवहार में भी झलकने लगेंगे. ऐसे में यदि कोई आपके सामने बुरा व्यवहार करता भी है, तो आप उसे अपने मन तक पहुंचने नहीं देंगे और हमेशा ख़ुश व एनर्जेटिक महसूस करेंगे.

कह दें मन की बात
जो लोग बीती बातों का बोझ मन में लिए फिरते हैं, उनके लिए मन को साफ़ रखना आसान नहीं होता. अतः किसी से भी कोई शिकवा-गिला हो तो उसे बातचीत द्वारा सुलझा लें, ताकि आपके मन में कोई ऐसी बात न रह जाए, जिसे आप कह न पाए हों, क्योंकि मन की कड़ुवाहट ही कई बार जाने-अनजाने ज़ुबान से आ जाती है. वैसे भी कह देने से मन हल्का हो जाता है.

यह भी पढ़ें: हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं!

 

जब आए ग़ुस्सा
शॉपिंग करते समय यदि बच्चे ग़ैर ज़रूरी चीज़ के लिए ज़िद करने लगें, पति महोदय हमेशा की तरह बच्चे के स्कूल की पैंरेट्स टीचर्स मीटिंग में जाने से इनकार कर दें या फिर ऑफ़िस से थक कर आने पर सासू मां घर के कामों की लंबी लिस्ट थमा दें, तो आपको ग़ुस्सा आना लाज़मी है. ऐसी स्थिति में भी अपने ग़ुस्से पर कंट्रोल रख पाना ही इमोशनली इंटेलिजेंट होना है. आप अपनी भावनाओं पर जितना कंट्रोल रख पाएंगी, विपरीत स्थितियों से उतनी ही आसानी से निकल पाएंगी.

समाधान आसान है
ग़ुस्सा करने से पहले सोचें कि क्या इस स्थिति में आपका ग़ुस्सा करना वाजिब है? क्या आपके ग़ुस्सा करने से स्थिति सुधर जाएगी? ग़ुस्सा करने के अलावा आपके पास और क्या विकल्प है? हो सकता है, पति के साथ प्यार से बातचीत करके आप उन्हें अगली बार बच्चे की पैंरेट्स टीचर्स मीटिंग में जाने के लिए तैयार कर दें. इसी तरह सास व बच्चों को भी प्यार से अपने मन की बात समझा सकें.

हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है.
– स्वामी विवेकानंद

यह भी पढ़ें: इसलिए सिखाएं बच्चों को हेल्दी कॉम्पटीशन
Kamla Badoni

Share
Published by
Kamla Badoni

Recent Posts

रिश्तों में क्यों बढ़ रहा है इमोशनल एब्यूज़? (Why is emotional abuse increasing in relationships?)

रिश्ते चाहे जन्म के हों या हमारे द्वारा बनाए गए, उनका मक़सद तो यही होता…

July 3, 2025

कहानी- वो लड़की कम हंसती है… (Short Story- Who Ladki Kam Hasti Hai…)

नेहा शर्मा “सब मुस्कुराते हैं, कोई खुल कर तो कोई चुपचाप और चुपचाप वाली मुस्कुराहट…

July 3, 2025
© Merisaheli