एक व्यापारी पांच ऊंटों पर समान लाद कर एक लम्बे सफ़र पर निकला था. राह में एक सराय में रुका, तो उसने पाया कि वह ग़लती से ऊंटों को बांधने के लिए एक रस्सी और खूंटा कम लाया है, मतलब उसके पास चार रस्सी और चार ही खूंटे हैं. ऊंट को रातभर के लिए खुला भी नहीं छोड़ा जा सकता था.
उसने सराय के मालिक से पूछा, तो उसके पास भी नहीं थे, पर उसने एक उपाय सुझाया. उसने व्यापारी से कहा, “तुम ऊंट के गले में रस्सी बांधने और फिर धरती में खूंटा ठोक कर रस्सी बांधने का अभिनय करो.”
व्यापारी ने खाली हाथ पहले ऊंट के गले में रस्सी लपेटने और उसमें गांठ लगाने एवं फिर धरती में खूंटा ठोक कर उसे बांधने का नाटक किया.
और ऊंट शान्ति से बैठ गया. उसने मान लिया कि वह बंधा हुआ है.
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सुबह फिर वही हुआ. बंधे हुए ऊंटों को खोला, तो वह उठ खड़े हुए, पर आख़िरी ऊंट को उठाने की कोशिश करने पर भी नहीं उठा, जब तक फिर उसे खोलने का पूरा नाटक दोहराया नहीं गया.
कुछ ऐसा ही करते हैं हम भी. किन्हीं काल्पनिक रस्सियों से बंधे रहते हैं और सोच लेते हैं कि यह करना, तो मेरे बस का है ही नहीं, तो फिर प्रयत्न ही क्या करना!
तो सबसे पहले तो इसी बात को गांठ बांध लें कि हमारी सोच का हमारी मानसिकता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. उस में बहुत ताक़त है.
अत: अपनी सोच को सदा सकारात्मक रखें. यह मान कर कभी न बैठ जाएं कि यह काम मेरे बस का नहीं है.
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