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बेटी की शादी का ख़र्च बड़ा हो या पढ़ाई का? (Invest More In Your Daughter’s Education Rather Than Her Wedding)

हमारे देश में आज भी बेटी की पढ़ाई (Daughter’s Education) से ज़्यादा उसकी शादी (Wedding) पर ख़र्च किया जाता है. यदि पढ़ाई और शादी में से कोई एक विकल्प चुनना हो, तो अधिकतर माता-पिता बेटी की शादी के ख़र्च को प्राथमिकता देते हैं. क्या ऐसा करना उचित है? क्या बेटी की शादी का ख़र्च उसकी पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी है?

हमारे देश में बेटी के जन्म पर आज भी चेहरे मुरझा जाते हैं और जन्म के साथ ही बेटी के भविष्य की नहीं, उसकी अच्छे घर में शादी की चिंता माता-पिता के चेहरे पर दिखाई देने लगती है. जन्म लेते ही बेटी को पराया धन मान लिया जाता है और पराया धन समझकर ही उसकी परवरिश की जाती है.

ये है सोच का असर

सदियों से हम ये बातें सुनते आ रहे हैं कि बेटियां तो पराया धन हैं, शादी के बाद इन्हें दूसरे घर जाना है… बेटियों को पढ़ाकर क्या होगा, ज़्यादा पढ़ लेंगी तो शादी में और दिक्कत होगी, लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा… बेटियों को घर के कामकाज सिखाओ, तभी ससुराल में सबका दिल जीत पाएंगी… बेटियों के भविष्य की रूपरेखा आज भी इतना डर-सहमकर तैयार की जाती है कि एक इंच भी इधर-उधर सोचने से माता-पिता घबरा जाते हैं. बेटी को जैसे-तैसे पाल-पोषकर उसके ससुराल पहुंचा देने के बाद ही माता-पिता राहत की सांस ले पाते हैं, तब तक उन पर समाज और रिश्तेदारों का इतना दबाव बना रहता है कि वे अपनी और बेटी की इच्छाओं के बारे में कुछ सोच ही नहीं पाते.

दहेज है सबसे बड़ा कारण

बैंक कर्मचारी अंजलि गुप्ता कहती हैं, “दरअसल,  माता-पिता पर बेटियों की शादी पर होने वाले खर्च का दबाव दहेज के कारण आता है. न चाहते हुए भी मजबूरन माता-पिता को अपनी हैसियत से बढ़कर बेटी की शादी में ख़र्च करना पड़ता है, जिसके कारण वो अपनी कई ज़रूरतों में कटौती करते हैं, कर्ज़ लेते हैं. ऐसे में बेटी की पढ़ाई और करियर प्रभावित होना स्वाभाविक है. बेटी जितना ज़्यादा पढ़ेगी, उतना ज़्यादा पढ़ा-लिखा लड़का उसके लिए ढूंढ़ना पड़ता है और जितना काबिल लड़का, उतना ज़्यादा दहेज… इस डर से बेटियों के माता-पिता उन्हें ज़्यादा पढ़ाने से भी डरते हैं. बेटी की शादी की चिंता उसके अभिभावकों को इतनी ज़्यादा होती है कि उसकी तैयारी में वे अपनी बेटी के हुनर, उसकी काबीलियत पर भी ध्यान नहीं दे पाते. सख़्त क़ानून बन जाने के बाद भी दहेज के लेन-देन का सिलसिला बदस्तूर जारी है. जब तक दहेज का लेन-देन बंद नहीं होगा, तब तक बेटियों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता.”

कहां है औरत का घर?

स्कूल टीचर रितु सोनी कहती हैं, “मेरी सास अक्सर मेरे बेटे और बेटी में भेदभाव करती हैं. बात-बात पर बेटी को ये एहसास दिलाती हैं कि ये उसका घर नहीं है. मेरी 8 साल की बेटी जब अपनी सहेलियों से कहती है कि आज हम सब हमारे घर में खेलेंगे, तो मेरी सास फ़ौरन उसे टोक देती है कि ये तेरा घर नहीं, तेरे भैया का घर है. तेरा घर तो न जाने कहां होगा. मेरी सास की ऐसी बातों से मेरी बेटी बहुत चिढ़ जाती है. वो बार-बार मुझसे ये सवाल करती है कि मां, क्या ये सच में मेरा घर नहीं है. उसके मासूम सवाल सुनकर मैं अक्सर सोचती हूं कि आख़िर कहां है औरत का घर? मायकेवाले कहते हैं कि अपने शौक़ अपने घर (ससुराल) जाकर पूरे करना और ससुरालवाले कहते हैं कि अपने घर में ठाठ कर लिए, अब ससुराल की ज़िम्मेदारियां संभालो… तो कहां है औरत का घर, कौन समझता है उसकी भावनाओं को, उसकी पीड़ा को..? हम कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें कर लें, लेकिन लोगों की सोच बदलने में अभी भी बहुत व़क्त लगेगा. बेटियों की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी नहीं है. आज भी सब को जैसे-तैसे बेटियों को ससुराल भेज देने की जल्दी रहती है, उसके भविष्य, उसकी इच्छाओं-आकांक्षाओं के बारे में कोई नहीं सोचता. बेटी की शादी में भले ही कर्ज़ लेकर ख़र्च कर लेंगे, लेकिन उसकी पढ़ाई या करियर पर कोई ख़र्च नहीं करना चाहता.”

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शुरुआत घर से होनी चाहिए

मीडिया प्रोफेशनल समीक्षा भट्ट कहती हैं, “मेरी बेटी पढ़ाई में मेरे बेटे से बहुत अच्छी है. वो हमेशा क्लास में अव्वल आती है. फिर जब उसने आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का ़फैसला किया, तो घर में बहस छिड़ गई. मेरे सास-ससुर का कहना था कि इसकी पढ़ाई पर इतने पैसे फूंक देंगे, तो शादी का ख़र्च कहां से लाएंगे. मेरे पति भी उसे पढ़ाई के लिए विदेश भेजने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन मैंने और मेरे बेटे ने ज़िद पकड़ ली. मुझे बहुत अच्छा लगा जब मेरे बेटे ने अपनी बहन के लिए घर में आवाज़ उठाई और ये माना कि उसकी बहन उससे ज़्यादा काबिल है, इसलिए उसे विदेश जाकर पढ़ाई करने का पूरा हक़ है. मेरे ख़्याल से यदि हम अपने बच्चों को घर में सही माहौल दें और बेटा-बेटी में कोई फ़र्क़ न करें, तो बेटियों के लिए आगे बढ़ने के रास्ते बेहद आसान हो जाएंगे. आज मेरी बेटी इतनी सक्षम है कि अपने साथ-साथ अपने भाई के भविष्य के ़फैसले भी ख़ुद लेती है और उसका भाई हर समय उसके साथ खड़ा रहता है.”

एक पहल ऐसी

प्रोफेसर डॉ. रागिनी सिंह अपने कॉलेज की हिंदी डिपार्टमेंट की हेड हैं. पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहीं और आज अपनी मेहनत से इस मुक़ाम पर हैं. जब घर में उनकी शादी की बात चलने लगी, तो लड़केवालों की तरफ़ से दहेज की लंबी-चौड़ी फ़रमाइश भी आने लगी. ऐसे में रागिनी ने एक ़फैसला किया, उन्होंने घर में साफ़ कह दिया कि वो उसी लड़के से शादी करेंगी, जो दहेज नहीं लेगा. शादी में देरी ज़रूर हुई, लेकिन आज रागिनी की शादी एक ऐसे लड़के से हुई है, जो न स़िर्फ उन्हें समझता है, बल्कि उनके प्रोफेशन की भी इज़्ज़त करता है. रागिनी और उसके परिवार की तरह ही लोगों को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है. बेटी की शादी करने से पहले उसे इतना काबिल बना दें कि वो अपनी एक अलग पहचान बना सके, अपनी ज़िंदगी के फैसले ख़ुद ले सके.

ये बदलाव ज़रूरी है 

आज भी कई घरों में बेटियों को बात-बात पर ये एहसास दिलाया जाता है कि वो बेटों से कम हैं. उनके हंसने-बोलने, उठने-बैठने के लिए अलग नियम बनाए जाते हैं. उन्हें ये बताया जाता है कि वो लड़कों से कमज़ोर हैं, इसलिए उन्हें हर बात चुपचाप सहन कर लेनी चाहिए. ऐसे माहौल में बेटियों का आत्मविश्‍वास कमज़ोर हो जाता है और वो ये मानने लग जाती हैं कि वो वाकई कमज़ोर हैं. ऐसे में जब उनके साथ कोई अन्याय या अत्याचार होता है, तो लड़कियां अपने ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठा पातीं. वहीं घर के लड़के ये मान लेते हैं कि घर के सर्वेसर्वा वही हैं, घर के हर ़फैसले उनके अनुरूप ही होंगे. ऐसे में वो महिलाओं का सम्मान नहीं करते और घर के बाहर भी महिलाओं के साथ बदसलूकी करते हैं. महिलाओं के सम्मान और उनकी स्थिति में सुधार की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए. सरकार बेटियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए सुकन्या समृद्धि योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी कई मुहिम चला रही है, लेकिन इसकी शुरुआत जब तक घर से नहीं होगी, तब तक कुछ नहीं हो सकता. यदि आप अपने बेटे और बेटी को एक जैसी परवरिश देते हैं, उनमें कोई भेदभाव नहीं करते, तो बेटियों की स्थिति में अपने आप सुधार आ जाएगा. फिर आपको बेटी की शादी के ख़र्च की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं होगी, क्योंकि आपकी आत्मनिर्भर, सक्षम बेटी अपनी ज़िंदगी की राह ख़ुद बना लेगी, वो भी अपने दम पर.

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क्या कहते हैं आंकड़े?

* पिछले 3 सालों में दहेज के कारण 24, 771 महिलाओं की मौत हुई है और 8 लाख से भी ज़्यादा मामले धारा 304 बी यानी डाउरी डेथ के तहत दर्ज हुए हैं.

* दहेज़ के कारण हुई मौतों में सबसे आगे है उत्तर प्रदेश, फिर बिहार और फिर मध्यप्रदेश.

* नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक़ 3. 48 लाख मामले पति और उनके परिवार द्वारा घरेलू हिंसा के दर्ज हुए हैं.

* भारत में हर तीन लड़की में से एक की शादी 18 साल की उम्र से पहले करवा दी जाती है.

* एक सर्वे के मुताबिक़ 41% लड़कियां 19 की उम्र पार करते-करते किसी न किसी अत्याचार या घरेलू हिंसा का शिकार हो जाती हैं.

शादी का ख़र्च स्टेटस सिंबल है

हमारे देश में शादियों पर पानी की तरह पैसा बहाया जाता है. लोग शादी के ख़र्च को अपने स्टेटस से जोड़कर देखते हैं. इसीलिए कई लोग कर्ज़ लेकर भी शादी पर ख़र्च करते हैं. उस पर यदि बेटी की शादी हो, तो दहेज का ख़र्च और बढ़ जाता है. ससुरालवालों की फरमाइश और दहेज की लिस्ट इतनी लंबी होती है कि उन्हें पूरा करते-करते लड़कीवालों की कमर टूट जाती है. बेटी चाहे कितनी ही काबिल क्यों न हो, फिर भी उसके माता-पिता को उसकी शादी में दहेज देना ही पड़ता है.

– कमला बडोनी

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Usha Gupta

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