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कहानी- फंस गया शेर (Kids Story- Phanas Gaya Sher)


‘‘रैंचो भाई, ऐसे कुछ नहीं होगा. आप दूर से दौड़ कर आइए और पीछे से ठोकर मारिए धांय से महाराज बाहर निकल जाएंगे सांय से.” चिम्पू ने राय दी.
‘‘ओय चिम्पू, चुप कर. अगर रैंचो ने ठोकर मार दी, तो मैं बाहर निकलूं या न निकलूं, लेकिन मेरी हड्डियों का कचमूर ज़रूर निकल जाएगा.” शेर ने ज़ोर से डपटा.

चिम्पू बंदर कुछ दिनों पहले ही सर्कस से भाग कर जंगल वापस आया था. एक दिन महाराज शेर सिंह घूमने निकले, तो रास्ते में चिम्पू मिल गया. उन्होंने पूछा, ‘‘चिम्पू, मैंने सुना है सर्कस में जानवरों से तरह-तरह के करतब करवाए जाते हैं. क्या तुमने कोई करतब नहीं सीखा?’’ 
‘‘महाराज, मैने आग के गोले से छलांग लगाना सीखा‌ है.” चिम्पू ने बताया.
‘‘आग के गोले से छलांग? यह तो बहुत ख़तरनाक होता होगा.” शेर ने कहा.
‘‘नहीं महाराज, यह बहुत आसान है.” चिम्पू ने हंसते हुए इधर-उधर देखा. थोड़ी दूरी पर एक पुराना पेड़ खड़ा था. उसका तना सूख गया था, जिससे उसमें बड़ा सा छेद हो गया था. उसने कहा, ‘‘महाराज, उस पेड़ का छेद देख रहे हैं?’’
‘‘हां ’’
‘‘आग के गोले में इसी तरह का बड़ा सा छेद होता है. हम लोग दौड़ते हुए आते हैं और फटाक से इधर से उधर कूद जाते हैं.” चिम्पू ने छलांग लगाई और हवा में उड़ता हुआ सर्र से उस छेद से इधर से उधर निकल गया.

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‘‘देखा महाराज, कितना आसान है.” चिम्पू ने हंसते हुए दोबारा छलांग लगाई और छेद से होता हुआ वापस इधर आ गया.
‘‘अरे वाह, यह तो बहुत मज़ेदार है,’’ शेर हंस पड़ा.
‘‘हां महाराज, मज़ेदार भी है और आसान भी. आप भी चाहें, तो इधर से उधर कूद सकते हैं.
‘‘मैं… मैं इधर से उधर जा सकता हूं?’’
‘‘क्यों नहीं महाराज, आपके मुक़ाबले की छलांग तो पूरे जंगल में कोई नहीं लगा सकता. पलक झपकते आप इधर से उधर होंगे.”
शेर को यह खेल बहुत मज़ेदार लगा. उसने भी चिम्पू की तरह छलांग लगा दी. उसका निशाना तो बिल्कुल ठीक था,‌ मगर एक गड़बड़ हो गई. पेड़ में बना वह छेद छोटा था. उससे चिम्पू तो इधर से उधर निकल गया था, लेकिन शेर के शरीर का अगला हिस्सा, जो पतला था उस पार निकल गया, लेकिन पिछला हिस्सा जो मोटा था पेड़ में फंस गया.
‘‘आह चिम्पू, मुझे बाहर निकालो. बहुत दर्द हो रहा है.” शेर चिल्लाने लगा.
शेर की हालत देख चिम्पू की भी हालत ख़राब हो गई, लेकिन अपने डर को काबू में करते हुए उसने समझाया, ‘‘महाराज, घबराइए नहीं. थोड़ा सा ज़ोर लगाइए, तो बाहर निकल आएंगे.”
शेर ने पूरा ज़ोर लगाया, लेकिन कोई नतीज़ा नहीं निकला. उल्टा वह जितना ज़ोर लगाता उतना उस छेद में फंसता जाता. अब न तो वह आगे बढ़ पा रहा था, न पीछे लौट पा रहा था.
‘‘चिम्पू, जल्दी से कोई तरकीब लगाओ, वरना अगर लोग देख लेगें कि राजा पेड़ में फंसा है, तो बहुत हंसेंगे.” शेर ने कहा.
‘‘महाराज, मैं जंबो हाथी को बुला लाता हूं. वह ही आपको इससे बाहर निकाल पाएगा.”
‘‘ठीक है जल्दी बुलाओ उसे.”
चिम्पू दौड़ कर जंबो को बुला लाया. उसने शेर की हालत देखी फिर बोला, ‘‘महाराज, घबराइए मत मैं अपनी सूंढ़ से पकड़ कर अभी आपको बाहर खींच देता हूं.”
जंबो अपनी सूंढ़ में शेर की गर्दन को खींचने जा ही रहा था कि वह चिल्लाने लगा, ‘‘रूक जाओ जंबो. रूक जाओ. अगर तुम इस तरह खींचोंगे तो मेरी तो गर्दन ही टूट जाएगी.”
‘‘हां महाराज, यह तो मैने सोचा ही नहीं था, लेकिन और कोई तरीक़ा मेरी समझ में नहीं आ रहा.” जंबो ने मजबूरी बताई.
‘‘महाराज, मैं रैंचो गैंडे को बुला लाऊं. वह बहुत ताकतवर है, आपको ज़रूर बाहर निकाल देगा.” चिम्पू ने कहा.
‘‘दर्द के मारे मेरी जान निकली जा रही है. जल्दी से बुलाओ रैंचो को.” शेर कराहते हुए बोला.


चिम्पू उछलता हुआ वहां से भाग लिया और थोड़ी ही देर में रैंचो को ले आया.
रैंचो ने शेर को देखा फिर बोला, ‘‘महाराज, चिंता मत करिए. मैं आ गया हूं अब सब ठीक हो जाएगा.”
इतना कह उसने अपना सिर पीछे लगा कर शेर को धक्का दिया, मगर शेर टस से मस भी नहीं हो पाया.
‘‘रैंचो भाई, ऐसे कुछ नहीं होगा. आप दूर से दौड़ कर आइए और पीछे से ठोकर मारिए धांय से महाराज बाहर निकल जाएंगे सांय से.” चिम्पू ने राय दी.
‘‘ओय चिम्पू, चुप कर. अगर रैंचो ने ठोकर मार दी, तो मैं बाहर निकलूं या न निकलूं, लेकिन मेरी हड्डियों का कचमूर ज़रूर निकल जाएगा.” शेर ने ज़ोर से डपटा.
चिम्पू सिटपिटा कर चुप हो गया, फिर कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘मैं लंबू ऊंट को बुला लाता हूं. वो ज़रूर कोई न कोई तरकीब निकाल लेगा.”
‘‘जिसको बुलाना हो बुला, मगर मुझे जल्दी से बाहर निकाल. इसमें फंसे-फंसे मेरा दम घुट रहा है.” शेर छटपटाते हुए बोला.
चिम्पू दौड़ कर लंबू को बुला लाया. लंबू ने पेड़ के चार-पांच चक्कर काटे, फिर अपनी गर्दन झुका कर बहुत गौर से कुछ देखने लगा.
‘‘आप इस तरह क्या देख रहे हैं?’’‌ शेर ने पूछा.
‘‘मैं देख रहा हूं आपका शरीर आगे से तो पतला है, लेकिन पीछे से कुछ मोटा है.” लंबू ने कहा.
‘‘अरे, इसीलिए तो इसमें फंस गया हूं. आप इससे बाहर निकालने की कोई तरकीब बताइए.” शेर झल्ला उठा.
‘‘महाराज, आप अनुलोम-विलोम प्राणायाम करिए. सुना है उससे चर्बी छंट जाती है और शरीर पतला हो जाता है. उसके बाद आप आराम से बाहर निकल आएंगे.” लंबू ने राय दी.
“महीना भर अनुलोम-विलोम करूंगा, तब कहीं जाकर कुछ पतला हो पाऊंगा. आप क्या चाहते हैं मैं तब तक इसी पेड़ में क़ैद रहूं?’’ शेर ने उखड़ते हुए कहा.
लंबू भी सिटपिटा कर चुप हो गया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. इस बीच कई जानवरों के साथ गप्पू गधा भी वहां आ गया था. उसने कहा, ‘‘आप लोग घबराइए मत. मैंने महाराज को बाहर निकालने की आसान तरकीब सोच ली है.”
‘‘कैसी तरकीब?’’
‘‘अभी बताता हूं.” गप्पू ने कहा और ढेंचू-ढेंचू करता वहां से भाग लिया.
थोड़ी देर में वह वापस आया, तो उसके हाथ में जलती हुई मशाल थी. उसे देख जंबो हाथी ने पूछा, ‘‘ऐ गप्पू, तू क्या करने जा रहा है?’’
‘‘मैं इस पेड़ में आग लगाने जा रहा हूं. उसकी लकड़ी जलेगी झर्र-झर्र और आप बाहर निकल आएंगे सर्र सरर्र.”
‘‘अरे मूर्ख, लकड़ी के साथ महाराज भी जल जाएंगें या नहीं?’’ जंबो ने डपटा तो गप्पू सिटपिटा कर चुप हो गया.

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धीरे-धीरे काफ़ी देर हो गई, लेकिन किसी को शेर को इस मुसीबत से बाहर निकालने की तरकीब समझ में नहीं आ रही थी. तभी भालू दादा वहां आए. पूरी बात सुन वह बोले, ‘‘महाराज, चिम्पू तो है ही शरारती, लेकिन आपको उसकी नकल करने की क्या ज़रूरत पड़ गई थी?’’
‘‘मुझसे ग़लती हो गई, लेकिन अब किसी तरह मुझे इस मुसीबत से बाहर निकालिए.” शेर ने विनती की.
भालू दादा ने अपनी आंखें बंद करके कुछ सोचा फिर चिम्पू की ओर देखते हुए बोले, ‘‘महाराज को इस मुसीबत में तुमने फंसाया है, इसलिए अब तुम ही उन्हें बाहर भी निकालोगे.”
‘‘जब बड़े-बड़े हाथी, गेंडा और ऊंट महाराज को बाहर नहीं निकाल पाए, तो मैं भला कैसे निकाल सकता हूं.”
‘‘इधर आओ. मैं तरकीब बताता हूं.” चिम्पू क़रीब आया, तो भालू दादा उसके कान में कुछ बताने लगे.
‘‘नहीं… नहीं… मैं यह सब नहीं कर सकता. महाराज ग़ुस्सा हो गए, तो आफत आ जाएगी.” चिम्पू घबरा उठा.
‘‘घबरा मत. मैं हूं . कुछ नहीं होगा.” भालू दादा ने चिम्पू की पीठ थपथपाई फिर उसे आगे बढ़ने का इशारा किया.
मरता क्या न करता. चिम्पू डरते-डरते महाराज की ओर बढ़ा.
‘‘भालू दादा ने तुम्हें क्या समझाया है?’’ शेर ने पूछा. पहले की सभी तरकीबें गड़बड़ साबित हुई थीं, इसलिए इस तरकीब को भी समझना ज़रूरी था.
‘‘उन्होंने तो कुछ ख़ास नहीं बताया, लेकिन मैं अब कुछ करना चाहता हूं ’’ चिम्पू तेजी से शेर की ओर लपका.
इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता उसने अपना हाथ बढ़ा कर शेर के पेट में गुदगुदी करने लगा.
‘‘चिम्पू, यह क्या बदतमीजी है ?’’ शेर ग़ुस्से से दहाड़ा.
‘‘यह बदतमीजी नहीं आपका इलाज है.” चिम्पू अपने दोनों हाथों से शेर के पेट में गुदगुदी करने लगा.
‘‘चिम्पू अपना हाथ हटा बहुत गुदगुदी हो रही है.” शेर उछलने-कूदने लगा.
‘‘नहीं हटाऊंगा… नहीं हटाऊंगा…’’ चिम्पू शेर के नीचे घुस गया और पूरी ताकत से उनके पेट में गुदगुदी करने लगा.
अब तो हंसते-हंसते शेर की हालत ख़राब हो गई. वो हंसता जा रहा था और उछलता जा रहा था. हंसते-उछलते वो कब छेद से बाहर निकल आया पता ही नहीं चला.
‘‘चिम्पू, तुमने राजा के पेट में गुदगुदी करने की गुस्ताखी की है. इसका अंजाम जानते हो?’’ शेर ने चिम्पू को घूरते हुए कहा.
‘‘महाराज, आपको बाहर निकालने के लिए इसके अलावा और कोई तरकीब न थी. अब आप जो सज़ा देना चाहें मुझे कबूल है.” चिम्पू हाथ जोड़ते हुए बोला.
‘‘हूं, सज़ा तो तुम्हें ज़रूर मिलेगी.” शेर सिंह के माथे की सिलवटें कुछ गहरी हो गईं और वह चिम्पू को घूरते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी सज़ा यह है कि तुम सर्कस से जितने भी करतब सीख कर आए हो आज वो सबको दिखाओगे.”
यह सुनते ही चिम्पू ने एक छलांग लगाई और जंबो की पीठ पर सवार होते हुए बोला, ‘‘महाराज, सर्कस में मैंने सबसे पहला करतब हाथी की सवारी करने का सीखा था.”
इतना कह कर उसने हवा में एक कलाबाजी खाई फिर जंबो की पीठ थपथपाते हुए बोला, ‘‘चल.. चल.. चल मेरे हाथी… ओ मेरे साथी… चल ले चल चिम्पू को खींच कर. चल यार…. धक्का मार… तुझ पे है चिम्पू सवार…’’
‘‘हा… हा… हा… चिम्पू तेरे ऊपर ग़ुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन तूने हंसाया भी ख़ूब.” शेर ने ठहाका लगाया, तो सभी ठहाका मार कर हंसने लगे.

संजीव जायसवाल ‘संजय




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Photo Courtesy: Freepik


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Usha Gupta

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