कुछ सवाल बहुत छोटी उम्र लेकर आते हैं और बस फिर अचानक ख़त्म… हां, पीछे ज़रूर छोड़ जाते हैं चंद एहसास, कुछ खट्टी-मीठी यादें और ज़ज़्बात… जबकि कुछ सवाल इतने लंबे कि आजीवन का साथ…
उस दिन मेरी अलमारी की चाबी गुम थी. बहुत ढूंढ़ा, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ. दो बजे मेरा इंटरव्यू था और मेरा सारा ज़रूरी सामान, कपड़े- सब कुछ अलमारी में बंद थे. तभी वो कमरे में आया, मेरी पड़ोसिन का भांजा… छुट्टियों में दिल्ली घूमने आया था. कभी-कभी मेरे घर भी आ धमकता. उसकी आंखों में हमेशा एक शरारत छिपी रहती थी. चाबी खोने की बात सुन बहकी-बहकी बातें करने लगा… जाने कहां खोई है शरारती चाबी? ऐेसे गुम हो गई जैसे मेले में बच्चा, जैसे व़क़्त की पुलिया पर बैठे-बैठे मालूम हो कि ज़िंदगी का कोई अहम् हिस्सा गुम हो चला है, जैसे भीड़ में कोई चेहरा फिसल गया हो.
मैंने सवाल दागा… क्यों , तुम्हारी चाबी कभी गुम नहीं हुई क्या?
…अरे, चाबी उसकी गुम होती है, जिसके पास ताला हो. ताले का रिश्ता सीधा किवाड़ों से और किवाड़ों का मकान से. जब घर ही न हो तो क्या किराए के मकान को हम घर कहें?
बाप रे… छोटी-सी चाबी का सिरा पकड़ वो इतनी लंबी यात्रा तय कर गया. लगा, उसके सवालों के जाल में कहीं उलझी तो मेरे इंटरव्यू का क्या हश्र होगा. मेरी मुश्किल जान, उसने झट से हल सुझाया… मेरे साथ पास वाले मॉल में चलो. अच्छा-सा ड्रेस ख़रीदो और फौरन इंटरव्यू के लिए निकल भागो. ज़िंदगी के मसले चुटकियों में हल करना सीखो.
बस, फिर क्या था, हम बूंदा-बांदी में भीगे, सड़कें नापी, एक बजते-बजते मेरी समस्या हल हुई. वह वापस लौट गया. मैं बहुत आगे निकल आई. जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए. सब पानी पर से तैर निकल गए. आज उसे पत्र लिखने बैठी हूं.
मेरे पहले प्यार के हमसफ़र, तुम्हारे द्वारा सुझाया गया हल जीवन के सफ़र में पतवार बना. जीवन के सफ़र में आगे बढ़ी, सफलता के कई सोपान छुए. तुम्हारी कमी खलती रही. तुम तो पैरों में यात्रा के जूते पहन, किसी अनजान शहर के वासी हुए.
चाबी की तरह तुम्हारी तलाश जारी है. मन का हर तार ल़फ़्ज़ों के जाल में उलझा है… लौटो मन के मीत… मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती…
सिसक-सिसककर पूछा
पांव के छालों ने
कितनी दूर बसा ली बस्ती
दिल में बसने वालों ने…
व़क़्त ठहर-सा गया है और मैं भी. मेरी ज़िंदगी की चाबी न जाने कहां खो गई? और मेरा सब कुछ कैद हो गया… मेरे अरमान, मेरी चाहतें, मेरी ख़ुशियां और मेरा पहला प्यार भी… उसकी आंखों की शरारत और बहकी-बहकी बातों की कशिश आज भी पहले प्यार की ख़ुशबू के एहसास को जगा जाती है…
बस, अब उसी का इंतज़ार है मुझे… मैं खिड़की से बाहर भीड़ में भी उसी चेहरे को तलाश रही हूं…
– मीरा हिंगोरानी
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