Categories: Short StoriesOthers

मेरी सहेली वीकेंड स्पेशल स्टोरीज़- कांवड़िया, दो कप चाय, एमिली (Meri Saheli Weekend Special Stories- Kanvadiya, Do Cup Chai, Emily)

1. कांवड़िया (Kanvadiya), 2. दो कप चाय (Do cup chai), 3. एमिली (Emily)

कांवड़िया

माया के कंधों का भार हल्का हो गया था, पर उसे लगा कि वसीम उसके कंधों पर आ बैठा है. लाडला-सा… प्यारा-सा… मासूम-सा बेटा… माया के मन में विश्‍व के समूचे विचार एक साथ दौड़ रहे थे कि कौन कहता है कि भगवान किसी जाति विशेष की थाती है… ईश्‍वर तो सब का है… भावनाएं किसी की बपौती नहीं… घंटियों का नाद किसी की संपत्ति नहीं… और मानव जाति से बढ़कर कोई जाति नहीं…!!

“क्या नाम है तुम्हारा?” कार की पिछली सीट पर धंसते हुए माया ने हमेशा की तरह ड्राइवर की तरफ़ प्रश्‍न उछाला, तो छह जोड़ी आंखों ने अलग-अलग तरह से घूरकर उसे देखा.
“आप भी ना मां, थोड़ा रुको तो सही.” शीना बिटिया फुसफुसाई.
“कोई बात नहीं, मां की आदत है.” राकेश भी धीरे से खिड़की से हैंड बैग पकड़ाते हुए दबे स्वर में बोलकर आगे की सीट पर जा जमे. नन्हा शांतनु विंडो सीट पर शांत जम गया था और माया धीरे-से हंस दी थी. तब तक ड्राइवर ने मिरर को ठीक करते हुए जवाब ही दे डाला था. “वसीम अकरम. मेरे बाबा को पाकिस्तानी क्रिकेटर वसीम अकरम बहुत पसंद है. उसी के नाम पर रख डाला मेरा नाम.” माया ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे वाह!” लेकिन हृदय के किसी कोने से कुछ चटकने की आवाज़ ज़रूर आई थी.
आज माया परिवारसहित कैलाश गुफा जा रही थी. जब से छत्तीसगढ़ राकेश के साथ स्थानांतरण पर आए हैं, तब से ही पर्यटन के शौक़ीन राकेश हर छुट्टी पर कहीं न कहीं घूमने निकल पड़ते हैं. माया ड्राइवर का नाम पूछने में न जाने क्यों रुचि रखती है और हमेशा पहला प्रश्‍न ड्राइवर से नाम का दाग देती है.
वसीम- 22-23 वर्ष का दुबला-पतला युवक. नीली फेडेड जींस, हरे रंग की टी-शर्ट और गले में काला धागा. बालों को ख़ास अंदाज़ दिए हुए बड़े इत्मीनान व आत्मविश्‍वास के साथ ड्राइविंग सीट पर बैठा था वो.
“सभी बैठ गए न आराम से?” पीछे मुड़कर उसने शांतनु की विंडो का लॉक चेक किया और राकेश ने भी पीछे मुड़कर देखा और हां का इशारा किया, तो ड्राइवर ने सधे हाथों से गाड़ी स्टार्ट कर दी.
शहर के भीतर स्पीड से चलती गाड़ी और स्पीड ब्रेकरों पर रुकती-उछलती गाड़ी में माया के मन में विचार भी कभी रुकते, तो कभी उछलते जा रहे थे. ड्राइवर वसीम ने राकेश से पूछा, “कैलाश गुफा ही जाना है ना या कहीं और भी?”
“हां, पर यदि रास्ते में आते समय वो घुनघुट्टा बांध भी दिखा दो तो…” राकेश ने आग्रहवाले अंदाज़ में कहा.
“हां, वो तो इसी सड़क पर है. बस, पांच किलोमीटर अंदर ही तो है.” वसीम ने सहमति से सिर हिलाते हुए कहा, “वो देखो, मेरा घर इसी मोहल्ले में है.” वसीम ने सड़क से गुज़रते मकानों की कतार की तरफ़ इशारा किया था. “इसे मिनी पाकिस्तान भी कहते हैं.” उसने जुमला जोड़ा था.
इस बार माया के विचारों को एक ज़ोरदार झटका लगा था. ये राकेश भी न पता नहीं कहां-कहां से गाड़ी बुक कर लेते हैं. भोले बाबा शंकर के घाट जाना है, वो भी सावन में. शहर के तमाम कांवड़िए भगवे रंग के वस्त्र पहनकर पैदल ही 80 कि.मी. का सफ़र तय करते हैं. वो कितनी श्रद्धा भाव से कल कांवड़ लेकर आई थी. लाल केसरिया रिबन्स से सजी, कंधे पर रखनेवाली डंडी पर खिलौनों की लटकन, दोनों तरफ़ सुर्ख़ ईंट रंग की छोटी-छोटी गगरिया कांवड़ को आकर्षक बना रही थी.
“पैदल न सही गाड़ी में चलेंगे…” माया ने भी राकेश से सावन में ही चलने की ज़िद की थी. आख़िर वो भी यह जानना चाहती थी कि कांवड़िए किस तरह पैदल इतनी दूर जाते हैं. पर तेरी श्रद्धा में इस वसीम के साथ चलने में क्या फ़र्क़ पड़ेगा? माया ख़ुद से ही सवाल कर रही थी.
फिर भी फ़र्क़ ना सही पर… माया के विचार आपस में ही बहस करके एक-दूसरे से उलझ रहे थे कि शहर सीमा पर लगे पेट्रोल पंप पर ड्राइवर ने गाड़ी लगा दी. वो गाड़ी से बाहर निकलकर पान की दुकान की तरफ़ बढ़ा, तो माया के विचार बोलों में फूट पड़े, “लो, अब ये क्या ले जाएगा कैलाश गुफा?”
“इसे तो ड्राइवरी करनी है. अब चाहे मज़ार पर जाए या कैलाश गुफा. क्यों भई शीना?” राकेश ने अपनी बेटी को अपने विचारों में मिलाते हुए कहा और हंस दिए. ड्राइवर पेट्रोल भरवाकर आ चुका, तो उसने पिछली खिड़की से झांककर कहा, “मौसी, ये कांवड़ नीचे मत रखो पैरों में. इसे अपनी गोद में रख लो. पवित्र चीज़ है ना!” माया सकपका गई थी. गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली थी. बाहर जैसे धरती ने हरियाली ओढ़ रखी थी. दूर-दूर तक चावल, मक्के व गन्ने के खेत मानो मन को हरा-भरा कर रहे थे.
वसीम तरह-तरह की जानकारियां दिए जा रहा था. उसने बताया कि वो आज सुबह बाबा की मज़ार पर जानेवाला था. एक पार्टी ने गाड़ी बुक की थी. मज़ार बिलासपुर ज़िले में है, पर यात्रियों के घर पर उसी समय कोई ज़रूरी काम आ पड़ा, सो उनके घर से ही लौट आया… “आपके साथ भोले बाबा के यहां जाना जो लिखा था. जो लिखा है, उसे कौन मिटा सका है.”
छोटा-सा लड़का दर्शन बघारने लगा था. माया के मन का ज़ख़्म रह-रहकर हरा हो रहा था, जो गाड़ी में बैठते समय चटक की आवाज़ से चोट खाया था. शीना और शांतनु खिड़की से लगातार बाहर का नज़ारा देख रहे थे, पर माया अपने मन की खिड़की में भी झांक नहीं पा रही थी. उसकी झोली में पड़ी सुंदर-सजी कांवड़ को बार-बार रहस्यमयी दृष्टि से देख लेती थी.
रास्ते में एक कार खड़ी थी. उसके यात्री सड़क पर खड़े थे. वसीम ने गाड़ी धीमी करके ड्राइवर से पूछा, “क्या हुआ लक्ष्मण?”
“टायर पंचर हो गया है.” वो ड्राइवर जो लक्ष्मण था बोला.
“स्टैपनी है ना?” वसीम ने पूछा.
“हां.” “तो चल लगा…” कहते हुए वसीम ने कार आगे बढ़ा दी.
“अपने पास भी है न स्टैपनी?” राकेश ने आशंका से पूछा था.
“हां, चिंता न करें कुछ नहीं होगा. श्रद्धा भाव से भोले शंकर के पास जा रहे हैं ना!” वसीम ने आश्‍वस्त किया था और माया के ज़ख़्म पर मरहम-सा लगा. तुम भी बाबा को मानते हो? माया के मन की बात होंठों पर नहीं आ सकी थी.
80 कि.मी. का फासला अब 2 कि.मी. पर ही रह गया था. कैलाश गुफा के धूमिल से बोर्ड ने कच्ची सड़क पर मुड़ने का इशारा भर किया था.
टोल-टैक्स जैसी जगह पर बैरियर ने गाड़ी रोकी, तो वसीम ने उतरकर पर्ची कटवाई और राकेश की ओर रुख करके कहा, “श्रद्धा भाव से कुछ भी दे दें. ये श्रद्धा भाव मुझे अच्छा लगता है.” माया ने उसे चौंककर देखा. उसे कैसे मालूम कि यह उसका भी प्रिय जुमला है. “बस, यहीं उतरना है.” उसने दरवाज़ा खोला. शांतनु को गोद में लेकर उतारा और माया की गोद से कांवड़ हाथ में ले ली. “ध्यान से मौसी, संभलकर, कांवड़ बड़ी पवित्र चीज़ होती है.”
संभलनेवाली चीज़, तो तुमने झपट ली. माया का मन चीखा था, पर शंकाओं का ज़ख़्म धीरे-धीरे हल्का भी होने आया था.
माया ने झटपट ज़मीन पर पैर रखा. राकेश अपनी कंघी करने में व्यस्त थे और शीना अपने कानों के झुमके संभाल रही थी. माया से कांवड़ भी न संभली.
“चलो जी, अब पहले दर्शन कर लो कैलाश गुफा के, फिर चाय-वाय पीना.” माया ने झुंझलाकर राकेश को कहा.
“हम कहां चाय के लिए कह रहे हैं… हम तो वाय के लिए भी नहीं कह रहे…” राकेश ने अपने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा.
पेड़ों के घने झुरमुटों के बीच चप-चप करती पगडंडी के बीच शांतनु को गोद में लेकर राकेश ने क़दम बढ़ा दिए.
पैर संभालती, सलवार के पायचे को ऊपर समेटती, बंदरों के झपटे से बचती, माया वसीम का पीछा करने की कोशिश में डगमग-डगमग चल रही थी.
वसीम कांवड़ को कंधे पर लेकर गर्व से सीना तानकर चल रहा था. कांवड़ के दोनों सिरों पर रखी गगरिया झूलती-सी ऊपर-नीचे होती हुई कभी ज़मीन को छूने का प्रयास, तो कभी आसमान की ओर उठान से लचकती-इठलाती हुई वसीम के दोनों कंधों से लिपटकर उसकी बांहों से घिरी हुई थी.
माया को उसके भाग्य पर रश्क़ हुआ था, पर दूसरे ही क्षण उस पर लाड़ उमड़ आया था. हां, वह पहला ही क्षण था, जब उसे वसीम ड्राइवर पर लाड़ आया था कि किस कदर उसने पवित्र कांवड़ को सावधानी से अपने कंधों से लिपटा रखा था.
माया ने सरपट क़दम बढ़ाए और वसीम से कांवड़ के लिए आग्रह किया, “वसीम, ये कांवड़ मुझे भी दे दो ना कंधे पर. तुम थक जाओगे.” पहली बार माया के विचारों में ड्राइवर का नाम उभरा था.
“हां मौसी लो ना. कितनी श्रद्धा भाव से लाई हैं आप.” वसीम ने अपने कंधे से उतारकर माया के कंधे पर कांवड़ रख दी थी.
माया कांवड़ लेकर इतरा उठी थी. कांवड़ ढोकर चलते हुए उसे लग रहा था मानो वो झूला झूल रही है. शीना और शांतनु पीछे हंसते हुए बोल रहे थे, “वाह मां! बोलो बम-बम भोले…” और फिर माया से दो क़दम आगे हो गए थे. वसीम माया के साथ क़दम मिलाकर चल रहा था. जब-जब गगरी ज़मीन छूने को होती, तो वो कांवड़ की डोर लपककर ऊपर कर देता.
“ध्यान से मौसी…” का जुमला अब माया के कानों में मिश्री घोलता प्रतीत हो रहा था. माया को वसीम का कांवड़ को छूना अब बुरा नहीं लग रहा था.
कैलाश गुफा के प्रवेश पर बड़े-बड़े पीतल के घंटे टंकार को आतुर थे, पर माया का हाथ कैसे पहुंचे. माया ने घंटे की तरफ़ कातर निगाहों से देखा, तो वसीम भागकर पास पड़ा बांस ले आया. उसने माया के हाथ में लंबा बांस देकर घंटे की टंकार से नाद करवा दिया था. फिर बारी-बारी शीना, शांतनु और राकेश की भी मदद की थी. कैलाश गुफा के अंदर शिवलिंग तक कांवड़ ले जाने में भी वसीम पूरी सावधानी बरत रहा था कि माया से कहीं कांवड़ का एक भी पल्ला ज़मीन से न छू जाए. वसीम ने कांवड़ की दो बहंगियों को अपनी झोली में रखा, तो माया ने गगरियों को उठाकर शिवलिंग पर कच्चा दूध-पानी विसर्जित कर दिया. वसीम ने उठकर घंटा बजाया और ज़ोर से बोल उठा, “बम-बम भोले!” माया गगरियों सहित हाथ जोड़कर नत-मस्तक खड़ी थी. उसकी कनखियों से न चाहते हुए भी वसीम दिखाई दे रहा था, जो उसी की तरह हाथ जोड़े नत-मस्तक खड़ा था. उसे वसीम की श्रद्धा में कहीं कोई कमी नहीं नज़र आ रही थी. राकेश और
शीना-शांतनु कहीं आगे निकल गए थे. माया वसीम के साथ कांवड़ लेकर हौले-हौले चल रही थी. गुफा से बाहर निकलकर वसीम ने कांवड़ को एक पेड़ पर लटकाने को कहा. कांवड़ को जुदा करने का समय आ गया था.
माया के कंधों का भार हल्का हो गया था, पर उसे लगा कि वसीम उसके कंधों पर आ बैठा है. लाडला-सा… प्यारा-सा… मासूम-सा बेटा… माया के मन में विश्‍व के समूचे विचार एक साथ दौड़ रहे थे कि कौन कहता है कि भगवान किसी जाति विशेष की थाती है… ईश्‍वर तो सबका है… भावनाएं किसी की बपौती नहीं… घंटियों का नाद किसी की संपत्ति नहीं… और मानव जाति से बढ़कर कोई जाति नहीं…!!
“लो प्रसाद.” वसीम नारियल के टुकड़े लेकर सामने खड़ा था.
कार का दरवाज़ा वसीम ने खोला, तो माया सीट में जा धंसी. अब उसकी गोद में कांवड़ जैसी पवित्र चीज़ नहीं थी. अब उसके आंचल में वसीम जैसा पवित्र बेटा खेल रहा था. माया के सारे शंका-आशंकाओं से बने ज़ख़्म भर गए थे.

– संगीता सेठी

8888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888

दो कप चाय

मैं सोच रही थी, हम स्त्रियां ही स्त्रियों की बात क्यों नहीं समझ पातीं? क्यों एक-दूसरे के प्रति इतनी असंवेदनशील हो उठती हैं? आंटी को तो यक़ीन ही नहीं हो रहा है कि अंकल नहीं रहे, अंकल तो उनके पास हैं, फिर वे शोक प्रकट करनेवालों के साथ समय बिताकर अपने इस एहसास को क्यों ख़त्म करें?

जिस दिन मैं मुंबई से दिल्ली अपने मायके पहुंची, उसी दिन मेरी अभिन्न सहेली रेखा ने फोन पर दुखद समाचार दिया कि सरिता आंटी के पति मोहन अंकल नहीं रहे. यक़ीन तो नहीं हुआ, पर सच तो था ही. आंटी जब घर का सामान लेने गई थीं, अंकल का हार्टफेल हो गया था. मां ने जब मेरे चेहरे की गंभीरता का कारण पूछा, तो मैंने उन्हें आंटी के बारे में बताया, आंटी हम दस महिलाओं की किटी ग्रुप की सबसे उम्रदराज़ महिला हैं. आंटी-अंकल अकेले ही रहते हैं, उनका इकलौता बेटा पवन अमेरिका में ही कार्यरत है. आंटी-अंकल साल में एक बार बेटे के पास ज़रूर जाते हैं. हम सबके लिए आंटी की लाइफस्टाइल एक प्रेरणा है. सुबह-शाम सैर, घूमना-फिरना, खाना-पीना, पत्रिकाएं पढ़ना, हमेशा ख़ुश रहना, आंटी जीवन में हर चीज़ का आनंद लेते हुए हमें शांत और ख़ुश रहने की प्रेरणा देती रहती हैं. उनका कहना है कि हर आयु का अपना आनंद है, हर स्थिति का एक सुख है, इसे समझ लें, तो जीवन आसान हो जाता है.
किटी पार्टी में किसी का भी मूड कभी ख़राब हो, तो आंटी से बात करते ही निराशा की धुंध छिटक जाती है और जीवंतता की धूप खिल उठती है.
अंकल रिटायर्ड टीचर थे, उनसे मिलना कम ही होता था. मेरे ऊपरवाले फ्लोर पर ही आंटी रहती हैं. अंकल से मेरी हाय-हैलो अक्सर लिफ्ट में ही होती रही है. आंटी से मेरा ख़ास लगाव हमारे पढ़ने-लिखने के शौक़ के कारण है. हम अक्सर पढ़ी हुई कहानियों के बारे में बात करते हैं, हमारा क़िताबों का आदान-प्रदान चलता ही रहता है.
मुंबई वापस आकर मैं दो दिन तो घर संभालने में ही व्यस्त रही, पति और बच्चों को छोड़कर गई थी, तो थोड़ी अस्त-व्यस्तता तो स्वाभाविक ही थी.
आंटी से जल्दी से जल्दी मिलने की इच्छा थी. उन्हें हमेशा हंसते-मुस्कुराते ही देखा था. अब उनके चेहरे की उदासी की कल्पना ही कष्टप्रद थी. मैंने रेखा को फोन किया, आंटी के घर जाने के बारे में पूछा कि क्या वो भी मेरे साथ चलेगी, तो रेखा ने कहा, “हम सब लोग तो होकर आ गए हैं, अब दोबारा जाने का कुछ फ़ायदा तो है नहीं.”
मैंने पूछा, “क्या मतलब?”
“अरे, आंटी बहुत मज़बूत हैं. उन्हें शोक प्रकट करने आए किसी व्यक्ति की ज़रूरत नहीं है. हम सबको उन्होंने साफ़-साफ़ कह दिया कि हम लोग बार-बार आकर परेशान न हों और सुमन, जानती हो? दूर बसे अपने रिश्तेदारों तक को उन्होंने कह दिया कि इतनी दूर आकर परेशान न हों. सोसायटी के लोग जब अंतिम संस्कार के लिए गए, तब भी वे एकदम शांत थीं, पवन भी आ गया था. उन्हें किसी ने रोते नहीं देखा. मान गए भई, बड़ी मज़बूत हैं आंटी, बहुत ही प्रैक्टिकल.”
मैं तो फिर कुछ बोल ही नहीं पाई. क्या करूं, इतने दिन बाद जाकर बोलूं भी तो क्या, ऐसे में कुछ समझ भी तो नहीं आता है कि क्या कहा जाए, पर मेरा जाना बनता तो था ही, मैंने कुछ और सहेलियों से भी पूछा कि क्या किसी को आंटी से मिलने जाना है, सबका यही जवाब था, “ना भई, एक बार जाकर लगा क्यूं आ गए, उन्हें कहां ज़रूरत है दुख में भी किसी की, बहुत बोल्ड हैं आंटी.”
मैं फिर अगले दिन ही शाम को चार बजे आंटी के घर गई, डोरबेल बजाई, तो एक छोटे बच्चे ने दरवाज़ा खोला. मैंने अंदर जाकर देखा, पांच-छह बच्चे ट्यूशन पढ़ रहे थे. आंटी कई सालों से ट्यूशन पढ़ाती हैं. मैंने एकदम से तो कुछ नहीं कहा, आंटी के पास जाकर बैठ गई, आंटी ने बच्चों को थोड़ी देर अपने आप पढ़ने के लिए कहा, फिर मैंने धीरे-धीरे कहना शुरू किया, “आंटी, मैं बाहर गई हुई थी, पता चला तो बहुत दुख हुआ, समझ नहीं आ रहा क्या कहूं.” कहकर मैंने क़रीब पैंसठ वर्षीया आंटी के गंभीर चेहरे पर नज़र डाली. उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, “इंसान क्या कर सकता है, ईश्‍वर की बातें हैं, वही जाने.”
मैंने ध्यान से उनके चेहरे को देखा, एकदम शांत, गंभीर, उदास, खाली-खाली-सा चेहरा, आंटी ऐसी तो कभी नहीं दिखीं. हम दोनों फिर चुप रहे. हमारे मन की कुछ बातें भले ही शब्दों की अभिव्यक्ति से परे होती हैं, पर मन में कुछ शक्तियां ऐसी होती हैं, जो किसी की मनोदशा को अच्छी तरह भांप लेती हैं. उनके अनकहे दुख को आंखों में ही पढ़ा मैंने. फिर मैंने कहा, “आंटी, आपको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो, तो फोन कर दीजिए, संकोच मत कीजिएगा.”
“हां, थैंक्यू सुमन.”
बच्चे पढ़ने के लिए इंतज़ार कर रहे थे, बेचैनी से पहलू बदल रहे थे, मुझे उठना ही ठीक लगा. मैंने जैसे ही उठने का उपक्रम किया, आंटी ने कहा, “सुमन, आने के लिए थैंक्स.”
“नहीं आंटी, थैंक्स की तो कोई बात ही नहीं है, आपके दुख में हम सभी आपके साथ हैं.”
“हां, जानती हूं, पर मैं किसी को परेशान नहीं करना चाहती. मोहन ने जीते जी किसी को कभी कोई तकलीफ़ नहीं दी. अब उनके जाने के बाद किसी को परेशान करने, तकलीफ़ उठाने क्या बुलाना, यह मेरे हिस्से का दुख है और मुझे सहना ही है… और अभी तो मुझे ही यक़ीन नहीं हुआ कि मोहन चले गए हैं, उनकी यादों का, उनकी बातों का एक अद्भुत सुरक्षा कवच महसूस होता है मुझे अपने इर्द-गिर्द. आज भी अतीत की बगिया से मन के आंगन में मुट्ठीभर फूल बिखेर जाती है उनकी चिर-परिचित पदचाप, जिसकी ख़ुशबू से मेरा रोम-रोम अब भी पुलकित हो जाता है, आज भी रोज़ सुबह मुझसे अंजाने में ही चाय भी दो कप बन जाती है.”
मेरा संवेदनशील मन अथाह वेदना से कराह उठा, इस बात के मर्म ने मेरे दिल को ऐसे छुआ कि मेरी आंखें स्वतः ही भरती चली गईं, जिसे महसूस करके आंटी ने मेरा कंधा थपथपा दिया. उनके स्नेहिल स्पर्श को महसूस कर मैंने उन्हें देखा, लगा आंखों से ही मानो मौन ही मुखर होकर भावनाओं को बांच रहा हो.
“आंटी, चलती हूं. बच्चे पढ़ने के लिए आपका इंतज़ार कर रहे हैं, फिर आऊंगी.” कहकर मैं घर जाने के लिए निकल पड़ी, बहुत भारी हो गया था मन.
उनकी दो कप चायवाली बात ने ही उनके दिल का गहरा राज़, सारी उदासी खोल दी थी. कभी-कभी हम किसी के प्रति अंजाने में ही कोई भी धारणा बना लेते हैं. हमें एहसास ही नहीं होता कि सामनेवाले इंसान के दिल में क्या चल रहा है. वो अपने दुख को सहने के लिए कितनी मेहनत कर रहा है, पर मेरा मन भी आत्मग्लानि से भर उठा था. मैं सोच रही थी, हम स्त्रियां ही स्त्रियों की बात क्यों नहीं समझ पातीं? क्यों एक-दूसरे के प्रति इतनी असंवेदनशील हो उठती हैं? आंटी को तो यक़ीन ही नहीं हो रहा है कि अंकल नहीं रहे, अंकल तो उनके पास हैं, फिर वे शोक प्रकट करनेवालों के साथ समय बिताकर अपने इस एहसास को क्यों ख़त्म करें? कुछ बालहठ ही होता है ऐसे पलों का, यादों में डटे रहने का. अंकल तो उनके पास हैं, उनके साथ हैं, रोज़ सुबह दो कप चाय यूं ही तो नहीं बनती न!

– पूनम अहमद

8888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888

एमिली

हम समझते हैं, अपने रिश्तों के प्रति जो आस्था और उन्हें निभाने की परंपरा भारतीय संस्कृति में है, वह अन्यत्र नहीं है. जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है. प्रेम किसी धर्म अथवा देश की सीमाओं में बंधा नहीं होता. मानवीय संवेदनाएं हर इंसान में होती हैं. हर इंसान अपने रिश्तों के प्रति संवेदनशील होता है.

सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट से बाहर निकलकर टैक्सी द्वारा मैं वालनट क्रीक शहर के काईज़र हॉस्पिटल पहुंची, जहां कुछ देर पहले ही मेरी बेटी शुभी ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया था. मयूर मेरा दामाद मुझे हॉस्पिटल के गेट पर ही खड़ा मिल गया. वह मुझे अंदर लेकर गया. अपनी बेटी की गोद में ख़ूबसूरत से बेटे को देख मेरे आनंद की सीमा न रही. दोपहर में शुभी को लेबर रूम से उसके कमरे में पहुंचाया गया, तो डॉ. गोम्स ने उसका चेकअप करने के पश्‍चात् कहा, “शुभी, सिस्टर एमिली तुम्हारी देखरेख करेंगी.”
“ओके डॉक्टर.” शुभी मुस्कुराई. सिस्टर एमिली ने अंदर आकर हम सभी को बधाई दी और फिर वह शुभी को दवा देने में जुट गई. एमिली फ्रेंच थी. सुबह आठ बजे से पांच बजे तक उसकी ड्यूटी थी. उसका स्वभाव बहुत हंसमुख था. शुभी का वह बहुत ख़्याल रखती थी. दो दिन में ही वह हमसे बहुत घुल-मिल गई थी. डिस्चार्ज होने से एक दिन पहले एमिली दोपहर में हमारे लिए केक लेकर आई और बोली, “आज मैं बहुत ख़ुश हूं. मेरे बेटे को कॉलेज में एडमिशन मिल गया है.” हम सबने उसे बधाई दी. उसी समय दूसरी सिस्टर क्लारा ने आकर कहा, “एमिली, तुम्हारे लिए गुड न्यूज़ है. तुम्हारी क्लाइंट लिंडा का अपने पति से पैचअप हो गया है. शाम को वे दोनों तुम्हारे घर तुमसे मिलने आएंगे.”
“ओ ग्रेट.” एमिली बोली.
“तुम्हारी पेशेंट या क्लाइंट?” शुभी ने पूछा. “क्लाइंट.” क्लारा ने बताया. “एमिली मैरिज काउंसलर भी है. शाम को हॉस्पिटल से लौटकर एक घंटा फ्री में काउंसलिंग करती है.”
“फ्री में काउंसलिंग?” हम लोग अचंभित रह गए.
“इसमें हैरानी की क्या बात है? दिन में लोगों के शरीर के ज़ख़्मों को ठीक करती हूं और शाम को मन के ज़ख़्मों का इलाज करने का प्रयास करती हूं.” एमिली ने कहा.
“जॉब और काउंसलिंग के साथ-साथ बेटे की देखभाल, यह सब आसान तो नहीं होगा?” मैंने पूछा तो वह बेहिचक बोली, “आसान क्या, यह सब मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग रहा. सच तो यह है, मेरी पूरी लाइफ ही चैलेंजिंग रही है.” उसके बाद एमिली बेहिचक अपनी ज़िंदगी के बारे में बताने लगी.
“हर इंसान के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, किंतु मेरी लाइफ में कुछ ज़्यादा ही आए. जिस समय मेरी शादी हुई, मैं फ्रांस में थी. मेरे पति गैरी सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. शादी के तीन महीने बाद वे कुछ महीनों के लिए जर्मनी चले गए. उनके जाने के बाद मुझे पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं. चूंकि मेरे पैरेंट्स वहां थे, इसलिए जॉब करने और अपनी देखभाल में मुझे परेशानी नहीं हुई. आठ महीने बाद गैरी जर्मनी से लौट आए.
उन दिनों मेरी तबीयत बहुत ख़राब रहती थी. जॉब से वापिस आकर मुझमें इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि गैरी का मनपसंद खाना बना सकूं या उनकी इच्छा पर उनके साथ घूमने जा सकूं. नौवें महीने में मैंने एक सुंदर-से बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के साथ मेरी व्यस्तताएं और बढ़ गईं और इसी के साथ गैरी की नाराज़गी भी. उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं था कि जॉब करने के साथ-साथ बच्चे को अकेले संभालना मेरे लिए कितना कठिन हो रहा था. गैरी की शुरू से अमेरिका में सैटल होने की इच्छा थी. तीन साल बाद उन्हें मौक़ा मिला. उन्होंने अमेरिका की कंपनी मेंं अप्लाई किया और उन्हें तुरंत जॉब मिल गई. गैरी के साथ-साथ मेरा भी अमेरिका का वीज़ा लग गया, किंतु किसी कारणवश मेरे बेटे जिम का वीज़ा नहीं लगा. आप लोग कल्पना नहीं कर सकते, उन दिनों मुझपर क्या गुज़र रही थी.
रात-रातभर मुझे नींद नहीं आती थी. जिम को छोड़कर मैं अमेरिका नहीं जाना चाहती थी, किंतु गैरी मुझ पर दबाव डाल रहे थे. अंतत: तीन वर्षीय जिम को अपने पैरेंट्स के आसरे छोड़कर मैं गैरी के साथ अमेरिका आ गई.
यहां मुझे भी जॉब तो मिल गई, किंतु मेरा मन काम में बिल्कुल नहीं लगता था. शरीर यहां और मन अपने बेटे के पास था.
दो-तीन महीने बीतते-बीतते मैं अपने बेटे के पास फ्रांस चली जाती थी. इस तरह काफ़ी समय गुज़र गया, किंतु जिम का वीज़ा नहीं लगा. तब विवश होकर हमने उसका कनाडा का वीज़ा लगवाया, ताकि वह मेरे कुछ क़रीब आ जाए और मुझे उससे मिलने में इतनी मुश्किलें न हों. टोरंटो के एक स्कूल में मैंने जिम का एडमिशन करवा दिया और उसी स्कूल के होस्टल में वह रहने लगा.” हम लोग बहुत ध्यान से एमिली की आपबीती सुन रहे थे.
“फिर क्या हुआ?” शुभी ने उत्सुकता से पूछा.
एमिली ने बताया, “मैं हर दूसरे महीने बेटे को देखने टोरंटो जाती थी. कभी-कभी उसकी जानकारी के बिना भी मैं पहुंच जाती. उसके स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर्स से मिलकर पता करती वह ख़ुश है या नहीं, उसकी प़ढ़ाई कैसी चल रही है? उसके साथी मित्र कैसे हैं?
इस बीच गैरी के साथ मेरा रिश्ता तनावपूर्ण हो रहा था. वह हर समय मुझ पर व्यंग्य कसते कि मुझे स़िर्फ अपने बेटे की चिंता थी. उनका कोई ख़्याल नहीं था. यह सुनकर मेरा मन वेदना से भर उठता. वे दोनों ही तो मेरा जीवन थे. मेरी आत्मा थे और उस दिन तो मेरे सब्र का पैमाना छलक गया था. जिम के स्कूल में वार्षिक महोत्सव था. उसमें वह भी भाग ले रहा था. उसने फोन करके बार-बार मुझसे आने का अनुरोध किया था. मैंने सोचा, इतना छोटा बच्चा पैरेंट्स के बिना रह रहा है. मेरे न जाने पर वह कितना निराश होगा. मैं गैरी को भी साथ ले जाना चाहती थी, किंतु वह तैयार नहीं थे. यही नहीं, मेरे जाने पर भी उन्हें ऐतराज़ था.
उस दिन ग़ुस्से में उन्होंने कहा था, “बच्चे के फंक्शन के लिए इतना क्या उतावलापन. कहीं ऐसा तो नहीं….” मैंने पूछा, “कैसा? बताओ गैरी, क्या कहना चाह रहे हो तुम?” किंतु उन्होंने कुछ नहीं कहा था.
धीरे-धीरे मुझे एहसास हो रहा था कि वह मुझसे दूर जा रहे थे?
कभी-कभी मैं सोचती मेरी लड़ाई किससे है? अपनी परिस्थितियों से, गैरी से या स्वयं अपने आप से? कितनी अकेली थी मैं उन दिनों. लगता जैसे दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में अकेली चल रही हूं, जहां पानी का स्रोत दिखाई तो देता है, किंतु पास जाने पर पता चलता है कि वह सब छलावा था, एक मरीचिका जिसको पाने का भ्रम मैं पाले हुए हूं. तो क्या मेरा सुख, मेरी ख़ुशियां भी एक छलावा हैं? मेरी पहुंच से दूर, बहुत दूर. इस रोज़-रोज़ की भागदौड़, लड़ाई-झगड़े और तनाव को झेलते-झेलते मैं थक चुकी थी और बीमार रहने लगी थी. हाई ब्लडप्रेशर की वजह से सिर में दर्द रहता और चक्कर आते रहते.
फिर अचानक ही मरुभूमि में मानो सावन की हल्की फुहारों का एहसास हुआ. जिम को अमेरिका का वीज़ा मिल गया. “अरे वाह, फिर तो तुम्हारे संघर्षों का अंत हो गया होगा और जीवन में ख़ुशियां लौट आई होंगी.” मैंने उत्साह से पूछा.
एमिली बोली, “उस समय मुझे भी ऐसा ही लगा था कि अब मेरे दुखों का अंत हो गया है, किंतु यह मेरा भ्रम था. मां की ममता का मोल चुकाते-चुकाते एक पत्नी अपना प्यार खो चुकी थी. जिम जब तक मेरे पास आया, मेरे और गैरी के बीच की खाई काफ़ी गहरी हो गई थी. गैरी मुझसे क्यों दूर चले गए, मैं समझ नहीं पाती थी. माना कि मैंने जिम की ज़्यादा चिंता की, तो क्या जिम स़िर्फ मेरा बेटा है, उनका नहीं? मैं समझ नहीं पा रही थी कि किस तरह उलझे हुए समीकरणों को सुलझाऊं? किस तरह गैरी का प्यार वापस पाऊं?
उस अंधकार में रोशनी की हल्की-सी किरण भी मेरे लिए प्रकाशपुंज के समान थी, किंतु उस किरण का भी दूर-दूर तक पता नहीं था. रात-दिन मैं इस चिंता में घुल रही थी. गैरी का ख़्याल रखने का मैं भरसक प्रयास करती, किंतु वह मेरी ओर ध्यान ही नहीं देते थे. उन दिनों मैं रिक से फोन पर बहुत बातें करती थी.
एक शाम जिम फुटबॉल खेलने बाहर गया हुआ था. मैं रिक से फोन पर बात कर रही थी. रिक मुझे समझा रहा था, “एमिली, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम्हारा ब्लडप्रेशर काफ़ी हाई है. तुम्हें ज़्यादा मेहनत करने और तनाव लेने की आवश्यकता नहीं है.”
मैंने उससे कहा, “नहीं रिक, मैं इस अवसर को हाथ से गंवाना नहीं चाहती. सालभर में कुछ ही अवसर आते हैं, जब हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं. मैं गैरी को हृदय की गहराइयों से प्यार करती हूं और मन ही मन यह महसूस करती हूं कि अनजाने में ही सही, एक पत्नी के फ़र्ज़ को भलीभांति पूरा नहीं कर पाई हूं. उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाकर मैं उन्हें अपने प्यार का एहसास कराना चाहती हूं.” अभी मैं रिक से अपनी बात पूरी कर भी न पाई थी कि अंदर से अचानक गैरी चले आए और मेरे सामने आकर बैठ गए.
उनका चेहरा उतरा हुआ था और आंखों में आंसू भरे हुए थे. मैंने फोन रखा और उनसे बोली, “क्या हुआ गैरी, तुम्हारी आंखों में आंसू?” मेरी बात का जवाब न देकर उन्होंने पूछा, “अभी तुम किससे बात कर रही थी?” “रिक से, डॉ. रिक जेम्स, हमारे फैमिली डॉक्टर.” मैंने बताया.
“वह कह रहे थे कि तुम्हारा ब्लडप्रेशर बहुत हाई है.” गैरी चिंतित स्वर में बोले. मैंने कुछ कहना चाहा, किंतु अचानक ही मैं ख़ामोश हो गई, मेरी आंखें आश्‍चर्य से फैल गई थीं. मैं बोली, “तुम्हें कैसे पता कि रिक ने ऐसा कहा?”
शर्मिंदगी का भाव चेहरे पर लिए गैरी कुछ पल ख़ामोश रहे फिर पश्‍चाताप भरे स्वर में बोले, “दरअसल एमिली, मैंने तुम्हारे फोन पर
माइक्रोफोन फिट कर दिया था, ताकि तुम्हारी सारी बातें सुन सकूं.” सकते की हालत में आ गई थी मैं उनकी बात सुनकर. पीड़ा और क्रोध की मिलीजुली प्रतिक्रिया ने मेरे सर्वांग को कंपा दिया था. जीवन में किए इतने संघर्षों और अपनों को क़रीब रखने के प्रयासों का यह प्रतिकार मिला मुझे? दोनों हथेलियों में चेहरा छिपा रो पड़ी थी मैं.
गैरी मेरे क़रीब बैठ गए और मेरी गोद में अपना सिर रखकर बोले, “मुझे माफ़ कर दो एमिली. दरअसल, पिछले काफ़ी दिनों से तुम बराबर फोन पर बात करती थी, इसलिए मुझे तुम पर शक होने लगा था. तुम मेरे क़रीब आने का प्रयास करती, तो मैं छिटककर तुमसे दूर चला जाता. मुझे लगता था, तुम मुझे धोखा दे रही हो, लेकिन आज तुम्हारी फोन पर बातें सुनकर मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ.” रोते-रोते मैं बोली, “अपनी तबीयत के कारण बार-बार मुझे रिक को फोन करना पड़ता है. मुझे क्या पता था, तुम मुझ पर शक करने लगोगे. गैरी, यह तुमने अच्छा नहीं किया. एक बार मुझसे पूछा तो होता. कितना समय गुज़ार दिया तुमने अपनी इस ग़लतफ़हमी में.”
गैरी भर्राए स्वर में बोले, “तुम ठीक कह रही हो, लेकिन यकीन मानो, अपनी इस ग़लतफ़हमी के चलते मैंने भी कम पीड़ा नहीं झेली. रातों को छटपटाता था मैं यह सोचकर कि मेरी एमिली मुझसे कहीं दूर न चली जाए. मैं तुम्हारा गुनहगार हूं एमिली. मुझे माफ़ कर दो. आज मुझे एहसास हो रहा है कि तुम्हारे साथ-साथ मैंने अपने बेटे को भी कम इग्नोर नहीं किया. प्लीज़ एमिली, बस एक मौक़ा दे दो. आज से हम दोनों एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करेंगे.” गैरी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. हम दोनों की आंखों से बह रहे आंसुओं में हमारे सारे गिले-शिकवे बह गए.
“अरे, उन्होंने आप पर शक किया, आपकी जासूसी की और आपने उन्हें यूं ही माफ़ कर दिया.” शुभी ने उत्तेजित होकर कहा. एमिली स्नेहसिक्त स्वर में बोली, “शुभी, गैरी को माफ़ करना मेरे लिए भी आसान नहीं था, लेकिन जब मैंने पॉज़ीटिव होकर सोचा तो मुझे लगा उनका पश्‍चाताप सच्चा था. वह मुझे प्यार करते थे, मुझे खो देने के डर से ही उन्होंने यह सब किया. शुभी, ज़िंदगी में जब प्रॉब्लम्स आती हैं, तो ऐसे अनुकूल अवसर भी आते हैं, जब हम उन प्रॉब्लम्स को सुलझा सकते हैं, लेकिन अपने अहं के चलते हम उन अवसरों को खो देते हैं.”
“अच्छा, फिर क्या हुआ?” मैंने पूछा. “बस, फिर कुछ नहीं. पुरानी कड़वाहटों को भुलाकर मैंने और गैरी ने एक नई ज़िंदगी की शुरुआत की.”
“और मैरिज काउंसलिंग कब शुरू की?” मयूर ने पूछा.
एमिली बोली, “उन्हीं दिनों मैंने सोचा मेरा और गैरी का रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच गया था, लेकिन हम दोनों ने अपने-अपने अहं को दरकिनार कर अपने रिश्ते को टूटने से बचा लिया. क्या हर इंसान ऐसा कर पाता है? बहुत से पति-पत्नी अपनी ग़लतफ़हमियां दूर नहीं कर पाते और उनमें तलाक़ हो जाता है. यदि अपने थोड़े से प्रयास से मैं किसी के रिश्ते को बचा पाऊं, तो स्वयं को धन्य समझूंगी. तभी मैंने मैरिज काउंसलिंग शुरू की और मुझे ख़ुशी है कि मैं अपने इस काम में काफ़ी हद तक सफल हूं. जब भी कोई रिश्ता मेरे प्रयास से टूटने से बचता है, तो पति-पत्नी के चेहरे पर छाई ख़ुशी से मुझे आत्मिक सुकून मिलता है.”
“कितना नेक काम कर रही हो तुम.” हम सबने उसे बधाई दी. एमिली चली गई. मैं सोच रही थी, ज़िंदगी में अनगिनत चेहरे हमारी आंखों के सामने से गुज़रते हैं. उनमें से अधिकतर स्मृति से विलुप्त हो जाते हैं, किंतु कुछ का अक्स मन के कैनवास पर सदैव अंकित रहता है. ऐसे ही चेहरों में से एक चेहरा है एमिली का. उससे मिलने के बाद हम लोगों की पश्‍चिमी संस्कृति के प्रति बनी धारणा बदल गई. वास्तव में हम लोग जाति, धर्म, रंग और देश के आधार पर अपनी सोच निर्धारित कर लेते हैं. हम समझते हैं, अपने रिश्तों के प्रति जो आस्था और उन्हें निभाने की परंपरा भारतीय संस्कृति में है, वह अन्यत्र नहीं है. जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है. प्रेम किसी धर्म अथवा देश की सीमाओं में बंधा नहीं होता. मानवीय संवेदनाएं हर इंसान में होती हैं. हर इंसान अपने रिश्तों के प्रति संवेदनशील होता है. उन्हें सहेजकर रखना चाहता है और एमिली ने अपनी ज़िंदगी के पन्ने खोलकर यही बात हमें समझाई.

– रेनू मंडल

Meri Saheli Team

Share
Published by
Meri Saheli Team
Tags: Stories

Recent Posts

अजय-अतुलच्या लाइव्ह कॉन्सर्टमध्ये थिरकल्या नीता अंबानी, ‘झिंगाट’वर केला डान्स, पाहा व्हिडीओ (Nita Ambani Dance On Zingaat In Ajay Atul Live Concert In Nmacc)

मुंबईतील बीकेसी येथे उभारण्यात आलेल्या नीता अंबानी कल्चरल सेंटरला नुकताच एक वर्ष पूर्ण झाले आहे.…

April 15, 2024

जान्हवी कपूरने शेअर केले राधिका मर्चंटच्या ब्रायडल शॉवरचे फोटो, पज्जामा पार्टींत मजा करताना दिसली तरुणाई (Janhvi Kapoor Shares Photos From Radhika Merchant Bridal Shower Party)

सोशल मीडियावर खूप सक्रिय असलेल्या जान्हवी कपूरने पुन्हा एकदा तिच्या चाहत्यांना सोमवारची सकाळची ट्रीट दिली…

April 15, 2024

A Strange Connection

The loneliness does not stop.It begins with the first splash of cold water on my…

April 15, 2024

‘गुलाबी साडी’च्या भरघोस प्रतिसादानंतर संजू राठोडच्या ‘Bride नवरी तुझी’ गाण्याचीही क्रेझ ( Sanju Rathod New Song Bride Tuzi Navari Release )

सध्या सर्वत्र लगीनघाई सुरू असलेली पाहायला मिळत आहे. सर्वत्र लग्नाचे वारे वाहत असतानाच हळदी समारंभात…

April 15, 2024

कहानी- वेल डन नमिता…‌(Short Story- Well Done Namita…)

“कोई अपना हाथ-पैर दान करता है भला, फिर अपना बच्चा अपने जिगर का टुकड़ा. नमिता…

April 15, 2024
© Merisaheli