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मॉरल पुलिसिंग के नाम पर शर्मसार करते तथ्य (Moral Policing: Good Or Bad… Right Or Wrong?)

हम अपने देश, अपनी संस्कृति व संस्कारों का न स़िर्फ सम्मान करते हैं, बल्कि हमें उस पर गर्व है. हम ही क्यों, सभी देशवासी अपने देश से प्यार करते हैं. लेकिन जब उनकी देशभक्ति को परखने के अजीबोग़रीब पैमाने कुछ अंजान लोग तय करते हैं, तब कोफ़्त होती है. जब ये पैमाने किसी की निजी ज़िंदगी में हस्तक्षेप करने लगें, जब संस्कृति को बचाने के नाम पर कोई वहशीपन पर उतर आए, तब सवाल उठने लाज़मी हैं कि किसने हक़ दिया है किसी को भी इस तरह से संस्कृति की रक्षा को कवच बनाकर अपनी गुंडागर्दी की दुकानें चलाने का?

मॉरल पुलिसिंग के नाम पर शर्मसार करते तथ्य (Moral Policing: Good Or Bad… Right Or Wrong?)
  • मॉरल पुलिसिंग आज भी सवालों के घेरे में है और भारत में इसकी आड़ में ख़ूब गुंडागर्दी भी होती है और राजनीति भी.
    प 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर में एक ग्रुप था, जो महिलाओं को जबरन चेहरा ढंकने का आदेश देता था, साथ यह धमकी भी कि यदि ऐसा नहीं किया गया, तो उन पर एसिड अटैक किया जाएगा.
  • अपनी सक्रियता के इस दौर में इस ग्रुप ने कई सिनेमाघरों, होटल्स, बार, ब्यूटीपार्लर्स आदि पर अटैक किया था.
  •  साल 1996 में मिस वर्ल्ड का भारत के बैंगलुरू (उस समय बैंगलोर) में आयोजन हुआ था, जिसका कई गुटों द्वारा विरोध
    हुआ था.
  • वर्ष 2005 में साउथ की एक बड़ी एक्ट्रेस ने प्री मैरिटल सेक्स को लेकर बयान दिया था, जिसमें सेफ सेक्स पर ज़ोर दिया गया था. उसके बाद इस बयान को देश की संस्कृति पर आघात बताते हुए एक्ट्रेस के ख़िलाफ़ कई केस दर्ज कर दिए गए.
  •  वर्ष 2012 में मैंगलोर के घर में चल रही पार्टी की घटना भी सबके ज़ेहन में आज भी ताज़ा है, जहां शांति से घर पर पार्टी कर रहे युवाओं पर अटैक किया गया था. इसमें 5 लड़कियां भी थीं, जिनके चेहरे पर कालिख पोत दी गई थी.
  • इसी तरह से अक्सर आज भी कहीं किसी पब पर, तो कहीं किसी गार्डन में समय बिताने आए कपल्स या युवाओं पर मॉरल पुलिसिंग के नाम पर हमले होते रहते हैं.
  • असम के एक लोकल न्यूज़ चैनल ने एक वीडियो बनाकर दिखाया था कि किस तरह से गुवहाटी में आजकल लड़कियां शॉर्ट्स पहनकर घूमती हैं और किस तरह से यह हमारे नैतिक पतन का संकेत है.
  •  ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि संस्कार व संस्कृति का हवाला देकर युवाओं के साथ बदसलूकी व गुंडागर्दी का हक़ किसने किसको दिया है?
  •  न तो समाज ने, न ही क़ानून ने और न ही प्रशासन ने इस तरह की गुंडागर्दी को जगह दी है, लेकिन फिर भी कुछ गुट व समूह ख़ुद ही यह तय कर लेते हैं कि उनकी नज़र में क्या सही है, क्या ग़लत… और वो यह चाहते हैं कि लोग उनकी सोच व इच्छानुसार अपनी
    ज़िंदगी जीएं.
  •  ख़ुद को समाज के ठेकेदार और क़ानून से ऊपर समझनेवाले ये चंद लोग सरेआम लड़कियों से मारपीट करके अपने अहम् को तुष्ट करते हैं.

क्यों होती है मॉरल पुलिसिंग?

दरअसल, हमारा समाज बहुत जल्दी बदलावों को स्वीकार नहीं कर पाता. इसके अलावा हमारी धारणा यही है कि हमारी परंपराओं से हटकर अन्य परंपराएं संस्कारों के विरुद्ध हैं, पश्‍चिमी संस्कृति से जुड़ी हर चीज़, हर बात ग़लत ही है, इससे हमारे समाज व संस्कृति को नुक़सान पहुंच सकता है आदि इस तरह की सोच कुछ लोगों को इतना अधिक उकसाती है कि वे बिना सोचे-समझे गुंडागर्दी पर उतारू हो जाते हैं. ख़ुद अपनी नज़र में वे सही होते हैं, उन्हें लगता है कि वे तो अपने संस्कारों व देश की संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं, लेकिन दरअसल वो अराजकता फैलाकर डर व दहशत का माहौल बना रहे होते हैं और इस तरह का व्यवहार भी तो हमारी सभ्यता के विरुद्ध
ही है.
दूसरी ओर इनमें से अधिकतर गुटों को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त होता है और वो अपना दबदबा कायम रखने के लिए इस तरह की वारदातों को अंजाम देते रहते हैं, ताकि उस इलाके के लोगों में उनका डर बना रहे.

किन बातों को लेकर होती है यह मॉरल पुलिसिंग?
  • अधिकतर तो ये घटनाएं वैलेंटाइन्स डे, पार्टीज़, पब्स, गार्डन्स में लड़के-लड़कियों के मिलने से संबंधित होती हैं.
  • लेकिन अति तब हो जाती है, जब लड़कियों के जींस पहनने पर कोई कॉलेज पाबंदी लगाता है, तो कभी कोई नेता लड़कियों के छोटे कपड़ों को ही उनके बलात्कार व छेड़छाड़ का कारण बताता है.
  • यही वजह है कि संस्कृति को बचाने के नाम पर अपनी गुंडागर्दी की दुकान चलानेवालों को बढ़ावा मिलता है और वो ख़ुद लड़कियों से छेड़छाड़ करते पाए जाते हैं.
  • कभी धर्म के नाम पर लोगों को उकसाया जाता है. ऐसी ही एक घटना में मैंगलोर के एक लड़के की पिटाई कर दी गई थी, जहां उसका कुसूर इतना ही था कि उसने अन्य धर्म की अपनी स्कूल फ्रेंड्स के साथ फोटो क्लिक करवाई थी.
  • कभी स्पोर्ट्स से जुड़ी लड़कियों के ख़िलाफ़ स्कर्ट पहनकर खेलने पर फतवा जारी कर दिया जाता है, तो कभी किसी बच्ची के सिंगिंग कॉन्टेस्ट में पार्टिसिपेशन को रोकने का प्रयास किया जाता है.

क्या है सही तरीक़ा?
  •  यदि वाकई में कुछ ग़लत नज़र आ रहा है, तो ख़ुद क़ानून हाथ में लेकर लोगों को सज़ा देने से बेहतर है कि उनकी
    शिकायत करें.
  •  क़ानून के साथ मिलकर बुराई को मिटाने का प्रयास करें. धैर्यपूर्वक स्थिति को सुनें व समझें और सामनेवालों के पक्ष का भी सम्मान करें.
  • यही सही तरीक़ा है और यही हमारी संस्कृति भी.
  • दूसरे को ग़लत साबित करने से पहले ख़ुद को भी जांचें-परखें कि अगर आपका परिवार वहां होता, तो भी क्या आप इसी तरह से अपनी सो कॉल्ड न्याय प्रक्रिया उन पर लागू करते?
  • अगर सामनेवाला ग़लत भी है, तब भी किसी भी तरह की गुंडागर्दी आपको सही साबित नहीं करेगी. आपकी सोच अलग हो सकती है, इसका यह अर्थ नहीं कि सारी दुनिया को आपकी ही सोच के अनुसार चलना चाहिए.

– गीता शर्मा

Geeta Sharma

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