मैं उसे कभी बड़ा होने नहीं दूंगी, क्योंकि वह बच्चा मुझे ख़ुश रहना सिखाता है. मुझे ज़िंदा रखता है. मुझमें आशा का संचार करता है. मुझे हमेशा उत्साहित रखता है. मुझे बहुत छोटी-छोटी बातों पर ख़ुश होना सिखाता है.
एक छोटा बच्चा है, जो बहुत ख़ुश रहना चाहता है, हर दर्द, हर दुख-तकलीफ़ से दूर जीवन के हर पल का आनंद उठाना चाहता है और जानता भी है. इन बारिशों के दिनों में उसका मन करता है, सुबह-सुबह उठकर हर काम छोड़कर बारिश में ख़ूब भीगे, खेले, सोसायटी के गार्डन में लगे झूले पर बारिश में भीगते हुए ख़ूब झूले. न मिट्टी से उलझन हो, न भीगे कपड़ों से. वह बच्चा कैलोरीज़ की चिंता किए बिना मनपसंद तली-भुनी चीज़ें खाना चाहता है, इसलिए कभी-कभी बिना मन मारे खा भी लेता है.
उसका मन करता है, अपने प्रिय गाने पर उठकर सबके सामने ही ताल से ताल मिला ले, पर सबके सामने न सही अकेले में ख़ुश होकर मनपसंद संगीत पर थिरक ही उठता है. कभी-कभी अपने जैसे किसी दोस्त के साथ साफ़-सफ़ाई को दरकिनार रख सड़क किनारे खड़े हुए गोलगप्पे, कुल्फी के ठेलों पर अंदर की ख़ुशी को दबाता हुआ मुस्कुराते हुए खड़ा होकर आनंद उठा ही लेता है. अमित जब ऑफिस के लिए निकलते हैं, वह बच्चा उन्हें तब तक देखता है, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो जाते और अगर अमित मोबाइल फोन पर बात करते हुए अपनी धुन में निकल जाएं, पीछे मुड़कर हाथ हिलाकर बाय न करें, तो वह देर तक उदास रहता है. सोचता है, क्या मेरे लिए उनके पास इतना भी समय नहीं कि जो यह छोटी-सी बात उस बच्चे को अच्छी लगती हो, वही बात अमित भूल जाएं. फिर वह दिनभर मन ही मन ईश्वर से अमित की सलामती की प्रार्थना करता रहता है. सौरभ और सुरभि को देखकर तो वह बच्चा खिलखिला उठता है. उनके उठने से लेकर रात के सोने तक वह बच्चा उनके आसपास मंडराता रहता है, उनके साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताने की चाह में. सौरभ-सुरभि जब उसे उसका मनचाहा समय न देकर अपने फोन, टीवी या लैपटॉप में लगे रहते हैं, वह बच्चा मन ही मन बहुत उदास होता है, लेकिन वह अपने चेहरे से यह ज़ाहिर नहीं होने देता. फिर वह भी चुपचाप अपने किसी काम में लग जाता है.
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उस बच्चे को कुछ नहीं चाहिए, न महंगे कपड़े, न शानदार गिफ्ट्स, वह तो बस अमित, सौरभ-सुरभि के साथ कुछ पल बिताकर ही ख़ुश हो जाता है. वह कितना भी उदास हो, अपने पास इन तीनों की उपस्थिति से ही खिल उठता है.
वह छोटा बच्चा कहीं और नहीं, मेरे मन में छुपा है, मुझमें जीता है, जो पति के साथ, बच्चों के साथ बैठकर कुछ समय बिताकर, जी भरकर हंस-बोलकर अपना जीवन बिताना चाहता है. बच्चे ही तो कई बार कहते हैं, “मॉम, ऐसा लगता है मन से आप बिल्कुल बच्ची हैं.” मैं कहती हूं, “हां, तुम दोनों ने सही अंदाज़ा लगाया है.” अमित के मुंह से भी कई बार सुना है, “सिया, इस घर में दो नहीं, तीन बच्चे हैं.” हां, सच ही तो है, अब तो मैं रात-दिन यह बात महसूस करती हूं और स्वीकार भी कि हां, एक छोटा बच्चा छुपा है मेरे अंदर, जिसे मैं चाहती भी नहीं कि वह कभी बड़ा हो. मैं उसे कभी बड़ा होने भी नहीं दूंगी, क्योंकि वह बच्चा मुझे ख़ुश रहना सिखाता है. मुझे ज़िंदा रखता है. मुझमें आशा का संचार करता है. मुझे हमेशा उत्साहित रखता है. मुझे बहुत छोटी-छोटी बातों पर ख़ुश होना सिखाता है.
कभी-कभी मुझे लगता है हम सबमें छुपा है एक बच्चा, जो व़क्त के थपेड़े खाकर कहीं गुम होता चला जाता है. उसे गुम न होने दें. उसे अंदर ही अंदर प्यार से सहलाते रहें. जानती हूं मैं वह कहीं खो गया, तो मैं भी खो जाऊंगी इस दुनिया की आपाधापी में, जीवन की भागदौड़ में.जगजीत सिंह की वह ग़ज़ल है न- ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो, मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी… यह लिखनेवाले के दिल में भी यक़ीनन एक छोटा बच्चा था.
– हिना अहमद
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