घर-आंगन का शृंगार है बेटियां
रिश्तों का आधार है बेटियां
आज राष्ट्रीय बालिका दिवस यानी नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर देशभर में बालिकाओं को ख़ूब याद किया जा रहा है. आज के दिन को मनाने का विशेष प्रयोजन लड़कियों से जुड़ी भ्रांतियां, कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, बेटियों को लेकर सभी में जागरूकता लाना आदि है. आज हम सभी को समझना होगा कि लड़कियां न केवल हमारा बेहतरीन आज है, बल्कि सुनहरा भविष्य भी हैं.
एकबारगी देखें, तो परवरिश, शिक्षा, खानपान से लेकर सम्मान, अधिकार, सुरक्षा आदि में बालिका शिशु के साथ भेदभाव किया जाता है. यहां तक की इलाज में भी असमानताएं बरती जाती है. इसलिए आज सभी को लड़का-लड़की में भेदभाव न करने और देश में व्याप्त लिंग अनुपात की असमानता को ठीक करने का प्रण लेना चाहिए, क्योंकि यह लिंगानुपात 933:1000 है.
* हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है.
* इसकी शुरुआत 2009 से की गई.
* इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य-
– बालिका शिशु की भूमिका व महत्व के प्रति सभी को जागरूक करना है.
– देश में बाल लिंगानुपात को दूर करने के लिए काम करना है.
– कोशिश यह रहनी चाहिए कि हर बेटी को समाज में उचित मान-सम्मान मिलें.
– लड़कियों को उनका अधिकार प्राप्त हो.
– बालिका के पालन-पोषण, सेहत, पढ़ाई, अधिकार पर विचार-विमर्श करना और उल्लेखनीय क़दम उठाना.
* इस दिन देशभर में बालिकाओं को लेकर बने क़ानून के बारे में सभी को बताया जाता है.
* बाल-विवाह, घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना आदि को लेकर विचार किया जाता है और सार्थक पहल करने पर निर्णय लिया जाता है.
* आज ही के दिन बालिका शिशु बचाओ के संदेश द्वारा अख़बारों, रेडियो, टीवी आदि जगहों पर सरकार, एनजीओ, गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाता है.
* पिता और पुत्री में एक बात आम होती है कि दोनों ही अपनी गुड़िया को बहुत प्यार करते हैं…
* खिलती हुई कलियां हैं बेटियां, मां-बाप का दर्द समझती हैं बेटियां
घर को रोशन करती हैं बेटियां, लड़के आज हैं, तो आनेवाला कल है बेटियां…
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बालिका दिवस पर ख़ास कविताएं…
बहुत चंचल बहुत ख़ुशनुमा-सी होती हैं बेटियां
नाज़ुक-सा दिल रखती हैं, मासूम-सी होती हैं बेटियां
बात-बात पर रोती हैं, नादान-सी होती हैं बेटियां
रहमत से भरभूर खुदा की नेमत हैं बेटियां
हर घर महक उठता है, जहां मुस्कुराती हैं बेटिया
अजीब-सी तकलीफ़ होती है, जब दूर जाती हैं बेटियां
घर लगता है सूना-सूना पल-पल याद आती हैं बेटियां
ख़ुशी की झलक और हर बाबुल की लाड़ली होती हैं बेटियां
ये हम नहीं कहते ये तो रब कहता है कि जब मैं ख़ुश रहता हूं, जो जन्म लेती हैं बेटियां…
फूलों-सी नाज़ुक, चांद-सी उजली मेरी गुड़िया
मेरी तो अपनी एक बस, यही प्यारी-सी दुनिया
सरगम से लहक उठता मेरा आंगन
चलने से उसके, जब बजती पायलिया
जल तरंग-सी छिड़ जाती है
जब तुतलाती बोले, मेरी गुड़िया
गद-गद दिल मेरा हो जाए
बाबा-बाबा कहकर, लिपटे जब गुड़िया
कभी घोड़ा मुझे बनाकर, खुद सवारी करती गुड़िया
बड़ी भली-सी लगती है, जब मिट्टी में सनती गुड़िया
दफ्तर से जब लौटकर आऊं
दौड़कर पानी लाती गुड़िया
कभी जो मैं, उसकी माँ से लड़ जाऊं
ख़ूब डांटती नन्ही-सी गुड़िया
फिर दोनों में सुलह कराती
प्यारी-प्यारी बातों से गुड़िया
मेरी तो वो कमज़ोरी है, मेरी सांसों की डोरी है
प्यारी नन्ही-सी मेरी गुड़िया…
सच में कल, आज और कल का प्यार-स्नेह, दया-ममता, अपनापन व सुनहरा भविष्य हैं बेटियां…
– ऊषा गुप्ता
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