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पंचतंत्र की कहानी: झील का राक्षस (Panchtantra Ki Kahani: The Monster Of The Lake)

एक जंगल में सभी जानवर मिलजुल कर रहते थे. उस जंगल में एक बहुत ही विशाल व सुंदर झील थी. जंगल के सभी जानवर उसी झील के पानी से अपनी प्यास बुझाते थे. सब कुछ हंसी-ख़ुशी चल रहा था कि इसी बीच न जाने कहां से एक भयानक राक्षस उस झील में रहने के लिए आ गया. उस राक्षस ने उस झील पर कब्ज़ा कर लिया और झील को ही अपना घर बना लिया. राक्षस ने जंगल के सभी जानवरों को उस झील में घुसने से व वहां का पानी इस्तेमाल करने से मना कर दिया.

इसी जंगल में बंदरों की एक विशाल टोली भी रहती थी. इस परेशानी से निपटने के लिए बंदरों ने सभा बुलाई. बंदरों के सरदार ने सभी बंदरों से कहा, “साथियो! हमारी झील पर एक राक्षस ने कब्ज़ा कर लिया और अगर हम में से कोई भी वहां गया, तो वो हमें खा जाएगा.”
बंदरों ने अपने सरदार से कहा, “लेकिन सरदार, पानी के बिना हमारा गुज़ारा कैसे होगा? हम तो प्यासे ही मर जाएंगे…”
सरदार ने कहा, “मुझे सब पता है, लेकिन अगर हमें सुख-शांति से रहना है, तो झील को छोड़ना ही होगा. बेहतर होगा कि हम सब नदी के पानी से ही गुज़ारा करें और झील के पानी का भूल ही जाएं.” सभी बंदर मान गए.

कई साल गुज़र गए और इस बीच जंगल के किसी भी जानवर ने उस झील की ओर रुख तक नहीं किया. तभी बहुत बड़ा अकाल पड़ा. नदी सूख चुकी थी. खाने और पानी की किल्लत के चलते जंगल के सभी जानवर उस जंगल को छोड़कर जाने लगे, लेकिन बंदरों को टोली को इस जंगल से बेहद लगाव था. उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए बैठक बुलाई. सभी बंदरों ने कहा, “अगर जल्द ही पानी की व्यवस्था नहीं हुई, तो हम सब मर जाएंगे. क्यों न हम झील का पानी इस्तेमाल करें, वहां का पानी कभी नहीं सूखता, लेकिन क्या वो राक्षस मानेगा?”
बंदरों के सरदार ने कहा, “एक तरीक़ा है, हम सबको उस राक्षस से विनती करनी चाहिए, शायद उसको हम पर तरस आ जाए और वो मान जाए.”

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सभी बंदर झील के पास गए. बंदरों के सरदार ने झील के राक्षस को आवाज़ दी, “झील के मालिक, कृपया बाहर आकर हमारी विनती सुनें.”
थोड़ी देर में ही झील में से राक्षस बाहर निकला. उसकी आंखें गुस्से से लाल थीं. वो ज़ोर से चिंघाड़ते हुए बोला, “तुम लोग कौन हो और यहां क्यों आए हो? मैं आराम कर रहा था, मेरी नींद क्यों ख़राब की, इसका अंजाम जानते नहीं हो क्या?”


राक्षस की बात सुनकर बंदरों का सरदार विनती करते हुए दयनीय आवाज़ में बोलता है, “सरदार, महाराज, आप शक्तिशाली और महान हैं. इस जंगल में बहुत बड़ा अकाल पड़ा है. भूख-प्यास से सभी जानवर बेहाल है. अगर पानी नहीं मिला, तो हम सब मर जाएंगे. हम आपसे इस झील का पानी पीने की इजाज़त चाहते हैं.”

राक्षस और गुस्से में बोलता है, “मैं तुम में से किसी को भी इस झील में घुसने नहीं दुंगा, अगर किसी ने हिम्मत की, तो मैं उसे खा जाऊंगा.” यह बोलकर राक्षस वापस झील में चला जाता है.

सभी बंदर बेहद निराश-हताश हो जाते हैं. लेकिन बंदरों का सरदार कुछ सोचता रहता है. उसे एक तरकीब सूझती है. वो सभी बंदरों को बोलता है, “तुम में से कुछ बंदर झील के पास ही एक गहरा गड्ढा खोदो और बाकी के बंदर मेरे साथ बांस के खेत में चलो.”

बंदरों का सरदार बंदरों को लेकर बांस के खेत में चला गया. वहां जाकर उसने बंदरों को खेत के कुछ लंबे व मज़बूत बांसों को काटने का आदेश दिया. बंदरों ने अपना काम कर दिया. वहीं दूसरी ओर झील के पास भी गड्ढा खोदा जा चुका था. बंदरों के सरदार ने बांस लिया और बांस का एक सिरा झील में डुबाया और दूसरा सिरे को गड्ढे की तरफ़ मोड़कर उसमें से ज़ोर-ज़ोर से तब तक सांस खींचता रहा, जब तक कि उसमें से पानी न आ गया हो. देखते ही देखते झील में से पानी उस गड्ढे में जमा होता गया. यह देखकर झील का राक्षस गुस्से में बाहर आया, लेकिन चूंकि सारे बंदर झील के बाहर थे, तो वो उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका. राक्षस गुस्से में ही वापस झील में चला गया. बंदरों ने ख़ुशी-ख़ुशी झील का मीठा पानी खूब मज़े से पिया.


सीख: बुद्धि बल से बड़ी होती है. चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, बुद्धि व समझदारी के सामने उसका बल मायने नहीं रखता, इसलिए बड़ी से बड़ी मुसीबत के समय भी अपना संयम नहीं खोना चाहिए और बुद्धि से काम लेना चाहिए.

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Geeta Sharma

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