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पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट: बुज़ुर्ग जानें अपने अधिकार (Parents And Senior Citizens Act: Know Your Rights)

‘बेटे-बहू ने हमें नौकर बनाकर रख दिया था…’ ‘मेरा भतीजा मुझे बेरहमी से मारता था…’ ‘बेटे के घर में रोज़ मुझे स़िर्फ दो रोटी मिलती थी…’ ‘बेटा हर रोज़ पूछता था कब मरोगी…’ ये दर्द बयां किए हैं कुछ ऐसे बुज़ुर्गों ने जिनके अपनों ने उनके साथ ग़ैरों से भी बुरा सुलूक किया. पिछले कुछ सालों में हमारे समाज में ऐसा क्या हो गया है कि ख़ून के रिश्ते ही अपनों को ख़ून के आंसू रुला रहे हैं. आख़िर क्यों बढ़ रहे हैं शोषण के ये मामले और कहां जा रहा है हमारा
सभ्य समाज?

 

बुज़ुर्गों के शोषण के मामले

कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफ़ी वायरल हुआ था, जिसमें एक बहू ने अपनी सास को बेरहमी से इसलिए पीटा,  क्योंकि उन्होंने बिना बहू को पूछे गमले से फूल तोड़ लिया था. बुज़ुर्ग महिला एम्नेज़िया (भूलने की बीमारी) से पीड़ित थीं. यह वीडियो उनकी पड़ोसन ने बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया, जिसे देखकर लोगों में काफ़ी आक्रोश रहा. आजकल ऐसे कई वीडियोज़ आपको देखने को मिल जाएंगे, लेकिन कितनों की सच्चाई यूं सामने आ पाती है? क्या पता आपके पड़ोस में ही किसी बुज़ुर्ग के साथ शोषण हो रहा हो, लेकिन आपको इसकी बिल्कुल ख़बर नहीं.

शोषण के बढ़ते मामले

हेल्पएज इंडिया नामक एनजीओ द्वारा किए गए सर्वे में यह बात सामने आई कि हमारे देश में हर चार में से एक बुज़ुर्ग अपने ही परिवार द्वारा शोषण का शिकार हो रहा है.

*     देशभर के 23 शहरों में 60 साल की उम्र से अधिक के 5014 बुज़ुर्गों पर किए गए इस सर्वे में पता चला कि 25% बुज़ुर्ग रोज़ाना शोषण के शिकार हो रहे हैं.

*     इसमें यह बात भी सामने आई कि पिछले 5 सालों में बुज़ुर्गों के ख़िलाफ़ शोषण के मामले बहुत तेज़ी से बढ़े हैं.

*     सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि 48% पुरुष और 52% महिलाएं शोषण का शिकार हो रही हैं. पुरुषों के मुक़ाबले महिलाएं इसकी ज़्यादा शिकार हैं.

*     सर्वे में मैंगलोर शहर में शोषण के सबसे ज़्यादा मामले पाए गए, वहीं अहमदाबाद, भोपाल, अमृतसर, दिल्ली, कानपुर जैसे बड़े शहर भी इस लिस्ट में शामिल हैं.

क्यों बढ़ रहे हैं मामले?

बदलती लाइफस्टाइल और सामाजिक परिवेश ने कहीं न कहीं रिश्तों में भी असंवेदनशीलता बढ़ा दी है, वरना माता-पिता को भगवान का सम्मान देनेवाले इस देश में उनके साथ इतना बुरा व्यवहार न होता.

*     एकल परिवारों के बढ़ते चलन के कारण बुज़ुर्गों की ज़िम्मेदारी कौन लेगा, इसके लिए भी बच्चों में समझौते होने लगे हैं.

*     शहरों की महंगी लाइफस्टाइल में बुज़ुर्गों पर होनेवाले मेडिकल ख़र्चों को बच्चे बोझ समझने लगे हैं.

*     अपने स्वार्थ के लिए पैरेंट्स को अपने पास रखनेवाले अपना स्वार्थ पूरा होते ही उनसे किनारा कर लेते हैं.

*     आज की पीढ़ी के पास न समय है और न ही सब्र, यही कारण है कि शोषण के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं.

क्या कहता है क़ानून?

आज़ादी के 60 सालों बाद सरकार को बुज़ुर्गों का ख़्याल आया. ख़ैर देर से ही सही मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीज़न्स एक्ट, 2007 का क़ानून लाया गया. इसके तहत अगर पैरेंट्स कोर्ट जाएं, तो कोर्ट उनके बच्चों को मेंटेनेंस देने का आदेश दे सकता है. ऐसे में बच्चे अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं पाएंगे.

*     ज़्यादातर पैरेंट्स अपनी प्रॉपर्टी बच्चों के नाम ट्रांसफर कर देते हैं, ताकि बुढ़ापे में बच्चे उनकी देखभाल करें, पर प्रॉपर्टी मिलते ही बहुत से बच्चे बदल जाते हैं और पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी से मुकरने लगते हैं, ऐसे में इस क़ानून के ज़रिए उन्हें मेंटेनेंस दिलाया जाता है.

*     बुज़ुर्ग पैरेंट्स में स़िर्फ सगे माता-पिता ही नहीं, बल्कि सौतेले

माता-पिता या फिर सीनियर सिटीज़न भी शामिल हैं.

*     बच्चों का क़ानूनन फ़र्ज़ है कि वो अपने बुज़ुर्ग पैरेंट्स की देखभाल करें. ज़िम्मेदारी पूरी न करना और उन्हें परेशान करना, शोषित करना, प्रताड़ित करना क़ानूनन अपराध है.

*     पैरेंट्स मेंटेनेंस ट्रिब्युनल या डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में याचिका दाख़िल कर सकते हैं.

*     हर महीने मिलनेवाले मेंटेनेंस से बुज़ुर्ग अपने खाने, कपड़े, रहने की व्यवस्था और मेडिकल ख़र्चों को पूरा कर पाएंगे.

*     इसके तहत हर महीने अधिकतम 10 हज़ार तक के मेंटेनेंस का प्रावधान है.

*     कोर्ट का आदेश न मानने की सूरत में बच्चों को 5 हज़ार का जुर्माना या 3 महीने की जेल हो सकती है.

*     इसके अलावा बुज़ुर्ग महिला पर अगर अत्याचार हो, तो वो घरेलू हिंसा क़ानून के तहत भी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं.

*     महज़ 10 हज़ार के मेंटेनेंस से इस महंगाई में गुज़ारा करना बहुत मुश्किल है, इसलिए सरकार इस क़ानून में कुछ ज़रूरी संशोधन कर रही है और मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटिज़न्स एक्ट, 2018 का ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है. जल्दी ही इसे क़ानूनी जामा पहनाया जाएगा.

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यह भी पढ़ें: ख़ुद बनाएं अपनी वसीयत, जानें ज़रूरी बातें (Guidelines To Make Your Own Will)

क्यों शिकायत नहीं करते बुज़ुर्ग?

अब सवाल यह आता है कि आख़िर क्यों पैरेंट्स इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि कोर्ट का दरवाज़ा नहीं खटखटाते?

*     वो फाइनेंशियली और इमोशनली बेटे-बहू या बेटी-दामाद पर आश्रित होते हैं.

*     परिवार का नाम ख़राब होने का डर.

*     बेटे को लोग बुरा-भला कहेंगे, जो उन्हें अच्छा नहीं लगता.

*     ये सोच कि बुढ़ापे में यह तो सबको झेलना पड़ता है.

*     पिछले जन्म के कर्मों का फल मानकर चुपचाप सहन करते हैं.

*     क़ानूनी कार्यवाही में व़क्त लगता है, तब तक बच्चों ने घर से निकाल दिया तो कहां जाएंगे. ये डर भी रहता है.

*     10 हज़ार रुपए के लिए बेटा जेल जाए, उससे अच्छा तो वो भीख मांगकर खा लेंगे. बुढ़ापे में उनके लिए मुसीबत नहीं बनना चाहते.

अब आप ही सोचें, अगर पैरेंट्स ख़ुद को मुसीबत मानकर चुप बैठ जाएंगे, तो भला क़ानून कहां तक उनकी मदद कर पाएगा.

बुज़ुर्ग पैरेंट्स जानें अपने अधिकार

*     अगर आपके बच्चे आपकी देखभाल करने की बजाय आपका शोषण करते हैं, तो आप उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

*     अगर घर आपके नाम पर है, तो यह आपकी इच्छा पर है कि आप बेटे-बहू या बेटी-दामाद को अपने साथ रखना चाहते हैं या नहीं.

*     मेंटेनेंस  एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटिज़न्स, 2007 के तहत आप मेंटेनेंस का अधिकार रखते हैं.

*     अगर बच्चे आपकी प्रॉपर्टी पर ज़बर्दस्ती कब्ज़ा करने की कोशिश करें, तो आप उन्हें घर से निकाल सकते हैं.

हर बुज़ुर्ग को पता हों ये फैसले

*     हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण ़फैसला दिया, जिसमें उन्होंने सभी बुज़ुर्ग पैरेंट्स को यह अधिकार दिया है कि अगर उनका बेटा उनकी देखभाल नहीं करता और उन्होंने अपनी प्रॉपर्टी का हिस्सा गिफ्ट डीड के ज़रिए उसके नाम कर दिया है, तो वे वो प्रॉपर्टी वापस ले सकते हैं. वो गिफ्ट डीड कैंसल करवा सकते हैं.

*     एक और महत्वपूर्ण मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया कि यह पूरी तरह से पैंरेंट्स की इच्छा पर है कि वो अपने घर में बच्चों और पोते-पोतियों को रखना चाहते हैं या नहीं. बच्चे ज़बर्दस्ती उनके घर में नहीं रह सकते. अगर घर बुज़ुर्ग पैरेंट्स के नाम पर है और बच्चे उनकी देखभाल नहीं कर रहे या उन्हें ख़र्च नहीं दे रहे, तो वे उन्हें अपने घर से निकाल सकते हैं.

*     पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण ़फैसले में बेटे-बहू को उनकी मां का घर छोड़ने का आदेश दिया, जबकि बेटे का कहना था कि पिता की प्रॉपर्टी होने के नाते उसमें उसका भी हक़ है, इसलिए वह घर खाली नहीं करेगा. कोर्ट ने बेटे को फटकार लगाते हुए कहा कि मां का शोषण करनेवालों को उनके साथ रहने का कोई हक़ नहीं है. बुज़ुर्गों को यह अधिकार है कि वो अपनी प्रॉपर्टी की सुरक्षा के लिए जिसे चाहें रखें और जिसे चाहें घर से निकाल दें.

कैसे बचें शोषण से?

*     बुज़ुर्गों के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वो अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचाकर रखें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर बच्चों पर आश्रित होना न पड़े. आर्थिक निर्भरता ही बुढ़ापे में आपकी ताक़त बनेगी.

*     सीनियर सिटीज़न पेंशन स्कीम आदि में निवेश करके रखें, ताकि रिटायरमेंट के बाद हर महीने एक तय रक़म आपको मिलती रहे.

*     भावनाओं में बहकर बच्चों के नाम प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने की बजाय वसीयत बनाएं, जो आपके न रहने पर लागू हो.

*     आपकी सुरक्षा आपके अपने हाथ में है, अगर बच्चे आपका शोषण कर रहे हैं, तो उनके ख़िलाफ़ शिकायत करें.

*     समाज में बदनामी के डर से ख़ुद को शोषित न होने दें. आपकी जागरूकता ही आपकी सुरक्षा की गारंटी है.

ज़रूरत है सख़्त सरकारी पहल की

*     मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीज़न्स एक्ट, 2007 के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए जाएं.

*     वरिष्ठ नागरिकों के लिए मेडिकल की सुविधाएं मुफ़्त होनी चाहिए.

*     सीनियर सिटीज़न होते ही बहुत-सी मेडिक्लेम सुविधाएं बंद हो जाती हैं, इसके लिए सरकार को ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए, ताकि बुज़ुर्गों के लिए बुढ़ापा बीमारी न बने.

* शोषण करनेवाले बच्चों को कड़ी सज़ा दी जाए और समाज ख़ुद उन्हें बहिष्कृत करे.

* स्कूलों और कॉलेजेस में बुज़ुर्गों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ानेवाले कार्यक्रम आयोजित किए जाएं.

देखभाल करनेवालों को टैक्स बेनीफिट

आर्थिक तंगी का बहाना बनाकर बुज़ुर्गों की देखभाल से कन्नी काटनेवालों के लिए महाराष्ट्र सरकार टैक्स कंसेशन प्रपोज़ल लेकर आ रही है. इसके तहत पैरेंट्स की देखभाल और ख़र्च उठानेवालों को सरकार टैक्स में 10% तक की छूट देगी. महाराष्ट्र सरकार का यह क़दम असम सरकार से प्रेरित है. असम में जो बच्चे अपने बुज़ुर्ग पैरेंट्स की देखभाल नहीं करते, उनकी तनख़्वाह से 10% काटकर उनके पैरेंट्स के अकाउंट में जमा कर दिया जाता है. उम्मीद है यह प्रपोज़ल जल्द ही लागू हो, ताकि बुज़ुर्गों की हालत में सुधार हो.

– अनीता सिंह 

यह भी पढ़ें: हर महिला को पता होना चाहिए रिप्रोडक्टिव राइट्स (मातृत्व अधिकार)(Every Woman Must Know These Reproductive Rights)

Aneeta Singh

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