मम्मी-पापा का प्रोत्साहन मिलते रहने से बच्चों में हर काम को करने की लगन रहती है, फिर चाहे वो पढ़ाई हो, स्कूल का होमवर्क या फिर घर के छोटे-मोटे काम. मनोवैज्ञानिक रेखा कुंदर ने चाइल्ड-पैरेंट्स के रिश्तों को लेकर कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया.
जीवनसाथी को लेकर नज़रिया
पति-पत्नी का आपसी प्यार भरा व्यवहार बच्चे के भविष्य के प्रेमपूर्ण जीवन की नींव रखता है. कहीं अंतर्मन में यह भी तय हो जाता है कि घर में दामाद या बहू के साथ ऐसे ही मधुर रिश्ते होंगे. अमूमन पिता के ग़ुस्सैल व कठोर स्वभाव का असर बेटियों पर पड़ता है, तो वहीं मां का बुरा व्यवहार बेटों को प्रभावित करता है. बच्चे भविष्य में अपने जीवनसाथी को लेकर इसी तरह के व्यवहारों से आकलन करते हैं.
आपसी सहयोग की भावना, एक-दूसरे को रिस्पेक्ट देना, स्पेस देना न केवल पैरेंट्स के रिश्तों को मज़बूत बनाता है, बल्कि बच्चे की भी अभिभावक के साथ स्ट्रॉन्ग बॉन्डिंग बनाता है. इसके अलावा अपने पार्टनर को लेकर उनकी सोच सकारात्मक होती है.
दरअसल, अपने पैरेंट्स के रिश्ते में लगाव-प्यार देखकर बच्चे की ज़िंदगी में भी सकारात्मकता आती है. जिन कपल्स के बीच कलह कम और प्यार अधिक होता है, उनके बच्चे अधिक कॉन्फिडेंट भी होते हैं.
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सुनहरे भविष्य की नींव
जब बच्चे स्कूल, दोस्तों, रिश्तेदारों से लेकर अपनी इच्छा, पसंद-नापसंद को खुलकर पापा-मम्मी से बताने लगते हैं, तब यह इस बात का संकेत होता है कि वे अपने पैरेंट्स से किस कदर गहराई से जुड़े हुए हैं. पैरेंट्स को अपनी दिनचर्या, सब बातें बताए बगैर उन्हें चैन नहीं मिलता और न ही उनका दिन पूरा होता है. इन्हीं सब से आगे चलकर बच्चे के सुनहरे भविष्य की नींव पड़ती है.
पहली टीचर मां ही होती है…
पति-पत्नी का आपसी सामंजस्य बच्चों में जीवन के प्रति समझौतावादी दृष्टिकोण रखने के लिए प्रेरित करता है. ज़िंदगी जीने की कला बच्चों में माता-पिता से ही सबसे पहले आती है. वैसे भी कहा जाता है कि बच्चे की पहली टीचर तो उसकी मां ही होती है और पिता बाहरी दुनिया से तालमेल बैठाने का हौसला देते हैं.
हाल ही में हुई एक स्टडी से इस बात को और भी मज़बूती मिली है कि बच्चे-पैरेेंट्स के रिश्ते ही अन्य सभी रिश्तों की बुनियाद रखते हैं, विशेषकर बच्चे का स्कूल में और दोस्तों के साथ कैसा व्यवहार रहेगा, जीवनसाथी के प्रति रवैया कैसा होगा, वो जीवन की चुनौतियों को किस तरह से हैंडल करेगा… इन तमाम चीज़ों की पृष्ठभूमि चार-पांच साल की उम्र में ही बनने लगती है.
यहां पर पैरेंटिंग भी चैलेंजिंग हो जाती है. यदि माता-पिता बच्चे के साथ स्नेहभरा, प्रेमपूर्ण बर्ताव करते हैं, तब बच्चे में भी कहीं न कहीं दया, सहानुभूति और करूणा की भावना पनपने लगती है. प्रकृति का नियम कहें या फिर मनोवैज्ञानिक पहलू की, हम जो देते या करते हैं, उसका प्रतिफल भी उसी के अनुकूल मिलता है. बच्चों को बचपन से ही पैरेंट्स का भरपूर प्यार भरा साथ मिलने से उनका ख़ुशहाल भविष्य तय हो जाता है.
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इसके विपरीत यदि छोटेपन से बच्चों के साथ कठोर व उपेक्षित व्यवहार किया जाता है, तो उनके अंतर्मन पर इसका बुरा असर पड़ता है. जैसे-जैसे वो बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे वो अपने आपमें सिमटता जाता है. पैरेंट्स के प्रति आक्रोश, सहपाठियों के साथ विद्रोही बर्ताव भी बढ़ने लगता है. इसमें पति-पत्नी के आपसी मतभेद, झगड़े भी अहम् भूमिका निभाते हैं. उन्हें हर समय लड़ते, ग़ुस्सा होते देख, बच्चा भी अपने जीवन में प्रतिकार को हथियार बना लेेता है. उसे लगता है कि जीवन जीने का यही तरीक़ा सही है, क्योंकि उसके मम्मी-पापा ऐसा करते हैं. रिश्तों को लेकर कड़वाहट भी बढ़ने लगती है, क्योंकि घर का माहौल अक्सर तनावपूर्ण रहता है.
बच्चे विद्रोही बनने लगते हैं
पति का पत्नी के प्रति असभ्य व्यवहार, प्रताड़ना, उसी तरह पत्नी का पति के साथ अशिष्ट व्यवहार, कलह करना आदि बच्चे के दिलोदिमाग़ पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. ऐसे माहौल में उसके मन में दूसरों के प्रति दया भाव कम होता जाता है. वह समझने लगता है कि अपनी बात को मनवाने के लिए दबाव बनाना और सख्ती दिखाना ही सही तरीक़ा है. इस कारण बच्चे विद्रोही बनने लगते हैं.
रिसर्च
इंग्लैंड में किए गए एक शोध के अनुसार, बच्चे कितने सोशल, स्नेही, नम्र, व्यावहारिक हैं, यह उनके माता-पिता के साथ उनके संबंधों पर आधारित होता है. यदि बच्चों का पैरेंट्स के साथ गहरा जुड़ाव और प्यार है, तो बच्चा भी सामाजिक होने के साथ-साथ सबसे मधुर संबंध रखता है. यानी रिसर्च से यह बात साबित होती है कि अभिभावकों का बच्चों के जीवन पर कितना अधिक प्रभाव रहता है.
जिन अभिभावकों ने अपने बच्चों के साथ भरपूर क्वालिटी टाइम बिताया, उनकी ख़ुशी-ग़म को समझा और अपना सहयोग दिया, वे बच्चे भविष्य में उतने ही ज़िंदादिल, ख़ुशमिज़ाज और सहयोगी बनते हैं.
पैरेंट्स अलर्ट…
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक नए रिसर्च द्वारा यह बात भी प्रकाश में आई है कि यदि बचपन में अभिभावकों के साथ हेल्दी रिलेशन रहता है, तो बच्चों का मेंटल हेल्थ भी बढ़िया रहता है. वहीं बचपन में उनसे दूरी बच्चे को एकांतवासी के साथ निगेटिव प्रवृति वाली बनाती है. इसलिए यह ज़रूरी है कि पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ फ्रैंडली होने के साथ-साथ उनका सही मार्गदर्शन भी करें. बच्चे की पहली स्कूल तो घर ही है. वो यहीं से तो प्यार, ख़ुशी, सही-ग़लत, दया, सहयोग आदि सीखते-समझते हैं. रिश्तों से जुड़ते हैं.
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