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व्यंग्य- एक शायर की ‘मी टू’ पीड़ा… (Satire- Ek Shayar Ki ‘Me Too’ Peeda…)

इतिहास गवाह है कि किसी भी जेनुईन शायर ने अपनी प्रजाति बदलने की कोशिश नहीं की. न ही उसने अपनी शायरी के अलावा किसी और बात का क्रेडिट लिया. वैसे भी जिस पर शायर का ठप्पा लग गया, वह बस शायर ही रहा और कुछ नहीं बन पाया. उसकी शक्ल ही अलग-सी हो जाती है शायराना टाइप, जिसे देखकर दूर से ही अंदाज़ा लग जाता है कि फलाना शायर चला आ रहा है.

आपसे क्या बताएं, कोई मुझसे पूछे, तो मैं शायरों की बातें न ही करूं पर क्या करें इनके बिना गुज़ारा भी तो नहीं है.
गीत-गाने, सुर-ताल, रस-छंद, दोहे, सोरठा ग्रंथ, महाकाव्य सब इनकी बदौलत ही तो हैं. शायर का कलाम बढ़िया हो, तो एक से एक अदना सिंगर स्टार बन जाए, एक मामूली हीरो भी हिट हो जाए, एक साधारण-सा प्रोड्यूसर भी नाम कमा लें और डायरेक्टर के तो कहने ही क्या! काम किसी और का नाम उसका.
वैसे ही अगर किसी फिल्म में स्टोरी, गीत और डायलाॅग अच्छे न हों, तो बड़े से बड़ा हीरो फ्लाप होते देर नहीं लगती, नामी प्रोड्यूसर और डायरेक्टर भी ऐसी फिल्म की नैया डूबने से नहीं बचा सकते.
ख़ैर यह स्टोरी और डायलाॅग वाला मामला दूसरा है, गीत-ग़ज़ल और शायरीवाला दूसरा. एक अच्छा शायर एक अच्छा गीतकार, बस शायर और गीतकार ही होता है. यह अलग बात है कि बहुत से स्टोरी राइटर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर या फिर एक्टर ख़ुद को मल्टी टैलेंटेड घोषित कर देते हैं. वे फिल्म में गीत-गज़ल लिखने से लेकर उसे डायरेक्ट करने तक का क्रेडिट ख़ुद लूट लेते हैं. मगर इतिहास गवाह है कि किसी भी जेनुईन शायर ने अपनी प्रजाति बदलने की कोशिश नहीं की. न ही उसने अपनी शायरी के अलावा किसी और बात का क्रेडिट लिया. वैसे भी जिस पर शायर का ठप्पा लग गया, वह बस शायर ही रहा और कुछ नहीं बन पाया. उसकी शक्ल ही अलग-सी हो जाती है शायराना टाइप, जिसे देखकर दूर से ही अंदाज़ा लग जाता है कि फलाना शायर चला आ रहा है. बड़ी ही अजीब टाइप की शख्सियत होती है इनकी. इन्हें समझ पाना और उससे बड़ी बात यह कि इनके साथ निभा पाना बड़ा मुश्किल काम होता है.
कुछ पता नहीं इनका कि कब किस बात पर ख़ुश हो जाएं और कब किस बात पर किसी से नाराज़. ये बड़े मूडी क़िस्म के प्राणी होते हैं. मूड है तो ये कुछ भी कर डालेंगे और मूड नहीं है, तो एक लाइन नहीं लिखवा सकते आप इनसे.
अपनी रौ में आ जाएं, तो कहो एक ही दिन में कई फिल्मों का कोटा पूरा कर दें और मूड न बने तो बड़े से बड़े प्रोड्यूसर का एडवांस वापस कर दें. कभी लाखों का ऑफर ठुकरा दें, तो कहीं मुफ़्त में खड़े होकर सुनाने लगें.
कई बार स्टडी हुई कि आख़िर ये ऐसे होते क्यों हैं या कोई शख़्स शायर क्यों और कैसे बनता है, पर कोई सही और ठोस उत्तर इस मामले में मिल नहीं सका. एक आम धारणा घर कर गई कि जो लोग इश्क़ में असफल होते हैं, वे शायर बन जाते हैं, पर यह बात भी सही नहीं मालूम होती. ऐसा होता तो हर फ्लाॅप मजनू शायर होता, लेकिन न जाने कितने प्यार-व्यार में असफल लोग क्रिमिनल बन जाते हैं. कई तो समाज की दूसरी फील्ड चुनकर उसमें हाथ आज़माने लगते हैं, कुछ साधू-सन्यासी बन जाते हैं. कुछ प्रभु प्रेम में लीन हो जाते हैं. कहने का अर्थ यह कि शायर बन जाने का कोई हिट या डिफाइन फार्मूला नहीं है.
जो शायर हैं, उनकी एक ख़ासियत तो होती है, वे भीड़ को इम्प्रेस कर लेते हैं. जहां बड़े-बड़े लोग किसी से अपनी बात कहने में सोचते हुए पूरी उम्र निकाल देते हैं. वहीं ये दो मिनट में अनजान लोगों से भी ऐसे घुलमिल कर बातें करने लगते हैं, जैसे न जाने कितने जन्मों की जान-पहचान हो इनकी. ये लोग लेडीज़ के प्रति एक्स्ट्रा साॅफ्ट कार्नर रखते हैं, जिसका नतीज़ा यह कि कहीं भी इन्हें बड़ी जल्दी शायर होंने के नाते लेडीज़ की सिम्पैथी मिलते देर नहीं लगती.
पता नहीं क्यों मुझे तो लगता है इनमें चाहे जितने ऐब हों, चाहे ये स्मार्ट फिट और जिमनास्टिक बाॅडी न रखते हों, सेंटर ऑफ अट्रेक्शन बन ही जाते हैं. सभा समारोह हो, मुहल्ले का जलसा हो या किसी रिश्ते-नाते में पार्टी… ये सबसे व्यस्त नज़र आते हैं और ढेरों लोगों से घिरे हुए. कभी किसी को कुछ सुनाते हुए, तो कभी किसी पर कुछ सुनाते हुए. हाय इनकी नफासत और नजाकत का क्या कहना. जिसे देखकर अपना बना लें वह बस लुट जाए इनके अंदाज़ पर.
प्लीज़ मुझे रुकना पड़ेगा, वर्ना हारोस्कोप देखकर लोगों का भूत, भविष्य और उनके गुण-नेचर बताने वाले ज्योतिषाचार्य मुझसे नाराज़ हो जाएंगे. इस मामले में मेरे पास एकाधा फोन आ जाए. इन गुणी लोंगों का तो कोई बड़ी बात नहीं है. हो सकता है कोई नामी भविष्यवक्ता महोदय यह कह दें कि तुम मेरी फील्ड में इंटरफीयर क्यों कर रहे हो. इतना ही शौक है किसी के बारे में कुछ बताने का तो यह लिखना-पढ़ना छोड़कर ज्योतिष का अध्ययन करो और टीवी पर आ कर हमें चैलेंज करो, तब देखते हैं कितनी देर टिक पाते हो.
ख़ैर मुझे क्या पड़ी है कि मैं बैठे-बिठाये दुनियाभर के लोगों से पंगा लेता फिरू. इस मामले में मुझे संज्ञान इसलिए लेना पड़ा कि आज सुबह मुझसे मुहल्ले के सम्मानित शायर ‘बेचैन सुराहीवाले’ टकरा गए.
वैसे तो वे हमेशा अपने जिगर का दर्द सीने में दबाए हंसते-मुस्कुराते मिलते थे, पर आज न जाने क्यों मुझे लगा कि उनका दर्द चेहरे से लेकर शरीर तक छलका पड़ रहा है. यह जो फिजिकल दर्द होता है, वह बड़ा पीड़ादायक होता है. दिल-विल में दर्द हो, वह पलता रहे, आदमी शायरी-वायरी करता रहे. उससे फ़र्क नहीं पड़ता. हां, कभी-कभी ऐसे दिल का दर्द शौक से पालनेवालों को जब डाॅक्टर असली दिल के दर्द यानी हार्ट अटैक के ख़तरे के बारे में आगाह करता है, तो उसका नकली दर्द छूमंतर होते देर नहीं लगती. तब वह भूल जाता है कि अपने पाले हुए दिल के दर्द से शायर बना है. उस वक़्त उसे अपना दर्द सच में पीड़ा देने लगता है. वह जल्द से जल्द उससे छुटकारा पाने को बेचैन हो जाता है. वह पूछता है डाॅक्टर साहब यह जो दिल मेरे पास है और वह जो दिल आप बता रहे हैं, जिस पर हार्ट अटैक का ख़तरा मंडरा रहा है, वह एक ही है या अलग-अलग.
और जैसे ही डाॅक्टर कहता है कि सीने में दिल तो एक ही होता है और अटैक भी उसी पर आता है, यह शायर घबरा जाता है.
वह सोचता है यह जो दर्द मैंने पाला हुआ है हो न हो अटैक का कारण वही दर्द है, वह पूछता है, “डाॅक्टर साहब, अगर मैं अपने दिल के दर्द को मिटा लूं, तो क्या बाईपास सर्जरी नहीं करानी पड़ेगी?”

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और उस की ऐसी भोली बातें सुनकर डाॅक्टर सिर पकड़ लेता है, “कहता है, जनाब आप किस दिल और कौन से दर्द की बात कर रहे हैं. यह मेरी समझ से बाहर है. मुझे इतना पता है कि यह जो आपके सींने में दिल है इसे हार्ट अटैक आया है और यह बिना ऑपरेशन के ठीक नहीं होगा. अगर मुझे आपकी जान बचानी है, तो मुझे इसका ऑपरेशन करना ही पड़ेगा.
शायर सोचता है यह दिल तो न जाने कब से घायल है. चलो मरहम-पट्टी और दवा-दारू से कुछ रिपेयर हो जाएगा, कर लेने दो डाॅक्टर को भी अपनी मनमानी कौन-सा ऑपरेशन करने से मेरे दिल की किताब से मेरी ग़ज़लें चुरा लेगा.
ख़ैर, मुझे बेचैन सुराहीवाला के दिल का दर्द आज डाॅक्टरवाले दिल के दर्द सा फील हुआ. वे भी मुझे देखकर बात करने को तड़प उठे.
मैंने दुआ-सलाम की, तो थोड़ा नाॅर्मल हुए. मुझसे रहा न गया, मैंने पूछ ही लिया, “सब खैरियत तो है. आज न जानें क्यों आप अपने नाम की तरह बेचैन लग रहे हैं.
वे तड़पते हुए बोले, “अरे, क्या ख़ाक खैरियत है तुम्हें. क्या पता कि पिछले चार महींने कितनी टेंशन में बीते हैं.”
मैं चौंका, “आख़िर ऐसी क्या बात हो गई, जो आप इतना परेशान हैं सेहत तो ठीक है ?”
वे बोले अब क्या बताऊं सेहत +-वेहत की कोई बात नहीं है बात ऐसी है कि कहते-सुनते भी डर लगता है.
मैं सोच में पड़ गया कि आखिर शायर साहब के साथ लफडा क्या है?
वे और इंतजार न करते हुए बोले, “तुम ने मी टू सुना…“
मैं हंसा, “आप भी कमाल करते हैं. आज बच्चा-बच्चा मी टू के बारे में जानता है. इसमें न सुनने की कौन-सी बात है. बड़े-बड़े नाम इस लपेटे में आ रहे हैं. कहीं आपका नाम भी तो नहीं. वैसे आ जाए, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा. हां, एक बात है, आप पॉपुलर हो जाएंगे इसके बाद.
वे गु़स्साते हुए बोले, “लाहौल वला कूवत, मेरा तुमसे इसीलिए बात करने का मन नहीं होता. तुम्हें सीरियस मैटर में भी व्यंग्य दिखाई देता है.”
मैंने कान पकड़ा, “नहीं, नहीं ऐसी कोई बात नहीं है. आप अपनी बात बताइए.” मैंने थोड़ी सिंपैथी दिखाई.
वे बोले पता नहीं क्यों मुझे जब से यह मी टू चला है बड़ा डर लग रहा है.
मैं बोला, “बेचैन साहब, जब आपने कोई ग़लत काम किया ही नहीं है, तो डरते क्यों हैं.”
वे सिटपिटाये बोले, “तुम नहीं समझोगे– ये शायरी-वायरी बड़ी बेकार चीज़ होती है. इसमें कहीं भी और कभी भी फंसने का चांस बन सकता है.
तुम्हें तो पता ही है बिना इंस्पायर हुये तो कोई लिख नहीं सकता – जब काॅलेज में था, तो मैंने कई शेर लिखे थे-
“तुम्हारी निगाह में समंदर ढूढ़ लाया हूं, चेहरे झील का पानी है, जो नूर बन के ठहरा है.“
वैसे ही एक लिखा था-
यह जो काली रात मेरे कमरे में उतर आई है, लगता है तेरी जुल्फ का तब्बसुम उतर आया है .
वहीं एक था कि – बिजली सी कौंधती है तेरी एक हंसी के साथ ए खयालों की मलिका तू यूं हंसा न कर .
मैं चौंक गया – बेचैन साहब यह सब तो आपकी हिट शायरी के शेर हैं जो हर मंच से आप सालों से सुना रहे हैं .
वे बोले यही तो लफड़ा है– हर शेर किसी न किसी से इंस्पायर है और मज़ा यह कि शेर मे जिससे वह इंस्पायर है ख़ुद-ब-ख़ुद उसका नाम आ रहा है %.
इतना ही नहीं मेरी हर गज़ल में इंडायरेक्टली कोई न कोई करेक्टर रिफ्लेक्ट हो जाता है.
मामला इतना सीधा नहीं है आजकल मेरी गज़लों के कैरेक्टर मुझे संदेहास्प्रद नज़रों से देखते हैं. ऐसे एक दो नहीं हैं कई कैरेक्टर हैं कोई सब्जी मार्केट में मिल जाता है तो कोई शापिंग माल में , किसी से पार्क में मुलाकात हो जाती है तो कोई बच्चों को स्कूल कालेज छोडते मिल जाता है .
मुझे रश्क हुआ (मेन विल बी मेन) तो बेचैन साहब आपने जितनी ग़ज़लें और शेर लिखे हैं उतने ही इंस्पायरिंग कैरेक्टर हैं आपकी लाइफ में.
इस बार वे कुछ बोले नहीं, बस मुस्कुरा के रह गए.
मैं सोचने लगा क्या आइटम है. अगला कम से कम सौ-दो सौ ग़ज़ल तो लिखी है इसने और हजार-पांच सौ शेर से कम का खजाना नहीं होगा इसका. मन में ख़्याल आया फंसने दो फिर देखता हूं.
ख़ैर ऊपर से मैं कुछ नहीं बोला, बस इतना ही कहा, “बेचैन साहब, यह आग जो जली है, इसका धुआं दूर तक उठ रहा है. और हां, कम से कम अब इंस्पायर होना बंद कर दीजिए. ऐसा न हो कल को आप कोई नई ग़ज़ल लिखो और फिर जलोटाजी की तरह टीवी पर आकर सफ़ाई देते फिरो कि ऐसा-वैसा कुछ नहीं है, मैं तो उस का कन्यादान कर रहा हूं.”
उन्हें शायद मेरी बात अच्छी नहीं लगी. वे अपने फेवर में कुछ सुनना चाहते थे वे चाहते थे कि मैं कह दूं किसी से इंस्पायर होने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन इस तेज़ चलती आंधी में कोई भी स्टेटमेंट देंना भला कौन-सी समझदारी है. भले ही मुझे पता है कि आज “मेन” कितनी पीड़ा में हैं, पर सब कुछ के बाद भी ग़लत काम की तरफ़दारी तो नहीं की जा सकती है न.
जिसे लोग इंसिपिरेशन समझ इग्नोर कर देते हैं, न जाने वह दूसरे को कितना फिजिकल व मेंटल पीड़ा देता हो?

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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